|| महाभारत में हनुमानजी का आवेश ||
जब महाभारत युद्ध हो रहा था उस समय भीमसेन चिंता कर रहे थे की राजा युधिष्ठर बाणो से बहुत आहत हो गए थे उन्हें देखने अर्जुन गए है वे भी कही दिख नही रहे है , देवताओंसे यही प्रार्थना करता हूँ की वे सुरक्षित हो।
उतने में उनका सारथि विशोकने हंसकर कहा महाराज ! आप चिंतित न हो , श्रीकृष्ण आप के पक्षमे है और आज कल देवताओ को आप सबकी प्रार्थना तत्काल सुन लेने का अभ्यास हो गया है , आपकी मनोकामना पूर्ण हो गयी , वे देखिये ! आप अपने अर्जुनके धनुष का भयंकर जयघोष सुन सकते है , और वह देखिये ध्वजदण्ड के साथ बैठा रहने वाला ( वानर पवनपुत्र ) ध्वजापर चढ़ कर चारो और देख रहे है , उसकी दृष्टि से दूसरे तो दूर पर मैं स्वयं बहुत डर रहा हूँ।
ऐसा पढ़ने में आता है की अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी कभी कबार खड़े हो कर कौरवो की सेना की और घूर कर देखते तो उस समय कौरवो की सेना तूफान की गति से युद्ध भूमि को छोड़ कर भाग निकलती , हनुमानजी की दृष्टि का सामना करने का साहस किसी में नही था , उसदिन भी ऐसा ही हुआ था जब कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध चल रहा था।
कर्ण अर्जुन पर अत्यंत भयंकर बाणो की वर्षा किये जा रहा था उनके बाणो की वर्षा से श्रीकृष्ण को भी बाण लगते गए , अतः उनके बाण से श्रीकृष्ण का कवच कटकर गिर पड़ा और उनके सुकुमार अंगोपर लगने लगे , रथकी छत पर बैठे (पवनपुत्र हनुमानजी ) एक टक निचे अपने इन आराध्य की और ही देख रहे थे।
श्रीकृष्ण कवच हीन हो गए थे , उनके श्री अंगपर कर्ण निरंतर बाण मारता ही जा रहा था , हनुमानजी से यह सहन नही हुआ , आकस्मात् वे उग्रतर गर्जना करके दोनों हाथ उठाकर कर्णको मार देने के लिए उठ खड़े हुए।
हनुमानजी की भयंकर गर्जना से ऐसा लगा मानो ब्रह्माण्ड फट गया हो , कौरव- सेना तो पहले ही भाग चुकी थी अब पांडव पक्षकी सेना भी उनकी गर्जना के भय से भागने लगी , हनुमानजी का क्रोध देख कर कर्णके हाथसे धनुष छूट कर गिर गया।
भगवान श्रीकृष्ण तत्काल उठकर अपना दक्षिण हस्त उठाया और हनुमानजी को स्पर्श करके सावधान किया -- रुको ! तुम्हारे क्रोध करने का समय नही है।
श्रीकृष्णके स्पर्श से हनुमानजी रुक तो गए किन्तु उनकी पूछ खड़ी हो कर आकाश में हिल रही थी , उनके दोनों हाथोंकी मुठियां बंध थीं , वे दाँत कट- कटा रहे थे और आग्नेय नेत्रों से कर्णको घूर रहे थे , हनुमानजी का क्रोध देख कर कर्ण और उनके सारथि काँपने लगे और स्वेद धरा चल रही थी दोनों ने दृष्टि निचे कर रखी थी।
हनुमानजी का क्रोध शांत न होते देख कर श्रीकृष्ण ने कड़े स्वर में कहा हनुमान ! मेरी और देखो , अगर तुम इस प्रकार कर्णकी और कुछ क्षण देखोगे तो कर्ण तुम्हारी दृष्टि से ही मर जाएगा।
यह त्रेतायुग नही है। तुम्हारे पराक्रमको तो दूर तुम्हारे तेज को भी कोई यहाँ सह नही सकता। तुमको मैंने इस युद्धमे शांत रहकर बैठने को कहा है।
फिर हनुमानजी ने अपने आराध्यदेव की और निचे देखा और शांत हो कर बैठ गए ,
{ जय श्री राधे राधे }
जब महाभारत युद्ध हो रहा था उस समय भीमसेन चिंता कर रहे थे की राजा युधिष्ठर बाणो से बहुत आहत हो गए थे उन्हें देखने अर्जुन गए है वे भी कही दिख नही रहे है , देवताओंसे यही प्रार्थना करता हूँ की वे सुरक्षित हो।
उतने में उनका सारथि विशोकने हंसकर कहा महाराज ! आप चिंतित न हो , श्रीकृष्ण आप के पक्षमे है और आज कल देवताओ को आप सबकी प्रार्थना तत्काल सुन लेने का अभ्यास हो गया है , आपकी मनोकामना पूर्ण हो गयी , वे देखिये ! आप अपने अर्जुनके धनुष का भयंकर जयघोष सुन सकते है , और वह देखिये ध्वजदण्ड के साथ बैठा रहने वाला ( वानर पवनपुत्र ) ध्वजापर चढ़ कर चारो और देख रहे है , उसकी दृष्टि से दूसरे तो दूर पर मैं स्वयं बहुत डर रहा हूँ।
ऐसा पढ़ने में आता है की अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी कभी कबार खड़े हो कर कौरवो की सेना की और घूर कर देखते तो उस समय कौरवो की सेना तूफान की गति से युद्ध भूमि को छोड़ कर भाग निकलती , हनुमानजी की दृष्टि का सामना करने का साहस किसी में नही था , उसदिन भी ऐसा ही हुआ था जब कर्ण और अर्जुन के बीच युद्ध चल रहा था।
कर्ण अर्जुन पर अत्यंत भयंकर बाणो की वर्षा किये जा रहा था उनके बाणो की वर्षा से श्रीकृष्ण को भी बाण लगते गए , अतः उनके बाण से श्रीकृष्ण का कवच कटकर गिर पड़ा और उनके सुकुमार अंगोपर लगने लगे , रथकी छत पर बैठे (पवनपुत्र हनुमानजी ) एक टक निचे अपने इन आराध्य की और ही देख रहे थे।
श्रीकृष्ण कवच हीन हो गए थे , उनके श्री अंगपर कर्ण निरंतर बाण मारता ही जा रहा था , हनुमानजी से यह सहन नही हुआ , आकस्मात् वे उग्रतर गर्जना करके दोनों हाथ उठाकर कर्णको मार देने के लिए उठ खड़े हुए।
हनुमानजी की भयंकर गर्जना से ऐसा लगा मानो ब्रह्माण्ड फट गया हो , कौरव- सेना तो पहले ही भाग चुकी थी अब पांडव पक्षकी सेना भी उनकी गर्जना के भय से भागने लगी , हनुमानजी का क्रोध देख कर कर्णके हाथसे धनुष छूट कर गिर गया।
भगवान श्रीकृष्ण तत्काल उठकर अपना दक्षिण हस्त उठाया और हनुमानजी को स्पर्श करके सावधान किया -- रुको ! तुम्हारे क्रोध करने का समय नही है।
श्रीकृष्णके स्पर्श से हनुमानजी रुक तो गए किन्तु उनकी पूछ खड़ी हो कर आकाश में हिल रही थी , उनके दोनों हाथोंकी मुठियां बंध थीं , वे दाँत कट- कटा रहे थे और आग्नेय नेत्रों से कर्णको घूर रहे थे , हनुमानजी का क्रोध देख कर कर्ण और उनके सारथि काँपने लगे और स्वेद धरा चल रही थी दोनों ने दृष्टि निचे कर रखी थी।
हनुमानजी का क्रोध शांत न होते देख कर श्रीकृष्ण ने कड़े स्वर में कहा हनुमान ! मेरी और देखो , अगर तुम इस प्रकार कर्णकी और कुछ क्षण देखोगे तो कर्ण तुम्हारी दृष्टि से ही मर जाएगा।
यह त्रेतायुग नही है। तुम्हारे पराक्रमको तो दूर तुम्हारे तेज को भी कोई यहाँ सह नही सकता। तुमको मैंने इस युद्धमे शांत रहकर बैठने को कहा है।
फिर हनुमानजी ने अपने आराध्यदेव की और निचे देखा और शांत हो कर बैठ गए ,
{ जय श्री राधे राधे }