भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा....
भीष्म पितामह ने महाभारत युद्ध में जब 9 नॉवे दिन प्रतिज्ञा की , की या तो में कल पांडवो को मार दुगा , और नहीं तो कल कृष्ण को शस्त्र उठाना पड़ेगा ,
आज जो हरी ही शस्त्र ना उठाऊ ,
तो लाजू गंगा जननी को में सांतनु सूत ना कहाउ
ऐसा संकल्प किया था..
संकल्प बड़ा अधभुत था , कौरवों को खुसी का ठिकाना नही रहा , क्यों की भीष्म प्रतिज्ञा हो गयी थी , सब प्रश्न हो गए , दुरियोधन ने खुसी के बाजे बजवा दिए की अब हमे जितने से कोई नही रोक पायेगा
क्यों की कृष्ण शस्त्र उठाएंगे नही , इसका मतलब भीष्म पितामह कल पांडवो को मार डालेंगे
पर जब प्रभु के कानो में ये खबर पड़ी तो भगवान को रात भर नींद नही आ रही है , प्रभु सो नही पाए , और सोच रहे है की भीष्म पितामह ने ऐसी प्रतिज्ञा कर दी , क्या उन्हें पता नही की मेरे भक्त का कभी विनास नही होता !!
रात की चार बजी थी , कृष्ण गए द्रोपदी के सिविर में , और बोले की बहिन मुझे लगता है की शायद आज तू विधवा हो गयी , ये बात सुनकर द्रोपदी हसने लगी , की कोई बात नही हो जाने दो , कृष्ण बोले अरे आज तू विधवा हो जाएगी इस बात पर तुम हस रही हो तुझे चिंता नही ? द्रोपिदी बोली प्रभु जिसका सहारा आप बन जाओ उनको चिंता कैसी !!
"हमे चिंता नही उनकी , उन्हें चिंता हमारी है
हमारे प्राणों का रक्षक , सुदर्शन चक्र धारी है
आप के होते हुए हम चिंता क्यों करे !!
कृष्ण बोले बहिन आज कोई छोटी मोटि बात नही है , बहुत बड़ी बात है , पितामह भीष्म ने ये संकल्प लिया है की आज में पांडवो को मरूँगा और ये अटल संकल्प है उन्होंने कहा है की मरूँगा तो वो छोड़ेंगे नही !!
कृष्ण बोले बहिन तुम्हे अभी मेरे साथ चलना होगा , द्रोपिदी बोली चलो।
ये कहा जा रहे है ? ये पितामह भीष्म के सिविर में जा रहे है !!
रास्ते में द्रोपदी की चप्पले आवाज कर रही थी तो कृष्ण बोले बहिन अब हम दुश्मनों के सिविर की और जा रहे , कही चप्पल की आवाज सुनकर कोई दुश्मन आक्रमण ना करदे इनको उतर दो , जैसे ही द्रोपिदी ने चप्पले उतारी भगवन श्री कृष्ण ने उठाकर अपने हाथ में रख ली , अपने खाक में भक्त की चप्पल लिए चल रहे है !!
भीष्म पितामह के सिविर के पास गए , भीतर जाने लगे तो सेनिको ने रोक दिया की कहा जाते हो ? कौन हो तुम ?, भगवान ने कहा की ये पांड्वो की पत्नी है इनको पितामह के दर्शन करने है , इनको अन्दर जाने दो !!
सेनीको ने ध्यान से देखा तो द्रोपदी को तो पहचान लिया की ये तो महारानी द्रोपदी है , सेनिको ने कहा की ठीक है हम इनको तो पहचान गए , इनको तो अन्दर जाने देंगे , पर तुम कौन हो ? तुम्हे हम अन्दर नही जाने देंगे !!
भगवन बोले हम को अन्दर जाना भी नही है , भगवान ने सोचा की अच्छा है रात भी काली और मैं भी कला इसने मुझे पहचाना नही ,और भगवान बोले भईया मैं तो और कोई नही इनका एक छोटासा नोकर हु , ये अकेली कैसे आती सो में इनके साथ आ गया !!
द्रोपदी भीष्म पितामह के पास गयी , पितामह अपने प्रभु के ध्यान में लीन है पितामह को प्रणाम करते हुए कहा की बाबा प्रणाम ,भीष्म पितामह ने सोचा की दुरियोधन की पत्नी होगी , बिना आख खोले दोनों हाथोसे आशीर्वाद के लिए उठे और मुह से निकल पड़ा की बेटी अखंडशोभाग्यावती भवः
द्रोपदी ने बोल बाबा जरा आख कोलकर देखो की अभी तो कह रहे थे की पांड्वो को मार डालूँगा , और अब कहरहे हो की अखंडशोभाग्यावती भवः , ये दोनों बाते एक साथ कैसे निभेगी ? भीषम पितामह ने आख खोला और सुना की ये तो द्रोपदी है
तो
सुनते ही वचन द्रोपदी के ,हाथो से माला छुट गयी
प्रभु के चरणों में लगी , वो अटूट समाधी टूट गयी
द्रोपदी की बात सुनते ही हाथसे माला छूट गयी , अटूट समादी टूट गयी।
भगवान श्री कृष्ण ने पितामह से द्रोपदी को अखंडशोभाग्यावती भवः का आशीर्वाद दिलादिया ,
पितामह बोले बेटी तू अकेली कैसे आई ? द्रोपदी ने कहा बाबा मैं अकेली कहा आई हु , मेरे साथ श्री कृष्ण भी आये है !! पितामह समझ गए की ये काम भगवान का ही हो सकता है वो ही तुजे ला सकता है बेटी और कोई नही....
पितामह ने सिविर के बाहर जा कर देखा की कृष्ण एक पेड़ के निचे काली कम्बल ओढ़कर सो रहे है , जो चद्दर उठाके देखा की भगवान ने द्रोपदी के चप्पलो का तकिया बना कर सो रहे है ,
पितामह भगवान के चरणों में गिरकर रो पड़े , की प्रभु जिस भक्त की चप्पले आप अपने सिरपर धारण कर दो तो मेरी क्या मजाल की मैं उनका बाल भी बांका कर सकू...!!
प्रभु जिसको तारे
कौन उसको मारे....
{ जय जय श्री राधे }
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