Wednesday, 6 February 2013

  मुदभ्रुक्सुन लीला ,अर्थार्त  ठाकुर जी माटी खाते है......
बाल कृष्ण लाल थोड़े बड़े हुए माँ यशोदा के आगे जीद करने लगे की  माँ अब मोये आज्ञा दे अब में खेलवे को जाऊ ? मैया बोली लाला कहा खेलवे को जायेगो ?
ना मैया अब में खेलवेको जाऊगो, मोये खेलवे को जाना है ।
 मैया ने सोचा इस को अकेला कैसे खेलवे को भेजू  ?
मैया ने मनसुख राम जी को बुलाया और मनसुख राम जी के  साथ
बाल कृष्ण लाल  को खेलने को भेज ,वहा पर बाल कृष्ण लाल खेलते - खेलते मुदभ्रुक्सुना लीला करते है अर्थार्त   ठाकुर जी माटी खाते ।

मनसुखरामजी मईया से सिकायत करते है की
"मैया  तेरा लाला माटी खाता है
मईया कहती में मेरे लाला को कभी माखन मिश्री की मानायी नही करू फिर ये माटी क्यों खावे ?
मनसुखराम जी बोले नही मैया मेने अपनी आँखों  से देखा,  तेरा लाला माटी खाता है ।
मैयाने मुखमे अंगुली डाली माटी के डले निकले बाद में मैया ने पकड़ा बाल कृष्ण लाल का कान ।
रे  छोरे माटी खावे ? आ आ .... कर।  क्या - क्या  है तेरे मुख में?
ठाकुर जी बोले माँ तू देख नही सकेगी ।
मैया बोली , आ आ .... कर क्या नही देख सकेगी ? आआ..... कर।
जैसे ही ठाकुर जी ने मुख खोला तो पूरा भ्रम्ह्मांड ठाकूर के मुख में नजर आने लगा सभी तीर्थ  इत्यादि , मैया ने लाला के मुख में देखा
मैया देखती ही रह गयी ,मैया ने सोचा की इसका मतलब मेरा बालक कोई सामान्य बालक नही है , ये कोई ब्रह्म् का ही अवतार है ,

ठाकुर जी ने सोचा गड़ बड़ हो गयी अब मेरे माँ मुझे भगवान मानेगी अब ना तों मुझे गोदी में बिठायेगी और ना ही मुझे माखन मिश्री खीलाएगी एक सिंगासन पर बिठा देगी रसोई तैयार कर  भोग आगे रख कर पर्दा करके बोलेगी हे भगवान भोग लगे और ले जायेगी , माँ की भक्ति तो मिलेगी पर माँ का स्नेह नही मिलेगा ,
ठाकुर जी ने ऐसी योग माया फेलाई ,मैया ने ठाकुर जी के मुख में क्या देखा वो सब भूल गयी इतना याद रहा की लाला के मुख में माटी देखि

मैया पिटाई करने लगी ऐ छोरा उदमी तेरे जैसे दो चार हो जाते तो मेरा क्या हाल होता एक है फिरभी तूने परिशाना  कर रखा है ,गोपीया सुनेगी तो क्या कहेगी यशोदा अपने लाला को खाने को कुछ देती नही इसलिए छोरा माटी खाता है ,मैया ने ठाकुर जी को उखल से बान्द दिया

ठाकुरजी उखल से बन्दे - बन्दे लीला करते है  जो नन्द भवन में यमुला अर्जुनदो वृक्ष थे जिनको नारद जी ने श्राप दिया था ठाकुर जी ने उनको धरासायी करके उनको अपने धाम भेजा
वृक्ष निचे पड़े तो धड़ामसी आवाज आई ,

नन्द बाबा आये कहा मेरे लाला को किसने बांदा ? क्यों बांदा ? गोपियाँ ने कहा बाबा हमारे ऊपर गुस्सा मत करो इसकी माँ ने ही बांदा इसकी माँ से ही पूछो ,
बाबा बोले क्योरी यशोदा तेने लाला को बांदा ? हाँ क्या करू बहुत उदमी हो गया तंग आ गयी में इस छोरे से, आप अपने साथ ले जाओ तो खबर पड़े ,
नन्द बाबा ने गोदी में लिया बोले देख बेठा ये तेरी माँ तुजे दाटी लगाती है , पिटाई करती है कभी बान्दति है माँ के पास रहना नही ,आ चल अपन तो हथाई पे चलते है , बैठक में चलते है

ठाकुर जी ने सोचा बाबा के साथ जाऊँगा तो वहा मिलेगा क्या सिवाय गपोके बातो के ?, माँ के पास रहुगा तो माँ कभी माखन किलाएगी , कभी मिश्री खिलाएगी , मिठाई खिलाएगी ,
ठाकुर जी तो उतरे बाबा की गोदी से , और मैया की गोदी में जा कर चिपक गए मैया बोली ये चटोरा कही जानेवाला नही.....
आ हा हा  ठाकुर ने माँ के मुख से नाम सुना चटोरा ,इतने प्रसन्न हुवे की चलो एक नया नाम तो मिला , वैकुंठ नाथ ब्रह्मा नाथ सच्चिदा नन्द ये सब नाम सुन-सुन कर मेरे तो कान थक गए ,ठाकुरजी किसी वास्तु के चटोरे नही ,ये प्रेम के चटोरे है ये भाव के चटोरे है प्रेम खाते है 

|| जय जय श्री राधे ||

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