Wednesday, 22 July 2015

प्रभुश्रीराम जी का अपने धाम पधारना और श्रीसीताजी की निंदा करने वाले धोबी पर श्रीराम जी की कृपा !

जब भगवान श्रीराम अपने धाम को चले उस समय उनके साथ अयोध्याके सभी पशु - पक्षी, पेड़- पोधे मनुष्य भी उनके साथ चल पड़े। उन मनुष्यो में श्रीसीताजी की निंदा करने वाला धोबी भी साथ में था , भगवान ने उस धोबी का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उनको अपने साथ लिए चल रहे थे।
जिस - जिस ने भगवान को जाते देखा वे सब भगवान के साथ चल पड़े कहते है की वहां के पर्वत भी उनके साथ चल पड़े।  

सभी पसु पक्षी पेड़ पोधे पर्वत और मनुष्यों ने जब साकेत धाम में प्रवेश होना चाहा तब साकेत का द्वार खुल गया पर जैसे ही उस निंदनीय धोबी ने प्रवेश करना चाहा तो द्वार बंद हो गया।

साकेत द्वारने भगवानसे कहा  महाराज ! आप भलेही इनका हाथ पकड़ले पर ये जगतजननी माता श्रीसीताजी की  निंदा कर चूका है इसलिए ये इतना बड़ा पापी है की मेरे द्वारसे साकेत में प्रवेश नही कर सकता।

जिस समय भगवान सब को लेकर साकेत जा रहे थे उस समय सभी देवी - देवता आकाश मार्ग से देख रहे थे ,

की माताजी की निंदा करने वाले पापी धोबी को भगवान कहा भेजते है।

भगवान ने द्वारबन्द होते ही इधर - उधर देखा तो ब्रह्माजीने सोचा की कही भगवान इस पापि को मेरे ब्रह्मलोक में न भेजदे , वे हाथ हिला - हिला कर कहने लगे , महाराज ! इस पापिके लिए मेरे ब्रह्मलोक में कोई स्थान नही है।

इन्द्रने सोचा की कही मेरे इन्द्रलोक में न भेजदे , इंद्र भी घबराये , वे भी हाथ हिला - हिला कर कहने लगे , महाराज ! इस पापिको मेरे इन्द्रलोक में भी कोई जगह नही है।

ध्रुवजीने सोचा की कही इस पापी को मेरे ध्रुवलोक में भेज दिया तो इसका पाप इतना बड़ा है की इसके पापके बोझसे मेरा ध्रुवलोक घिर कर निचे आ जायेगा ऐसा विचार कर ध्रुवजी भी हाथ हिला - हिला कर कहने लगे महाराज ! आप इस पापिको मेरे पास भी मत भेजिएगा।

जिन - जिन देवताओंका एक अपना अलगसे लोक बना हुआ था उन सभी देवताओंने उस निंदनीय पापी धोबीको अपने लोकमे रखने से मना कर दिया।

भगवान खड़े - खड़े  मुस्कुराते हुए सबका चेहरा देख रहे है पर कुछ बोलते नही |

उस देवताओ की भीड़ में यमराज भी खड़े थे , यमराजने सोचा की ये किसी लोक में जानेका अधिकारी नही है अब इस पापी को भगवान कहि मेरे यहाँ नही भेजदे और माता की निंदा करनेवाले को में अपनी यमपुरी में नई रख सकता वे घबराकर उतावली वाणीसे बोले ,
महाराज ! महाराज ! ये इतना बड़ा पापी है की इसके लिए मेरी यमपुरी में भी कोई जगह नही है।

उस समय धोबीको घबराहट होने लगी की मेरी दुर्बुद्धीने इतना निंदनीय कर्म करवादिया की यमराज भी मुझे नही रख सकते!

भगवान ने धोबी की घबराहट देख कर धोबी की और संकेत से कहा तुम घबराओ मत ! मैं अभी तुम्हारे लिए एक नए साकेत का निर्माण करता हूँ , तब भगवानने उस धोबीके लिए एक अलग साकेत धाम बनाया।
यहाँ एक चोपाई आती है !
सिय निँदक अघ ओघ नसाए ।
लोक बिसोक बनाइ बसाए ।।


ऐसा अनुभव होता है की आज भी वो धोबी अकेलाही उस साकेत में पड़ा है जहा न कोई देवी देवता है न भगवान , न वो किसी को देख सकता है और  न उसको कोई देख सकते है। 



तात्पर्य यह है की भगवान अथवा किसी  भी देवी देवता  की निंदा करने वालो के लिए कही कोई स्थान नही है।
जय श्री सीताराम !!
  { जय
जय श्री राधे }
 

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