कलयुग काली कोटरी , जा को चाहे ना कोय !
कलयुग मारन जो चला , बैठा बुधि खोय !!
कलयुग का समय आते ही कलयुग ने अपना रंग दिखाना सुरु कर दिया जब वो राजशाही वैश धारण कर हाथ में डंडा लिए , गाय - बैल के एक जोड़े को इस तरह पिटते हुए जा रहा था जैसे उनका कोई स्वामी ही नही हो।
उस समय पृथ्वी माँ ने गाय और धर्म ने बैल का रूप धारण कर रखा था।
धर्म रूपी बैल के तीन पैर ( त़प , पवित्रता , और दया ) ये तिन पैर टूट जाने से वह एक पैर पर ही चल रहे थे जिनका नाम था ( सत्य )
जब राजा परीक्षित ने देखा की राजशाही वैश धारण किये हुए काला कलूट एक दुष्ट व्यक्ति एक पैर पर चल रहे बैल और दुबली श्रीहीन गाय को पिटता ही जा रहा है , तब राजा परीक्षित ने अपना धनुस चढ़ा कर मेघ के सामान गभीर वाणी से उनको ललकार ते हुए बोले अरे ! दुष्ट तू कौन है जो बलवान हो कर भी तू मेरे राज्य के इन दुर्बल निरपरद प्राणियों को बलपूर्वक मारता ही जा रहा है ?
अरे ! पापी
तूने नट की तरह वैष तो किसी राजा सा धारण कर रखा है पर कर्म से तू सूत्र जान पड़ता है।
इस तरह गर्जना करते हुए जब राजा परीक्षित अपने तीर कबान ले कर उनको मारने लगे तब कलयुग ने सोचा की अब मैं इस राजा के बाण से बच नही सकूँगा अब राजा मुझे मार ही डालेंगे , तब कलयुग ने अपना राजशाही वेश झट पट उतर कर राजा परिक्षीत के चरणों में घिर पड़ा , बोल महाराज आप मुझे मारिये मत में कलयुग हूँ
मेरा काम है पाप ,कूट , कपट , चोरी , दरिद्रता , उत्पाद , अधर्म , फेलाना। ,आप जानते ही हो राजन बाकि तीनो युग अपना भोग - भोग कर चले गए है अब मेरी ही बारी है , विधाता की आज्ञा से मुझे आना पड़ा आप मुझे शमा कर दीजिये।
राजा परीक्षित पांडवों के पोत्र थे दया उनमे कूट कूट कर भरी हुयी थी। जब राजा ने देखा की कलयुग हाथ जोड़कर विनम्र भावसे प्रार्थना करते हुए उनके चरणों में पड़ा है तो , राजा ने कहा की जब तुम हाथ जोड़कर मेरी शरण में आ गया है अब तुझे कोई नही मार सकता पर तू अधर्म का सहायक है इसलिए तु मेरे राज्य में नही रह सकता ,इस देश में भगवान श्री हरी यज्ञ के रूप में निवास करते है यहाँ तेरा निवास नही हो सकता।
कलयुग बोंला महारज ! तीनो युगों के बाद मेरा ही समय है में जा नही सकता आप मुझे कोई स्थान दे दीजिए।
तब राजा परीक्षित ने कलयुग को चार स्थान दिए थे ,
जो ( मधपान, पर स्त्री गमन ,हिंसा , निर्दयता ,) पर कलयुग ने कहा महाराज ! यहाँ तो कोई परिवार नही बसते यहाँ तो कष्ट ही कष्ट है , आप एक स्थान मुझे और दे दीजिये जहा पूरा परिवार रहता हो , तब कलयुग ने एक स्थान स्वर्ण में मांग लिया , राजा ने कलयुग की बात मान कर कहा ठीक है ,अनीति से कमाए हुए स्वरण में तेरा ही निवास रहेगा |
राजा ने कलयुग को पाँच स्थान ने दे दिए ( झूट , मद , काम ,वैर ,और रजोगुण ) ये पाँच स्थान दे कर राजा घर लोट आये। ,
महाराज परीक्षित ने सोचा की आज मेरे पूर्वजो के खजाने खुलवाता हूँ देखू कितना क्या है , राजा ने खजाने का ताला खुलवाया और उस में रखे हीरे मोती पन्ने से जड़े जेवरात को इधर उधर करते हुए उनकी नजर एक मुकुट पर पड़ी जो राजा ( जरासन ) का था जो अनीति से कमाए हुए स्वर्ण से बना हुआ था।
परीक्षित ने सोचा की आज में ये मुकुट ही पहन लेता हूँ , परीक्षित भूल गया की मेने ही अनीति से कमाए हुए स्वर्ण में कलयुग को वास दिया था।
राजा ने जैसे ही मुकुट अपने सिर पर धारण किया उनमे कलयुग बैठ गया , राजा घोड़े पर सवार हो कर सिकार खेलने निकले जहा उनको बहुत प्यास लगी थी , राजा ने देखा की सामने एक कुटिया है वह पानी पि आता हूँ , राजा बहार से ही उचे स्वर में आवाज लगाने लगा की अरे ,,,,, अन्दर कोई है ? जरा पानी पिला दो भाई !!
राजा ने सोचा की अन्दर से कोई जवाब नही आ रहा है तो वो भीतर चले गए जहा श्रंगी ऋषि अपने इष्ट देव के ध्यान में बेठे , राजा के सर पर काल नाच रहा था सो ऋषि को अनेको गलिय देते हुए की अरे मुर्ख में कब से आवाज लगाये रहा हूँ सुनता नही मुरदा है क्या तू जनता नही में यहाँ का राजा हूँ। फिर भी ऋषि के तरफ से कोई जवाब न पा कर क्रोध में आ कर ऋषि के गले में एक मृत साफ डाल कर चले गए
घर आकर मुकुट को खोला और सोचने लगा की अरे ये मेने क्या अपराद कर दिया जिन हाथो से ऋषि महात्माओ की सेवा किया करता था आज इन्ही हाथो से एक ऋषि के गले में मृत साफ डाल कर आ गया , राजा पछतावे की आग में जल ही रहा था , उतने में राजा के पास खबर आ गयी की जिन ऋषि के गले में आप ने मृतक साफ डाल कर आये है , उनके बेटे ने अप को श्राप दिया है की जिसने भी मेरे पिता श्री के गले में मृत साफ डाला है उस की ठीक सातवे दिन तक्षक नाग के डसने से उनकी मृत्यु हो जायेगी।
फिर महाराज परीक्षित उसी समय घर छोड़ कर गंगा के किनारे चले गए जहा सुखदेवमुनि से पूरी भगवत कथा सुनी , जो आज हम सब को सुनने को मिल रही है..!!
{ जय जय श्री राधे }
कलयुग मारन जो चला , बैठा बुधि खोय !!
कलयुग का समय आते ही कलयुग ने अपना रंग दिखाना सुरु कर दिया जब वो राजशाही वैश धारण कर हाथ में डंडा लिए , गाय - बैल के एक जोड़े को इस तरह पिटते हुए जा रहा था जैसे उनका कोई स्वामी ही नही हो।
उस समय पृथ्वी माँ ने गाय और धर्म ने बैल का रूप धारण कर रखा था।
धर्म रूपी बैल के तीन पैर ( त़प , पवित्रता , और दया ) ये तिन पैर टूट जाने से वह एक पैर पर ही चल रहे थे जिनका नाम था ( सत्य )
जब राजा परीक्षित ने देखा की राजशाही वैश धारण किये हुए काला कलूट एक दुष्ट व्यक्ति एक पैर पर चल रहे बैल और दुबली श्रीहीन गाय को पिटता ही जा रहा है , तब राजा परीक्षित ने अपना धनुस चढ़ा कर मेघ के सामान गभीर वाणी से उनको ललकार ते हुए बोले अरे ! दुष्ट तू कौन है जो बलवान हो कर भी तू मेरे राज्य के इन दुर्बल निरपरद प्राणियों को बलपूर्वक मारता ही जा रहा है ?
अरे ! पापी
तूने नट की तरह वैष तो किसी राजा सा धारण कर रखा है पर कर्म से तू सूत्र जान पड़ता है।
इस तरह गर्जना करते हुए जब राजा परीक्षित अपने तीर कबान ले कर उनको मारने लगे तब कलयुग ने सोचा की अब मैं इस राजा के बाण से बच नही सकूँगा अब राजा मुझे मार ही डालेंगे , तब कलयुग ने अपना राजशाही वेश झट पट उतर कर राजा परिक्षीत के चरणों में घिर पड़ा , बोल महाराज आप मुझे मारिये मत में कलयुग हूँ
मेरा काम है पाप ,कूट , कपट , चोरी , दरिद्रता , उत्पाद , अधर्म , फेलाना। ,आप जानते ही हो राजन बाकि तीनो युग अपना भोग - भोग कर चले गए है अब मेरी ही बारी है , विधाता की आज्ञा से मुझे आना पड़ा आप मुझे शमा कर दीजिये।
राजा परीक्षित पांडवों के पोत्र थे दया उनमे कूट कूट कर भरी हुयी थी। जब राजा ने देखा की कलयुग हाथ जोड़कर विनम्र भावसे प्रार्थना करते हुए उनके चरणों में पड़ा है तो , राजा ने कहा की जब तुम हाथ जोड़कर मेरी शरण में आ गया है अब तुझे कोई नही मार सकता पर तू अधर्म का सहायक है इसलिए तु मेरे राज्य में नही रह सकता ,इस देश में भगवान श्री हरी यज्ञ के रूप में निवास करते है यहाँ तेरा निवास नही हो सकता।
कलयुग बोंला महारज ! तीनो युगों के बाद मेरा ही समय है में जा नही सकता आप मुझे कोई स्थान दे दीजिए।
तब राजा परीक्षित ने कलयुग को चार स्थान दिए थे ,
जो ( मधपान, पर स्त्री गमन ,हिंसा , निर्दयता ,) पर कलयुग ने कहा महाराज ! यहाँ तो कोई परिवार नही बसते यहाँ तो कष्ट ही कष्ट है , आप एक स्थान मुझे और दे दीजिये जहा पूरा परिवार रहता हो , तब कलयुग ने एक स्थान स्वर्ण में मांग लिया , राजा ने कलयुग की बात मान कर कहा ठीक है ,अनीति से कमाए हुए स्वरण में तेरा ही निवास रहेगा |
राजा ने कलयुग को पाँच स्थान ने दे दिए ( झूट , मद , काम ,वैर ,और रजोगुण ) ये पाँच स्थान दे कर राजा घर लोट आये। ,
महाराज परीक्षित ने सोचा की आज मेरे पूर्वजो के खजाने खुलवाता हूँ देखू कितना क्या है , राजा ने खजाने का ताला खुलवाया और उस में रखे हीरे मोती पन्ने से जड़े जेवरात को इधर उधर करते हुए उनकी नजर एक मुकुट पर पड़ी जो राजा ( जरासन ) का था जो अनीति से कमाए हुए स्वर्ण से बना हुआ था।
परीक्षित ने सोचा की आज में ये मुकुट ही पहन लेता हूँ , परीक्षित भूल गया की मेने ही अनीति से कमाए हुए स्वर्ण में कलयुग को वास दिया था।
राजा ने जैसे ही मुकुट अपने सिर पर धारण किया उनमे कलयुग बैठ गया , राजा घोड़े पर सवार हो कर सिकार खेलने निकले जहा उनको बहुत प्यास लगी थी , राजा ने देखा की सामने एक कुटिया है वह पानी पि आता हूँ , राजा बहार से ही उचे स्वर में आवाज लगाने लगा की अरे ,,,,, अन्दर कोई है ? जरा पानी पिला दो भाई !!
राजा ने सोचा की अन्दर से कोई जवाब नही आ रहा है तो वो भीतर चले गए जहा श्रंगी ऋषि अपने इष्ट देव के ध्यान में बेठे , राजा के सर पर काल नाच रहा था सो ऋषि को अनेको गलिय देते हुए की अरे मुर्ख में कब से आवाज लगाये रहा हूँ सुनता नही मुरदा है क्या तू जनता नही में यहाँ का राजा हूँ। फिर भी ऋषि के तरफ से कोई जवाब न पा कर क्रोध में आ कर ऋषि के गले में एक मृत साफ डाल कर चले गए
घर आकर मुकुट को खोला और सोचने लगा की अरे ये मेने क्या अपराद कर दिया जिन हाथो से ऋषि महात्माओ की सेवा किया करता था आज इन्ही हाथो से एक ऋषि के गले में मृत साफ डाल कर आ गया , राजा पछतावे की आग में जल ही रहा था , उतने में राजा के पास खबर आ गयी की जिन ऋषि के गले में आप ने मृतक साफ डाल कर आये है , उनके बेटे ने अप को श्राप दिया है की जिसने भी मेरे पिता श्री के गले में मृत साफ डाला है उस की ठीक सातवे दिन तक्षक नाग के डसने से उनकी मृत्यु हो जायेगी।
फिर महाराज परीक्षित उसी समय घर छोड़ कर गंगा के किनारे चले गए जहा सुखदेवमुनि से पूरी भगवत कथा सुनी , जो आज हम सब को सुनने को मिल रही है..!!
{ जय जय श्री राधे }
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