हरी जन तो हारे भले जितण दो संसार !
हारे हरिपुर जावसी जीते यमके द्वार !!
एक बार सब लंकावासी मिल कर रावण के पास गए और बोले महाराज ! आप तो रामजी के प्रबल विरोदी है और आप के भाई विभीषण जी तो रामजी के परम भक्त है , वे सब दिन राम नाम की रट लगाये रहते है और पुरे घरमे भी राम राम लिखा रखा है , और तो और हाथ में झोली माला ले कर सब दिन राम राम करते रहते है और महाराज ! घरमे भी राम नाम का कीर्तन होता है ,
"श्री राम जय राम जय जय राम....
लंका वासियो ने रावण को खूब भड़का दिया।
रावण क्रोध से तिलमिला उठा और कहा विभीषण को बुलाओ ,
विभीषण जी आये और कहा ये लोग क्या कहते है तुम्हारे घरमे राम राम लिखा है
"बोले हाँ ! लिखा है
' बोले हाथमे झोली है , क्या जपते हो ?
"बोले ' राम राम..
विभीषणजी की बात सुन कर रावण तिलमिला कर बोला ,
' तुम मेरे शत्रु का नाम जपते हो ?
विभीषणजी "बिलकुल नही.....
विभीषण जी ठीक ही तो कह रहे थे रामजी किसीके शत्रु है ही नही , वे तो प्रत्येक जीव के हितैसी है।
रावण बोला फिर राम - राम क्यों जपते हो ?
विभीषणजी ने सोचा की सच कहूँगा तो ये दुष्ट मेरे भजन में बाधा पहुचायेगा
विभीषणजी बोले " महाराज ! ये शिकायत करने वाले नाम के रहष्य को नही समझते , मैं तो मेरे भईया भाभी का नाम जपता हूँ पर , क्या कहे ! ये चुगलखोर नाम की महिमा नही समझ पाते , मैं अपने भईया भाभी का भक्त हूँ इसलिए राम नाम जपता हूँ।
रावण बोला राम राम जपने से तुम मेरा और तेरे भाभी का भक्त कैसे हुआ ?
"बोले महाराज ! आप त्रिलोकी के विजेता हो कर भी मंद्बुधियो की भांति बात करते है।
" आप का नाम रावण है की नही ?
' बोले हाँ ! है
" बोले भाभीका नाम मंदोदरी है की नही ?
' बोले हाँ ! है
अब आप भी ( राम नाम ) का रहस्य समझ लीजिये।
( रा माने रावण )
( म माने मंदोदरी ) आपका और भाभी का पूरा नाम लेनेमें कठिनाई होती है इसलिए संगसेप में ही ( राम नाम ) जप लेता हूँ।
रावण ने विभीषण जी को ह्रदय से लगा लिया और कहा की भाई हो तो विभीषण जैसा।
'प्रसन्न हो कर बोला , हाँ ! विभीषण इस भावसे तुम चाहे जितना राम राम करो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।
विभीषण जी झूट बोल रहे थे वे केवल राम भक्त है भईया भभीसे उनको क्या लेना देना पर रावण से पिंड छुड़ाने के लिए रावण को प्रसन्न करने वाली बात कही।
तात्पर्य यह है की कोई जीव भगवतशरणागत हो जाये और किसी भी तरह की बाधा आये तो उन बाधाओ को लाग कर किसी भी युक्ति से भगवत शरणागत हो जाना चाहिए , किसी भी युक्ति से केवल भगवान के हो जाओ !
जे रति होइ सियाराम सु !
सुमिरत रात दिवस तन, मन सु !!
, एक ही ध्यान रहे , हम भगवान के है और एक भगवान ही हमारे अपने है। { जय जय श्री राधे }
हारे हरिपुर जावसी जीते यमके द्वार !!
एक बार सब लंकावासी मिल कर रावण के पास गए और बोले महाराज ! आप तो रामजी के प्रबल विरोदी है और आप के भाई विभीषण जी तो रामजी के परम भक्त है , वे सब दिन राम नाम की रट लगाये रहते है और पुरे घरमे भी राम राम लिखा रखा है , और तो और हाथ में झोली माला ले कर सब दिन राम राम करते रहते है और महाराज ! घरमे भी राम नाम का कीर्तन होता है ,
"श्री राम जय राम जय जय राम....
लंका वासियो ने रावण को खूब भड़का दिया।
रावण क्रोध से तिलमिला उठा और कहा विभीषण को बुलाओ ,
विभीषण जी आये और कहा ये लोग क्या कहते है तुम्हारे घरमे राम राम लिखा है
"बोले हाँ ! लिखा है
' बोले हाथमे झोली है , क्या जपते हो ?
"बोले ' राम राम..
विभीषणजी की बात सुन कर रावण तिलमिला कर बोला ,
' तुम मेरे शत्रु का नाम जपते हो ?
विभीषणजी "बिलकुल नही.....
विभीषण जी ठीक ही तो कह रहे थे रामजी किसीके शत्रु है ही नही , वे तो प्रत्येक जीव के हितैसी है।
रावण बोला फिर राम - राम क्यों जपते हो ?
विभीषणजी ने सोचा की सच कहूँगा तो ये दुष्ट मेरे भजन में बाधा पहुचायेगा
विभीषणजी बोले " महाराज ! ये शिकायत करने वाले नाम के रहष्य को नही समझते , मैं तो मेरे भईया भाभी का नाम जपता हूँ पर , क्या कहे ! ये चुगलखोर नाम की महिमा नही समझ पाते , मैं अपने भईया भाभी का भक्त हूँ इसलिए राम नाम जपता हूँ।
रावण बोला राम राम जपने से तुम मेरा और तेरे भाभी का भक्त कैसे हुआ ?
"बोले महाराज ! आप त्रिलोकी के विजेता हो कर भी मंद्बुधियो की भांति बात करते है।
" आप का नाम रावण है की नही ?
' बोले हाँ ! है
" बोले भाभीका नाम मंदोदरी है की नही ?
' बोले हाँ ! है
अब आप भी ( राम नाम ) का रहस्य समझ लीजिये।
( रा माने रावण )
( म माने मंदोदरी ) आपका और भाभी का पूरा नाम लेनेमें कठिनाई होती है इसलिए संगसेप में ही ( राम नाम ) जप लेता हूँ।
रावण ने विभीषण जी को ह्रदय से लगा लिया और कहा की भाई हो तो विभीषण जैसा।
'प्रसन्न हो कर बोला , हाँ ! विभीषण इस भावसे तुम चाहे जितना राम राम करो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।
विभीषण जी झूट बोल रहे थे वे केवल राम भक्त है भईया भभीसे उनको क्या लेना देना पर रावण से पिंड छुड़ाने के लिए रावण को प्रसन्न करने वाली बात कही।
तात्पर्य यह है की कोई जीव भगवतशरणागत हो जाये और किसी भी तरह की बाधा आये तो उन बाधाओ को लाग कर किसी भी युक्ति से भगवत शरणागत हो जाना चाहिए , किसी भी युक्ति से केवल भगवान के हो जाओ !
जे रति होइ सियाराम सु !
सुमिरत रात दिवस तन, मन सु !!
, एक ही ध्यान रहे , हम भगवान के है और एक भगवान ही हमारे अपने है। { जय जय श्री राधे }