श्री राधा कृष्ण के विवाह की कथा!
एक दिन नन्दबाबा ने सोचा की जब से लाला भयो है तब से गो चरावे नही गयो आज गो चरावे को जाता हूँ ,
बाबा , श्री बालकृष्ण लाल को गोदी में ले कर चल पड़े वे अपने लाला को लाड लडाते - लड़ाते गोए चरते हुए बहुत दूर निकल गए धीरे - धीरे भाण्डीर - वन जा पहुँचे
जहा थोड़ी ही देर में श्री कृष्ण की इच्छा से वायु का वेग अत्यंत प्रखर हो उठा ,
आकाश मेघों की घटा से आच्छादित हो गया तमाल और कदम्ब वक्षो के पल्ल्व टूट - टूट कर गिरने , उड़ने और अत्यंत डरावने उत्पादन करने लगे उस समय महान अन्धकार छा गया। नंदनंदन सामान्य बालक की भांति डर कर रोने लगे।
अपने लाला को डरते हुए रोते देख बाबा को भी भय लगने लगा तब वे शिशु को गोद मे लिए और उनको गर्गचार्यजी की कई हुई बात याद आई तब बाबा ने श्री राधा जी को याद किया,
उसी समय करोडो सूर्यो के समूह की सी दिव्य दिप्ति उदित हुई जो सम्पूर्ण दिशाओ में व्याप्त थी उस दिव्य प्रकाश में बाबा ने श्री राधाजी को देखा।
श्री राधाजी पहले ही सोलह शृंगार कर प्रकट हुई थी।
श्रीराधा जी के दिव्य तेज से अभिभूत हो बाबा ने तत्काल उनके सामने मस्तक झुकाया और हाथ जोड़कर कहा-राधे ! ये साक्षात पुरषोतम है और तुम इनकी मुख्य प्रणवल्लभा हो , यह गुप्त रहस्य में गर्गजी के मुख से सुनकर जानता हूँ।
हे राधे ! अपने प्राणनाथ को मेरे अंक से ले लो ये बादलो की गर्जना से डर गये है इन्होने लीलावश यहाँ प्रकृति के गुणों को स्वीकार किया है इसिलए इनके विषय में इस प्रकार भय भीत होने की बात कही गयी है।
नन्दबाबा ने कहा की तुम अपने प्राणनाथ को मेरे अंग से ले लो और अपने घर जाओ।
बाबा के कहने का तात्पर्य यह था की तुम अपने प्रीतम को साथ ले कर (निकुंज) में जाओ क्यों की घर उसी को कहते है जहा ग्रहणी होती है , अब राधाजी ग्रहणी है तो जहा ( राधा कृष्ण ) होंगे वो राधा जी का घर हो ही गया।
राधाजी ने अपने प्राणनाथ को बाबा से ले कर अपने अंग में भर लिया और श्रीकृष्ण राधाजी के छाती से एक शिशु की भांति चिपक गये , फिर जब , नन्दराय जी श्रीराधा जी को प्रणाम कर के चले गए तब श्रीराधा जी भी भाण्डीर वन में निकुंजकी लताओं में गयी।
वहा की भूमि अत्यंत सुशोभित थी क्योकि जहा (श्रीराधा कृष्ण का विवाह ) हो रहा हो वहाँ पर पृथ्वी नाच उठी और अपना दिव्य रूप प्रकट कर अपने आपको सजाने के लिए प्रकति को आदेश दे दिया
यमुना जी भी सुन्दर शृंगार कर वहां उपस्थित हो गयी , अन्य नदियाँ और सरोवर भी अपने सौंदर्य को प्रकट कर वह उपस्थित हुए , वहाँ की सजावट देखे कैसे ?क्यों की हमारी नजर ही नही टिकती वहाँ की सजावट जो प्रकृति ने की उसकी शोभा वर्ण करने का सामर्थ्य मुझमे नही है इसलिए उस अध्भुत दिव्य सुन्दर भूमि को मैं साष्टांग प्रणाम करती हूँ।
वहां की सुन्दर सोभा को देख श्री श्यामसुन्दर भी ललचा गए उस दिव्यधाम निकुंज की शोभाकला अवतरण होते ही अपने शिशु अवस्था को छोड़ साक्षात पुरषोतम घनश्याम भगवान श्री कृष्ण किशोरावस्था के अनुरूप दिव्य देह धारण कर श्री राधाजी के समुख खड़े हो गए। उनके श्री अंगों पर पीताम्बर , हाथ मे बंशी , कानो में कुंडल , बाहो मे बाजूबंद , गले में.. , कंठ में सुन्दर आभूषण सोभा पा रहे थे , श्रीकृष्ण भी दुल्ल्हा सा ही रूप धारण कर प्रकट हुए थे।
उन्होंने हँसते हुए अपने प्रियतमा श्रीराधा जी का हाथ अपने हाथ में थाम लिया और उनके साथ ( विवाह - मंडप में प्रविष्ट हुए )
उस मंडप में विवाह की सब सामग्री संग्रह करके रखी गयी थी , मेखला , कुशा , सप्तमत्तिका और जल से भरे कलस आदि उस मंडप की शोभा बढ़ा रहे थे।
वहाँ एक श्रेष्ट सिंघासन प्रकट हुआ , जिस पर वे दोनों प्रिया प्रियतम एक - दूसरे से सट कर विराजित हो गए और अपनी दिव्य शोभा का प्रसार करने लगे वे दोनों एक दूसरे से मीठी - मीठी बाते करते हुए मेघ और विदित की भांति पानी प्रभा से उद्दीप्त हो रहे थे , उसी समय देवताओ में श्रष्ट भगवान ब्रह्माजी आकाश से उतरकर भगवान श्री कृष्ण के सन्मुख आये और उन दोनों के चरणो मे प्रणाम करके हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे........!!
उसके बाद श्रीराधावल्लभ का विवाह श्री ब्रह्माजी ने विधिवत से सम्पन करवाया , सभी देवी देवताओ ने पुष्पो की वर्षा की
विवाह सम्पन होने के बाद सभी देवी देवता श्री राधा जी को प्रणाम कर के
अपने अपने स्थान चले गए और प्रिया प्रियतम अपने ( निकुंज ) मे पधार गए , वह वे एक दूजे का शृंगार करने लगे पहले भगवान श्री कृष्ण ने अपनी प्रियतमा का अपने हाथो श्रंगार किया , सुन्दर वेणी बनायीं , कजरे लगाए , नेत्रोमे कालज की पतली रेखा खीच दी तथा उत्तमोत्तम रत्तनो और फूलो से भी उनका श्रंगार किया राधाजी का पूर्ण शर्बगर् होने पर ,
जैसे ही श्रीराधा जी अपने प्रियतम का श्रंगार करने लगी उसी क्षण श्री कृष्ण अपने किशोरावस्था को त्याग कर छोटे से बालक बन गए , नंदबाबा ने जिस शिशुको जिस रूप में श्रीराधा जी के हाथ में दिया था उसी रूप में वे धरती पर लौटने लगे और भय से रोने लगे।
श्रीहरि को इस रूप में देख कर श्रीराधा जी तत्काल विलाप करने लगी और बोली हरे ! मुझपर माया क्यों फैलाते हो ? इस प्रकार विषादग्रस्त होकर रोती हुई श्रीराधा से सहसा आकाशवाणी ने कहा राधे ! इस समय सोच मत करो तुम्हारा मनोरथ कुछ काल के पश्चात पूर्ण होगा इतना कह कर आकाशवाणी भी चुप हो गयी श्री राधा जी अपने प्राणधन को ले कर नन्द बाबा के घर श्री यशोदा जी के हाथो सोप आई....!! { जय जय श्रीराधे }