Thursday, 19 March 2015

                   पूरकनाम     राम    सुख    रासी !
                   मनुजचरित कर अज अबिनासी !!

 अर्थार्थ पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्री रामजी मनुष्यों के चरित्र कर रहे थे
उस समय रावणकी विधवा बहिन शूर्पणखा रामजी का सुन्दर रुप देख कर नवयुवती का रूप धारण कर रामजी से कहने लगी की
 ( तुम सम पुरुष मौसम नारी....)
 हे युवराज इस धरती पर तुम जैसा कोई सुन्दर पुरुष नही है और मेरे जैसी कोई सुंदरी नही है चलो हम विवाह कर लेते है।

उस समय लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा को अपमानित करके नाक -कान काट कर वहाँ से निकाल दिया और रामजी ने खर-दूषण और उनकी सेना को मार गिराया तब शूर्पणखा रोती बिलखती रावण के पास पहुंची।  वह अनेको भड़काऊ शब्द बोलती हुए कहने लकी की देख रावण ! तुम जैसे कायर की बहन कहलाने से मेरी क्या दसा हुई है।

शूर्पणखा के वचन सुनते ही सभासद् अकुला उठे। रावण ने शूर्पणखा की बाँह पकड़कर उसे उठाया और समझाया की तू अपनी बात तो बता, किसने तेरे नाक-कान काट लिए।

(वह बोली-) अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र, जो पुरुषों में सिंह के समान हैं, वन में शिकार खेलने आए हैं। मुझे उनकी करनी ऐसी समझ पड़ी है कि वे पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर देंगे।
वे शोभा के धाम हैं, 'राम' ऐसा उनका नाम है ,

राम.... राम.......!
राम का नाम सुनते ही रावण चौक उठा की राम आ गये !
राम आ भी गए !
राम जी का नाम सुन कर रावण मानो मूर्तिमान सा हो गया। वो नी शब्द हो गया मुखसे कुछ बोला नही जाता
उनको अपने मन में ग्लानि होने लगी की अरे ! नारायण नर रूप में आ भी गए और मैं भजन नही कर पाया।
 रावण का मन खिन सा हो गया और 
शूर्पणखा राम लक्ष्मण और श्री सीता जी का गुणगान किये जा रही है उनका चित निर्मल हो गया , कंठ गदगद हो गया , शरीर पुलकायमान है।

वे फिरसे  कहने लगी की हे दशमुख! जिनकी भुजाओं का बल पाकर मुनि लोग वन में निर्भय होकर विचरने लगे हैं। वे देखने में तो बालक हैं, पर हैं काल के समान। वे परम धीर, श्रेष्ठ धनुर्धर और अनेकों गुणों से युक्त हैं
दोनों भाइयों का बल और प्रताप अतुलनीय है। वे दुष्टों का वध करने में लगे हैं और देवता तथा मुनियों को सुख देने वाले हैं। वे शोभा के धाम हैं, 'राम' ऐसा उनका नाम है।
हे भाई !
उनके साथ एक तरुणी सुंदर स्त्री है ,-विधाता ने उस स्त्री को ऐसी रूप की राशि बनाया है कि सौ करोड़ रति (कामदेव की स्त्री) उस पर निछावर हैं। उन्हीं के छोटे भाई ने मेरे नाक-कान काट डाले। मैं तेरी बहिन हूँ, यह सुनकर वे मेरी हँसी करने लगे और
 मेरी पुकार सुनकर खर-दूषण , त्रिशिरा सहायता करने आए। पर उन्होंने क्षण भर में सारी सेना को मार डाला।

खर-दूषन और त्रिशिरा का वध सुनकर रावण सुन सा हो गया। और समझ गया की भगवान श्री नारायण ( नर रूपमे ) अवतरित हो कर इस धरती पर पधार गए है।

भगवान का नर रूपमे राम अवतार हो गया ये सुन कर
रावण बड़ा प्रशन्न हुआ पर उनको मन ही मन ग्लानि होने लगी , वह खिन मन से अपने महल में चल पड़ा वो रास्ते में चलते - चलते  विचार करने लगा की भगवान इस धरती पर अवतरित हो कर आ भी गए और में भजन नही कर पाया , उनसे प्रेम नही कर पाया क्योकि उन्हें तो प्रेम से ही पाया जाता है पर अब क्या करूँ
( भजन होय नही तामस देहा.. )
अब इस तामसी शरीरसे भजन तो होगा नही पर अब ऐसा क्या करू जिससे उनके हाथो मेरी मुक्ति हो जाये

भगवान अंतर्यामी है रावणके मन की बात समझ गए और सीताजी से कहा
*सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला
*मैं कछु करबि ललित नरलीला
*तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा
*जौ लगि करौं निसाचर नासा

अर्थार्थ हे प्रिये! हे सुंदर पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली सुशीले! सुनो! मैं अब कुछ मनोहर मनुष्य लीला करूँगा, इसलिए जब तक मैं राक्षसों का नाश करूँ, तब तक तुम अग्नि में निवास करो और अपनी छाया रूपी सीता को इस कुटिया में विराजित कर लो।

श्रीसीता जी राम जी की बात सुनते ही अग्नि में प्रवेश हो गयी और अपनी छाया रूपी सीता के रूपमे वहां पर प्रविष्ट हो गयी , तब लंकापति राव ने अपनी मुक्ति के लिए छाया रूपी श्री सीता जी का हरण किया था..।
जय श्री राम !!

प्रभु श्रीराम और रावण के बीच युद्ध हुआ रावण सभी राक्षसो सहित मारा गया पर सूर्पनखा रामजी से ( चित ) नही हठा पायी। रामजी है ही ऐसे की जिसके ह्रदय में विराजमान हो जाते है सो हो जाते है..!

शूर्पणखा रामजी को पति के रूपमे पाने के लिए तपश्या करने लगी  (दस हजार वर्ष
) तक तपश्या की तपश्या से  ब्रह्माजी प्रकट हुए , ब्रह्माजी ने कहा की जिनको पाने के लिए तुम  ( तप ) कर रही हो उन श्रीरामजी का ये मर्यादा पुरषोतम अवतार है , वे तुम्हे इस अवतार में नही अपना सकते पर तुम्हारी तपश्या निष्फल नही होगी वे द्वापरयुग में जब श्रीकृष्ण अवतार में आएंगे तब तुम कुब्जा के रूपमे आओगी तब भगवान तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करेंगे

उसी शूर्पणखा को ,प्रभु श्रीराम ने श्रीकृष्ण अवतार में सुंदरी कह कर कुब्जा को गोपियो के सामान सुख प्रदान किया.. !!

 {जय जय श्री राधे }

डर लागे अरु हांसी आवे  अजब  जमाना आया रे !
उलटी चाल चली दुनिया में ताते जीव खबराय रे !!


जयपुर के एक राजा थे नाम नही लेंगे, उनको एक महाभारत की कथा सुनाई गयी
कथा कहने वाले पंडितजी ( ग्रस्ति ) थे पंडित जी ने सोचा राजा बहुत धनवान है और घर मे भी हाथ तंग चल रहा सो राजा के यहाँ से जो दक्षिणा मिलेगी उससे बहुत दिन तक गुजारा चलता रहेगा पंडितजी ने बड़े भाव से महाभारत की कथा कही पोथी वही रख कर आ गए।
 राजा ने भी अपने परिवार सहित कथा सुनी पर दक्षिणा के रूप में कुछ दिया नही। कथा कहे हुए महीना बीत गया पर राजा के यहाँ से कोई खबर नही आई

एक दिन ब्राह्मणी ने कहा की राजा के घर आप कथा तो कह आये पर दक्षिणा के रूप में राजा ने कुछ दिया नही और पोथी भी राजा के यहाँ पर ही रख कर आये। ब्राह्मण ने कहा पोथी इसलिए रख आया की जब राजा दक्षिणा के लिए बुलाएंगे तब ले आऊंगा पर , शायद राजा प्रजा के काम- काज में व्यस्त रहते है इसलिए भूल गए होंगे पर आज तुमने याद दिला दिया तो आज राजा के यहाँ मैं खुद ही चला जाता हूँ ,

ब्राह्मण राजा के , राज महल में पहुंचे सबसे पहले राज महल मे , राजकुमारी मिली , राजकुमारी ने पंडितजी को प्रणाम किया और कहा पंडजी आपने बहुत कृपा की महाभारत कथा सुना कर आप ने तो हमारी आखँ ही खोल दी पहले सुना दी होती तो हमारा कल्याण हो जाता ,
पंडितजी ने कहा , अच्छा बेटी ! तुमने क्या सुना महाभारत की कथा में ?

"बोले पंडीजी ! दाऊजी अपनी बहिन सुबद्रा जी से बहुत प्रेम करते थे पर दाऊजी ने सोचा की अभी मेरी बहिन बहुत भोली है , अधिक स्नेह के कारण उन्होंने विवाह की कोई खास चिंता की नही उसी बीच सुभद्राजी अर्जुन के साथ भाग गयी।
अब हमारे माता पिता भी हमारे विवाह के लिए कोई ख़ास सोच नही रहे है तो अब मैं भी कोई योग्य राजकुमार देख कर उनके साथ भाग जाउंगी।



पंडितजी ने अपना
सिर पिटा की हे राम ! इसने पूरी महाभारत कथा से एक यही शिक्षा ली।

पंडित जी आगे बड़े और रानी मिली ,

रानी ने प्रणाम कर के कहा , महारज ! आप पहले कथा कहते तो मेरा तो भाग्य ही बदल जाता पर अब तो बहुत समय निकल गया और मेरी जवानी भी ढल गयी।
 पंडित जी बोले अच्छा , रानी जी ! कहो ! आपने महाभारत की कथा से क्या शिक्षा ली ?
 "बोले महाराज ! द्रोपदी के पांच पति थे पांच विवाह हुए इसलिए वो पंच कन्या में आ गयी और मैं तो अंधेरे में रह गयी , एक पति से ही संतुष्ट रह गयी।

पंडितजी रानी की बात सुन कर चुप चाप जल्दी जल्दी पाँव उठाने लगे और मुख से राम राम कहते
आगे बड़े और अब राजा का पुत्र राजकुमार मिला।
 राजकुमार पंडितजी को प्रणाम करते हुए कहने लगा , पंडितजी ! आपने महाभारत की कथा सुना कर हमारे भाग्य का रास्ता ही खोल दिया ,

पंडित जी " अच्छा ! आपने क्या प्रेरणा ली ?

बोले महारज ! कंस सब तरह से राज गद्दी के योग्य था पर उनके पिता ने उनको नालायक जान कर राज गद्दी, सोप नही रहे थे , तब उसने अपने पिता उग्रसेन को कारागृह में बंध कर अपने बल के आधार पर राज गद्दी पर बैठ गया , अब मैं भी सोच रहा हूँ की कुछ षडियंत्र करके पिता जी को हटा कर मैं भी राज गिद्दी पर विराजित हो जाऊ।

 पंडित जी के मन में खिन्नता होने लगी की , अरे ! ये क्या दुस्स प्रभाव पड़ा |
पंडितजी विचार करते करते राज दरबार में पहुंचे जहा राजा विराज रहे थे , राजा ने राज गद्दी से उठ कर पंडितजी का सत्कार करते हुए कहा आईये पंडितजी आपने महाभारत कथा सुना कर हमारा बहुत सारा धन खर्च होने से बचा दिया पंडित जी खिन्न भाव से बोले अच्छा ! महाराज आपने महाभारत की कथा से क्या प्रेरणा ली ?
"बोले महाराज ! आज तक हम बिना सोचे समझे ही अपना धन लुटाते रहे पर जब से महाभारत कथा सुनी तब से हमारी तो बुद्धि ही ठिकाने आ गयी हमारा बहुत सारा धन खर्च होने से बच गया
अच्छा ! वो कैसे ?
 बोले जब  कौरवो की सभा में शांतिदूत बन कर श्री कृष्ण पधारे तब दुर्योधन ने कहा केशव ! बिना उद्ध के एक सुई के ( नोक ) के बराबर भी पांडवो को भूमि देनेवाला नही हूँ , अब पांडवो को कुछ चाहिए तो युद्ध कर ले......।
और अब आप को भी कुछ दक्षिणा चाहिए तो हमसे युद्ध कर लो फिर जो चाहो जो ले जाओ

पंडितजी ने कहा महाराज ! आप हमारी पोती वापिस कर लीजिये
जान बची तो लाखों पाये !
 लोट के बुद्धू घर को आये !!
ये हकीकत घटना है जयपुर के राजा की....!



आज भी लोग ग्रंथो मे से अपने मतलब की बात निकाल लेते है और उन पर दोसारोपित करते रहते है पर उसका परिणाम क्या होता है ये नही विचारते ,
अब में आप सज्जनो से पूछती हूँ , क्या महाभारत ग्रन्थ में यही शिक्षा है? जो अच्छाईओ को छोड़ बुराईयो का संग्रह करे ? जिसे पंचम वेद कहा गया है उस में जीव के कल्याण के सिवाय कुछ है ही नही |


जिसमे से गीता जैसा  शास्त्र  निकला  ? जो समय को साक्षी रख कर भगवान ने प्रत्येक जीव के कल्याण के लिए मुक्ति का मार्ग बताया आज वो ग्रथ घर मे रखने से लोग कतराते है की महाभर जैसा ग्रथ घर में  रखेंगे तो कही हमारे घरमे महाभारत न छिड़ जाये पर फिर भी आज हर परिवार में जंग  छिड़ी हुई है , कही बाप बेटे के बीच तो कहि सास बहु के बीच , कही भाई - भाई के बीच तो कही पति - पत्नी के बीच .. इद्यादि सब जंग में फसे हुए है कोई बचा हुआ नही  है।
 { जय जय श्री राधे}