Sunday, 30 September 2012


 "गोपिया ने श्री कृष्ण से कहा की 'हे कृष्ण हमे अगस्त्य रिसी को भोग लगाने जाना है, और ये यमुनाजी बीच में पड़ती है अब बताओ केसे जाये
भगवान श्री कृष्ण ने कहा की जब तुम यमुनाजी के पास जाओ तो कहना की ,हे यमुनाजी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दे ,गोपिय हंसने लगी की लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझता है ,सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमता है ,कभी हमारे वस्त्र चुराता है कभी मटकिया फोड़ता है ....,खेर हम बोल देगी ,

गोपिय यमुना जी के पास जाकर कहती है, हे यमुनाजी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दे ,और गोपिय के कहते ही यमुनाजी ने रास्ता देदिया ,अब अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापिस आने लगी तो अगस्त्य ऋषि से कहा की अब हम घर केसे जाये यमुनाजी बीच में है ,

अगस्त्य ऋषि ने कहा की तुम यमुनाजी को कहना की अगर अगस्त्य जी निराअहार है तो हमे रास्ता दे ,गोपियाँ  कहने लगी की अभी हम इतना सारा भोजन लाई सो सब गटका गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे है ,गोपिया यमुनाजी के पास जाकर बोली, हे यमुनाजी अगर अगस्त्य ऋषि निराहार है तो हमे रास्ता दे और यमुनाजी ने रास्ता दे दिया ,

गोपिय आस्चरिय करने लगी की जो खता है वो निराहार केसे हो सकता है, और जो दिनरात हमारे पीछे पीछे फिरता है वो ब्रह्मचारी केसे हो सकता है ,
भगवान श्री कृष्ण कहने लगे गोपिया मुझे तुमारी देहसे कोई लेना देना नही है मेतो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हु जो मुझसे प्रेम करता है में उनका सच में रिणी हु में तुम सबका रिणी हु ...
                                                 { जय जय श्री राधे }

  कलयुग में भक्ति वही सुखी रहती है जहा ज्ञान और वैराग्य हो

एक दिन नारद जी आकास मार्ग से चले जा रहे थे की उनकी नजर प्रथ्वी पर पड़ी , देखा की एक युवती समुन्दर के किनारे विलाप कर रही है ,और उनके पास दो बूड़े पुरुष जोर जोर से खास रहे है , अनेक स्त्रीया उने पंखा कर रही है नारद जी ने उस स्त्री  से पूछा ,की तुम कौन हो? ये दोनों बूड़े पुरुष तुम्हारे क्या लगते है ? और ये इत्रिय कोंन है ? 
उसने कहा की मेरा नाम भक्तिमहारानी है .ये बूड़े पुरुष ज्ञान और वैराग्य, मेरे पुत्र है जो कलयुग की छाया  पड़ते ही बूड़े हो गये , और ये स्त्रीया गंगा जमना आदि देविया है जो मेरी सेवा में लगी है ,भक्तिमहारानी दुखी होकर बोली नियम के अनुसार तो मां को बूड़ी व् बच्चो को जवान होना चाहिए!! , और परीक्षित को कोसने लगी ,की उसने कलयुग को आने ही क्यों दिया.. 
हे मुनि आप तो बहुत ज्ञानी महा पुरुष हो, मेरे पुत्रो को जगाइए...
नारदजी ने बहुत प्रयास किया पर वे चेतन नही हुए ,

उतने में आकाश वाणी हुई और कहा की ,अब इनकी मूर्छा भगवत कथा से ही खुलेगी, आप भगवत कथा की तयारी कीजिये ,और नारदजी ने जेसे ही अपने करताल ध्वनी से भगवत कथा प्रारम्ब की ,तो भक्तिमहारानी अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य को उठा कर वह ले आई जहा भगवत कथा हो रही थी ,परमात्मा का नाम कानोमे पड़ते ही वे चेतन होगये ,एव भक्ति ,ज्ञान व् वैराग्य ये तीनो ही प्रत्येक वह बेठे लाखो भक्तो के अन्दर झुमने लगे...
 

आज भी भक्ति तो जवान है चंचल है, जो आ तो आसानी से जाती है पर स्थीर नही रहती, जहा ज्ञान और वैराग्य चेतन है वहा वे बहुत आनंद देती है......जहा बच्चे होते है वहा माँ भी हमेसा सुखी रहती है

 वह मोद न मुक्ति के  मंदिर में है , जो प्रमोद भरा व्रजधाम में है
उतनी छवि राशी कही भी नही , जितनी छवि शुन्दर श्याम में है  
ससि में न सरोज सुधारस में , न ललाम लता अभी नाम में है
उतना सुख और  कही भी नहीं , जितना सुख कृष्ण के नाम में है
     जय राधे कृष्ण गोविन्द गोपाल ,राधे राधे..

                             श्री राधे