कलयुग में भक्ति वही सुखी रहती है जहा ज्ञान और वैराग्य हो
एक दिन नारद जी आकास मार्ग से चले जा रहे थे की उनकी नजर प्रथ्वी पर पड़ी , देखा की एक युवती समुन्दर के किनारे विलाप कर रही है ,और उनके पास दो बूड़े पुरुष जोर जोर से खास रहे है , अनेक स्त्रीया उने पंखा कर रही है नारद जी ने उस स्त्री से पूछा ,की तुम कौन हो? ये दोनों बूड़े पुरुष तुम्हारे क्या लगते है ? और ये इत्रिय कोंन है ?
उसने कहा की मेरा नाम भक्तिमहारानी है .ये बूड़े पुरुष ज्ञान और वैराग्य, मेरे पुत्र है जो कलयुग की छाया पड़ते ही बूड़े हो गये , और ये स्त्रीया गंगा जमना आदि देविया है जो मेरी सेवा में लगी है ,भक्तिमहारानी दुखी होकर बोली नियम के अनुसार तो मां को बूड़ी व् बच्चो को जवान होना चाहिए!! , और परीक्षित को कोसने लगी ,की उसने कलयुग को आने ही क्यों दिया..
हे मुनि आप तो बहुत ज्ञानी महा पुरुष हो, मेरे पुत्रो को जगाइए...
नारदजी ने बहुत प्रयास किया पर वे चेतन नही हुए ,
उतने में आकाश वाणी हुई और कहा की ,अब इनकी मूर्छा भगवत कथा से ही खुलेगी, आप भगवत कथा की तयारी कीजिये ,और नारदजी ने जेसे ही अपने करताल ध्वनी से भगवत कथा प्रारम्ब की ,तो भक्तिमहारानी अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य को उठा कर वह ले आई जहा भगवत कथा हो रही थी ,परमात्मा का नाम कानोमे पड़ते ही वे चेतन होगये ,एव भक्ति ,ज्ञान व् वैराग्य ये तीनो ही प्रत्येक वह बेठे लाखो भक्तो के अन्दर झुमने लगे...
आज भी भक्ति तो जवान है चंचल है, जो आ तो आसानी से जाती है पर स्थीर नही रहती, जहा ज्ञान और वैराग्य चेतन है वहा वे बहुत आनंद देती है......जहा बच्चे होते है वहा माँ भी हमेसा सुखी रहती है
एक दिन नारद जी आकास मार्ग से चले जा रहे थे की उनकी नजर प्रथ्वी पर पड़ी , देखा की एक युवती समुन्दर के किनारे विलाप कर रही है ,और उनके पास दो बूड़े पुरुष जोर जोर से खास रहे है , अनेक स्त्रीया उने पंखा कर रही है नारद जी ने उस स्त्री से पूछा ,की तुम कौन हो? ये दोनों बूड़े पुरुष तुम्हारे क्या लगते है ? और ये इत्रिय कोंन है ?
उसने कहा की मेरा नाम भक्तिमहारानी है .ये बूड़े पुरुष ज्ञान और वैराग्य, मेरे पुत्र है जो कलयुग की छाया पड़ते ही बूड़े हो गये , और ये स्त्रीया गंगा जमना आदि देविया है जो मेरी सेवा में लगी है ,भक्तिमहारानी दुखी होकर बोली नियम के अनुसार तो मां को बूड़ी व् बच्चो को जवान होना चाहिए!! , और परीक्षित को कोसने लगी ,की उसने कलयुग को आने ही क्यों दिया..
हे मुनि आप तो बहुत ज्ञानी महा पुरुष हो, मेरे पुत्रो को जगाइए...
नारदजी ने बहुत प्रयास किया पर वे चेतन नही हुए ,
उतने में आकाश वाणी हुई और कहा की ,अब इनकी मूर्छा भगवत कथा से ही खुलेगी, आप भगवत कथा की तयारी कीजिये ,और नारदजी ने जेसे ही अपने करताल ध्वनी से भगवत कथा प्रारम्ब की ,तो भक्तिमहारानी अपने पुत्र ज्ञान और वैराग्य को उठा कर वह ले आई जहा भगवत कथा हो रही थी ,परमात्मा का नाम कानोमे पड़ते ही वे चेतन होगये ,एव भक्ति ,ज्ञान व् वैराग्य ये तीनो ही प्रत्येक वह बेठे लाखो भक्तो के अन्दर झुमने लगे...
आज भी भक्ति तो जवान है चंचल है, जो आ तो आसानी से जाती है पर स्थीर नही रहती, जहा ज्ञान और वैराग्य चेतन है वहा वे बहुत आनंद देती है......जहा बच्चे होते है वहा माँ भी हमेसा सुखी रहती है
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