स्वामी श्री राम सुखदासजी महाराज
भगवान ने मनुष्य की रचना न तो अपने सुखभोग के लिए की है , न उसको भोगो में लगाने के लिए की है और न उस पर शासन करने के लिए की है , प्रत्युत इसलिए की है की वह मेरे से प्रेम करे , मैं उनसे प्रेम करूँ ,वह मेरेको अपना कहे ,मैं उसको अपना कहूँ ,वह मेरे को देखे मैं उसको देखू.... !!
Friday, 18 January 2013
Thursday, 17 January 2013
संत और गुरु क्या है और केसे होने चाहिए
{ जय श्री कृष्ण, श्री राधे }
एक जगह संत कथा कर रहे थे ,उसी समय एक व्यक्ति उठा और संत के गंजे सर पर ठोला मार कर चला गया,
और
वहा बेठे सभी भक्त जन सोच रहे थे की हम सभी तो गुरु जी को प्रणाम करते है
और ये केसा दुष्ट है जो गुरु जी के सर पर ठोला मार रहा है
सभी भक्तो को बड़ा ही क्रोध आया और कहा की
गुरुजी आप आज्ञा दे तो हम इस की पिटाई कर देते है , गुरु जी ने कहा क्यों ?
भक्तो ने कहा की इसने आप के सर पर ठोला मारने का अपराध जो किया है, गुरु
जी ने हँस कर संत वाणी से कहा की भैया आप 40 चालीस रूपया की एक मटकी लेते
हो तो उनपर ठोले मार कर बजा -बजा कर लेते हो की मटकी में कोई नुक्स तो नही
है, फिर ये तो मुझे अपना जीवन सोपने जा रहा है,जिसको जिवन
सोपने जा रहा हो वो वाकय में गुरु बनाने के लायक है या नही , येही सोच कर
मेरे सर को बजा रहा था .. जिस की सकारात्मक सोच है संत और गुरु उसीको कहते
है ,जो हर उलटी बात का सीधा मतलब निकाले, { जय श्री कृष्ण, श्री राधे }
Thursday, 10 January 2013
2013 का हार्दिक स्वागत करते हुए परमात्मा से प्रार्थना है की आप सब के लिए आने वाला नया साल खुशहाली भरा हो , खूब मोज मस्ती, हस्ते खेलते , आनंद के साथ बीते... लक्ष्मी मैया की कृपा हमेशा बनी रहे.......
आप सभी से एक नम्र निवेदन है की मनमे ऐसा भाव बना लीजिये की
संसार हमारे लिए क्या कहता है , यह जानने की इच्छा ना हो
किन्तु जगदीश्वर हमारे लिए क्या कहते है
इसका अवस्य ध्यान रहे....
अपने भीतर एक नारा लगा दीजिये की
प्रेम प्रभूसे, पसंद जगत की , नहीं चलेगी , नही चलेगी , नही चलेगी
प्रेम ही प्रभुसे ,पसंद ही प्रभुकी ,यही चलेगा ,यही चलेगा , यही चलेगा
जहा पति को आदर दिया जाता है वहा पत्नी भी आनंद से विराजमान रहती है ,जिस के ह्रदय में आदरसहित लक्ष्मीजी के पति नारायण विराजमान हो, ठाकुर जी विराजमान हो , वो भला कभी लक्ष्मीजी से वंचित केसे रह सकता है..
धन लक्ष्मी से तो हम सब प्रेम करते ही है ,पर लक्ष्मी जी के पति ठाकुर जी से भी प्रेम हो जाये ये मन दिन रात उन्हीका चिंतन करने लग जाये....
ये संसार हमारे भीतर उसी तरह रहे जिस तरह पानी के ऊपर तेल तेरता हो..... भीतर तो केवल परमात्मा ही हो.....
सीख बुरी लगे तो माफ़ कीजियेगा , आप सबतो पहले से ही बहुत समजदार है
जय श्री राधे
आप सभी से एक नम्र निवेदन है की मनमे ऐसा भाव बना लीजिये की
संसार हमारे लिए क्या कहता है , यह जानने की इच्छा ना हो
किन्तु जगदीश्वर हमारे लिए क्या कहते है
इसका अवस्य ध्यान रहे....
अपने भीतर एक नारा लगा दीजिये की
प्रेम प्रभूसे, पसंद जगत की , नहीं चलेगी , नही चलेगी , नही चलेगी
प्रेम ही प्रभुसे ,पसंद ही प्रभुकी ,यही चलेगा ,यही चलेगा , यही चलेगा
जहा पति को आदर दिया जाता है वहा पत्नी भी आनंद से विराजमान रहती है ,जिस के ह्रदय में आदरसहित लक्ष्मीजी के पति नारायण विराजमान हो, ठाकुर जी विराजमान हो , वो भला कभी लक्ष्मीजी से वंचित केसे रह सकता है..
धन लक्ष्मी से तो हम सब प्रेम करते ही है ,पर लक्ष्मी जी के पति ठाकुर जी से भी प्रेम हो जाये ये मन दिन रात उन्हीका चिंतन करने लग जाये....
ये संसार हमारे भीतर उसी तरह रहे जिस तरह पानी के ऊपर तेल तेरता हो..... भीतर तो केवल परमात्मा ही हो.....
सीख बुरी लगे तो माफ़ कीजियेगा , आप सबतो पहले से ही बहुत समजदार है
जय श्री राधे
Sunday, 6 January 2013
मीराबाई की जुबानी कल्पना
मीरा यमुना किनारे जल लेकर लौट रही है धीरे-धीरे भाव जगत में खो गयी ,उनके नेत्र इधर उधर निहार कर अपना धन खोज रही है । निराशा ,आशा उनके पद उठने नही देती । निराशा कहती है की "अब नही आयेंगे वो , चल घर चल " और आशा कहती है की "यही कही होंगे अभी आ जायेंगे , नैन मन ठंडे करले ।"
मीरा सोच रही की घर जाने पर संध्या पूर्व दर्शन -लाभ की आशा नहीं! इसी भाव से दो पद शीघ्र और चार पद धीमे चलती जा रही थी की किसी ने उसके सर से कलशी उठा ली। उसने अचकचाकर उपर देखा तो एक कदम्ब पर एक हाथ से दाल पकड़े और एक हाथ में कलशी लटकाए मनमोहन बेठे हंस रहे हैं हीरक दन्त प्रवाल अधरों की आभा पा तनिक रक्ताम्भ हो उठे है और अधरों पर दन्त पंक्ति की उज्ज्वलता झलक रही है। नेत्रों में अचगरि जैसे मूरत हो गयी।
लाज के मारे उसकी द्रष्टि ठहरती नही, लजा निचे और प्रेम-उत्सुकता उपर देखने को विवश कर रही है ।
कलशी से ढले पानी से वस्त्र और सर्वांग आर्द्र हैं। "कलशी दे दो" यह कहते हुए भी नहीं बन पा रहा है।
वे एकदम वृक्ष से उसके समुख कूद पड़े वह चोंक कर चीख पड़ी साथ ही उन्हें देख कर लजा गयी, उसके गाल कर्ण लाल हो गए।
श्री कृष्ण बोले -" डर गयी न ?"
उन्होंने हंस कर पूछा और हाथ पकड कर कहा " चल आ थोड़ी देर बैठ कर बातें करे।"
वृक्ष ताल की एक शिला पर दोनों बैठ गए।
श्याम सुन्दर बोले - " क्या लगा तुझे कोई वानर अथवा भल्लुक कूद पड़ा है न।
श्याम ने उनकी मुखडी थोड़ी ऊँची करते हुए पूछा - " मैं क्या करूँ । बोलेगी नहीं तो मैं और सताउंगो। तेरी यह मटुकिया हे न याको फोड़ देउंगो और .........और ........का करुंगो?" उन्होंने सोचते हुए एक दम से कहा - "-- तेरी नाक खीच दुंगो और......."
श्याम की ऐसी बातो पर मीरा को हसीं आ गयी , और वे भी हसने लगे,
मीरा से पूछा - " अभी क्या पानी भरने का समय है? दोपहर में घाट नितांत सुने रहते है , जो कहूँ सचमुच भल्लुक आ गयो तो .....? "
मीरा बोली - " तुम हो न"
श्याम ने कहा - मैं क्या यहाँ बैठा ही रहूँगा? गोए नहीं चरानी मुझे ?"
मीरा ने सर झुकाते हुए कहा - " एक बात कहूँ?"
श्याम बोले - " एक नहीं सॊ कह। पर सर तो उचा कर । तेरो मुख ही नहीं दिखे रहो मोहे ।"
मीरा ने मुख ऊँचा किया और फिर से लाज ने आ घेरा।
श्याम ने कहा - " अच्छा ! अच्छा ! मुख निचे ही रहने दे ,कह क्या बात है?" मीरा ने बहुत कठिनाई से बोंला- " तुम्हे कैसे प्रसन्न किया जा सकता है? " कृष्ण ने कहा - " तो सखी मैं तुम्हे अप्रसन्न दिखाई दे रहा हूँ ? "
श्याम - " पर मेने तेरी मटकिया ले ली तो कौन्सो गंगा स्नान कराय दियो ,
यही ? "
मीरा "यह नही..........!
कृष्ण - "फिर कहा भयो ? तेरो घडो फोड़ दुंगो यही ? "
मीरा - " नाय !"
कृष्णा - "तो फिर तू बतावे क्यों नाय ? कबकी यह नाय वह नाय किया जा रही है ?"
मीरा ने शर्माते हुए कहा - " सुना है तुम प्रेम से वस होते हो ?"
कृष्ण - "मोकु वश करके का करेगी सखी ! नाथ डालोगी के पैर बंदोगी ?
मेरे वश हुए बिना तेरो के काज अटक्यो है भला ?"
मीरा - " वो नाय "
कृष्ण - "बाबा रे बाबा ! तो से तो भगवान ही हार जायं "
श्याम सुन्दर कहने लगे - " कासे पूछ रयो हूँ? पुरो मुख ही नाय खुले । बात पूरी नाय कहोगी तो में भोरो , भारो कैसे समझुंगो?"
मीरा ने आँख मूँदकर पूरा जोर लगाकर कहा दिया - " की सुनो श्याम सुन्दर ! मुझे तुम्हारे चरणों में अनुराग चाहिए । "
कृष्ण ने अनजान हो कर पूछा - " सो कहा होय सखी ?"
मीरा की विश्वता पर अपनी आखों में आँसू भर आये ,घुटनों में सिर दे कर रो पड़ी ।
श्याम सुन्दर बोले - " रोवै मत ना "
ये कहते हुए अपनी बहो मे भर मीरा के सिरपर अपना कपोल रखते हुए कहा - " और अनुराग कैसो होवे री ..........? "
श्याम सुंदर ने कहा - " अब तुम्हारे सुख की इच्छा क्या है ? अब तू मोको दुःख दे रही हो"
वे हंस कर दूर जा खड़े हुए ,मीरा ने आचार्य से देखा।
" ऐ.... ? ले अपनी कलशी बावरी कहिकी "
ये कहते हुए कलशी मीरा के सर पर रख कर वनकी और दोड़ गए , और मीरा ठगी सी बैठ रही !!!
जय श्री कृष्ण ........
मीरा यमुना किनारे जल लेकर लौट रही है धीरे-धीरे भाव जगत में खो गयी ,उनके नेत्र इधर उधर निहार कर अपना धन खोज रही है । निराशा ,आशा उनके पद उठने नही देती । निराशा कहती है की "अब नही आयेंगे वो , चल घर चल " और आशा कहती है की "यही कही होंगे अभी आ जायेंगे , नैन मन ठंडे करले ।"
मीरा सोच रही की घर जाने पर संध्या पूर्व दर्शन -लाभ की आशा नहीं! इसी भाव से दो पद शीघ्र और चार पद धीमे चलती जा रही थी की किसी ने उसके सर से कलशी उठा ली। उसने अचकचाकर उपर देखा तो एक कदम्ब पर एक हाथ से दाल पकड़े और एक हाथ में कलशी लटकाए मनमोहन बेठे हंस रहे हैं हीरक दन्त प्रवाल अधरों की आभा पा तनिक रक्ताम्भ हो उठे है और अधरों पर दन्त पंक्ति की उज्ज्वलता झलक रही है। नेत्रों में अचगरि जैसे मूरत हो गयी।
लाज के मारे उसकी द्रष्टि ठहरती नही, लजा निचे और प्रेम-उत्सुकता उपर देखने को विवश कर रही है ।
कलशी से ढले पानी से वस्त्र और सर्वांग आर्द्र हैं। "कलशी दे दो" यह कहते हुए भी नहीं बन पा रहा है।
वे एकदम वृक्ष से उसके समुख कूद पड़े वह चोंक कर चीख पड़ी साथ ही उन्हें देख कर लजा गयी, उसके गाल कर्ण लाल हो गए।
श्री कृष्ण बोले -" डर गयी न ?"
उन्होंने हंस कर पूछा और हाथ पकड कर कहा " चल आ थोड़ी देर बैठ कर बातें करे।"
वृक्ष ताल की एक शिला पर दोनों बैठ गए।
श्याम सुन्दर बोले - " क्या लगा तुझे कोई वानर अथवा भल्लुक कूद पड़ा है न।
श्याम ने उनकी मुखडी थोड़ी ऊँची करते हुए पूछा - " मैं क्या करूँ । बोलेगी नहीं तो मैं और सताउंगो। तेरी यह मटुकिया हे न याको फोड़ देउंगो और .........और ........का करुंगो?" उन्होंने सोचते हुए एक दम से कहा - "-- तेरी नाक खीच दुंगो और......."
श्याम की ऐसी बातो पर मीरा को हसीं आ गयी , और वे भी हसने लगे,
मीरा से पूछा - " अभी क्या पानी भरने का समय है? दोपहर में घाट नितांत सुने रहते है , जो कहूँ सचमुच भल्लुक आ गयो तो .....? "
मीरा बोली - " तुम हो न"
श्याम ने कहा - मैं क्या यहाँ बैठा ही रहूँगा? गोए नहीं चरानी मुझे ?"
मीरा ने सर झुकाते हुए कहा - " एक बात कहूँ?"
श्याम बोले - " एक नहीं सॊ कह। पर सर तो उचा कर । तेरो मुख ही नहीं दिखे रहो मोहे ।"
मीरा ने मुख ऊँचा किया और फिर से लाज ने आ घेरा।
श्याम ने कहा - " अच्छा ! अच्छा ! मुख निचे ही रहने दे ,कह क्या बात है?" मीरा ने बहुत कठिनाई से बोंला- " तुम्हे कैसे प्रसन्न किया जा सकता है? " कृष्ण ने कहा - " तो सखी मैं तुम्हे अप्रसन्न दिखाई दे रहा हूँ ? "
श्याम - " पर मेने तेरी मटकिया ले ली तो कौन्सो गंगा स्नान कराय दियो ,
यही ? "
मीरा "यह नही..........!
कृष्ण - "फिर कहा भयो ? तेरो घडो फोड़ दुंगो यही ? "
मीरा - " नाय !"
कृष्णा - "तो फिर तू बतावे क्यों नाय ? कबकी यह नाय वह नाय किया जा रही है ?"
मीरा ने शर्माते हुए कहा - " सुना है तुम प्रेम से वस होते हो ?"
कृष्ण - "मोकु वश करके का करेगी सखी ! नाथ डालोगी के पैर बंदोगी ?
मेरे वश हुए बिना तेरो के काज अटक्यो है भला ?"
मीरा - " वो नाय "
कृष्ण - "बाबा रे बाबा ! तो से तो भगवान ही हार जायं "
श्याम सुन्दर कहने लगे - " कासे पूछ रयो हूँ? पुरो मुख ही नाय खुले । बात पूरी नाय कहोगी तो में भोरो , भारो कैसे समझुंगो?"
मीरा ने आँख मूँदकर पूरा जोर लगाकर कहा दिया - " की सुनो श्याम सुन्दर ! मुझे तुम्हारे चरणों में अनुराग चाहिए । "
कृष्ण ने अनजान हो कर पूछा - " सो कहा होय सखी ?"
मीरा की विश्वता पर अपनी आखों में आँसू भर आये ,घुटनों में सिर दे कर रो पड़ी ।
श्याम सुन्दर बोले - " रोवै मत ना "
ये कहते हुए अपनी बहो मे भर मीरा के सिरपर अपना कपोल रखते हुए कहा - " और अनुराग कैसो होवे री ..........? "
श्याम सुंदर ने कहा - " अब तुम्हारे सुख की इच्छा क्या है ? अब तू मोको दुःख दे रही हो"
वे हंस कर दूर जा खड़े हुए ,मीरा ने आचार्य से देखा।
" ऐ.... ? ले अपनी कलशी बावरी कहिकी "
ये कहते हुए कलशी मीरा के सर पर रख कर वनकी और दोड़ गए , और मीरा ठगी सी बैठ रही !!!
जय श्री कृष्ण ........
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