Sunday, 21 April 2013

                                                  
                        मीरा की आतुरता पुकार

तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!
कोई गम की मारी प्यारे तुझ को पुकारे !
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!

तेरी याद की आग में जल रही हु !
मैं काटो पे दिल को लिए चल रही हु !!
टपकते है आखोसे असुवन हमारे !
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!

कोई गम की मारी प्यारे तुझ को पुकारे !
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!

 

पहले कुछ प्रेम बढ़ा कर के !
फिर दूर खड़े मुस्काने लगे !!
जब चाह हुई मिलने की जरा !
मुख चन्द्र को कैसे छुपाने लगे !!
बस एक ही बार हँसा कर के !
सारि उम्र हमे रुलाने लगे !!
करुणा करनी तो दूर रही !
करुणा निदई हो के सतने लगे !!
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!
कोई गम की मारी तुझ को पुकारे !
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!

देखे बिना तुझको चेन नही आये !
मेरी जान जाये प्यारे तू क्यों नही आये !!
छिपे हो कहा मेरी आखो के तारे !
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!
कोई गम की मारी तुझ को पुकारे !
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!
तू आजा कहा है मेरे श्याम प्यारे !!


    { जय जय श्री राधे }


Friday, 19 April 2013

               ॐ नमः शिवाय , ॐ नमः शिवाय

आज तक हम सभी भक्तो ने पत्थर , मिट्ठी व बर्फ से बने शिवलिंग के दर्शन किये है ,( जो नागदेव , त्रिसुल , ॐ , शंख व् डमरू ) ये सब अलग अलग होते है, पर आज आप ये सब एक साथ देखिये , पेड़ पर लगे डाली में
 ( शिवलिंग के साथ नागदेव , त्रिसुल , ॐ , शंख व् डमरू )
के साथ भगवान शिव के दर्शन कीजिये , ये सब एक ही साथ फल के रूप में लगते है , कहा लगते है इसका पता नही , किस पेड़ पर लगते है वो भी पता नही , हमारे पिता श्री को पता था , उन्होंने ऐसे वृक्ष के दर्शन भी किये और उनपर लगे शिवलिंग के फल भी लाये

ये चित्र किसी इन्सान के बनाये हुए नही है , और ना ही  किसी वैज्ञानिक ने खोज की है, ये प्राकर्तिक देन है जो हमें साक्षात् भगवान शिव के दर्शन करवा रहे है , ऐसे वृक्ष के दर्शन बहुत ही दुर्लब है , किसी तपश्वी को ही होते है , किसी पहुचे हुए मह्त्मा को ही होते है जो पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो गए हो , जिनका निवास अक्षर पहाड़ोमें होता है , आज हमे भी ऐसे अद्भुत वृक्ष के बारेमें जानने को मिलता है की वृक्ष भी भगवान शिव को प्रकट करता है

 भगवान शिव के , त्रिसुल के साथ बंधा , डमरू , ॐ , और आजू बाजु दो नागदेव , बीचोबीच शिवलिंग , किसी में एक नागदेव  किसीमें पाच , आप सभी भक्त भोलेनाथ के रूप को देखिये , शिवलिंग ,ॐ ,त्रिसूल के साथ डमरू भी जरुर है !

लोग कहते है की भगवान एक मन घड़त कहानी है , भगवान नाम की चीज कोई है ही नही , कुछ लोग कहते है परमात्मा निराकार है जिनका कोई आकार नही है ,
अगर ऐसा होता तो कोई वृक्ष मन घड़त कहानी कसे बना सकता है , और परमात्मा निराकार है फिर इस वृक्ष को कैसे पता की भगवान शिव का त्रिसुल कैसा था , डमरू कैसा है , ॐ  कैसा है , शिव लिंग कैसा है , उनके शरफ गण कैसे थे एक वृक्ष भगवान को पहचान कर अपने ऊपर फल लगा सकता है तो क्या हम मनुष्य हो कर अपने ह्रदय में परमात्मा के प्रेम का पोधा नही उगा सकते..?

 { ॐ नमः शिवाय , ॐ नमः शिवाय }

  राम नवमी की सभी भक्तो को हार्दिक शुभ कामनाये 

देखो आये है रघुवर जी सब मिल स्वागत करो !
गावो  मंगल बधाई प्यारी सब मिल दर्शन करो !

अयोध्या के महाराज दसरथ जिनके राज्य में कोई संतान न थी , राजा दसरथ गुरु जी के पास गए और बोले गुरु जी मेरी कोई संतान नहीं है मेरे राज्य का उतराधिकारी कोई नहीं है , आप कृपा कर मुझे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दीजिये तब गुरु ने कहा , राजन तुम  चिंता न करो तुमतो मेरे पास एक पुत्र के लिए आये हो पर मैं तुम्हे  एक नही चार पुत्रो का आशीर्वाद देता हु तुम्हे चार पुत्रो की  प्राप्ति होगी , और संगी ऋषि को बुला कर पुत्र प्राप्ति का यग्य करवाया यग्य भगवान पधारे खीर का प्रशाद दिया , तीनो रानिय ने खीर का प्रसाद लिया और तीनो रानियों गर्व वती हुए

फिर वो शुभ घडी आ ही गयी चेत्र मास  शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप (गरमी) थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में बड़ा चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियाँ अमृत की धारा बहा रही थीं भगवान श्री राम चत्र भुज रूप में प्रकट हुए  कौसल्या माँ को बोले माँ में तुहारा पुत्र !  माँ  कौसल्या बोली ये पुत्र का नही ये तो पिता का रूप है पुत्र कोई लम्बे चौड़े होते है क्या ? चार हाथवाले थोड़े ही होते है ? हे भगवान मैं आप को गोदीमे ले सकू ऐसे सिसु बन जाईये मेरी ये इच्छा पूरी करो प्रभु , माँ स्तुति करने लगी

माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा |
कीजे सिसुलीला अति प्रियसिला यह सुख परम अनूपा |
सुनी  वचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुरभूपा |
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा
|

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार
सिया वर राम चन्द्र की जय


दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए

दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी- हे अनंत! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूँ। वेद और पुराण तुम को माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित बतलाते हैं। श्रुतियाँ और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं
भगवान श्री राम बाल सिसु बनगए माँ कोशल्या हर्षित हो कर अपने लालन को लाढ लड़ाने लगी..


मईया ले लाढ लडाय नजर नही लग जावे
मुख में छोटी छोटी दूध सी दतियाँ !
लेत अछंग लगाय लियो छतियाँ !
कजरा बिंदु लगाय नजर नहीं लग
जावे !
क्या जानू क्या पुन्य प्रघट भयो !
नारायण गयो आय नजर नही लग
जावे !

{ जय श्री राम जय जय श्री सीताराम }