मैं हूँ श्री भगवान का मेरे श्री भगवान ,
अनुभव यह करते रहो तज ममता अभिमान।
जब
महाभारत का युद्ध होने वाला था युद्ध की सहायता के लिए द्वारिकानाथ को
आमंत्रित करने दुर्योधन और अर्जुन साथ साथ ही द्वारिका पहुँचे ।दुर्योधन दो
क्षण पहले पहुँचे गए , किंतु श्री कृष्णा शयन कर रहे थे , अतः सिरहाने की
और वे सिहांसन पर चुपचाप बैठ गए ।
अर्जुन दो क्षण पीछे पहुँचे और अपने नित्य -सखा के चरणों के समीप पलंग पर ही बैठे रहे
श्री
क्रिष्ण की निद्रा टूटी । उठे श्री द्वारिकाधिश । चरणों के समीप बैठे
अर्जुन पर द्रष्टि पड़ी तो झटपट उठते हुए बोले - अरे ! अर्जुन ! कैसे
अकस्मात् आये ?
दुर्योधन ने चोक कर सोचा । की कही बात बिगड़ ना जाए , उतावले में बोल पड़े - मैं पाहिले आया हूँ।
श्री
कृष्णा ने मुख घुमा कर देखा । दोनों की प्रार्थना सुनी और बोले -'युद्ध
में एक ओर मैं अकेला रहूँगा शस्त्र नही लूँगा , दूसरी ओर मेरी सशस्त्र पूरी
नारायणी सेना रहेगी किंतु , दुर्योधन ! अर्जुन आप से छोटे है । मैंने पहले
इन्हें देखा है । इनको पहले अधिकार है की ये इन दोनों में जो चाहे चुन ले !
उतना सुनते ही अर्जुन ने बड़े उल्लास से कहा _ मैंने तुम्हे लिया ।
दुर्योधन
बड़ी आतुरता से बोले 'ठीक है ठीक है । मैं सेना स्वीकार करता हूँ , आप तो
युद्ध में अस्त्र लेकर लड़ेंगे नही ? श्री कृष्ण ने आश्वासन देते हुए कहा
नही मैं अस्त्र नही लूँगा , दुर्योधन के मन की हो गयी सो प्रसन्तापूरवक
श्री कृष्ण से विदा ली।
श्री कृष्ण ने अर्जुन की ओर देख कर
मुस्कुराते हुए बोले अर्जुन ! यह क्या किया ? 'तुम्हे युद्ध करना है ओर
उसमे विजय पानी है द्वारिकाकी नारायणी सेनाका पराक्रम तुमसे अविदित नही है
उसे विपक्ष में दे कर तुमने शस्त्र हिन् मुझको क्यों चूना ! अर्जुन के
नेत्रों में आसू भर आये , ओर द्रढ़ स्वरमे कहा - श्याम ! ठगों मत मुझको !
पाण्डु पुत्र पराजित हो या विजय । तुमको त्याग कर हमे त्रिभुवन का निष्कंटक
साम्राज्य भी नही चाहिए ।जो जाता हो जाए ,जो नष्ट होता हो',नष्ट हो',
किंतु तुम हमारे रहो । तुमको हम छोड़ नही सकते ।
कृष्ण सारथी बने अर्जुन का। जो इनको चाहता है जो इनको सब कुछ मान बैठा है, कृष्ण उनका ! वह जो बनावे कृष्ण वह बनने को प्रस्तुत।
जय श्री राधे राधे
राम नाम अति मीठा है कोई गाके देख ले...
एक बार एक राजा ने गाव में रामकथा करवाई और कहा की सभी ब्राह्मणो को रामकथा के लिए आमत्रित किया जय , राजा ने सबको रामकथा पढने के लिए यथा स्थान बिठा दिया |
एक ब्राह्मण अंगुटा छाप था उसको पठना लिखना कुछ आता नही था , वो ब्राह्मण सबसे पीछे बैठ गया , और सोचा की जब पास वाला पन्ना पलटेगा तब मैं भी पलट दूंगा।
काफी देर देखा की पास बैठा व्यक्ति पन्ना नही पलट रहा है, उतने में राजा श्रदा पूरवक सबको नमन करते चक्कर लगाते लगाते उस सज्जन के समीप आने लगे, तो उस ने एक ही रट लगादी
की "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "
"अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "
उस सज्जन की ये बात सुनकर पास में बैठा व्यक्ति भी रट लगाने लग गया ,
की "तेरी गति सो मेरी गति
तेरी गति सो मेरी गति ,"
उतने में तीसरा व्यक्ति बोला ,
" ये पोल कब तक चलेगी !
ये पोल कब तक चलेगी !
चोथा बोला
जबतक चलता है चलने दे ,
जबतक चलता है चलने दे ,
वे चारो अपने सिर निचे किये इस तरह की रट लगाये बैठे है की,
1 "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा..
2 "तेरी गति सो मेरी गति..
3 "ये पोल कब तक चलेगी..
4 "जबतक चलता है चलने दे..
जब राजा ने उन चारो के स्वर सुने , राजा ने पूछा की ये सब क्या गा रहे है, ऐसे प्रसंग तो रामायण में हम ने पहले कभी नही सुना ,
उतने में , एक महात्मा उठे और बोले महाराज ये सब रामायण का ही प्रसंग बता रहे है ,
पहला व्यक्ति है ये बहुत विद्वान है ये , बात सुमन ने ( अयोध्याकाण्ड ) में कही , राम लक्ष्मण सीता जी को वन में छोड़ , घर लोटते है तब ये बात सुमन कहता है की
"अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?
अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?
फिर पूछा की ये दूसरा कहता है की तेरी गति सो मेरी गति , महात्मा बोले महाराज ये तो इनसे भी ज्यादा विद्द्वान है ,( किष्किन्धाकाण्ड ) में जब हनुमान जी, राम लक्ष्मण जी को अपने दोनों कंधे पर बिठा कर सुग्रीव के पास गए तब ये बात राम जी ने कही थी की , सुग्रीव ! तेरी गति सो मेरी गति , तेरी पत्नीको बाली ने रख लिया और मेरी पत्नी का रावण ने हरण कर लिया..
राजा ने आदरसे फिर पूछा , की महात्मा जी ! ये तीसरा बोल रहा है की ये पोल कब तक चलेगी , ये बात कभी किसी संत ने नही कही ? , बोले महाराज ये तो और भी ज्ञानी है ,( लंकाकाण्ड ) में अंगद जी ने रावण की भरी सभा में अपना पैर जमाया , तब ये प्रसंग मेधनाथ ने अपने पिता रावन से किया की, पिता श्री ! ये पोल कब तक चलेगी , पहले एक वानर आया और वो हमारी लंका जला कर चला गया , और अब ये कहता है की मेरे पैर को कोई यहाँ से हटा दे तो भगवान श्री राम बिना युद्द किये वापिस लौट जायेंगे।
फिर राजा बोले की ये चोथा बोल रहा है ? वो बोले महाराज ये इतना बड़ा विद्वान है की कोई इनकी बराबरी कर ही नही सकता ,ये मंदोदरी की बात कर रहे है , मंदोदरी ने कई बार रावण से कहा की , स्वामी ! आप जिद्द छोड़, सीता जी को आदर सहित राम जी को सोप दीजिये अन्यथा अनर्थ हो जायगा ,
तब ये बात रावण ने मंदोदरी से कही
की ( जबतक चलता है चलने दे )
मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है ,अगर में राम के हाथो मारा गया तो मेरी मुक्ति हो जाएगी , इस अदम शरीर से भजन -वजन तो कुछ होता नही , और में युद्द जित गया तो त्रिलोकी में भी मेरी जय जय कार हो जाएगी
राजा इन सब बातोसे चकित रह गए बोले की आज हमे ऐसा अध्बुत प्रसंग सूनने को मिला की आज तक हमने नही सुना , राजा इतने प्रसन्न हुए की उस महात्मा से बोले की आप कहे वो दान देने को राजी हु ,
उस महात्मा ने उन अनपढ़ अंगुटा छाप ब्रहमिन भक्तो को अनेको दान दक्षणा दिल वा दि ,
इन सब बातो का एक ही सार है की कोई अज्ञानी , कोई नास्तिक , कोई कैसा भी क्यों न हो , रामायण , भागवत ,जैसे महान ग्रंथो को श्रदा पूरवक छूने मात्र से ही सब संकटो से मुक्त हो जाते है ,
और भगवान का सच्चा प्रेमी हो जाये उन की तो बात ही क्या है , मत पूछिये की वे कितने धनि हो जाते है
{ जय जय श्री सीताराम }
नारद कहे एक बात प्रभूसे , जगत करे फरियाद है !!
करे पूण्य दुःख भोग रहे , यह कैसा इंसाफ है ?
करे पाप सुख पा रहे , यह कैसा इंसाफ है ?
संसार में एक आदमी पुण्यात्मा है , सदा चारी है और दुःख पा रहा है ,
तथा
एक आदमी है पापात्मा है , दुराचारी है और सुख भोग रहा है - इस बातको लेकर
अच्छे से अच्छे पुरुषोके भीतर भी यह शंका हो जाया करती है की इसमें ईश्वर
का न्याय कहा है ?
इसका समाधान यह है की अभी पुण्यात्मा जो दुःख पा रहा है , यह पूर्व के किसी
जन्म में किये हुए पाप का फल है , अभी किये हुए पूण्य का फल नही ,
ऐसे ही अभी पापात्मा जो सुख भोग रहा है यह भी किसी पूर्व के जन्म में किये हुए पूण्य का फल है अभी किये हुए पापका नही |
{ जय जय श्री राधे }
हे नाथ ! हे मेरे नाथ मैं आप को
भूलूँ नही
सब भाई बहन सावधान हो कर हरदम भगवान के चिंतन में लग जायँ हरदम भगवान से कहते रहे ,
की
हे नाथ ! हे मेरे नाथ! ऐसी कृपा कर की मैं आप को भूलूँ नही , ऐसा हो जायं
की सचमुच हम भगवान को कभी भूले ही नही, तब सच में हमारा कल्याण हो जाता है,
सदा के लिए दुःख मिट जाता है महान आनन्द की प्राप्ति हो जाती है , इतना
सस्ता सोदा और क्या होगा ?
भगवान का जैसा स्वरुप है उसको याद करो और यह लगन लगादो की
हे मेरे नाथ ! मैं आप को भूलूँ नही
इस में अपने आप को खो दो फिर आप का सब काम ठीक हो जायेगा इसमें संदेह नही , ये राम बाण की तरह है |
भगवान ने गीता में अर्जुन को कहा है की तू सब समय में मेरा ध्यान कर और युद्ध भी कर
इसका तात्पर्य यह हुआ की समय पर तो काम धंधा करो और हरदम भगवान को याद भी
करो,चलते फिरते , उठते बैठते , सोते जागते , काम करते हुए हर समय व्यकुल्ता
पूर्वक सच्चे ह्रदय से कहते रहो ,
की हे नाथ ! हे मेरे नाथ मैं आप को
भूलूँ नही... आप शुध्द हो , अशुध्द हो , अछे हो , मंदे हो , स्वस्थ हो ,
बीमार हो , धनि हो , निरधन हो ,कैसे ही क्यों ना हो केवल भगवान को याद करो,
ह्रदय से प्रेम से आर्त होकर, रोकर भगवान से कहो की ,
हे मेरे नाथ ! ऐसी कृपा करो , मै आप को भूलूँ नही , केवल भगवान की याद
मात्र से कल्याण हो जाय ! लगन आप की और कृपा भगवान की ! कितनी सुगम सरल बात
है,
सच्चे ह्रदय से प्रार्थना जब भक्त सच्चा गाय है
तो भक्तवत्सल कान में वह पहुँच झट ही जाय है
भगवान के सब जगह कान है ,
हम बोलते है भगवान के कानोमे ही बोलते है
इसलिए
अभी कहना सुरु कर दो की हे नाथ मैं आप को भूलूँ नही , अगर ह्रदय में भाव
कम हो तो भी कहना सुरु करदो , कहते कहते नक़ल भी असल हो जाती है ,
झूट इतनी बार कहा की सच्च हो गया !
ए मेरे श्याम मुझे तुमसे प्यार हो गया !!
अब लगता है जिना तेरे बिन दुस्वार हो गया !!
भगवान
की याद को अपने ह्रदय में ऐसे बसालो की हम उनके बिन जी ही नही पाए, ऐसा
हो जायेगा तब आपके सारे संकट दूर हो जायेंगे दुःख कभी आप को छू भी नही
पायेगा , सुख ही सुख हो जायेगा , आप के सब मनोरथ पुरे हो जायेंगे
{ जय जय श्री राधे }
गोकुल में देखूं , वृन्दावन में देखूं , मुरली बाजे रे !
श्याम संग राधा नाचे रे !!
छम छम नाचे , राधा प्यारी , सुन के मीठी मुरलिया !
श्याम छवि पर , सब बलिहारी , ग्वालबाल और गईया !!
शरर शरर चाले रे , माधुरी पुरवयिया रे , मेघा गाजे रे !
श्याम संग राधा नाचे रे !!
बंशी वट पर , यमुना तट पर, कान्हा रास रचाए !
गोपी बन कर , शंकर आये , गोपेश्वर कहलाये !!
डम डम डमरू बाजे ,कान्हा की मुरली पे , सब जग नाचे रे !
श्याम संग राधा नाचे रे !!
चन्द्र किरण सो , श्याम शलोना , दो आखे कजरारी !
ठुम ठुम नाचे , गोपियन के संग , जग का पालन हारी !!
रास बिहारी संग , राधा सुकुमारी संग , बिरज में विराजे रे !
श्याम संग राधा नाचे रे !!
गोकुल में देखूं वृन्दावन में देखूं मुरली बाजे रे !
श्याम संग राधा नाचे रे !!
{ जय जय श्री राधे }
नारायण , नारायण
प्रभु के नाम की महिमा इतनी अनंत है की मरते समय एक बार अपनी जीवा पर भगवान का नाम आने से सब पाप श्रण हो कर यमदूतों की वजह हरी के पार्षदों के स्वागत का अधिकारी बन जाता है ,
ऐसी ही कथा है ब्राह्मण अजामिल की..
अजामिल बहुत ही पापी था अपनी नीरअपराद पत्नी को छोड़ किसी वैश्या को अपना लिया जिन वैश्या दाशी के दस पुत्र हुए उनमे से एक का नाम नारायण था , अजामिल का नारायण पर बहुत स्नेह था , वो जब खाता तो उसको भी खिलाता वो पिता तो उसको भी पिलाता वो जब सोता तो उसे भी सुलता ,सब प्रकार से लाढ प्यार से अपने प्राणों के समान प्रिय मानता..।
और उस दासी में इतना मगन था की उस को प्रसन्न करने के लिए कोई भी पाप कर बैठता बूरे से बुरा कर्म कर देता था। लोगो को सताना , चोरी से धन ले आना , छल कपट से धन हड़प लेना , निर्दोस को सताना , वो इतना पापी हो गया की पाप की भी सीमा पार हो गयी ।
समय चलते चलते एक दिन मृत्यु का समय समीप आ पंहुचा । उसे यम राज के यम दूत लिजाने को आये उनसे वो भय भीत हो उठा और ऊँचे स्वरमे अपने बेटे नारायण को पुकार ने लगा , नारायण ! नारायण ! भगवन के पार्षदों ने देखा की यह मरते समय हमारे स्वामी भगवान् नारायण का नाम ले रहा है। उनके नाम का कीर्तन कर रहा है । वे बड़े वेघ से झटपट वह आ पहुचे। उस समय यमराज के दूत दासी पति अजामिल के सरीर में से सूक्षम सरीर को खीच रहे थे। विष्णु दूतो ने बलपूर्वक रोक दिया ।
उनके रोकने पर यमराज के दूतों ने उनसे कहा " अरे ! धरमराज की आज्ञा का निषेद करने वाले तुम लोग हो कौन ? तुम किसके दूत हो , कहा से आये हो ? और इसे ले जाने से हमे क्यों रोक रहे हो ?
क्या तुम लोग कोई देवता , उप्देवता अथवा सिद्ध श्रेष्ठ हो ! हम देखते है की तुम सब लोगो के नेत्र कमल दल के समान है ! कोमलता से भरे है । तुम पीले पीले रेशमी वस्त्र पहने हो । तुम्हारे सिर पर मुकुट , कानो में कुंडल और गले में कमल के हार लहरा रहे है । सबकी नयी अवस्था है। सुंदर सुंदर चार चार भुजाएं है । सभी के कर कमलों में धनुष , तरकश , तलवार , गदा, संख , चक्र , कमल आदि सुशोभित है । तुम लोगो की अंग कांथी से दिशायों का अन्धकार और प्राकृत और प्रकाश भी दूर हो रहा है । हम धरमराज के सेवक है । हमें तुम लोग क्यों रोक रहे हो ? "
जब यम दूतों ने इस प्रकार कहा तब भगवान् नारायण के आज्ञाकारी पार्षदों ने हँस कर मेघ के सामान गंभीर वाणी से उनके प्रति यूँ कहा - " यमदूतों !! यदि तुम लोग सचमुच में धरमराज के आज्ञाकारी हो तो हमें धरम का लक्षण और इसका तथ्य सुनाओ ! दंड किस प्रकार दिया जाता है ? दंड का पात्र कौन है ? मनुष्यों में सभी पापाचारी दंडनीय है । अथवा उनमें से कुछ ही ?"
यमदूतो ने कहा - " वेदों ने जिन कर्मों का विधान किया है वे धरम है और जिनका निषेध किया है वे अधर्म है । वेद स्वयं प्रकाश और ज्ञान है । ऐसा हमने सुना है ।
पर यह ऐसा पापी है , कुबुद्धि है , अन्याय से जैसे भी जहां कही भी धन मिलता वही से उठा लाता । उस वेश्या के कुटुंब के पालन करने में यह व्यस्त रहता । इसका सारा जीवन ही पापमयी है । इसने अब तक अपने पापों का कोई प्रायश्चित नहीं किया है इसीलिए अब हम इस पापी को दंड पानी भगवान यमराज के पास ले जायेंगे । वह ये अपने पापो का दंड भोगकर शुद्ध हो जायेगा । "
भगवन के निति निपुण एवं धरम का मर्म जानने वाले पार्षदों ने यमदुतों का यह अभिभासन सुन कर उनसे इस प्रकार कहा -
" युम्दूतों ! इसने कोटि कोटि जन्मों की पाप राशी का पूरा पूरा प्रायश्चित कर लिया है । क्यूंकि इसने विवश होकर ही सही भगवान् के परम कल्याण मयी मोक्षप्रद नाम का उच्चारण तो किया है। जिस समय इसने "नारायण " इन चार अख्सरों का उच्चारण किया उसी समय केवल उतने से ही इस पापी के समस्त पापो का प्रायश्चित हो गया । चाहे कोई कितना भी पापी क्यों न हो , भगवान् के नामो का उच्चारण किया जाये , क्यूंकि भगवान् नाम के उच्चारण से मनुष्य की बुद्धि भगवान् की गुण लीला और स्वरुप में रम जाती है। और भगवान् की उसके प्रति आत्मीय बुद्धि हो जाती है"
इस प्रकार भगवान् के पार्षदों ने अजामिल को युम्दूतों के पार्षदों से छुडा कर मृत्यु से मुक्त कर दिया। अजामिल यमदूतों से छूट कर स्वस्थ और निर्भय हो गया । उसने भगवान् के पार्षदों का दर्शन आनंद में मग्न होकर उन्हें सिर झूका कर प्रणाम किया।
भगवान के पार्षदों ने सोचा की अजामिल कुछ कहना चाहता है । उसमे कुछ समय के लिए स्वास डाल दी , और वे अंतर्ध्यान हो गये , अजामिल को अपने किये हुए पाप याद आने लगे वो जो पाप किया उस पापो को याद कर पछतावा करने लगा की में दूस्ट अपनी नीरअपराध पत्नी को छोर इस वैश्या के नचाये हुए नाच में सब धर्मो का नास कर चूका हु इतने पाप कर चूका हूँ की नर्क में भी मुझे कही ठोड न मिले ,
अजामिल श्री हरी के पार्षदों के स्वरूप का ध्यान करते हुए कहने लगा की वे सुन्दर रूप वाले चार भुजाये गदा चक्र हाथ लिए कहा चले गए है ? वे मुझे फिर क्यों नही दिख रहे है !
अजामिल ने सब प्रकारसे अपनी इन्द्रियों को एकाग्रत कर सब तरफ से मन हटा कर भगवान नारायण के चित में लीन हो गए , भगवान के पार्षदों ने देखा अजामिल अपने शरीर को छोड़ हरी के धाम जानेको तईयार है भगवान के पार्षद आ गए पालकी में बिठा श्री हरी के धाम को ले चले ,
जो लोग इस संसार बंधन से मुक्त होना चाहते है उनके लिए अपने चरणों के स्पर्श से तीर्थों को भी तीर्थ बनाने वाले भगवान् के नाम से बढ़कर और कोई साधन नही है । क्यूंकि नाम का आश्रय लेने से मनुष्य का मन फिर कर्म के पर्पंचो में नहीं पड़ता ।
श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका श्रवन कीर्तन करता है वह नरक में कभी नहीं जाता । यमराज के दूत तो आँख उठा कर उसकी और देख तक नहीं सकते । वैकुण्ठ लोक में उसकी पूजा होती है। जैसे अजामिल पापी ने पुत्र के नाम के बहाने भगवान् के नाम का उच्चारण किया उसे भी वैकुण्ठ की प्राप्ति हो गयी। फिर जो लोग श्रद्धा के साथ भगवान् नाम का उच्चारण करते है उनकी तो बात ही क्या है !!!
{ जय जय श्री राधे }