Sunday, 2 June 2013


                          नारायण , नारायण

प्रभु के नाम की महिमा इतनी अनंत है की मरते समय एक बार अपनी जीवा   पर भगवान का नाम आने से सब पाप श्रण हो कर यमदूतों की वजह हरी के पार्षदों के स्वागत का अधिकारी बन जाता है ,
ऐसी ही कथा है ब्राह्मण अजामिल की..

अजामिल बहुत ही पापी था अपनी नीरअपराद पत्नी को छोड़ किसी वैश्या को अपना लिया जिन वैश्या दाशी के दस पुत्र हुए उनमे से एक का नाम नारायण था , अजामिल का नारायण पर बहुत स्नेह था , वो जब खाता तो उसको भी खिलाता  वो पिता तो उसको भी पिलाता वो जब सोता तो उसे भी सुलता ,सब प्रकार से लाढ प्यार से अपने प्राणों के समान प्रिय मानता..।

और उस दासी में इतना मगन था की उस को प्रसन्न करने के लिए कोई भी पाप कर बैठता बूरे से बुरा कर्म कर देता था। लोगो को सताना , चोरी से धन ले आना , छल कपट से धन हड़प लेना , निर्दोस को सताना , वो इतना पापी हो गया की पाप की भी सीमा पार हो गयी ।

समय चलते चलते एक दिन मृत्यु का समय समीप आ पंहुचा । उसे यम राज के यम दूत लिजाने को आये उनसे वो भय भीत हो उठा और ऊँचे स्वरमे अपने बेटे नारायण को पुकार ने लगा  , नारायण ! नारायण ! भगवन के पार्षदों ने देखा की यह मरते समय हमारे स्वामी भगवान् नारायण का नाम ले रहा है। उनके नाम का कीर्तन कर रहा है । वे बड़े वेघ से झटपट वह आ पहुचे। उस समय यमराज के दूत दासी पति अजामिल के सरीर में से सूक्षम सरीर को खीच रहे थे। विष्णु दूतो ने बलपूर्वक रोक दिया ।

उनके रोकने पर यमराज के  दूतों ने उनसे कहा " अरे ! धरमराज की आज्ञा का निषेद करने वाले तुम लोग हो कौन ? तुम किसके दूत हो , कहा से आये हो ? और इसे ले जाने से हमे क्यों रोक रहे हो ?
क्या तुम लोग कोई देवता , उप्देवता अथवा सिद्ध श्रेष्ठ हो ! हम देखते है की तुम सब लोगो के नेत्र कमल दल के समान है ! कोमलता से भरे है । तुम पीले पीले रेशमी वस्त्र पहने हो । तुम्हारे सिर पर मुकुट , कानो में कुंडल और गले में कमल के हार लहरा रहे है । सबकी नयी अवस्था है। सुंदर सुंदर चार चार भुजाएं है । सभी के कर कमलों में धनुष , तरकश , तलवार , गदा, संख , चक्र , कमल आदि सुशोभित है । तुम लोगो की अंग कांथी से दिशायों का अन्धकार और प्राकृत और प्रकाश भी दूर हो रहा है । हम धरमराज के सेवक है । हमें तुम लोग क्यों रोक रहे हो ? "

जब यम दूतों ने इस प्रकार कहा तब भगवान् नारायण के आज्ञाकारी पार्षदों ने हँस कर मेघ के सामान गंभीर वाणी से उनके प्रति यूँ कहा - " यमदूतों !! यदि तुम लोग सचमुच में धरमराज के आज्ञाकारी हो तो हमें धरम का लक्षण और इसका तथ्य सुनाओ ! दंड किस प्रकार दिया जाता है ? दंड का पात्र कौन है ? मनुष्यों में सभी पापाचारी दंडनीय है । अथवा उनमें से कुछ ही ?"

यमदूतो ने कहा - " वेदों ने जिन कर्मों का विधान  किया है वे धरम है और जिनका निषेध किया है वे अधर्म है । वेद स्वयं प्रकाश और ज्ञान है । ऐसा हमने सुना है ।
पर यह ऐसा पापी है , कुबुद्धि है , अन्याय से जैसे भी जहां कही भी धन मिलता वही से उठा लाता । उस वेश्या के कुटुंब के पालन करने में यह व्यस्त रहता । इसका सारा जीवन ही पापमयी है । इसने अब तक अपने पापों का कोई प्रायश्चित नहीं किया है इसीलिए अब हम इस पापी को दंड पानी भगवान यमराज के पास ले जायेंगे । वह ये अपने पापो का दंड भोगकर शुद्ध हो जायेगा । "

भगवन के निति निपुण एवं  धरम का मर्म जानने वाले पार्षदों ने यमदुतों का यह अभिभासन सुन कर उनसे इस प्रकार कहा -
" युम्दूतों ! इसने कोटि कोटि जन्मों की पाप राशी का पूरा पूरा प्रायश्चित कर लिया है । क्यूंकि इसने विवश होकर ही सही भगवान् के परम कल्याण मयी मोक्षप्रद नाम का उच्चारण तो किया है। जिस समय इसने "नारायण " इन चार अख्सरों का उच्चारण किया उसी समय केवल उतने से ही इस पापी के समस्त पापो का प्रायश्चित हो गया । चाहे  कोई कितना भी पापी क्यों न हो , भगवान् के नामो का उच्चारण किया जाये , क्यूंकि भगवान् नाम के उच्चारण से मनुष्य की बुद्धि भगवान् की गुण लीला और स्वरुप में रम जाती है। और भगवान् की उसके प्रति आत्मीय बुद्धि हो जाती है"

इस प्रकार  भगवान् के पार्षदों ने अजामिल को युम्दूतों के पार्षदों से छुडा कर मृत्यु से मुक्त कर दिया। अजामिल यमदूतों से छूट कर स्वस्थ और निर्भय हो गया । उसने भगवान् के पार्षदों का दर्शन आनंद में मग्न होकर  उन्हें  सिर झूका कर प्रणाम किया।

भगवान के पार्षदों ने सोचा की अजामिल कुछ कहना चाहता है । उसमे  कुछ समय के लिए स्वास डाल दी , और वे अंतर्ध्यान हो गये , अजामिल को अपने किये हुए पाप याद आने लगे वो जो पाप किया उस पापो को याद कर पछतावा  करने लगा की में दूस्ट अपनी नीरअपराध पत्नी को छोर इस वैश्या के नचाये हुए नाच में सब धर्मो का नास कर चूका हु इतने पाप कर चूका हूँ की नर्क में भी मुझे कही ठोड न मिले ,

 अजामिल श्री हरी के पार्षदों के स्वरूप का ध्यान करते हुए कहने लगा की वे सुन्दर रूप वाले चार भुजाये गदा चक्र हाथ लिए कहा चले गए है ? वे मुझे फिर क्यों नही दिख रहे है !

अजामिल ने सब प्रकारसे अपनी इन्द्रियों को एकाग्रत कर सब तरफ से मन हटा कर भगवान नारायण के चित में लीन हो गए , भगवान के पार्षदों  ने देखा अजामिल अपने शरीर को छोड़ हरी के धाम जानेको तईयार  है भगवान के पार्षद आ गए पालकी में बिठा श्री हरी के धाम को ले चले ,

जो लोग इस संसार बंधन  से मुक्त होना चाहते है उनके लिए अपने चरणों के स्पर्श से तीर्थों को भी तीर्थ बनाने वाले भगवान् के नाम से बढ़कर और कोई साधन नही है । क्यूंकि नाम का आश्रय लेने से मनुष्य का मन फिर कर्म के पर्पंचो में नहीं पड़ता ।
श्रद्धा और भक्ति के साथ इसका श्रवन कीर्तन करता है वह नरक में कभी नहीं जाता । यमराज के दूत तो आँख उठा कर उसकी और देख तक नहीं सकते । वैकुण्ठ लोक में उसकी पूजा होती है। जैसे अजामिल पापी ने पुत्र के नाम के बहाने भगवान् के नाम का उच्चारण किया उसे भी वैकुण्ठ की प्राप्ति हो गयी। फिर जो लोग श्रद्धा के साथ भगवान् नाम का उच्चारण करते है उनकी तो बात ही क्या है !!!
       { जय जय श्री राधे }

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