Wednesday, 22 July 2015

                     अयोध्या निर्माण की कथा !

ये बात पिछले पोस्ट में लिखी हुई है की जब प्रभु श्रीराम अपने धाम गए तब अयोध्या के पेड़ , पोधे वृक्ष , लताये जड़ के सहित उखड- उखड कर भगवान के साथ , भगवत धाम- साकेत में चले गए। यहाँ तक की जब पर्वतोने देखा की प्रभु श्रीराम अपने धाम जा रहे है तब ( जड़ भी चेतन बन कर ) वे पर्वत भी प्रभु श्रीराम के साथ चल पड़े। 

अयोध्या की भूमि सुनी सी हो गयी अयोध्याजी स्त्री के रूपमे प्रकट हो कर विलाप करने लगी की , अरे ! मैं कैसी अभागन हूँ जो यहाँ पड़ी- पड़ी अपने आपको उजड़ती हुई देख रही हूँ..

एक दिन अयोध्या जी दुखी मन से ( सरयूजी नदी )के पास जा कर विलाप करने लगी की , बहिन ! अब तुम्हारा होना भी व्यर्थ रह गया है , मेरे उजड़ जाने से अब हम अकेली रह गयी है। अयोध्या जी और सरयूजी अथाह दुःख के समुन्द्र में डुबी हुई प्रभु श्रीराम की बाते कर रही थी और आँखोसे अश्रुधार बहा रही थी। 
उतने में एक राजकुमार घोड़े पर सवार , हाथ में धनुषबाण लिए वहा से गुजर रहे थे। उस राजकुमारने देखा की यहाँ की भूमि इतनी उजड़ी सी क्यों लग रही है ? यहाँ के पेड़ , पोधे , वृक्ष , लताये कहा चले गए ?

राजकुमारने देखा की दो स्त्रियां सरयूजी के किनारे बैठी दुखी मन से विलाप कर रही है , उनके नेत्रों से झर - झर आसु बह रहे है |

राजकुमार घोड़े से उतरकर उन माताओ को प्रणाम करके कहा की , हे देवियो ! आप कौन है और आप रो क्यों रही हो ?

अयोध्याजी ने कहा महाराज ! मैं यहाँ की भूमि अयोध्या हूँ और ये मेरी सखी सरयूजी है , आप हमारे रोनेका कारण पूछ रहे है पर क्या कहे कुछ कहने की बात नही है ,
पर आप पूछ रहे है तो हम बता देती है

अयोध्याजी ने कहा महाराज ! कुछ काल पहले एक डाकू आया था उसने हमे खूब आनंद दिया था हम उनके आने से धन्य हो गयी थी पर जाते समय वो डाकू यहाँ की सारी सम्पति को लूट कर ले गया हमे उजाड़ कर चला गया

राजकुमारने धनुस पर प्रतंजा चढ़ा कर क्रोधमे भरकर कहा , मा
ताजी ! मैं आपको वचन देता हूँ , मैं सिग्र ही उस डाकू को युद्धमे जीत कर आप की सम्पति आप को वापिस दिलवाकर ही जाऊंगा , आप हमे उस डाकू का नाम बताईये ?

अयोध्या जी बोली , महाराज ! उस डाकू पर आपके धनुस का कोई असर नही पड़नेवाला वे बहुत बलसाली है वे युद्धमे जीते नही जा सकते , वे तो प्रेम से जीते जा सकते है।

राजकुमार   आश्चर्य में पड़गए की डाकू को प्रेम से जीता जा सकता है ! ऐसा कैसा डाकू है ? पर जो भी है आप मुझे उनका नाम बताईये ?

अयोध्याजी ने कहा "वे अखिलब्रह्मांढ नायक परब्रह्मपरमेशवर है मुझे शोभायमान करने के लिए इस धरती पर  (राजा दशरत जी के पुत्र ) बन कर आये थे जो आपके ( पिता श्री राम है ) वहीं  मुझे उजाड़ कर चले गए है।
यहाँ के पेड़ , पोधे , वृक्ष , लताये सब जड़ के सहित उखड़ कर उनके साथ चले गए और में यहाँ उजड़ कर रह गयी हूँ।

वे राजकुमार कोई और नही थे भगवान श्रीराम के छोटे ( पुत्र कुश ) थे महाराज श्री कुश ने कहा ,
माताजी ! अब मैं आप को वचन दे चूका हूँ की आपकी सम्पति आपको दिलवाकर ही जाऊंगा सो में मेरा वचन पूरा कर के ही  जाऊंगा , पर उसमे आपको मेरी सहायता करनी होगी , आप कृपा करके मुझे बताईये , आप जिस रूप में प्रभु श्रीराम के रहने पर  शोभायमान थी , वे सभी यथा योग्य स्थान मुझे बता दीजिये ?
उसके बाद अयोध्याजी और सरयूजी ने प्रभु श्रीराम की बाल लीलाओ का चरित्र सुना कर जहा - जहा भगवान श्रीराम ने जो लीलाये की वे इस्थान बताये।

अयोध्याजी और सरयूजी के बताये हुवे इस्थान को महाराज ( कुश ) ने यथा योग्य फिरसे स्थापित किया। वे अयोध्याजी फिरसे सज गयी वहां के पेड़ ,पोधे , वृक्ष , लताये फिरसे लहराने लगे।
अयोध्या जी की सम्पति लोटा कर कुश महाराज अपनी राजधानी ( कुशावती ) को चल दिए।

भगवान श्री कृष्ण की उजड़ी हुयी भूमि को उनके पड़पौत्र ( व्रजनाभ जी ) ने फिरसे बसाया था और प्रभु श्रीरामकी जन्म भूमि अयोध्याजी को उनके छोटे पुत्र महाराज ( श्री कुश ) ने बसाया था ऐसा हमे पौराणिक ग्रंथो से मालूम होता है और अनुभव भी....!!

जय श्री सीताराम !
       { जय जय श्री राधे !}

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