मना मनोरथ छोड़ दे तेरा किया न होय !
पानी में घी निपजे तो लूका खायन कोय !!
हमारे मन की हो जाय , भाई , बंधो , सगे , सम्बन्धी सब हमारे अनुकूल हो जाये , संसार में मान सम्मान, बड़ाई मिल होजाये , लोग हमे अच्छा कहे ,हमारी प्रतिष्ठा बढ़ जाये। ये लालसा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर रहती है पर ऐसा कभी होता नही और कुछ समय के लिए हो भी जाये तो सदा टिकता नही |
नाश्वान शरीर को मान बड़ाई में लगने से जीव बंधन में बंधता है
और मनुष्य का पतन होता है पर जब इन सबकी लालसा छूट जाये तो जीव मुक्त होता है और मनुष्य जाती की प्रगति होती है।
संसार में जहा मान बड़ाई प्रतिष्ठा दिखती है वो असल में बंधन का कारण है और जहा मान बड़ाई प्रतिष्ठा की लालसा न हो वह मुक्ति का कारण है।
भगवान हमारे मन की न करे , हमे कोई मान सम्मान न दे ,
केवल हम भगवान के है और एक भगवान ही हमारे अपने है इस के अतिरिक्त हमे जो भी याद हो वो यादास्त ( छीन जाये ) प्रभु ऐसी कृपा करो। ये लालसा हो तो परमात्मा की प्राप्ति उसी क्षण हो जाती है।
भगवान कहते है की जो जीव सच्चे ह्रदय से मेरी शरण में आ जाता है और कहता है की
हे नाथ ! मैं आपका हूँ ,तो में उसी क्षण उसके सारे बंधन काट कर उसे मुक्त कर देता हूँ। उस जीव पर कृपा करना सुरु कर देता हूँ ,
जो बंधन के रास्ते बने हुए है उन सब से छुड़ा कर उन्हें मेरी प्राप्ति करा देता हूँ |
जो मेरी प्राप्ति में रोड़ा बने बैठे है उनके सगे , सम्बन्धीयो से उनकी खट - पट करवा देता हूँ फिर वो मुझ में और मैं उनमे रमण करने लगते है......।
ये बिलकुल सच्ची और पक्की बात।
मनुष्य शरीर परमात्माकी प्राप्तिके लिए ही मिला है बाकि सब कार्य तो पशु पक्षी की योनिमे भी किये जा सकते है पर भगवान की प्राप्ति केवल मानव शरीर मिलने पर ही की जा सकती है।
जय श्री राधे राधे!
पानी में घी निपजे तो लूका खायन कोय !!
हमारे मन की हो जाय , भाई , बंधो , सगे , सम्बन्धी सब हमारे अनुकूल हो जाये , संसार में मान सम्मान, बड़ाई मिल होजाये , लोग हमे अच्छा कहे ,हमारी प्रतिष्ठा बढ़ जाये। ये लालसा प्रत्येक व्यक्ति के भीतर रहती है पर ऐसा कभी होता नही और कुछ समय के लिए हो भी जाये तो सदा टिकता नही |
नाश्वान शरीर को मान बड़ाई में लगने से जीव बंधन में बंधता है
और मनुष्य का पतन होता है पर जब इन सबकी लालसा छूट जाये तो जीव मुक्त होता है और मनुष्य जाती की प्रगति होती है।
संसार में जहा मान बड़ाई प्रतिष्ठा दिखती है वो असल में बंधन का कारण है और जहा मान बड़ाई प्रतिष्ठा की लालसा न हो वह मुक्ति का कारण है।
भगवान हमारे मन की न करे , हमे कोई मान सम्मान न दे ,
केवल हम भगवान के है और एक भगवान ही हमारे अपने है इस के अतिरिक्त हमे जो भी याद हो वो यादास्त ( छीन जाये ) प्रभु ऐसी कृपा करो। ये लालसा हो तो परमात्मा की प्राप्ति उसी क्षण हो जाती है।
भगवान कहते है की जो जीव सच्चे ह्रदय से मेरी शरण में आ जाता है और कहता है की
हे नाथ ! मैं आपका हूँ ,तो में उसी क्षण उसके सारे बंधन काट कर उसे मुक्त कर देता हूँ। उस जीव पर कृपा करना सुरु कर देता हूँ ,
जो बंधन के रास्ते बने हुए है उन सब से छुड़ा कर उन्हें मेरी प्राप्ति करा देता हूँ |
जो मेरी प्राप्ति में रोड़ा बने बैठे है उनके सगे , सम्बन्धीयो से उनकी खट - पट करवा देता हूँ फिर वो मुझ में और मैं उनमे रमण करने लगते है......।
ये बिलकुल सच्ची और पक्की बात।
मनुष्य शरीर परमात्माकी प्राप्तिके लिए ही मिला है बाकि सब कार्य तो पशु पक्षी की योनिमे भी किये जा सकते है पर भगवान की प्राप्ति केवल मानव शरीर मिलने पर ही की जा सकती है।
जय श्री राधे राधे!
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