Monday, 19 November 2012

जिस की बात कभी रद्द न हो उसका नाम नारद है ।

एक दिन नारद जी कैलाश  पर्वत पर पहुचे ,पार्वती जी को देखा और कहा "कहो माता सब कुछ ठीक तो है, सब आनंद से तो चल रहा है ना " ।
पार्वती जी -"अरे नारद तू मुझसे क्या पूछ रहा है की  सब कुछ कुसल तो है ,अरे मैं  महादेव की पत्नी हूँ  हमारे तो सब कुछ आनंद से ही है भला हमे क्या होगा ,बताओ तुमने कैसे पूछा"।
नारद जी मुस्कुराते हुए -"माता मेने तो ऐसे ही पूछ लिया"।
पार्वती जी को लगा की इस देव मुनि की हंसी में कुछ रहस्य है  , "बताओ नारद क्या बात है?"।  नारद  - "माता मेने तो ऐसे ही पूछ लिया था। 
माता -"नही नारद ऐसे ही तुम कुछ पूछते ही नही, बताओ क्या बात है?" ।

नारद जी  - " माता आपको भोले बाबा सब बताते तो हैं  ना ?"।
पार्वती जी -"ये तो भोले नाथ है ये क्या छुपायेंगे इनको तो कुछ छुपाना आता ही नही ,ये तो सब रहस्य बता देते है"।
नारद -"माँ सब तो बताते है पर एक बात अभी तक नही बताई है"।
माता-"एक बात ,क्या बात कौनसी बात?"।
नारद जी-"माता ये शंकर भगवान के गले में जो खोपडिया है वो किसकी है आप को पता है?"
पार्वती जी-"मुझे तो पता नही । ये तो अगोरी बाबा ,है कुछ भी गले में डाल देते है
नारद- "कुछ भी गले में डाल देते है तो ये खोपडिया ही क्यों डालते । फल , फूल तो नही डालते ,माँ ये खोपड़ीया किस की है बताऊँ?"
माता- "हां बताओ"
नारद - "माँ ये खोपडिया सब आप के सोतो की है" ।
पार्वतीजी- "अब ये मेरे सोते फिर कहा से आ गयी"
नारद जी- "माँ आप से पहले भोले बाबा का विवाह हुआ जिसके साथ में विवाह हुआ वो मर गई  उस मरी हुई पत्नियों से इतना प्रेम था की उनकी खोपड़ी भी अपने गले में लत कए हुए रखते है"
नारद मुनि की बाते माँ पर असर कर गई ,और रुष्ट हो कर बैठ गई । जब शंकर भगवान  की समाधी खुली तो रोज तो माता आरती की थाली ले कर भोले बाबा की आरती में खड़ी रहती थी, पर इस बार बाबा ने देखा की पार्वती जी नहीं है ,भगवान ने नन्दीश्वर से पूछा तो ,नन्दीश्वर बोले आज माता रुष्ट है ,भोले बाबा घर पहुचे और बोले "देवी क्या बात है ,क्यों रुष्ट हो कर बैठी हो ?"
पार्वती जी- "नही जी मुझे आप से बात नही करनी"
शिवजी- "देवी अपने जीवन में सब कुसल से चल रहा था आज अचानक ये तुम को क्या हो गया माता - "नहीं जी मुझे आप से बात नही करनी आप तो मुझ से बात छुपाते हो"
शिवजी - "अब मैंने क्या बात छुपाई?"
माता- "अच्छा बताओ ये आप के गले में खोपडिया है वो किसकी है?"
बाबा-"अरे आज ये खोपड़ी की कैसे सूझी? कभी नही पूछा तुमने  आज अचानक इस खोपडिया की याद  कैसे आ गई?"
माता- "वो तों भला हो नारद का जो बता गया वरना मुझे तो पता ही नही चलता ।"
शंकर जी  - "नारद बता गया तब तो काम पक्का है ,अब तो इसे बताना ही पड़ेगा ।"
बाबा बोले-  "देवी तुम इतना पुछ रही हो तो सुनो ये खोपडिया किसी और की नही ये सब खोपडिया तुम्हारी ही है । तुम हर जन्म में मेरी पत्नी बनी और हर बार मरते समय यही विनती करती की मैं  आप की ही पत्नी बनूँ। तुम्हारे प्रति मुझे प्रेम होने से मैंने ये सारी खोपडिया अपने गले में डाल रखी है"
माता बाबा के चरणों में गिर पड़ी और बोली- " हे नाथ !  मुझे इतनी बार जन्म लेना पड़ा और मरना पड़ा अब आप ऐसा कुछ कीजिये जो मेरा जन्म मरण का अवागम छुट जाये"
तब बाबा बोले- "देवी मैं तुम्हे अमर  कथा सुनाता हूँ ताकी तुम्हारा जन्म मरण छुट जाये"।
तब शंकर भगवान   माँ को अमर  कथा सुनाने लगे पर बिच में निंद्रा आने के कारण माँ अमर कथा नही सुन पाई ।

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