Friday, 18 October 2013

कान्हा रे थोडा सा प्यार दे, चरणो मे बैठा के हम को तू तार दे। 
ओ गौरी घुंघट उभार दे, प्रेम की भिक्षा झोली में डाल दे॥ 

 आज सरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने रास किया उस रास में हमारे दोनों अजन्मे देवो पर व्रज भूमि में रास मंडल पर बाकि सभी देवतायो ने आकाश से पुष्पों की वर्षा के साथ अमृत भी बरसाया था !

जब श्यामसुंदर गोपियों के साथ रास रचा रहे थे उस रास में माँ पार्वती भी श्यामसुंदर के साथ रास करने आती थी एक दिन भोले बाबा ने कहा देवी ये तुम रोज सज धज कर कहाँ जाती हो ?

 पार्वती " प्रभु व्रज में श्यामसुंदर नित्य गोपियाँ के साथ रासलीला करते है मैं वही जा रही हूँ ! शंकर भगवान ने सुना की प्रभु व्रज में रासलीला करते है उनको भी रास में जाने की चटपटी लगी , भोले नाथ कहा देवी ! आज तो मैं भी तुमारे साथ रास देखने चलूँगा
 पारवती " नही स्वामी मोहन के सिवार और कोई पुरुष उस रास में नही होता , वहाँ सिर्फ स्त्री ही आती है और आप तो स्त्री हो नही , शंकर भगवान " कुछ भी हो देवी पर मैं तो आज तेरे साथ ( रास ) देखने चलूगा सो चलूगा !

पार्वती " प्रभु आप समझते क्यों नही ( रास ) में पुरुष नहीं जाते , भोले नाथ को बहुत समझाने पर भी नही समझे ,
 देवी ने कहा ठीक है पर देखो स्वामी वहा जाना है तो आप को ये आगम्बर बागाम्बर खोल कर साड़ी पहननी पड़ेगी और याद रहे की वहा पर घुंघट रखना पड़ेगा
 शंकर भगवान " तू कहे जो करने को राजी हूँ तू वहा ले जा जो बात कर !

 अब भोले बाबा साड़ी पहन कर सिर पर जुड़ा बना कर गोपी सा वैस बना कर   चलने लगे पार्वती जी ने कहा अरे स्वामी ! आप ये पुरुष की चाल क्यों चल रहे है ये पुरुष की चाल छोडिये और जैसे स्त्रिया चलती वो मतवाली चाल चलिए !

 भोले बाबा को पार्वतीजी ने रास मंडल में ले जा कर एक कोने में खड़ा कर दिया कहा की आप यहाँ खड़े खड़े ही ( रास ) देखना हमारे बीच में मत आना और याद रहे घुंघट हटने न पावे , पार्वती जी ( रास के )  बीच में गयी
 


( रास ) करते करते श्यामसुन्दर की नजर शंकर भगवान पर पड़ी वे सोचने लगे की आज ये इतनी डिगी और नवी गोपी कौन आई !
 भगवान चलने लगे पार्वती जी ने टोका कहा " प्रभु ! आप रास छोड़ कर बीच में ही कहा जा रहे हो ?
 श्याम सुन्दर " आज ये नवी गोपी कौन आई , कहाँ से आई है मुझे इससे बात करनी है !
 पार्वती जी "प्रभु ! ये नवी गोपी मेरे साथ आई है ,
 श्याम " अच्छा फिर वहा क्यों खड़ी है यहाँ ( रास के ) बीच ले आओ ,
 पार्वती " प्रभु अभी वो नवी है रास करना जानती नही इसलिए वो वहि खड़ी देख कर सीख रही है कल आएगी

 श्यामसुंदर भी हटी है बोले " नही मुझे तो आज अभी इस नवी गोपी के साथ रास करना है , श्याम सुन्दर गए बाबा के पास बोले गोपी ! कहा से आई हो ? अब भोले  नाथ ने सोचा की कुछ बोलूँगा तो घर जाते ही देवी की डाट पड़ेगी की चुप रहने को कहा और बोल पड़े अगर कुछ गड़बड़ हो गयी तो फिर कभी ( रास ) में नही लाएगी इसलिए अपना चुप रहना ही ठीक है !

 श्यामसुंदर उन गोपी के रूप में आये बाबा को ध्यान से देखने लगे , देखते देखते उनकी नजर बाबा के उन मोटे सफ़ेद पेरो पर पड़ी श्यामसुंदर ने सोचा की ये गोपियाँ श्रृंगार तो करती है पर ये पैरो पर सफेदी लगना कब सीखी ये नया श्रृंगार फिर कबसे करने लग गयी !

उतने में भोले नाथ के गले का एक साफ़ , फड़ फड़ करता घूँघट से बहार निकला अब बाबा जी कहा छुपने वाले थे , श्यामसुंदर समझ गए की ये तो हमारे भोले नाथ है ,श्यामसुंदर ने कहा ठीक है गोपी तू घुंघट ना हठावे तो ना सही पर मुझे घुंघट भी हटाना आता है और मुह भी देखना आता है !

भगवान आये उस कदम के पेड़ के नीचे और ऐसे मधुर मंशी बजायी , मोहन की बंशी की मधुर धुन सुन कर भोले बाबा अपनी सुध - बुध खोने लगे वे वह खड़े खड़े ही ऐसे नाचे की न उनको घुंघट का पता रहा न अपनी सुध रही !

 शंकर भगवन को अपने स्वरूप में आये देख श्री श्यामसुंदर मंद मंद मुस्काने लगे की वहा देवोके देव आप को भी मेरे ( रास ) में शामिल होने के लिए गोपी का वेश धारण करना पड़ा आज से आप का एक नाम ( गोपेश्वर ) भी होगा
इसलिए
आज भी उस यमुना के तट पर वंसी वट पर श्री श्यामसुंदर की व्रज भूमि , अमृत की बूंदों के साथ सुन्दर पुष्पों से सजा वो रास मंडल की पवित्र भूमि पर आज भी नित्य गोपी के रुपमे देवोके देव महा देव को गोपी के रूप में सजाया  जाता है जिनका नाम ( गोपेश्वर महादेव ) है
                { जय जय श्री राधे }



                            श्री कृष्ण का करवट उत्शव 

श्री बाल कृष्ण लाल ने जब पहली बार करवट बदला तो मईया के खुसी का ठिकानमा नही रहा और गोकुल में ढोल बजवा दिया और सभी ब्राहमण व गोप गोपियों को निमत्र दे दिया की आज हमारे लाला का करवट उत्शव मनाया जाएगा..

जब भगवान श्री कृष्ण के करवट बदलने का अभिषेक उत्सव मनाया जा रहा था तब यशोसा जी ने उन ब्राह्मणों द्वारा स्वस्तिवाचन करवा कर स्वय बालक को नहलाने के कार्य संपन कर लिया तब ये देख कर की मेरे लाला के नेत्रों  में नींद  आ रही है अपने पुत्र को धीरे से शय्या पर सुलादिया

 थोड़ी ही देर में श्याम सुन्दर की आखे खुली तो देखा की कोई राक्षस खड़ा है वो राक्षस बाल कृष्ण लाल को कुछ करता उससे पहले ही भगवान ने अपनी लीला प्रारम्ब कर दी और वे स्थन पान के लिए रोने लगे उस समय यशोद जी उत्शव में आये हुए व्रज वासियों के स्वागत सत्कार में बहुत ही तन्मय हो रही थी इस लिए उनको अपने लाला का रोना सुनाई नही पड़ा

श्री कृष्ण एक छकड़े के निचे सोये हुए थे उनके पाँव लाल लाल  कपोलो के सामान बड़े ही कोमल और नन्हे नन्हे थे परन्तु वह नन्हा सा पाँव लगते ही विसाल छकड़ा उलट गया , उस छकड़े पर रखे दूध दही के मटके टूट गए यशोदा जी व उत्सव में आये सभी गोप गोपियाँ ने जब  उलटे हुए छकड़े को देखा तो सभी आश्चर्य से देखने लगे की ये क्या हुआ , ये छकड़ा कैसे उलट गया ?

उतने में वह खेल रहे गोप गोपियाँ  के बाल को ने कहा की इस कृष्ण ने ही तो रोते रोते अपने पाँव की ठोकर से इस छकड़े को उलट दिया…
 इसमें कोई संदेह नही की ये बालक क्या नही कर सकते परन्तु उस गोपो को समझ नही आया और उन  बालको की बात पर विश्वास न करते हुए बाल को से  कहा की अरे !  बच्चो ये नन्हा सा बालक उतने विसाल छकड़े को कैसे उलट सकता है..

 यशोदा मईया बहुत ही दर गयी वे अपने रोते हुए बाल कृष्ण लाल को झट से उठा कर स्नेह से छाती से लगा लिया और कहने लगी की ये किसी बुरी छाया का काम है भला हो भगवान का मेरे लाला को कुछ नही हुआ। .

 वहा खड़े सभी उत्शव में आये गोपो ने कहा बाबा ! ये आप के पिछले जन्मो के कोई पुण्य ही है जो आपका लाला बार बार किसी बुरी छाया का शिकार होने से बच जाता है पिछली बार वो पूतना मारना चाहती थी और अब कोई और। वह खड़े सभी व्रज वासी सोचने लगे की हमारे लाला की किस प्रकार रक्षा करे !!

व्रज वासी बहुत ही भोले है श्री कृष्ण की लीला को नही समझ पाते और उनकी रक्षा करने की सोचते है जो पुरे ब्रह्माण्ड का रक्षक है।  भगवान को सबकी फ़िक्र है पर भगवान की भी कोई फ़िक्र करे ये भाव भगवान को अपने वस में कर लेता  है। और भगवान भी वोही लीला करते है जिनसे व्रजवासियो को आनन्द मिले !!

                                        { जय जय श्री राधे }


बाल कृष्ण लाल पधारे है ! ये खबर पहुंची कैलाशपर्वत पर शंकर भगवान के पास भोले बाबा को ठाकुर जी के दर्शन करने की चटपटी लगी !!

 शंकर भगवान ने झट आगाम्बर  बागाम्बर पहन , सर्फ़ गणों को अपने मस्तक पर मुकुट में सजा कर गले में नरमुंडो की माला डाल कर हाथ में त्रिसुल डमरू ले कर ठाकुरजी के दर्शन के लिए जाने लगे , पार्वती ने टोका प्रभु ! कहा जा रहे हो ?
बोले में नन्द गाँव जा रहा हूँ , बाला कृष्ण लाल के दर्शन करने को !

पार्वती जी बोली - " प्रभु ! बाल कृष्ण लाल के दर्शन करने जा रहे हो और इस वेश वुषा में ? गले में सर्फ़ डाल कर क्या सपेरे बन कर जाओगे ?
 हाथ में त्रिसुल , डमरू , ले कर क्या मदारी बनकर जाओगे ?
इस वेश वुशा में बाल कृष्ण का दर्शन तो छोडो बाबा आप को कोई गाँव में भी नही घुसने देगा ! "
शंकर भगवान बोले - "रे बस कर भाग्यवान जो मुहमें आवे बोले जा रही है!  कैसे  जाऊ ?
पार्वती जी बोली बाबा ! इस आगम्बर बागम्बर को छोडो , इस सर्प-गणो को छोड़ो , मैं जो वस्त्र  दूँ  वो पहनो !"

शंकर भगवान को बाल कृष्ण लाल  के दर्शनों की चटपटी लगी हुई थी सो बोले- "जो तू कहे वो पहनने को तैयार हूँ ,दर्शन होने चाहिए ।
पार्वती जी ने शंकर भगवान को पीली धोती दी ।
अब शंकर भगवान ने अपने शादी  में भी धोती नहीं पहनी तो  धोती बड़ी अटपटी सी लगी पर क्या करे..
अब जैसे ही शंकर भगवान रवाना हुए तो सर्प गण विनती करने लगे की  - "हे भोले नाथ ! आज अप मह को छोड़ कर ठाकुर के दर्शन करने अकेले ही जा रहे हो ? बाबा ! कुछ पूछे आप से ?  " हाँ पूछो"
 सर्फ गण " बाबा ! जब भस्मासुर आप को भस्म करने आया तब हम कहाँ थे ?"शंकर भगवान बोले - "तब तुम मेरे गले में थे !"
 अच्छा बाबा ! - " जब आप ने जहर पिया तब हम कहाँ थे ?"
बोले- "तब तुम मेरे गले में थे"
बोले बाबा ! -" जब रावण ने कैलाश पर्वत उठाया तब हम कहाँ थे ?"
शंकर - "तब तुम मेरे गले में थे"
बाबा ! - "जब आप का विवाह हुआ तब हम कहाँ थे ?"
शंकर - "तब तुम मेरे गले में थे "
सर्फ गण बोले - "भगवान जब हमने आप का किसी परिस्थिती में साथ नही छोड़ा तो आज आप हमे छोड़ कर क्यों जा रहे है "?
शंकर भगवान बोले - "बात तो तुम्हारी सही है जब तुमने कभी मेरा साथ नही छोड़ा तो में तुम्हे क्यों छोडू "
शंकर भगवान ने तो फिर से वही वेश धारण कर लिया और गले में  सर्प गण को  कर जटाओ  को खोल कर वृन्दावन  पहुचे !

ग्वालियो के बालको ने ऐसा जोगी कभी देखा नही तो ग्वालियो के  छोटे-छोटे बालक शंकर भगवान की जटा खीचने लगे ।
शंकर भगवान बोले - " रे !! मैं शंकर भगवान हूँ । तुम मेरी जटा खिंच रहे हो ?"

शंकर  भगवान् बोले ये छोरे बड़े उत्पाती  हैं ऐसे नही मानेंगे तो एक नाग को पीछे , एक आगे और दो आजू बाजू लगा दिया ।
अब छोरे डरने लगे तो पास में नही आते ।
जब नन्द बाबा के घर पहुचे और मैया को आवाज लगाने लगे ।
"मैया आरि ऒ ऒ ऒ.. मैया ।"
मैया बोली- "रे कौन चिल्ला रहा है? कौन मुझे आवाज लगा रहा है ?"
सखी ने कहा - "पता करके आयूं ।"
 मैया बोली  -" हाँ ।  देख कौन है। "
बाहर आकर देखा  तो बोली- "मैया बाहर भयंकर जोगी आया "
मैया बोली- "जोगी ! कौन हो ? क्या चाहिए? क्यों आये हो ? "
भगवान बोले- " मैया मुझे जो चाहिए वो तु ही दे सके है , मैया!! "
"..क्या चाहिए बाबा तुम को?
 कुछ भिक्षा लाऊ?
कुछ मुद्रा लाऊ?
 बोलो !  कुछ और लाऊ ??
शंकर भगवान  - " मैया मुझे तो तेरे लाला के दर्शन करने है"
 मैया - "हैं ?? लाला के दर्शन करवाऊ तेरे को ? अरे जोगी जब तुझे देख मैं ही डर गयी ,तो मेरा लाला तो और भी छोटा है, वो कितना डर जायेगा "
शंकर भगवान - " मैया बड़ी दूर से आया हूँ । तेरे लाला के दर्शनों की बड़ी आशा ले कर आया हूँ, बड़ा  वृद्ध  जोगी हूँ, तेरे लाला को खूब आशीर्वाद दूंगा, तेरे लाला का जल्दी ब्यांह हो जायेगा। "
मैया बोली- "मेरे यहाँ बड़े-बड़े महात्मा आते हैं।  मैं किसी और  का आशीर्वाद दिला दुंगी पर तेरे जैसे भयंकर जोगी को तो मैं दर्शन हरगिज नही कराउ । शंकर भगवान बोले-  "देख मैया अभी तो मैं विनती कर रहा हूँ , फिर मुझे क्रोध आ जायेगा "
" क्रोध आ जायेगा तो क्या कर लेगा "
" क्रोध आ जायेगा तो तेरे घर के आगे धुनी रमाउङ्गा, भूखा प्यासा रहूँगा " मैया बोली - " चाहे धुनी रमा चाहे धुना रमा, भूखा मर चाहे प्यासा मर मैं तो मेरे लाला का दर्शन नहीं कराउंगी!  नहीं कराउंगी ! नहीं कराउंगी !
शंकर भगवान बोले- "मैया मैं भी जोगी बड़ा हटी हूँ । दर्शन करने आया हूँ तो दर्शन करके जाऊँगा! करके जाऊँगा! करके जाऊँगा! "
अब दोनों में ठण गयी।
इधर स्त्री हट उधर जोगी हट ।
मैया बोली- "चल गोपी अन्दर चल बैठा रहने दे "
मैया भीतर आ गयी ।
अब शंकर भगवान बाहर धुनी रमाते पर कुछ होता नही , शंकर भगवान सोचते की अब तो विनती ही काम आयेगी । भगवान बोले लाला ये तेरी मैया को तो पता नही तेरा मेरा क्या सम्बन्ध है , पर तू तो  जाने   है ना की  में तेरे लिए आया , तू तो  महरबानी कर , ठाकुर जी बोले बाबा आप बड़े जल्दी आये कुछ समय रुक कर आते तो में दोड़ कर आप की गोदी में आ जाता पर अभी तो में खुद मेरी माँ के वश में हु, मेरे रोये बिना तो मेरा कोई काम नही होता ,भूख लगे तो रोऊँ प्यास लगे तो रोऊँ ,

शंकर भगवान बोले लाला भले ही रो पर मुझे तो दर्शन दे ,ठाकुर जी बोले तो  फिर रोना चालू करू ?
बोले ,हाँ , अब ठाकुर जी रोने लगे ,मैया दूध पिलावे ,खिलोने से खिलावे सब प्रकार से खीला पिला के देख लिया पर ठाकुर जी तो चुप ही नही होवे ,
मैया ने सोचा लाला को नजर लग गयी ,मैया " ला रे गोपी जरा राइ डॉन ले कर आ , लाला की नजर उतारू ,गोपी राई डॉन लायी  ,

मैया नजर उतर रही है ,आक्नी-डाकनी, भूतनी-पिचासनि, आजू की बाजू की ,उपरकी निचे की , आड़ोसन की पाड़ोसन की,जिसकी भी नजर लगी उतर जावे पर लाला तो फिर भी रोवे ।
मैया "आखिर क्या हुए है इस छोरे  को ...
गोपी बोली मैया मुझे तोलगे  लाला को बड़ी भारी नजर लगी , ये अपने से उतरने वाली नही ,उतने में बाहर से एक गोपी आई और बोली मैया मुझे तो लगे है  मेने देखा वो जोगी कुछ मन्त्र बोल रहा था , उस जोगी के होठ हिल रहे थे बाहर वो जोगी मन्त्र बोले ओर  भीतर तेरा लाला रोता है ,
शंकर भगवान पर सीधा सीधा इल्जाम.....
मैया बोली तो अब क्या करू ,
बोले उस जोगी को बुला के लाऊं ,बोले हां जा ,
गोपी गयी बोली बाबा कुछ नजर वजर्र उतारनी  आती है ? ,
बाबा बोले नजर ? ऐसे उतारू ऐसे उतारू की फिर कभी नजर ही न लगे ,गोपी बोली  "चल बाबा अंदर चल ?"
 शंकर भगवान  ने मना कर दिया की में घरमे तो नही चालू ,
बोले "क्यों?" ,बोले यशोदा मैया का , घर पुरे दूध दही से भरा है और मेरे गले में सब दूध के ही ग्राहक है अंदर गया और सब निकल -निकल कर चले गये तो इनको कहाँ खोजता फिरूंगा ?
मैया को बोल हम जोगी है किसी गृहशती  के घरमे नही जाते ,मैया को जा कर बोल काम है तो  तू बाहर आ ,
गोपी बोली मैया जोगी बोले माया को काम है खुद बाहर आए




 ,मैया लाला को पीताम्बर में ढक कर लायी ,बोले "बाबा नजर उतार"
बाबा बोले "मैया दूर से मेरा मन्त्र काम नही करता तेरे लाला को मेरे हाथ में दे तो मेरा मन्त्र काम करे
ठाकुर जी और जोर-जोर से रोने लगे की दे दे ! दे दे!
 लाला के रुदन का स्वर तेज देख कर मैया  बोली अरे ले बाबा ले
जैसे ही  ठाकुर जी शंकर भगवान के हाथ में गये रोना एक दम चुप !
मैया  बोली " रे जोगी बड़ा पहुच वान है छोरा कब से रो रहा था , और जोगी की गोदी में जाते ही चुप हो गया
मैया बोली बाबा अब मेरे लाला को कभी नजर तो नही लगेगी न?
बाबा बोले "मैया एक तो तेरा छोरा काला,   नजर लगने की सबसे पहली संभाना तो ये खुद है और दूसरा तेरे लाला इतना सुनदर है की जो एक बार इसको देख लेगा फिर उसको सब तरफ तेरा लाला ही नजर आएगा ......
उतने में बाबा के गले के सर्प लाला के चरणों को स्पर्श करने लगे ,
 मैया बोली अरे बाबा तेरे गले का साप मेरे लाला के पेरो से लिपट रहे है ,
शंकर  भगवान - " मैया ये लिपट  नही रहे है ये विनती कर रहे है की प्रभु आप अपने इन्ही चरणों से हमारे  मित्र का भी उधार करना .... ये कालिया नाग की बात कर रहे है ,
मैया बोली बाबा आप को हाथ - वात  भी देखना आता है ?
बाबा बोले किसका ?
बोले मेरे लाला का ।
बाबा -  हाँ हाँ ..हाथ देख रहे है । बोले "आरि मैया तेरा लाला तो  बहुत बड़ा राजा बनेगा
"हैं ?? "
 "हाँ , आरि मैया तेरा लाला तो, सोने की नगरी का राजा बनेगा "
"हैं?"
"हाँ आरि मैया तेरा लाला तो धर्म सम्राट बनेगा"
"अच्छा ??"
"हाँ , आरि मैया तेरा लाला तो सब राजाओं का गुरु बनेगा "
मैया बोली " अरे बाबा कुछ काम की तो बात तो बोलो"
शंकर भगवान बोले मैया तेरा लाला राजा  बनेगा ,धर्म सम्राट बनेगा  ,सब राजाओं का गुरु बनेगा ,और क्या काम  की बात होगी?
मैया बोली "राजा  बनेगा तो  ये सम्राट बनेगा तो ये गुरु बनेगा तो ये ,मेरे काम ये नही आने वाला , मुझे तो ये बताओ  की मेरे लाला का बियांह  कब  होगा  बहू कब आएगी मेरे काम तो बहु आईगी, ये  नही आएगा
 बाबा क्या बताऊ मुझसे रसोई  नही बनती
मैं रशोई बनाती वो धोक्नी ले कर फु-फु हवा करती हूँ , तो सब धुआ आख में चला जाता है , क्या बताऊ  बाबा बहु आ जाये तो थोडा काम हल्का हो जाये , शंकर भगवान बोले मैया बहुओ का तो तेरे ठाठ रहेगा ,
बोले क्यों दो बहुएं  आयेगी?
 बोले " नही "
"तो कितनी आएगी ,?
 शंकर भगवान बोले मैया तेरे लाला के हाथ में बहुओ की रेखा इतनी लम्बी है की हाथ में ही नही आ रही ठेठ  बाजु तक जा रही है"
 "हे!!  इतनी कितनी बहुएं  आएगी?"
 बोले मैया   सोलह हजार एक सो आठ बहुए आएगी  ,
मैया सोच में पड गयी
बाबा बोले मैया तू कहा खो गयी
 मैया बोली में सोच रही हु की अगर दिवाली के मोके पर सब एक साथ मेरे पाव पड़ने आगयी तो मेरा क्या हाल होगा
शंकर भगवान बोले मैया तू चिंता मत कर तेरे लाला सब देख लेगा तू तो  तेरे इस रत्न को संभाल  ,क्या रत्न है मैया क्या बताऊ
ठाकुर जी बोले बाबा कुछ मत बोलो आप को दर्शन दे दिया इसका मतलब  ये नही की आप मेरी मैया के सामने मेरी पोल खोलो , बाबा दर्शन करके बहुत प्रसन्न हो कर चले...............जय श्री राधे



श्री बाल कृष्ण लाल के जन्म के छट्टी दिन ही कंसके आदेश से एक राक्षसी पूतना ने अपना सुन्दर वेश धारणं कर भगवान को स्थन पान से विष पिला ने आ गयी।

पूतना को देख कर भगवान श्री कृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए इस पर भक्त कवियोने अनेको कारण बताये है , भगवान ने पूतना को देख कर अपने वे नेत्र बंद क्यों कर लिए  जिनमे कुछ ये है की ,

अविद्ध्य ही पूतना है भगवान श्री कृष्ण ने सोचा की मेरी द्रष्टि के सामने अविद्ध्य टिक नही सकती फिर लीला कैसे होगी इसलिए नेत्र बंद कर लिए।

 फिर भगवान ने सोचा की ये पूतना बालघातनी  है ये पवित्र बालको को भी ले जाती है ऐसे कृत्य करने वाली का मुह नही देखना चाहिए इस लिए नेत्र बंद कर लिया।

फिर भगवान ने सोचा की इस जन्म में तो इसने कुछ साधन संभव किये नही  है पूर्व जन्म में कुछ किया हो मानों पुतना के पूर्व - पूर्व जन्मो के साधन देखने के लिए ही श्री कृष्ण ने नेत्र बंद कर लिए |

तब भगवान को ध्यान में आया की ये पूर्व जन्म में राज बलि की बहिन रत्नमाला थी जब में अपना छोटा सा बालक बन कर वामन बन कर बलि के द्वार पर गया तब उसने मुझे देख कर मन ही मन विचार किया की ऐसा सुन्दर बालक मुझे हो जाये तो मैं इनको गोदी में ले कर दूध पुलाऊ , भगवान ने मन ही मन आशीर्वाद दे दिया की तधास्तु ऐसा ही हो।

फिर भगवान के उधर में निवास करने वाले असख्य कोटि ब्रह्मांडो के जिव ये जान कर घबरा गये की श्याम सुन्दर पूतना के स्थन में लगा हला हला विष पिने जा रहे है अतः मानो उन्हें समझाने के लिए ही श्री कृष्ण ने नेत्र बंद कर लिए

श्री कृष्ण शिशु ने विचार किया की मैं गोकुल  में ये सोच कर आया था की माखन मिश्री खाऊंगा सो छट्टी के दिन ही विष पिने का अवसर आ गया इसलिए आँख बंद कर के मानो शंकर जी का ध्यान किया की आप आ कर अपना विष पान कीजिये और मैं दूध पिऊंगा।

श्री कृष्ण ने विचार किया  की इसने बहार से तो माता  का रूप धारण कर रखा है परन्तु ह्रदय में अत्यंत क्रूरता भरी हुई है ऐसी स्त्री का मुह न देखना ही उचित है इसलिए नेत्र बंद कर लिए।

फिर श्री कृष्ण ने सोचा की नेत्रों का मिलाप होने से प्रीती हो जाती है और प्रीती हो जाने के बात तो प्रेमीजन का वद्ध करना पाप है इसलिए नेत्र बंद कर लिए

छोटे बालको का स्वाभाव है की अपनी माँ के सामने खूब खेलते है पर किसी अपरिचित को देख कर डर  जाते है और नेत्र मुंड लेते है एपरिचित पूतना को देख कर इसलिए बाल लीला बिहारी भगवान ने नेत्र बंद कर लिए ये उनकी बाल लीला का मधुर्य है। 

     { जय जय श्री राधे }