Friday, 18 October 2013

कान्हा रे थोडा सा प्यार दे, चरणो मे बैठा के हम को तू तार दे। 
ओ गौरी घुंघट उभार दे, प्रेम की भिक्षा झोली में डाल दे॥ 

 आज सरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने रास किया उस रास में हमारे दोनों अजन्मे देवो पर व्रज भूमि में रास मंडल पर बाकि सभी देवतायो ने आकाश से पुष्पों की वर्षा के साथ अमृत भी बरसाया था !

जब श्यामसुंदर गोपियों के साथ रास रचा रहे थे उस रास में माँ पार्वती भी श्यामसुंदर के साथ रास करने आती थी एक दिन भोले बाबा ने कहा देवी ये तुम रोज सज धज कर कहाँ जाती हो ?

 पार्वती " प्रभु व्रज में श्यामसुंदर नित्य गोपियाँ के साथ रासलीला करते है मैं वही जा रही हूँ ! शंकर भगवान ने सुना की प्रभु व्रज में रासलीला करते है उनको भी रास में जाने की चटपटी लगी , भोले नाथ कहा देवी ! आज तो मैं भी तुमारे साथ रास देखने चलूँगा
 पारवती " नही स्वामी मोहन के सिवार और कोई पुरुष उस रास में नही होता , वहाँ सिर्फ स्त्री ही आती है और आप तो स्त्री हो नही , शंकर भगवान " कुछ भी हो देवी पर मैं तो आज तेरे साथ ( रास ) देखने चलूगा सो चलूगा !

पार्वती " प्रभु आप समझते क्यों नही ( रास ) में पुरुष नहीं जाते , भोले नाथ को बहुत समझाने पर भी नही समझे ,
 देवी ने कहा ठीक है पर देखो स्वामी वहा जाना है तो आप को ये आगम्बर बागाम्बर खोल कर साड़ी पहननी पड़ेगी और याद रहे की वहा पर घुंघट रखना पड़ेगा
 शंकर भगवान " तू कहे जो करने को राजी हूँ तू वहा ले जा जो बात कर !

 अब भोले बाबा साड़ी पहन कर सिर पर जुड़ा बना कर गोपी सा वैस बना कर   चलने लगे पार्वती जी ने कहा अरे स्वामी ! आप ये पुरुष की चाल क्यों चल रहे है ये पुरुष की चाल छोडिये और जैसे स्त्रिया चलती वो मतवाली चाल चलिए !

 भोले बाबा को पार्वतीजी ने रास मंडल में ले जा कर एक कोने में खड़ा कर दिया कहा की आप यहाँ खड़े खड़े ही ( रास ) देखना हमारे बीच में मत आना और याद रहे घुंघट हटने न पावे , पार्वती जी ( रास के )  बीच में गयी
 


( रास ) करते करते श्यामसुन्दर की नजर शंकर भगवान पर पड़ी वे सोचने लगे की आज ये इतनी डिगी और नवी गोपी कौन आई !
 भगवान चलने लगे पार्वती जी ने टोका कहा " प्रभु ! आप रास छोड़ कर बीच में ही कहा जा रहे हो ?
 श्याम सुन्दर " आज ये नवी गोपी कौन आई , कहाँ से आई है मुझे इससे बात करनी है !
 पार्वती जी "प्रभु ! ये नवी गोपी मेरे साथ आई है ,
 श्याम " अच्छा फिर वहा क्यों खड़ी है यहाँ ( रास के ) बीच ले आओ ,
 पार्वती " प्रभु अभी वो नवी है रास करना जानती नही इसलिए वो वहि खड़ी देख कर सीख रही है कल आएगी

 श्यामसुंदर भी हटी है बोले " नही मुझे तो आज अभी इस नवी गोपी के साथ रास करना है , श्याम सुन्दर गए बाबा के पास बोले गोपी ! कहा से आई हो ? अब भोले  नाथ ने सोचा की कुछ बोलूँगा तो घर जाते ही देवी की डाट पड़ेगी की चुप रहने को कहा और बोल पड़े अगर कुछ गड़बड़ हो गयी तो फिर कभी ( रास ) में नही लाएगी इसलिए अपना चुप रहना ही ठीक है !

 श्यामसुंदर उन गोपी के रूप में आये बाबा को ध्यान से देखने लगे , देखते देखते उनकी नजर बाबा के उन मोटे सफ़ेद पेरो पर पड़ी श्यामसुंदर ने सोचा की ये गोपियाँ श्रृंगार तो करती है पर ये पैरो पर सफेदी लगना कब सीखी ये नया श्रृंगार फिर कबसे करने लग गयी !

उतने में भोले नाथ के गले का एक साफ़ , फड़ फड़ करता घूँघट से बहार निकला अब बाबा जी कहा छुपने वाले थे , श्यामसुंदर समझ गए की ये तो हमारे भोले नाथ है ,श्यामसुंदर ने कहा ठीक है गोपी तू घुंघट ना हठावे तो ना सही पर मुझे घुंघट भी हटाना आता है और मुह भी देखना आता है !

भगवान आये उस कदम के पेड़ के नीचे और ऐसे मधुर मंशी बजायी , मोहन की बंशी की मधुर धुन सुन कर भोले बाबा अपनी सुध - बुध खोने लगे वे वह खड़े खड़े ही ऐसे नाचे की न उनको घुंघट का पता रहा न अपनी सुध रही !

 शंकर भगवन को अपने स्वरूप में आये देख श्री श्यामसुंदर मंद मंद मुस्काने लगे की वहा देवोके देव आप को भी मेरे ( रास ) में शामिल होने के लिए गोपी का वेश धारण करना पड़ा आज से आप का एक नाम ( गोपेश्वर ) भी होगा
इसलिए
आज भी उस यमुना के तट पर वंसी वट पर श्री श्यामसुंदर की व्रज भूमि , अमृत की बूंदों के साथ सुन्दर पुष्पों से सजा वो रास मंडल की पवित्र भूमि पर आज भी नित्य गोपी के रुपमे देवोके देव महा देव को गोपी के रूप में सजाया  जाता है जिनका नाम ( गोपेश्वर महादेव ) है
                { जय जय श्री राधे }


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