Tuesday, 23 September 2014



    यमलोकन की रीती न्यारी देख सोच फिर ल्यावे !
   जे हरी भजन करे नर कोई उन्हें दण्डोत कर आवे !!


यम लोक से कोई दूत यमराज की आज्ञा से इस मृत्यु लोक की और चलता है तो यमराज पूछते है की कहा जा रहे हो ? तब यमदूत बताते है की , इस मृत्युलोक के अमुख देस के , अमुख राज्य के , अमुख तहसील के , अमुख गाँव के , अमुख नाम के , अमुख जाति के , अमुख परिवार के , अमुख अवस्था वाले व्यक्ति के जाने का समय हो गया है हम उसको लाने के लिए जा रहे है , ऐसे कह कर यमराज के पार्षद चल पड़ते है।

यमदूतों को यमराज को पूरा - पूरा पता बताना पड़ता है अन्यथा एक देश के , एक राज्य के , एक नाम के बहुत से व्यक्ति होते है ,
 कभी एक नाम के अधिक नाम के होने से कई बार यमदूतों को चक्कर पड़ जाता है।
गीताप्रेस के ( परलोक पुनर्जन्मान्तर ) में ऐसी कई घटनाए है जो नाम के चक्कर से कोई दूसरे व्यक्ति को ले आते है ,
तब यमराज कहते की अरे ! ये तुम किसको ले आये हो ? अभी इनका समय पूरा नही हुआ। तब यमदूत उस व्यक्ति के आत्मा को यमराज की डाट सुन कर हड़बड़ा कर उस आत्मा को वापिस ले जाते है तब कभी कबार हड़बड़ा कर यमदूत कहते है की अरे भाई ! ले ! ले ! ये रहा तेरा शरीर वापिस प्रवेश कर ले , तब ऐसे व्यक्ति के झटके से प्राण वापिस आ जाते है , और कभी कबार यमदूत क्रोध में होते है तो कहते है , ले ये रहा तेरा शरीर जा घुस जा !

तब उसको सोचने का अवसर मिल जाता है और वो जीव सोचता है और देखता  है की मुझसे प्रेम करने वाले मेरे सगे - सम्बन्धी तो मुझे जलाने की तैयारि में लग गए अब मुझे इस शरीर में वापिस नही जाना , तब वो आत्मा भटक कर भूत योनि को प्राप्त होती है।

पर एक मार्मिक बात है ! जब यमराज के यमदूत मृत्यु - लोक मे किसी को लेने जाते है तब यमराज यमदूतों के कान के पास जाकर धीरे से कहते है की जा तो रहे हो पर सुन लो ! जो व्यक्ति कथा - कीर्तन करते हुए झूम रहा हो , जो भगवत नाम में तलिन हो , ऐसे व्यति को तुम दण्डोत करके आ जाना उन्हें छूने का साहस भी मत करना


यमदूत कहते है ऐसा क्यों ? यमराज ने कहा की जो भगवत चरित्र से प्रीति करता हो, जो भगवत नाम से प्रेम करता हो , जो कथा - कीर्तन में झुम रहा हो , मैं ऐसे लोगो का स्वामी नही हूँ , मैं तो भगवान से विमुख लोगो का स्वामी हूँ जो कथा कीर्तन भगवतनाम से विमुख प्राणी है मैं ऐसे लोगो का स्वामी हूँ।

यमराज के पार्षद बोले , महाराज ! चाहे वो सत्संगी हो , चाहे वो भगवत प्रेमी हो पर उससे कोई अपराद अथवा कोई पाप बन जाये तब तो आपके दरबार में उसको हाजरी लगानी ही पड़ेगी


 यमराज बोले ऐसा भूल कर भी मत सोचना और तुम मेरी बात ध्यान दे कर सुन लो !
जो भगवान के भक्त है जो भगवान के प्रेमी अनुरागी ज्ञानी संत है , जो भगवान को अनन्य भाव से भजता है ऐसे अकिंचन भक्त भगवान को अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है , ऐसे व्यक्ति से चाहे जितना भयंकर अपराद बन जाये चाहे कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो पर उनको पाप का दंड देना अथवा पूर्णय का फल देना ये मेरे सीमा क्षेत्र से बाहर है।

अपने भक्तो के पाप पूर्णय का लेखा जोखा तो स्वयं भगवान करते है , अपने भक्तो की बागडोर श्यामसुन्दर स्वयं अपने हाथ में रखते है
और भगवान जीव के सदा हितैसी है वे अपने को अपना कर मानते है अब अपने से चाहे जितना अपराद बन जाये फिर भी कोई अपनी संतान को किसी गेरो के हाथ नही सोप सकता और हमको इतना ही याद रखना चाहिए की हम भगवान के है और एक भगवान ही हमारे अपने है।
    { जय जय श्री राधे }

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