Tuesday, 23 September 2014



       सुखी रहो निंदक सदा , पूर्ण हो हर काम !
       निंदा से हर पाप कटे , मिले प्रभु निज धाम
!!  

अपने आपको सुखी अथवा निष्पाप करना हो तो लोगोको अपनी तरफ से छुट्टी दे दो की खूब निंदा करो , निंदा करने वालो का विरोद मत करो , कोई झूटी निंदा करे तो चुप रहो सफाई मत दो , सत्यकी सफाई देना सत्यका निरादर है ,

दूसरे हमे ख़राब समझे तो इसका कोई मूल्य नही है , भगवान दूसरोंकी गवाही नही लेते , दूसरा आदमी अच्छा कहे तो हम अच्छे होजाएंगे ऐसा कभी होगा नही
हमारे मनमे एक ही भाव हो , की
'हे नाथ ! मेरे कर्मोंका आप कितना खयाल रखते है की मैंने न जाने किस - किस जन्मोंमे किस - किस परिथिति में परवश होकर क्या - क्या कर्म हिये है , उन सम्पूर्ण कर्मोसे सर्वथा रहित करनेके लिए आप कितना विचित्र विधान करते है ! मैं तो आपके विधानको किंचिमात्र भी समझ नही सकती और मुझमे आपके विधानको समझनेकी शक्ति भी नही है।, इसलिए हे प्राणधन ! मैं उसमे अपनी बुद्धि क्यों लगाऊ , मुझे तो केवल आपकी तरफ ही देखना हैं , कारण की आप जो कुछ विधान करते हैं उसमे आपका ही हाथ रहता है अथवा वह आपका ही किया हुआ होता है , जो की मेरे लिए परम मंगलमय , आनंदमय है ,
'हे भक्तो के प्राण धन , भक्तवत्सल भगवान ! आप कभी जीव का अहित नही करते
इसलिए सच्चे हृदय से स्वीकार करलो की
हमे जो भी मिलता है , भला , बुरा , सुख ,दुःख सब हमारे कर्मोंके अनुसार ही मिलता है इसलिए हर पल , हर परिथिति में भगवान का सुक्रिया अदा करते रहना चाहिए....!!

        { जय जय श्री राधे }

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