Saturday, 31 March 2012


जीतने के लिए ------प्रेम जीतो
पीने के लिए  -------- क्रोध पीओ
खाने के लिए -------गम खाओ
कहने के लिए ------सत्य कहो
फेंकने के लिए -------इर्ष्या फेंको
छोड़ने के लिए -------मोह छोडो
दिखाने के लिए ------दया दिखाओ
ये सब कुछ करने के बाद भी रिश्ता न निभे
तो मानलीजिये की वो रिश्ता आप के लिए बनाही नही है .........

Monday, 26 March 2012

सभी को सलाह ईमान्दारी से देना चाहिए 
सामने वाला यदी आप से मित्रता का भाव रखता है 
तो आप की सलाह मानेगा और लाभ में रहेगा यदि 
वह आप से शत्रुता द्रेश का भाव रखता होगा तो 
आप की सलाह से उल्टा चलेगा और........

                सुविचार

1 दुसरे के दोष दिखे तो उस से हमे कर्म बंधते है
  और खुद के दोस देखे तो कर्मो से मुक्ती हो

       { जय जय श्री राधे }
2 जीवन संध्या तरफ जाते हुए डरना मत
 म्रत्यु तो दिन के बाद रात का आराम है ..

       { जय जय श्री राधे } 
3 स्वयं को स्वार्थ, संकोच और अंधविश्वास के डिब्बे से बाहर निकालिए,
आपके लिए ज्ञान और विकास के नित-नवीन द्वार खुलते जाएँगे।
       { जय जय श्री राधे }  
4 अशान्ति की गन्ध किसमें नहीं होती ?
 जो होने में तो प्रसन्न रहता हैं,
 किंतु करने में सावधान रहता है।
        { जय जय श्री राधे }  
5 संसार में न कोई तुम्हारा मित्र है और न शत्रु।
तुम्हारे अपने विचार ही शत्रु और मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है। 

         { जय जय श्री राधे } 
6 तप समस्त दोसो को भस्म कर देता है
तपश्च्यर से अतः करन निर्मल होजाता है 

          { जय जय श्री राधे }   
7 संगीत की सरगम हैं माँ, प्रभु का पूजन हैं माँ
रहना सदा सेवा में माँ के, क्योंकि प्रभु का दर्शन हैं माँ ।
           { जय जय श्री राधे } 
 





यदि आप को दू:ख, अशान्ति, आफत चाहिए तो 
शरीर संसार से सम्बन्ध जोड़ लो उन को अपना मान लो
और यही सुख सान्ती आन्द मस्ती चाहि ये तो परमात्मा
से सम्बन्द जोड़ लो उनको अपना  मान लो 
चुनाव आप के हाथ में है 
क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है?
आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

Sunday, 25 March 2012


एक बार सरल हर्दयसे ध्दढता पूर्वक श्विकार करले की मै
केवल भगवन काही अन्श हु और केवल भगवान ही मेरे अपने  है
क्यों की शरीर-संसार कभी किसी के साथ रहते ही नही और
परमात्मा कभी किसी का साथ छोड़ते ही नही ......
प्रेम नगर की बिच डगर में छोड़ गये गिर धारी..हम को छोड़ गये गिर धारी 
रोवत यमुना कल कल करती तेरत कृष्ण मुरारी 
शरण आये भक्तनको मारो ये क्या रित तुम्हारी ...

Thursday, 22 March 2012


तुम्हारी सफलता का रहस्य किया है ?
तो उसने हसकर कहा जितनि बार गिरो
उतनी बार उठो! यह सिध्दांत स्वीकारकर ले तो
आप भी निरंतर उठते चले जायेंगे
किसी सहारे की जरूरत नही पड़ेगी

दुसरो को सुख कैसे पहुचे दुसरो का भला कैसे हो
दुसरो को आराम कैसे मिले..इस बात की
लगन लगजाये गी तो अपने सुख की
इच्छा छुट जाएँगी....

संगीत की सरगम हैं माँ, प्रभु का पूजन हैं माँ
रहना सदा सेवा में माँ के, क्योंकि प्रभु का दर्शन हैं माँ ।

 मानवता की सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्य होते हैं
 जितने परमात्मा की प्रार्थना करने वाले ओंठ।

आप जीवन में कितने भी ऊँचे क्यों न उठ जाएँ पर
अपनी गरीबी और कठिनाई के दिन कभी मत भूलिए।
 

                                     गोपाल सावरिया मेरे
तेरी  प्रीत  ने  हमको  क्या  न  दिखाया,
बदनाम  कर  के  जगत  में  हंसाया ,
खिची आई  बेखुद  न सोचा  समझा
लबों  से  लगा  बांसुरी  जब  बुलाया
अदाओं  भरी  टेढ़ी  चितवन  जो  देखी
तेरी  प्रीत  ने  हमको  क्या  न  दिखाया,
बदनाम  कर  के  जगत  में  हंसाया ,
खिची आई  बेखुद  न सोचा  समझा
लबों  से  लगा  बांसुरी  जब  बुलाया
अदाओं  भरी  टेढ़ी  चितवन  जो  देखी
दिल-ओ-जान  लुटा  जब ज़रा  मुस्कुराया
सुना  भोली  भली  वो  प्रीती  की  बातें
कहा  चल  दिए  जाने  क्या दिल मई  आया
तेरी खोज  में जिस्म -ओ-जान राह  भूली
पत्ता  पत्ता में ढूंडा  पता  कुछ  न पाया
सब  रिश्ते  दिल-ओ-जान तेरे  हाथ  बेचे
बहुत  कुछ गवाया  न कुछ हाथ आया
मजा  खूब  ये  श्याम वह  तेरी उल्फत
न घर  का रखा और  न अपना  बनाया
गोपाल सावरियां मेरे... नन्दलाल सावरिया मेरे
दिल-ओ-जान  लुटा  जब ज़रा  मुस्कुराया
सुना  भोली  भली  वो  प्रीती  की  बातें
कहा  चल  दिए  जाने  क्या दिल मई  आया
तेरी खोज  में जिस्म -ओ-जान राह  भूली
पत्ता  पत्ता में ढूंडा  पता  कुछ  न पाया
सब  रिश्ते  दिल-ओ-जान तेरे  हाथ  बेचे
बहुत  कुछ गवाया  न कुछ हाथ आया
मजा  खूब  ये  श्याम वह  तेरी उल्फत
न घर  का रखा और  न अपना  बनाया
गोपाल सावरियां मेरे... नन्दलाल सावरिया मेरे
बहुत  कुछ गवाया  न कुछ हाथ आया
मजा  खूब  ये  श्याम वह  तेरी उल्फत
न घर  का रखा और  न अपना  बनाया
    { जय जय श्री राधे }



गो

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,
वक्षस्थले कौस्तुभम ।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,
वेणु करे कंकणम ।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,
कंठे च मुक्तावलि ।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,
गोपाल चूडामणी ॥