सीता मईया का तो हरण हुआ ही नही था...
कुछ लोग कहते है भगवान श्री राम तो भगवान थे
वो अंतरयामी थे फिर उनकी पत्नी सीता का हरण
रावण ने किया तो राम जी ने रोका क्यों नही
वोतो सब कुछ जानने वाले थे फिर ऐसा क्यों हुआ .....
सच तो ये है की रावण सीता मईया की छाया तक को भी छू नही पाया , अगर सीता मईया को छू लेता तो रावण वही भस्म हो जाता |
जो स्वयम सीता मईया थी वो तो पहले ही अग्नि में समां गयी थी
भगवान श्री राम ने सीता मईया से कहा " हे प्रिये ,हे सुन्दर पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली सुशीले सुनो , अब में कुछ मनुए मनोहर लीला करूँगा इसलिए जब तक में राक्षसो का नाश करूँ , तब तक तुम अग्नि में निवास करो | श्री राम जी ने ज्योही सब समझा कर कहा त्यों ही श्री सीता मईया ने प्रभु के चरणों को ह्रदय में धर कर अग्नि में समां गयी और फिर सीता मईया ने अपनी ही छाया मूर्ति वहां रख दी , जो उनके जैसी ही शील स्वभाव और रूप वाली तथा वेसे ही विनम्र थी |
भगवान श्री राम ने रावण के भाई खरदुसण को तो पहले ही मार डाला था | जब रावण ने खरदुसण के युद्ध में मारे जाने की खबर सुनी तो रावण को रात भर सो नही पाया | वह मन ही मन विचार करने लगा की देवता मनुष्य असुर नाग और पक्षियों में कोई ऐसा नही जो मेरे सेवक को भी पा सके खर्दुष्ण तो मेरे ही समान बलवान था उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है और सोच ने लगा की देवताओ को आनंद देनेवाले और प्रथ्वी का भार हरण करनेवाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है तो में जाकर उनसे हट पूर्वक वैर करूँगा और प्रभुका बाण आघात से प्राण छोड़ कर भवसागर से तर जाऊँगा इस तामस शरीर से भजन तो होगा नहीं.....रावण जब छवि रूपी सीता मईया का हरण करने गया तो पहले तो मुनि के वेस में आया और फिर बहार से छल कपट करता हुआ जब उस छवि रूपी सीता मैया का हरण करने से पहले अपने जीवन को धन्य मानते हुए मन ही मन सीता मईया के चरणों में प्रणाम किया ...और फिर श्री राम जी ने रावण से युद्ध करके लंका पर जीत पाई तब लक्ष्मण जी से श्री राम जी ने कहा की सीता अग्नि परीक्षा दे | जब सीता जी की अग्नि परीक्षा हुई तो .. उस अग्नि में सीता मईया की छवि थी वो जल गयी और सीता मईया जो अग्नि में निवास कर रही थी वो बाहर आ गई ..इस बात से लक्ष्मण जी को बहुत दुःख हुआ की क्या प्रभु को माता पर विश्वास नही था जो माता की अग्नि परीक्षा ली, ऐसा राम जी ने क्यों किया ??क्यों की अग्नि परीक्षा नहीं होती तो जो सीता मईया अग्नि में निवास क़र रही थी उनको भगवन बार केसे लाते.. भगवान की इन लीलाओं से लक्ष्मण जी अंजान थे जो लक्ष्मण जी नारायण के रात दिन पास में रहने के बावजुद भी उनकी लीलाओं को नही जान पाए तो हम भला उस परमात्मा की रची रचना को कैसे जान पाएंगे इसलिए भगवान की लीलाओं पे कोई शंका मत कीजिये उनकी हर रचना को आदरपूर्वक स्वीकार कीजिये..जय सिया राम..
कुछ लोग कहते है भगवान श्री राम तो भगवान थे
वो अंतरयामी थे फिर उनकी पत्नी सीता का हरण
रावण ने किया तो राम जी ने रोका क्यों नही
वोतो सब कुछ जानने वाले थे फिर ऐसा क्यों हुआ .....
सच तो ये है की रावण सीता मईया की छाया तक को भी छू नही पाया , अगर सीता मईया को छू लेता तो रावण वही भस्म हो जाता |
जो स्वयम सीता मईया थी वो तो पहले ही अग्नि में समां गयी थी
भगवान श्री राम ने सीता मईया से कहा " हे प्रिये ,हे सुन्दर पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली सुशीले सुनो , अब में कुछ मनुए मनोहर लीला करूँगा इसलिए जब तक में राक्षसो का नाश करूँ , तब तक तुम अग्नि में निवास करो | श्री राम जी ने ज्योही सब समझा कर कहा त्यों ही श्री सीता मईया ने प्रभु के चरणों को ह्रदय में धर कर अग्नि में समां गयी और फिर सीता मईया ने अपनी ही छाया मूर्ति वहां रख दी , जो उनके जैसी ही शील स्वभाव और रूप वाली तथा वेसे ही विनम्र थी |
भगवान श्री राम ने रावण के भाई खरदुसण को तो पहले ही मार डाला था | जब रावण ने खरदुसण के युद्ध में मारे जाने की खबर सुनी तो रावण को रात भर सो नही पाया | वह मन ही मन विचार करने लगा की देवता मनुष्य असुर नाग और पक्षियों में कोई ऐसा नही जो मेरे सेवक को भी पा सके खर्दुष्ण तो मेरे ही समान बलवान था उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है और सोच ने लगा की देवताओ को आनंद देनेवाले और प्रथ्वी का भार हरण करनेवाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है तो में जाकर उनसे हट पूर्वक वैर करूँगा और प्रभुका बाण आघात से प्राण छोड़ कर भवसागर से तर जाऊँगा इस तामस शरीर से भजन तो होगा नहीं.....रावण जब छवि रूपी सीता मईया का हरण करने गया तो पहले तो मुनि के वेस में आया और फिर बहार से छल कपट करता हुआ जब उस छवि रूपी सीता मैया का हरण करने से पहले अपने जीवन को धन्य मानते हुए मन ही मन सीता मईया के चरणों में प्रणाम किया ...और फिर श्री राम जी ने रावण से युद्ध करके लंका पर जीत पाई तब लक्ष्मण जी से श्री राम जी ने कहा की सीता अग्नि परीक्षा दे | जब सीता जी की अग्नि परीक्षा हुई तो .. उस अग्नि में सीता मईया की छवि थी वो जल गयी और सीता मईया जो अग्नि में निवास कर रही थी वो बाहर आ गई ..इस बात से लक्ष्मण जी को बहुत दुःख हुआ की क्या प्रभु को माता पर विश्वास नही था जो माता की अग्नि परीक्षा ली, ऐसा राम जी ने क्यों किया ??क्यों की अग्नि परीक्षा नहीं होती तो जो सीता मईया अग्नि में निवास क़र रही थी उनको भगवन बार केसे लाते.. भगवान की इन लीलाओं से लक्ष्मण जी अंजान थे जो लक्ष्मण जी नारायण के रात दिन पास में रहने के बावजुद भी उनकी लीलाओं को नही जान पाए तो हम भला उस परमात्मा की रची रचना को कैसे जान पाएंगे इसलिए भगवान की लीलाओं पे कोई शंका मत कीजिये उनकी हर रचना को आदरपूर्वक स्वीकार कीजिये..जय सिया राम..
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