Saturday, 29 December 2012

शंकर भगवान "मैया तेरे लाला के हाथ में बहुओ की रेखा इतनी लम्बी है की हाथ में ही नही आ रही ,ठेठ  बाजु तक जा रही है"

शंकर भगवान को पता चला की बाल कृष्ण लाल आने वाले है तो भगवान दर्शन के लिए जाने लगे।
पार्वती ने कहा प्रभु कहा जा रहे हो ?
बोले में नन्द गाँव जा रहा हूँ , बाला कृष्ण लाल के दर्शन करने।
पार्वती जी बोले - " बाल कृष्ण लाल के दर्शन करने जा रहे हो और इस वेश वुषा में ? गले में सर्फ़ डाल कर क्या सपेरे बन कर जाओगे ? हाथ में त्रिसुल डमरू ले कर क्या मदारी बनकर जाओगे ? इस वेश वुशा में बाल कृष्ण का दरसन तो छोडो आप को कोई गाँव में भी नही घुसने देगा ? "
शंकर भगवान बोले - "रे बस कर भाग्यवान जो मुहमें आवे बोले जा रही है!  कैसे  जाऊ ?
पार्वती जी -"इस आगम्बर बागम्बर को छोडो , इस सर्प-गणो को छोड़ो , मैं जो वस्त्र  दूँ  वो पहनो। "
शंकर भगवान को बाल कृष्ण के दर्शनों की चट पटी लगी हुई थी सो बोले- "जो तू कहे वो पहनने को तैयार हूँ ,दर्शन होने चाहिए ।
पार्वती जी ने शंकर भगवान को पीली धोती दी ।
अब शंकर भगवान ने अपने शादी  में भी धोती नहीं पहनी तो  धोती बड़ी अटपटी सी लगी ।
अब जैसे ही शंकर भगवान रवाना हुए तो सर्प गण विनती करने लगे की  - "हे भोले नाथ जब भामासुर आप को भस्म करने आया तब हम कहाँ थे ?"
शंकर बोले - "तब तुम मेरे गले में थे ।"
 सर्प गण बोले - " जब आप ने जहर पिया तब हम कहाँ थे ?"
शंकर बोले- "तब तुम मेरे गले में थे ।"
सर्प गण -" जब रावण ने कैलाश पर्वत उठाया तब हम कहाँ थे ?"
शंकर - "तब तुम मेरे गले में थे"
सर्प गण - "जब आप का विवाह हुआ तब हम कहाँ थे ?"
शंकर - "तब तुम मेरे गले में थे "
सर्प गण- "भगवान जब हमने आप का किसी परिस्थिती में साथ नही छोड़ा तो आज आप हमे छोड़ कर क्यों जा रहे है "
शंकर भगवान बोले - "बात तो तुम्हारी सही है जब तुमने कभी मेरा साथ नही छोड़ा तो में तुम्हे क्यों छोडू "
शंकर भगवान ने तो फिर से वही वेश धारण कर लिया और गले में  सर्प गण को गले में  डाल कर जटाओ  को खोल कर वृन्दावन  पहुचे।
ग्वालियो के बालको ने ऐसा जोगी कभी देखा नही तो ग्वालियो के  छोटे-छोटे बालक शंकर भगवान की जटा खीचने लगे ।
शंकर भगवान बोले - " रे !! मैं शंकर भगवान हूँ । तुम मेरी जटा खिंच रहे हो ?"
शंकर  भगवान् बोले ये छोरे बड़े उत्पाती  हैं ऐसे नही मानेंगे तो एक नाग को पीछे , एक आगे और दो आजू बाजू लगा दिया ।
अब छोरे डरने लगे तो पास में नही आते ।
जब नन्द बाबा के घर पहुचे और मैया को आवाज लगाने लगे ।
"मैया आरि ऒ ऒ ऒ.. मैया ।"
मैया बोली- "रे कौन चिल्ला रहा है? कौन मुझे आवाज लगा रहा है ?"
सखी ने कहा - "पता करके आयूं ।"
 मैया बोली  -" हाँ ।  देख कौन है। "
बाहर आकर देखा  तो बोली- "मैया बाहर भयंकर जोगी आया "
मैया बोली- "जोगी ! कौन हो ? क्या चाहिए? क्यों आये हो ? "
भगवान बोले- " मैया मुझे जो चाहिए वो तु ही दे सके है , मैया!! "
"..क्या चाहिए बाबा तुम को?
 कुछ भिक्षा लाऊ?
कुछ मुद्रा लाऊ?
 बोलो !  कुछ और लाऊ ??
शंकर भगवान  - " मैया मुझे तो तेरे लाला के दर्शन करने है"
 मैया - "हैं ?? लाला के दर्शन करवाऊ तेरे को ? अरे जोगी जब तुझे देख मैं ही डर गयी ,तो मेरा लाला तो और भी छोटा है, वो कितना डर जायेगा "
शंकर भगवान - " मैया बड़ी दूर से आया हूँ । तेरे लाला के दर्शनों की बड़ी आशा ले कर आया हूँ, बड़ा  वृद्ध  जोगी हूँ, तेरे लाला को खूब आशीर्वाद दूंगा, तेरे लाला का जल्दी ब्यांह हो जायेगा। "
मैया बोली- "मेरे यहाँ बड़े-बड़े महात्मा आते हैं।  मैं किसी और  का आशीर्वाद दिला दुंगी पर तेरे जैसे भयंकर जोगी को तो मैं दर्शन हरगिज नही कराउ । शंकर भगवान बोले-  "देख मैया अभी तो मैं विनती कर रहा हूँ , फिर मुझे क्रोध आ जायेगा "
" क्रोध आ जायेगा तो क्या कर लेगा "
" क्रोध आ जायेगा तो तेरे घर के आगे धुनी रमाउङ्गा, भूखा प्यासा रहूँगा " मैया बोली - " चाहे धुनी रमा चाहे धुना रमा, भूखा मर चाहे प्यासा मर मैं तो मेरे लाला का दर्शन नहीं कराउंगी!  नहीं कराउंगी ! नहीं कराउंगी !
शंकर भगवान बोले- "मैया मैं भी जोगी बड़ा हटी हूँ । दर्शन करने आया हूँ तो दर्शन करके जाऊँगा! करके जाऊँगा! करके जाऊँगा! "
अब दोनों में ठण गयी।
इधर स्त्री हट उधर जोगी हट ।
मैया बोली- "चल गोपी अन्दर चल बैठा रहने दे "
मैया भीतर आ गयी ।
अब शंकर भगवान बाहर धुनी रमाते पर कुछ होता नही , शंकर भगवान सोचते की अब तो विनती ही काम आयेगी । भगवान बोले लाला ये तेरी मैया को तो पता नही तेरा मेरा क्या सम्बन्ध है , पर तू तो  जाने   है ना की  में तेरे लिए आया , तू तो  महरबानी कर , ठाकुर जी बोले बाबा आप बड़े जल्दी आये कुछ समय रुक कर आते तो में दोड़ कर आप की गोदी में आ जाता पर अभी तो में खुद मेरी माँ के वश में हु, मेरे रोये बिना तो मेरा कोई काम नही होता ,भूख लगे तो रोऊँ प्यास लगे तो रोऊँ ,

शंकर भगवान बोले लाला भले ही रो पर मुझे तो दर्शन दे ,ठाकुर जी बोले तो  फिर रोना चालू करू ?
बोले ,हाँ , अब ठाकुर जी रोने लगे ,मैया दूध पिलावे ,खिलोने से खिलावे सब प्रकार से खीला पिला के देख लिया पर ठाकुर जी तो चुप ही नही होवे ,
मैया ने सोचा लाला को नजर लग गयी ,मैया " ला रे गोपी जरा राइ डॉन ले कर आ , लाला की नजर उतारू ,गोपी राई डॉन लायी  ,

मैया नजर उतर रही है ,आक्नी-डाकनी, भूतनी-पिचासनि, आजू की बाजू की ,उपरकी निचे की , आड़ोसन की पाड़ोसन की,जिसकी भी नजर लगी उतर जावे पर लाला तो फिर भी रोवे ।
मैया "आखिर क्या हुए है इस छोरे  को ...
गोपी बोली मैया मुझे तोलगे  लाला को बड़ी भारी नजर लगी , ये अपने से उतरने वाली नही ,उतने में बाहर से एक गोपी आई और बोली मैया मुझे तो लगे है  मेने देखा वो जोगी कुछ मन्त्र बोल रहा था , उस जोगी के होठ हिल रहे थे बाहर वो जोगी मन्त्र बोले ओर  भीतर तेरा लाला रोता है ,
शंकर भगवान पर सीधा सीधा इल्जाम.....
मैया बोली तो अब क्या करू ,
बोले उस जोगी को बुला के लाऊं ,बोले हां जा ,
गोपी गयी बोली बाबा कुछ नजर वजर्र उतारनी  आती है ? ,
बाबा बोले नजर ? ऐसे उतारू ऐसे उतारू की फिर कभी नजर ही न लगे ,गोपी बोली  "चल बाबा अंदर चल ?"
 शंकर भगवान  ने मना कर दिया की में घरमे तो नही चालू ,
बोले "क्यों?" ,बोले यशोदा मैया का , घर पुरे दूध दही से भरा है और मेरे गले में सब दूध के ही ग्राहक है अंदर गया और सब निकल -निकल कर चले गये तो इनको कहाँ खोजता फिरूंगा ?
मैया को बोल हम जोगी है किसी गृहशती  के घरमे नही जाते ,मैया को जा कर बोल काम है तो  तू बाहर आ ,
गोपी बोली मैया जोगी बोले माया को काम है खुद बाहर आए ,मैया लाला को पीताम्बर में ढक कर लायी ,बोले "बाबा नजर उतार"
बाबा बोले "मैया दूर से मेरा मन्त्र काम नही करता तेरे लाला को मेरे हाथ में दे तो मेरा मन्त्र काम करे
ठाकुर जी और जोर-जोर से रोने लगे की दे दे ! दे दे!
 लाला के रुदन का स्वर तेज देख कर मैया  बोली अरे ले बाबा ले
जैसे ही  ठाकुर जी शंकर भगवान के हाथ में गये रोना एक दम चुप !
मैया  बोली " रे जोगी बड़ा पहुच वान है छोरा कब से रो रहा था , और जोगी की गोदी में जाते ही चुप हो गया
मैया बोली बाबा अब मेरे लाला को कभी नजर तो नही लगेगी न?
बाबा बोले "मैया एक तो तेरा छोरा काला,   नजर लगने की सबसे पहली संभाना तो ये खुद है और दूसरा तेरे लाला इतना सुनदर है की जो एक बार इसको देख लेगा फिर उसको सब तरफ तेरा लाला ही नजर आएगा ......
उतने में बाबा के गले के सर्प लाला के चरणों को स्पर्श करने लगे ,
 मैया बोली अरे बाबा तेरे गले का साप मेरे लाला के पेरो से लिपट रहे है ,
शंकर  भगवान - " मैया ये लिपट  नही रहे है ये विनती कर रहे है की प्रभु आप अपने इन्ही चरणों से हमारे  मित्र का भी उधार करना .... ये कालिया नाग की बात कर रहे है ,
मैया बोली बाबा आप को हाथ - वात  भी देखना आता है ?
बाबा बोले किसका ?
बोले मेरे लाला का ।
बाबा -  हाँ हाँ ..हाथ देख रहे है । बोले "आरि मैया तेरा लाला तो  बहुत बड़ा राजा बनेगा
"हैं ?? "
 "हाँ , आरि मैया तेरा लाला तो, सोने की नगरी का राजा बनेगा "
"हैं?"
"हाँ आरि मैया तेरा लाला तो धर्म सम्राट बनेगा"
"अच्छा ??"
"हाँ , आरि मैया तेरा लाला तो सब राजाओं का गुरु बनेगा "
मैया बोली " अरे बाबा कुछ काम की तो बात तो बोलो"
शंकर भगवान बोले मैया तेरा लाला राजा  बनेगा ,धर्म सम्राट बनेगा  ,सब राजाओं का गुरु बनेगा ,और क्या काम  की बात होगी?
मैया बोली "राजा  बनेगा तो  ये सम्राट बनेगा तो ये गुरु बनेगा तो ये ,मेरे काम ये नही आने वाला , मुझे तो ये बताओ  की मेरे लाला का बियांह  कब  होगा  बहू कब आएगी मेरे काम तो बहु आईगी, ये  नही आएगा
 बाबा क्या बताऊ मुझसे रसोई  नही बनती
मैं रशोई बनाती वो धोक्नी ले कर फु-फु हवा करती हूँ , तो सब धुआ आख में चला जाता है , क्या बताऊ  बाबा बहु आ जाये तो थोडा काम हल्का हो जाये , शंकर भगवान बोले मैया बहुओ का तो तेरे ठाठ रहेगा ,
बोले क्यों दो बहुएं  आयेगी?
 बोले " नही "
"तो कितनी आएगी ,?
 शंकर भगवान बोले मैया तेरे लाला के हाथ में बहुओ की रेखा इतनी लम्बी है की हाथ में ही नही आ रही ठेठ  बाजु तक जा रही है"
 "हे!!  इतनी कितनी बहुएं  आएगी?"
 बोले मैया   सोलह हजार एक सो आठ बहुए आएगी  ,
मैया सोच में पड गयी
बाबा बोले मैया तू कहा खो गयी
 मैया बोली में सोच रही हु की अगर दिवाली के मोके पर सब एक साथ मेरे पाव पड़ने आगयी तो मेरा क्या हाल होगा
शंकर भगवान बोले मैया तू चिंता मत कर तेरे लाला सब देख लेगा तू तो  तेरे इस रत्न को संभाल  ,क्या रत्न है मैया क्या बताऊ
ठाकुर जी बोले बाबा कुछ मत बोलो आप को दर्शन दे दिया इसका मतलब  ये नही की आप मेरी मैया के सामने मेरी पोल खोलो , बाबा दर्शन करके बहुत प्रसन्न हो कर चले...............जय श्री राधे

Thursday, 20 December 2012

ऊधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे

कहा घनश्याम ने ,हे ऊधो वृन्दाबन ज़रा जाना ,वहा कि गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व  समझाना ,
विरह कि वेदना मै वो सदा आंसू बहाती है , तड़पती है ,सिसकती है ,मुझको याद करती है ,
तो ऊधो हँस कर कहा ,मै अभी जाता हूँ वृन्दाबन ! ज़रा मै भी ,तो देखू केसा है ये प्रेम का बंधन !
वो केसी गोपियाँ ,जो ज्ञान बल को कम  बताती है ,निर्थक प्रेम लीला का , सदा गुणगान गाती है ,
तो चले मथुरा से कुछ दूर, वृदाबन निकट आया  , वही से प्रेम ने, अपना अनोखा ,रंग दिखलाया !
उलझ कर वस्त्र मै कांटे लगे ऊधो को , समझाने.... ! मानो वो वृक्ष  कह रहा है , की हे ऊधो ये प्रेमियों की भूमि है ,यहाँ पर तुम अपने ब्रह्म ज्ञान के हंकार के साथ मत जा ,नही तो तुम्हारा ब्रह्म ज्ञान चला जायेगा ,
उधव बोले नही में सब देख लुगा ,में इन गोपियाँ को सब भुला दुगा ,और किसी और ब्रह्म में मन लग्वा दुगा ,
श्री उधव जी महाराज इस भाव से गए , लेकिन जैसे ही वह जाकर गोपियाँ का अध्भूत प्रेम देखा तो ,पहले तो गोपियाँ को प्रश्ताव दिया की हे गोपियाँ तुम इस प्रकार ब्रह्म में मन लगाओ , इस ब्रह्म का चिन्तन करो ,एसे ब्रह्म में ध्यान करो ,
पर गोपियाँ ने तो एक बात एईसी गजब की कही ,की उधव का सब ज्ञान गया ,गोपियाँ ने कहा उधव तुम कहो जिस ब्रह्म का चिन्तन करने को हम तैयार है ,एक काम तुम हमारा करदो ,
बोले क्या ?
"बोले बिना मनके तो किसी ब्रह्म का चिंत नही हो सकता , बोले नही हो सकता , बस हमारा मन उस कन्हैया के पास है ,तुम हमारा मन हमे लाकर देदो फिर तुम कहो जिस ब्रह्मका चिन्तन करने को तैयार है ..
उधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे.....
हे उधो एक मन था वो तुमारा चोर ले गए कन्हैया ,अब हम किस मनसे चिंतन करे .........
उधवजी ने तो हाथ जोड़े , की अब में नमन करता हु इन गोपियाँ के चरण रज को ......
ज्ञान बजाई दुग्दुगी ,विरह बजाया ढोल उधो सूधो रह गए सुन गोपियाँ के बोल...
उद्व जी ने गोपियाँ को अपना गुरु बना लिया ,
अगर किसी गोपि की चरण रज को माथे पे लगाने को मिल जाये ,तो भगवान में अपने आप प्रेम हो जाता है ...जय श्री राधे 


नारद जी ने एक बार भगवानसे पूछा की हे प्रभु आप अपने नाम के पीछे वैकुंठनाथ  लिखते हो ,पर वैकुंठ में तो आप रहते ही नही, .......आप का पक्का पता तो बताओ प्रभु ? नही तो हमे ऐसे ही आपको ढूंडनेमें इधर उधर भटकना पड़ता है .भगवान खुद कहते है , { ना हम वसामि वैकुंठे योगी नोर्ह्राद्यनचय मद भक्ताय......} जहा मेरे भक्त मुझे गाते है में वही रहता हु वैकुंठ नाथ तो खली मेरा नाम है , बाकि मेरा असली ठिकाना तो जहा मेरे भक्त { हरीनामाचागज } जहा मेरे नामकी गजल लगाते है , मिलके मेरे नामका संकीर्तन करते है में वही रहता हु......
"लक्ष्मीजी भगवान से हमेसा इसी बातका झगड़ा करती की आपने वैकुंठ तो बहुत सुन्दर बनादिया पर आप खुद तो वैकुंठ में रहते ही नही ,कभी किसी भक्त के यहाँ , कभी किसी भक्त के वहा , सब दिन नग्गे पैर भागते फिरते हो.....?
 भगवान बोले क्या करू लक्ष्मी में अपने भक्त के प्रेम बंधन में बंद जाता हु वो अपना सबकुछ मुझे अर्पण करके मुझे अपने अधीन कर देते है , इस लिए कही  कही तो मुझे चोकिदारी भी करनी पड़ती है......
 एसे कृपा सागर को छोड़ हम संसारी माया से लिप्त रहते है.... सच में हम उनकी माया से ठगे जाते है... 

  { जय जय श्री राधे  }
 


बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामा  कहते है की हे  गोविन्द में अपनी आत्मारूपी कन्या का विवाह तुम से करना चाहता हूँ....

भीष्म पितामाँ  - "हे केशव! कोरवों का पांड्वो पर अत्याचार देखकर मैं  सबकुछ छोड़ छाड़ के वन को जाने वाला था पर मेने सुना की महाभारत युद्ध होने वाला है और कोरवो की तरफ नारायणी सेना है और  पांड्वो की तरफ  अकेले  कृष्ण तो मेने मन बदल दिया।
 भीष्म पितामाह - " जब मेरे  सामने प्रस्ताव आया  की आप किसकी तरफ से युद्ध करोगे ?  तो मेने सोचा अगर में पांड्वो की तरफ से युद्ध लड़ना  स्वीकार  करूँगा  तो पांडवो की तरफ युद्ध लड़ते समय मुझे बार-बार कृष्ण दर्शन करने के लिए मुड़-मुड़ के देखना पड़ेगा ,लेकिन अगर में  कोरवों की तरफ से युद्ध करना स्वीकार करूँगा तो मुझे कृष्ण दर्शन एक दम सामने होगा । कृष्ण दर्शन के लालसा में ही मेने कोरवो का साथ दिया।"
"लोग मुझे पापी कहे तो कहे!
अधर्मी कहे तो कहे! "
भीष्म पितामा कहते है की  -"क्या करू गोविन्द बुढ़ापे  में एक गड़बड़ हो गयी मेरे से !
हे गोविन्द !
बुढ़ापे में मेरा मन बिगड़ गया ।"
आजन्म ब्रह्मचारी और मन बिगड़ने की बात कर रहे है ??
 ब्रह्मचारी के लिए प्रेम श्रृंगार की बाते उपयुक्त नही होती।
पर भीष्म पितामा कहते है "जबसे तुझको  देखा केशव  ब्रहमचर्य  तो भूल गया और मन दिनरात तेरे स्वरूप माधुर्य में रमण करने लगा की ।
कृष्ण बोलते कितना मधुर  है , कृष्ण हँसते कितना सुन्दर है ,कृष्ण के नेत्र कितने सुन्दर , इसी का में बार-बार चिंतन करने लगा ,इस कारण मेरे मनका तो ब्रहमचर्य बिगड़ गया ।
हे केशव ये तो अच्छा हुआ की तुम लाला ही  बनके आये , लाली बनके नही आये ।
अगर लाली बनके  आ जाते तो फिर ये दादा भीष्म बुढ़ापे में बदनाम हो जाता की बूढा  दादा छोकरी के पीछे चला गया ।  (नन्द के लाल तुम होते लाली तो गले कट जाते  करोड़न के )
लोग इसीलिए लड़ मरते की इसके साथ मैं विवाह करू, मैं विवाह करूँ ।"
"हे गोविन्द जाते जाते में इस बात को कबूल करके जाता हूँ  की मुझे तुमसे प्रेम हो गया ,भीष्म पितामा  ने मृत्यु को महोत्सव बना दिया , मोज बना दिया।
 भीष्म पितामा बोले  " हे केशव अब मुझे मेरी बेटी की शदी की चिंता है ।
 ये बात सुन अर्जुन नकुल सहदेव भीम युधीष्ठीर  सोचने लगे की ये बूढा  दादा अखंड ब्रह्मचारी ये फिर बेटी कहा से लाया ? "दादा आप की बेटी ?
"हा मेरी बेटी...."- भीष्म पितामाँ कहते है
हर आदमी का कर्तव्य होता है की वो प्राण निकलने से पहले-पहले अपनी जिम्मेदारी को पूरा करके जाये । मेरी भी एक जिमेदारी है की मेरी एक कन्या कुवारीं है।  केशव तुम उससे विवाह कर लो  ,तो में निश्चिन्त हो कर मरुँ ।
 हे गोविन्द मेरी आतामरुपी  कन्या के तुम पति बन जाओ ।
केसव मेरी आत्मा को तुम स्वीकार करलो।    
भगवान  श्री कृष्ण कहते है- " मैं  तैयार हूँ ।"

( दादा भीष्म ने नेत्र बंद किये और दादा भीष्म की आत्मा श्री कृष्ण परमात्मा के चर्नार्विंद  में लीन हो गयी )
                             जय श्री राधे 


Tuesday, 4 December 2012

मीराबाई बोली हे महाराज आपसे सवाल युही मुप्त में नही पुछू , खूब दक्षिणा दूंगी........

मीराबाई कथा सुनने अपने दादोसा के साथ प्रत्येक कथा में जाती तो ,जब महाराज कहते की किसी को कुछ पूछना हो तो पुच्छ लेना , कथा सुनने वाले सब शोता चले गए ,महार
ाज ने देखा की एक मीराबाई बेठी है

महाराज बोले सब चले गए ,और तुम बेठी हो ? मीराबाई बोली महाराज आपने कहना की किसी को कुछ पूछना हो तो पुच्छ लेना ,तो में कुछ पुच्छ ने बेठी हु , महाराज बोले इतने बड़े बड़े लोग सब चले गए तेरे दादोसा खुद उठ कर चले गए जिसने कुछ नही पूछा तू क्या पूछ जाने ,बोले महाराज सवाल छोटा है ...
महाराज बोले तो पूछ ,जब मीराबाई बोली ,श्याम से मीलन कब होसी ओ मारा जुना जोसी , कन्हैया मिलन कब होसी ,महाराज बोले बेटी सवाल छोटा है पर उत्तर बड़ा..
मीराबाई बोली हे महाराज आपसे सवाल युही मुप्त में नही पुछू , आओ जोशीजी मेरे आन्गनिये बिराजो ,बाँच पढ़ादू थारी पोती.... पाँच मोहर की जोसी दक्षिणा दिलादु , पैरन ने पीताम्बर धोती ,खीर खांडरा जोसी मृत भोजन , सारा तो जिमाई दू थारा गोति , दूध पिवाने जोसी गाय दिलादू ,हिरासु जड़ादू थारी पोती...
खूब दक्षिणा दूंगी महाराज ,आपतो इतना बता दो, की मेरे प्रिय प्रीतम से मेरा मिलन कब होसी मेरे हरिसे मिलन कब होसी ......
महाराज बोले बेटी अगर में तेरे सवाल का उत्तर न दू तो तुम्हे को नाराजगी तो नही है ? मीराबाई बोली महाराज , नाराजगी कैसी आप नही तो कोई और देगा ,पर मेरे जीवन का प्रत्यियेक कथा में एक ही सवाल रहेगा , की हरी से मिलन कब होसी ,अबतो हरी मिलिया ही सुख होसी

मीराबाई ने बहुत से सादु संत महात्माओ से पूछा की कोई तो बतादो मेरे श्याम से मेरा मीलन कब होगा , पर भगवान से मिलने का समय कोई नही बता पाया.....

ऊधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे

कहा घनश्याम ने ,हे ऊधो वृन्दाबन ज़रा जाना ,वहा कि गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व  समझाना ,
विरह कि वेदना मै वो सदा आंसू बहाती है , तड़पती है ,सिसकती है ,मुझको याद करती है ,
तो ऊधो हँस कर कहा ,मै अभी जाता हूँ वृन्दाबन ! ज़रा मै भी ,तो देखू केसा है ये प्रेम का बंधन !
वो केसी गोपियाँ ,जो ज्ञान बल को कम  बताती है ,निर्थक प्रेम लीला का , सदा गुणगान गाती है ,
तो चले मथुरा से कुछ दूर, वृदाबन निकट आया  , वही से प्रेम ने, अपना अनोखा ,रंग दिखलाया !
उलझ कर वस्त्र मै कांटे लगे ऊधो को , समझाने.... ! मानो वो वृक्ष  कह रहा है , की हे ऊधो ये प्रेमियों की भूमि है ,यहाँ पर तुम अपने ब्रह्म ज्ञान के हंकार के साथ मत जा ,नही तो तुम्हारा ब्रह्म ज्ञान चला जायेगा ,
उधव बोले नही में सब देख लुगा ,में इन गोपियाँ को सब भुला दुगा ,और किसी और ब्रह्म में मन लग्वा दुगा ,
श्री उधव जी महाराज इस भाव से गए , लेकिन जैसे ही वह जाकर गोपियाँ का अध्भूत प्रेम देखा तो ,पहले तो गोपियाँ को प्रश्ताव दिया की हे गोपियाँ तुम इस प्रकार ब्रह्म में मन लगाओ , इस ब्रह्म का चिन्तन करो ,एसे ब्रह्म में ध्यान करो ,
पर गोपियाँ ने तो एक बात एईसी गजब की कही ,की उधव का सब ज्ञान गया ,गोपियाँ ने कहा उधव तुम कहो जिस ब्रह्म का चिन्तन करने को हम तैयार है ,एक काम तुम हमारा करदो ,
बोले क्या ?
"बोले बिना मनके तो किसी ब्रह्म का चिंत नही हो सकता , बोले नही हो सकता , बस हमारा मन उस कन्हैया के पास है ,तुम हमारा मन हमे लाकर देदो फिर तुम कहो जिस ब्रह्मका चिन्तन करने को तैयार है ..
उधो मन न भये दस बीस एक होतो सो गयो श्याम संग अव को अवरादे.....
हे उधो एक मन था वो तुमारा चोर ले गए कन्हैया ,अब हम किस मनसे चिंतन करे .........
उधवजी ने तो हाथ जोड़े , की अब में नमन करता हु इन गोपियाँ के चरण रज को ......
ज्ञान बजाई दुग्दुगी ,विरह बजाया ढोल उधो सूधो रह गए सुन गोपियाँ के बोल...
उद्व जी ने गोपियाँ को अपना गुरु बना लिया ,
अगर किसी गोपि की चरण रज को माथे पे लगाने को मिल जाये ,तो भगवान में अपने आप प्रेम हो जाता है ...जय श्री राधे