Thursday, 20 December 2012

बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामा  कहते है की हे  गोविन्द में अपनी आत्मारूपी कन्या का विवाह तुम से करना चाहता हूँ....

भीष्म पितामाँ  - "हे केशव! कोरवों का पांड्वो पर अत्याचार देखकर मैं  सबकुछ छोड़ छाड़ के वन को जाने वाला था पर मेने सुना की महाभारत युद्ध होने वाला है और कोरवो की तरफ नारायणी सेना है और  पांड्वो की तरफ  अकेले  कृष्ण तो मेने मन बदल दिया।
 भीष्म पितामाह - " जब मेरे  सामने प्रस्ताव आया  की आप किसकी तरफ से युद्ध करोगे ?  तो मेने सोचा अगर में पांड्वो की तरफ से युद्ध लड़ना  स्वीकार  करूँगा  तो पांडवो की तरफ युद्ध लड़ते समय मुझे बार-बार कृष्ण दर्शन करने के लिए मुड़-मुड़ के देखना पड़ेगा ,लेकिन अगर में  कोरवों की तरफ से युद्ध करना स्वीकार करूँगा तो मुझे कृष्ण दर्शन एक दम सामने होगा । कृष्ण दर्शन के लालसा में ही मेने कोरवो का साथ दिया।"
"लोग मुझे पापी कहे तो कहे!
अधर्मी कहे तो कहे! "
भीष्म पितामा कहते है की  -"क्या करू गोविन्द बुढ़ापे  में एक गड़बड़ हो गयी मेरे से !
हे गोविन्द !
बुढ़ापे में मेरा मन बिगड़ गया ।"
आजन्म ब्रह्मचारी और मन बिगड़ने की बात कर रहे है ??
 ब्रह्मचारी के लिए प्रेम श्रृंगार की बाते उपयुक्त नही होती।
पर भीष्म पितामा कहते है "जबसे तुझको  देखा केशव  ब्रहमचर्य  तो भूल गया और मन दिनरात तेरे स्वरूप माधुर्य में रमण करने लगा की ।
कृष्ण बोलते कितना मधुर  है , कृष्ण हँसते कितना सुन्दर है ,कृष्ण के नेत्र कितने सुन्दर , इसी का में बार-बार चिंतन करने लगा ,इस कारण मेरे मनका तो ब्रहमचर्य बिगड़ गया ।
हे केशव ये तो अच्छा हुआ की तुम लाला ही  बनके आये , लाली बनके नही आये ।
अगर लाली बनके  आ जाते तो फिर ये दादा भीष्म बुढ़ापे में बदनाम हो जाता की बूढा  दादा छोकरी के पीछे चला गया ।  (नन्द के लाल तुम होते लाली तो गले कट जाते  करोड़न के )
लोग इसीलिए लड़ मरते की इसके साथ मैं विवाह करू, मैं विवाह करूँ ।"
"हे गोविन्द जाते जाते में इस बात को कबूल करके जाता हूँ  की मुझे तुमसे प्रेम हो गया ,भीष्म पितामा  ने मृत्यु को महोत्सव बना दिया , मोज बना दिया।
 भीष्म पितामा बोले  " हे केशव अब मुझे मेरी बेटी की शदी की चिंता है ।
 ये बात सुन अर्जुन नकुल सहदेव भीम युधीष्ठीर  सोचने लगे की ये बूढा  दादा अखंड ब्रह्मचारी ये फिर बेटी कहा से लाया ? "दादा आप की बेटी ?
"हा मेरी बेटी...."- भीष्म पितामाँ कहते है
हर आदमी का कर्तव्य होता है की वो प्राण निकलने से पहले-पहले अपनी जिम्मेदारी को पूरा करके जाये । मेरी भी एक जिमेदारी है की मेरी एक कन्या कुवारीं है।  केशव तुम उससे विवाह कर लो  ,तो में निश्चिन्त हो कर मरुँ ।
 हे गोविन्द मेरी आतामरुपी  कन्या के तुम पति बन जाओ ।
केसव मेरी आत्मा को तुम स्वीकार करलो।    
भगवान  श्री कृष्ण कहते है- " मैं  तैयार हूँ ।"

( दादा भीष्म ने नेत्र बंद किये और दादा भीष्म की आत्मा श्री कृष्ण परमात्मा के चर्नार्विंद  में लीन हो गयी )
                             जय श्री राधे 


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