Sunday, 26 May 2013



सुनो दिलको लगा प्यारे ,अरज तुमसे ये करती हूँ !!
 

नजर भर देखलो मुझको , शरण तेरी मैं आई हूँ !!
 

कर्म सब नीच है मेरे , तुम्हारा नाम है पावन !!
 

तार संसार सागर से , गहन जल में डुबाई हूँ !!
 

छुड़ा कर जन्म बंधन से , चरण में राखले अपने !!


सहारा दे मुझे अपना , करो नही नाथ अब देरी !!
 

नहीं है भोग की वांछा , न दिल मै मोक्ष पाने की !!
 

प्यास दर्शन की है मन मै , सफल कर आश को मेरी !!
 

शरण में आ पड़ी तेरी , प्रभु मुझको भूलाना ना !!
 

तेरे है नाम दुनिया में , पतित पावन सब भक्त जाने है !!
 

देख कर दोस को मेरे , नजर मुझसे हटाना ना !!
 

काल की है नदी भारी , बहा जाती हूँ धारा में !!
 

पकड़ले हाथ अब मेरा , नाथ देरी लगाना ना !!
 

तेरा है नाम अविनाशी , जगत सारे में है पूरण !!
 

दासी हूँ चरण की तेरी , नैनन से कबहूँ छिपाना ना !! 
      
{ जय जय श्री राधे }

ये मेरा है वो तेरा है यही समझना भूल है !!
ईश्वर मेरे मैं ईश्वरका यही समझना मूल है !!


मूल बात यही है की हम केवल ईश्वर के है
और केवल एक ईश्वर ही हमारा अपना है

पर हम इस बात से विपरीत चलते है
की हम संसार के है, और संसार हमारा है
इस बात को गहराई से सोचिये की संसार में अपना कौन है !!

मनुष्य केवल अपने अनुभव का आदर करे तो उसका काम बन जाय अनुभव क्या है ?
अपने पास जो चीज मिली है वह सब अपनी नही है , यह खास बात है जो मिली हुई होती है वह अपनी नही होती है..
शरीर धन जमीन वैभव् सम्पति जो कुछ मिला है वह अपना नही है ,
इस बात पर विचार करे , ऐसा मान ने से ममता मिट जाती है , और ममता ही नही अहंता भी मिट जाती है

अब आप कहेंगे की ये हमारा कैसे नही हुए , ये धन जमीन वैभव् सम्पति सब   हमने कमाया है फिर हमारा क्यों नही है..?

फिर प्रश्न उठता है की ये शरिर मेरा है ?
आप इस शरीर को जितना और जैसे चाहे रख सकते है क्या ?
इस में जो परिवर्तन चाहे वो कर सकते है क्या ?
वृध्दावस्ता को रोक सकते है क्या ?  
इसे मोंत से बचा सकते है क्या ?
यदि ये आप के हाथ की बात नही ,
तो फिर यह शरिर आपका कैसे हुआ ?
क्यों की हमारी चीज तो हमारे कहने में होनी चाहिए ना !!
अगर ऐसा है तो इस शरिर से न चाहते हुए भी हमे पीड़ा क्यों मिलती है , ना चाहते हुए भी बूढा क्यों दिखने लगता है !!

आप इस शरीर को जहा चाहे पटक सकते है , पर हुकुम नही चला सकते.. की तू बद सूरत मत बन , बूढा मत बन , हमे पीड़ा मत दे , आप कहते रहो पर ये आप की एक नही सुनने वाला..!!

अब जरा विचार करे की जब हमारा शरीर ही हमारे कहने में नही है फिर हम ओरोसे उमीद क्यों करे ,  इस बात को नही मानोगे तो दुःख में पड़े रहोगे , 
इस लिए आज ही अपने मन में गाठ बंद लो की हम केवल भगवान के है और एक भगवान ही हमारे अपने है..

मैं..? उतर है , की मैं केवल आत्मा हु शरिर नही हु , और आत्मा सिर्फ परमात्मा की होती है..!!

काम करते रहो नाम जपते रहो !
नाम धनका खजाना है , धन बढ़ाते चलो !!
   { जय जय श्री राधे }


  
अगर हम जानती , मोहन चले जायेंगे गोकुल से , लगाती प्रेम न उनसे!!

कृष्ण ने कहा ऐ उधो तू जरा जाना व्रज में , उन व्रज वासी गोपियाँ को कुछ ज्ञान का तत्व समझा कर आना , वो सब दिन मेरी याद में , रोती है ,सिसकती है बिलकती है..अपनी सुद्ध  बुद्ध  भूल सब दिन मेरा ही चिंतन करती रहती है , तुम जरा जाना उन्हें ज्ञान समझा के आना
उधव जी आये व्रज में !
जब गोपियाँ ने देखा की उधो हमारे श्याम सुन्दर का सन्देश ले आये है , तो उनके पास गयी

उधव जी पहले तो गोपियाँ को कुछ ज्ञान की बाते समझाई , पर गोपियाँ का चित तो अपने श्याम सुन्दर में है फिर कोई और ज्ञान की बात उनके समझ में कैसे आ सकती है !!

गोपियाँ तो बार बार हाथ जोड़ कर एक ही प्रार्थना करने लगी !

"मिला दो श्याम से उधो , तेरा गुण हम भी गवेंगी !!
मुकुट सिर मोरपंखन का , मकर कुण्डल हैं कानो में !!
मनोहर रूप मोहन का , देख दिल को रिझावेंगी !!
को छोड़ कर गिरधर , गए जब से नही आये !!
चरण में शीश धर करके , फेर उनको मनावेंगी !!
प्रेम हमसे लगा करके , बिसारा नन्द नन्दन ने !!
खता हो गयी हमसे , अरज अपनी सुनावेंगी !!
कभी फिर आय कोकुल में,  हमें दर्शन दिलावेंगे !!
"रहेंगे कंठ में जब तक हमारे प्राण , नही उनको भुलावेंगी !!

हे उधो तुम्हारी ज्ञान की बाते हमारे दिल पर असर नही करती
 उधो वो शावरी सूरत हमारे नैनंन का तारा है
अगर हम जानती चले जायेंगे मोहन गोकुल से लगाती प्रेम न उनसे
बसा श्याम हरदे में नही होता वो अब न्यारा..!!

उधो तुम श्याम सुन्दर को भूल ने की बात करते हो ! किसी और में मन लगाने की बात करते हो ! तो एक बात हम को बतावो ?
क्या बिना मन के किसी का ध्यान हो सकता है  ?
बिना नम किसी का चिंतन हो सकता ?
उधो "नही हो सकता
बस तुम हमे हमारा मन उस श्याम सुन्दर से लाकर देदो फिर तुम कहो उस ब्रह्म का ध्यान करने को राजी है..!!

उधो मन न भये दस बीस एक हो तो  सो गए श्याम संग..
एक मन था जो वो चोर तुम्हारा कन्हिया ले गया
अब हम किस मन से किसी और ब्रह्म का चिंतन करे , जब हमारा मन ही हमारे पास नही..

गोपीयाँ का कृष्ण में अटूट प्रेम देख उधो का सब ज्ञान धरा का धरा रह गया
उधव जी जोड़े हाथ , गोपियों को उधव जी ने अपना गुरु बना लिया।
ज्ञान बजायी दुग्दुगी विरह बजायो ढोल
उधो दूधो रहगयो सुन गोपियन को बोल
अगर किसी गोपी की रच अपने सिर पे लगाने को मिल जाये तो श्याम सुन्दर से अपने आप प्रेम हो जाता है !!
  { जय जय श्री राधे
}

Wednesday, 15 May 2013

        
        "अर्जुन है मेरो प्राण , मैं अर्जुन को प्राण !!
        शस्त्र न उठाऊं , तो जाय भक्त को प्राण !!


भीष्म पितामह ने , कृष्ण से शस्त्र उठवाने की प्रतिज्ञा की थी , की  या तो कृष्ण  को शस्त्र उठाना पड़ेगा या मैं पांडवो को मार डालूँगा

पितामह अपने मन में तो प्रसन्न है की भले ही मुझे अधर्मो के साथ खड़ा रहने का कलंक लगे पर कृष्ण के सुन्दर रूप का दर्शन एक दम सामने होगा इनके सुन्दर रुपको निहारने के लिए भले ही अधर्मी का कलंक लगे परवाह नही ..

पर कृष्ण ने कहा की मैं युद्ध में तो रहूँगा पर शस्त्र नही उठाऊंगा तो इस बात पर भीष्म पितामह को क्रोध आ गया , की ये कृष्ण अपने आप को समझते क्या है
बिना शस्त्र उठाये ही पांड्वो को विजय दिलाने की बात कर रहे , वो कृष्ण हम को समझते क्या है  ,हम कोई कद्दू है जो काट देंगे ,  हम भी तो वीर है.. भले ही कृष्ण ने प्रतिज्ञा की हो , की मैं शस्त्र नही उठाऊंगा , पर हे राजाओं मैं इस सभा में प्रतिज्ञा करता हु की मैं कृष्ण से शस्त्र उठवा कर रहूँ गा
पितामह कहने लगे की ,
वसु देव कर चक्र न धरे तो तुम को मुह न दिखाऊ
लाजत है मेरी गंगा , जननी सांतनु सूत न कहाऊँ

हे राजाओं अगर कृष्ण से शस्त्र न उठाया तो में अपना मुह नहीं दिखाऊं गा युद्ध में लड़ते लड़ते मेरा सव भी गिरे गा तो भी उधे मुह  गिरूंगा , में गंगा का पुत्र नही मैं सांतनु का सूत नही..
यहाँ भक्त और भगवान की प्रतिज्ञा टकराई है

जब भीष्म पितामह ने अर्जुन पर आक्रमण करने लगे अर्जुन को मारने के लिए बाण उठाया तो कृष्ण क्रोध से भर गए देखा की अर्जुन को बाण न लग जाये सोचा की
"अर्जुन है मेरो प्राण मैं अर्जुन को प्राण !!
शस्त्र न उठाऊं तो जाय भक्त को प्राण !!

अगर अर्जुन नही रह सकता तो मैं भी नही रह सकता , रथ से उठे कृष्ण अर्जुन को अपने पीछे धकेला और कृष्ण कुदे और टूटे हुए एक रथ पयिया को देखा रथ चक्र को हाथ में लेकर भगवान श्री कृष्ण जब पितामह की और दोड़े तो वो सफ़ेद दाढ़ी वाले महात्मा हंस पड़े...

भीष्म पितामह अपने रथ में खड़े जोरसे हंस दिए
"ऐ शान्ताकारम , वाह !! वाह !!
आओ आओ ऋषि मुनियों !!
देखो देखो देवताओ !!
शान्ताकारम की स्तुति करने वालो !!
शान्ताकारम कहने वाले देवताओं !!
इन क्रोधाकार्म को देख लो !!
आओ आओ ऋषि मुनियों तनिक इनके दर्शन करो  देखो देखो
शरीर से सावले है तो ! गोरे मुख पर तो क्रोधके कारण तुरंत लालीमा दिखयी पड़ने लगती है.. देखो देखो देवताओं ऋषि मुनियों इन्होने अपने सत्य को कैसे छोड़ दिया !!

पितामह ने कहा , की हे देवकी नंदन मेरा यही पर तुमसे विरोध था ,की
"आप कयो में शस्त्र बिन भूमि हरहु सब भार !!
हमको श्रृत्रिय ही गिने बोलहु वचन विचार !!

पितामह "हे वासुदेव बिना शस्त्र के भूमि का भार हरने की बात कर रहे हो , तो क्या हम श्रृत्रिय नही है ?
अब आपने शस्त्र उठाया है तो सोच समझ कर जवाब देना !! तो कृष्ण तुरंत अपने स्वरुप में आ गये , हाथ से रथ चक्र निचे फेक दिया और पितामह की और देख मुश्कुरा उठे

"डार चक्र हरी हंस परियो , दियो तरब ब्रज राज !!
तजि प्रतिज्ञा मोरी , मैं तोरी प्रतिज्ञा काज !!

श्री कृष्णा "आज मैं अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दिया , आप की प्रतिज्ञा की रक्षा करने के लिए सत्य बचना चाहिए पितामह !! जब तक शस्त्र नही उठाने से सत्य बच रहा था तो हमने शस्त्र नही उठाया ,और अब नोबत ऐसी आ गयी की शस्त्र उठाने से ही सत्य की रक्षा होगी तो हमने शस्त्र उठा लिया

श्री कृष्ण कहते है की पितामह आप की प्रतिज्ञा थी की या तो  कृष्ण को शस्त्र उठाना पड़ेगा या पांड्वो को मार डालूँगा
मेरी प्रतिज्ञा भले ही टूट जाये पर मेरे भक्त का संकल्प कभी नि सफल नही होने देता...!!

                    { जय जय श्री राधे }
                    भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा....

भीष्म पितामह ने महाभारत युद्ध में जब 9 नॉवे दिन प्रतिज्ञा की , की या तो  में कल पांडवो को मार दुगा , और नहीं तो कल कृष्ण को शस्त्र उठाना पड़ेगा ,

आज जो हरी ही शस्त्र ना उठाऊ ,
तो लाजू गंगा जननी को में सांतनु  सूत ना कहाउ
ऐसा संकल्प किया था..

संकल्प बड़ा अधभुत था , कौरवों को खुसी  का ठिकाना नही रहा , क्यों की भीष्म प्रतिज्ञा हो गयी थी , सब प्रश्न हो गए , दुरियोधन ने खुसी के बाजे बजवा दिए की अब हमे जितने से कोई नही रोक पायेगा
क्यों की कृष्ण शस्त्र उठाएंगे नही , इसका मतलब भीष्म पितामह कल पांडवो को मार डालेंगे
पर जब प्रभु के कानो में ये खबर पड़ी तो भगवान को रात भर नींद नही आ रही है , प्रभु सो नही पाए , और सोच रहे है की भीष्म पितामह ने ऐसी प्रतिज्ञा कर दी , क्या उन्हें पता नही की मेरे भक्त का कभी विनास नही होता !!

रात की चार बजी थी , कृष्ण गए द्रोपदी के सिविर में , और बोले की बहिन मुझे लगता है की शायद  आज तू विधवा हो गयी , ये बात सुनकर द्रोपदी हसने लगी , की कोई बात नही हो जाने दो , कृष्ण बोले अरे आज तू विधवा हो जाएगी इस बात पर तुम हस रही हो  तुझे चिंता नही ? द्रोपिदी बोली प्रभु जिसका सहारा  आप बन जाओ उनको चिंता कैसी !!
"हमे चिंता नही उनकी , उन्हें चिंता हमारी है
हमारे प्राणों का रक्षक , सुदर्शन चक्र धारी है
आप के होते हुए हम चिंता क्यों करे !!

कृष्ण बोले बहिन आज कोई छोटी मोटि बात नही है , बहुत बड़ी बात है ,  पितामह भीष्म ने ये संकल्प लिया है की आज में पांडवो को मरूँगा और ये अटल संकल्प है उन्होंने कहा है की मरूँगा तो वो छोड़ेंगे नही !!
कृष्ण बोले बहिन तुम्हे अभी मेरे साथ चलना होगा , द्रोपिदी बोली चलो।
ये कहा जा रहे है ? ये पितामह भीष्म के सिविर में जा रहे है !!

रास्ते में द्रोपदी की चप्पले आवाज कर रही थी तो कृष्ण बोले बहिन अब हम दुश्मनों के सिविर की और जा रहे , कही चप्पल की आवाज सुनकर कोई  दुश्मन आक्रमण ना करदे इनको उतर दो , जैसे ही द्रोपिदी ने चप्पले उतारी भगवन श्री कृष्ण ने उठाकर अपने हाथ में रख ली , अपने खाक में भक्त की चप्पल लिए चल रहे है !!
भीष्म पितामह के सिविर के पास गए , भीतर जाने लगे तो सेनिको ने रोक दिया की कहा जाते हो ? कौन हो तुम ?, भगवान ने कहा की ये पांड्वो की पत्नी है इनको पितामह के दर्शन करने है , इनको अन्दर जाने दो !!

सेनीको ने ध्यान से देखा तो द्रोपदी को तो पहचान लिया की ये तो महारानी द्रोपदी है  , सेनिको ने कहा की ठीक है हम इनको तो पहचान गए , इनको तो  अन्दर जाने देंगे , पर तुम कौन हो ? तुम्हे हम अन्दर नही जाने देंगे !!
भगवन बोले हम को अन्दर जाना भी नही है , भगवान ने सोचा की अच्छा है रात भी काली और मैं भी कला इसने मुझे पहचाना नही ,और भगवान बोले भईया मैं तो और कोई नही इनका एक छोटासा नोकर हु , ये अकेली कैसे आती सो में इनके साथ आ गया !!
द्रोपदी भीष्म पितामह  के पास गयी , पितामह अपने प्रभु के ध्यान  में लीन है पितामह को प्रणाम करते हुए कहा की बाबा प्रणाम ,भीष्म पितामह ने सोचा की दुरियोधन की पत्नी होगी , बिना आख खोले दोनों हाथोसे आशीर्वाद के लिए उठे और मुह से निकल पड़ा की बेटी अखंडशोभाग्यावती भवः

 द्रोपदी ने बोल बाबा जरा आख कोलकर देखो की अभी तो कह रहे थे की पांड्वो को मार डालूँगा , और अब कहरहे हो की अखंडशोभाग्यावती भवः , ये दोनों बाते एक साथ कैसे निभेगी ? भीषम पितामह ने आख खोला और सुना की ये तो द्रोपदी है
तो
सुनते ही वचन द्रोपदी के ,हाथो से माला छुट गयी
प्रभु के चरणों में लगी , वो अटूट समाधी टूट गयी

द्रोपदी की बात सुनते ही हाथसे माला छूट गयी , अटूट समादी टूट  गयी।
भगवान श्री कृष्ण ने पितामह से द्रोपदी को अखंडशोभाग्यावती भवः का आशीर्वाद दिलादिया ,
पितामह बोले बेटी तू अकेली कैसे आई ?  द्रोपदी ने कहा बाबा मैं अकेली कहा आई हु , मेरे साथ श्री कृष्ण भी आये है !! पितामह समझ गए की ये काम भगवान का ही हो सकता है वो ही तुजे ला सकता है बेटी और कोई नही....

पितामह ने सिविर के बाहर जा कर देखा की कृष्ण एक पेड़ के  निचे काली कम्बल ओढ़कर सो रहे है , जो चद्दर उठाके देखा की भगवान ने द्रोपदी के चप्पलो का तकिया बना कर सो रहे है ,
पितामह भगवान के चरणों में गिरकर रो पड़े , की प्रभु जिस भक्त की चप्पले आप अपने सिरपर धारण कर दो तो मेरी क्या मजाल  की मैं उनका बाल भी बांका कर सकू...!!
प्रभु जिसको तारे
कौन उसको मारे....

          { जय जय श्री राधे }
                      द्रोपदी कौरवों से घिरी थी
                     मुरली वाले से विनती करी थी
                    प्रभु आकर के चीर बढ़ाये....


द्रोपती की जब लाज जा रही थी तो वो सहयता के लिए सबकी और देख रही थी की कोई मुझे बचानेके लिए उठेगा , कोई मेरी लाज बचाएगा , पांड्वो की और देखा पांडव् सिर निचे किये हुए बैठे है..
धृतराष्ट्र  की और देखा तो समझ गयी की ये तो आखो से भी अंधे है और मोह से भी अंधे है..
भीष्म पिताहमा भी उस दिन उठ नही पाए !!
लेकिन वहा पर एक महा पुरीष बेठे थे क्रिपाचार्य जो स्वयम तो नही उठ ते पर द्रोपदी को इशारा करते हुए अपनी उंगली उपरकी और करते है , की बेटी तू अनेको की और क्यों देख रही है ,तू उनकी और देख , तू एक की और देख ,बाकि सब तो तेरा तमासा देखने को बेठे है , तेरी लाज बचाने वाला वो एक ही है जिनको सबकी लाज है

पहले तो द्रोपदी साड़ी पकड़ कर कड़ी थी पर जैसे ही कृष्णा का स्मरण हुआ, साड़ी को छोड़ दिया , भगवान का ऐसा समरपण हो गया की साड़ी को छोड़ दोनों हाथ ऊपर कर द्रोपदी कहने गली

"मेरी लाज जाये तो भलेही जाये यदुराज
पर कोरव समाज हेर तेरी आज जाएगी ,
मेरी लाज केवल पांडव प्रिया ही नाही
कछु तो कहो तेरी ताके काज जाएगी
मेरी लाज सत्य पे असत्य के हवाले हुई
तो सत्य सिन्दू तेरी सत्यता निवास जाएगी
मेरी लाज तेरी लाज , तेरी लाज मेरी लाज
मेरी लाज जाएगी तो , तेरी लाज जाएगी..

"हे कृष्ण आज मुझे कौरव समाज ने घेर रखा है , आज तेरे सिवाय मेरा सहारा कोई नही  "हे गोविन्द आज मेरी लाज चली गयी तो लोग ये नही कहेंगे की द्रोपदी की लाज चली गयी , लोग कहेंगे की कृष्ण की एक परम भक्ता की लाज चली गयी
हे कृष्ण आप मेरी परवाह करो ना करो पर अपने भक्तवात्सलॆएका तो थोडा  खयाल करो , तेरा नाम है भक्तवत्सल
कहते हो की मेरी शरण में आये मेरे भक्त की रक्षा करना मेरा व्रत है ,मेरा कर्तव्य है , मेरा धर्म है..
और द्रोपदी ने भगवान को ऐसा पुकारा की भगवान से  रहा नही गया , द्रोपदी की करुणा भरी पुकार सुनते ही कृष्ण दोड़े चले आये , भगवान ने इतना चीर बढाया की ,दुष्ट दुसाशन चीर , खीच - खीच कर हार गया पर साड़ी का कही छोर नही मिला , साड़ी का कही अंत नही मिला।।

आप जानते हो ना दुसाशन में दस हजार हाथिओ का बल था वो दस हजार हथियो जैसा बल थक गया पर दस गज चीर नही थका , क्यों की चीर बढाने वाले यदु राज थे !!

"क्या करे बेरी प्रबल जो सहाय यदु वीर !!
दस हजार गज बल थक्यो , पर थक्यो न दस गज चीर !!

जिनका सहारा यदु वीर हो जाये उनके कितने ही बैरी क्यों न हो , पर प्रभु अपने भक्तो पर आच भी नही आने देते।।

भगवान कहते है मेरे भक्त की लाज मेरी लाज से भी बढ़ कर है
मेरी लाज की परवाह हो न हो, पर मेरे भक्त की लाज की परवाह मैं  हमेसा करता हु , मैं उनकी लाज कभी नही जाने देता..!!
      
       { जय जय श्री राधे }