Sunday, 26 May 2013


ये मेरा है वो तेरा है यही समझना भूल है !!
ईश्वर मेरे मैं ईश्वरका यही समझना मूल है !!


मूल बात यही है की हम केवल ईश्वर के है
और केवल एक ईश्वर ही हमारा अपना है

पर हम इस बात से विपरीत चलते है
की हम संसार के है, और संसार हमारा है
इस बात को गहराई से सोचिये की संसार में अपना कौन है !!

मनुष्य केवल अपने अनुभव का आदर करे तो उसका काम बन जाय अनुभव क्या है ?
अपने पास जो चीज मिली है वह सब अपनी नही है , यह खास बात है जो मिली हुई होती है वह अपनी नही होती है..
शरीर धन जमीन वैभव् सम्पति जो कुछ मिला है वह अपना नही है ,
इस बात पर विचार करे , ऐसा मान ने से ममता मिट जाती है , और ममता ही नही अहंता भी मिट जाती है

अब आप कहेंगे की ये हमारा कैसे नही हुए , ये धन जमीन वैभव् सम्पति सब   हमने कमाया है फिर हमारा क्यों नही है..?

फिर प्रश्न उठता है की ये शरिर मेरा है ?
आप इस शरीर को जितना और जैसे चाहे रख सकते है क्या ?
इस में जो परिवर्तन चाहे वो कर सकते है क्या ?
वृध्दावस्ता को रोक सकते है क्या ?  
इसे मोंत से बचा सकते है क्या ?
यदि ये आप के हाथ की बात नही ,
तो फिर यह शरिर आपका कैसे हुआ ?
क्यों की हमारी चीज तो हमारे कहने में होनी चाहिए ना !!
अगर ऐसा है तो इस शरिर से न चाहते हुए भी हमे पीड़ा क्यों मिलती है , ना चाहते हुए भी बूढा क्यों दिखने लगता है !!

आप इस शरीर को जहा चाहे पटक सकते है , पर हुकुम नही चला सकते.. की तू बद सूरत मत बन , बूढा मत बन , हमे पीड़ा मत दे , आप कहते रहो पर ये आप की एक नही सुनने वाला..!!

अब जरा विचार करे की जब हमारा शरीर ही हमारे कहने में नही है फिर हम ओरोसे उमीद क्यों करे ,  इस बात को नही मानोगे तो दुःख में पड़े रहोगे , 
इस लिए आज ही अपने मन में गाठ बंद लो की हम केवल भगवान के है और एक भगवान ही हमारे अपने है..

मैं..? उतर है , की मैं केवल आत्मा हु शरिर नही हु , और आत्मा सिर्फ परमात्मा की होती है..!!

काम करते रहो नाम जपते रहो !
नाम धनका खजाना है , धन बढ़ाते चलो !!
   { जय जय श्री राधे }


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