Wednesday, 15 May 2013

        
        "अर्जुन है मेरो प्राण , मैं अर्जुन को प्राण !!
        शस्त्र न उठाऊं , तो जाय भक्त को प्राण !!


भीष्म पितामह ने , कृष्ण से शस्त्र उठवाने की प्रतिज्ञा की थी , की  या तो कृष्ण  को शस्त्र उठाना पड़ेगा या मैं पांडवो को मार डालूँगा

पितामह अपने मन में तो प्रसन्न है की भले ही मुझे अधर्मो के साथ खड़ा रहने का कलंक लगे पर कृष्ण के सुन्दर रूप का दर्शन एक दम सामने होगा इनके सुन्दर रुपको निहारने के लिए भले ही अधर्मी का कलंक लगे परवाह नही ..

पर कृष्ण ने कहा की मैं युद्ध में तो रहूँगा पर शस्त्र नही उठाऊंगा तो इस बात पर भीष्म पितामह को क्रोध आ गया , की ये कृष्ण अपने आप को समझते क्या है
बिना शस्त्र उठाये ही पांड्वो को विजय दिलाने की बात कर रहे , वो कृष्ण हम को समझते क्या है  ,हम कोई कद्दू है जो काट देंगे ,  हम भी तो वीर है.. भले ही कृष्ण ने प्रतिज्ञा की हो , की मैं शस्त्र नही उठाऊंगा , पर हे राजाओं मैं इस सभा में प्रतिज्ञा करता हु की मैं कृष्ण से शस्त्र उठवा कर रहूँ गा
पितामह कहने लगे की ,
वसु देव कर चक्र न धरे तो तुम को मुह न दिखाऊ
लाजत है मेरी गंगा , जननी सांतनु सूत न कहाऊँ

हे राजाओं अगर कृष्ण से शस्त्र न उठाया तो में अपना मुह नहीं दिखाऊं गा युद्ध में लड़ते लड़ते मेरा सव भी गिरे गा तो भी उधे मुह  गिरूंगा , में गंगा का पुत्र नही मैं सांतनु का सूत नही..
यहाँ भक्त और भगवान की प्रतिज्ञा टकराई है

जब भीष्म पितामह ने अर्जुन पर आक्रमण करने लगे अर्जुन को मारने के लिए बाण उठाया तो कृष्ण क्रोध से भर गए देखा की अर्जुन को बाण न लग जाये सोचा की
"अर्जुन है मेरो प्राण मैं अर्जुन को प्राण !!
शस्त्र न उठाऊं तो जाय भक्त को प्राण !!

अगर अर्जुन नही रह सकता तो मैं भी नही रह सकता , रथ से उठे कृष्ण अर्जुन को अपने पीछे धकेला और कृष्ण कुदे और टूटे हुए एक रथ पयिया को देखा रथ चक्र को हाथ में लेकर भगवान श्री कृष्ण जब पितामह की और दोड़े तो वो सफ़ेद दाढ़ी वाले महात्मा हंस पड़े...

भीष्म पितामह अपने रथ में खड़े जोरसे हंस दिए
"ऐ शान्ताकारम , वाह !! वाह !!
आओ आओ ऋषि मुनियों !!
देखो देखो देवताओ !!
शान्ताकारम की स्तुति करने वालो !!
शान्ताकारम कहने वाले देवताओं !!
इन क्रोधाकार्म को देख लो !!
आओ आओ ऋषि मुनियों तनिक इनके दर्शन करो  देखो देखो
शरीर से सावले है तो ! गोरे मुख पर तो क्रोधके कारण तुरंत लालीमा दिखयी पड़ने लगती है.. देखो देखो देवताओं ऋषि मुनियों इन्होने अपने सत्य को कैसे छोड़ दिया !!

पितामह ने कहा , की हे देवकी नंदन मेरा यही पर तुमसे विरोध था ,की
"आप कयो में शस्त्र बिन भूमि हरहु सब भार !!
हमको श्रृत्रिय ही गिने बोलहु वचन विचार !!

पितामह "हे वासुदेव बिना शस्त्र के भूमि का भार हरने की बात कर रहे हो , तो क्या हम श्रृत्रिय नही है ?
अब आपने शस्त्र उठाया है तो सोच समझ कर जवाब देना !! तो कृष्ण तुरंत अपने स्वरुप में आ गये , हाथ से रथ चक्र निचे फेक दिया और पितामह की और देख मुश्कुरा उठे

"डार चक्र हरी हंस परियो , दियो तरब ब्रज राज !!
तजि प्रतिज्ञा मोरी , मैं तोरी प्रतिज्ञा काज !!

श्री कृष्णा "आज मैं अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दिया , आप की प्रतिज्ञा की रक्षा करने के लिए सत्य बचना चाहिए पितामह !! जब तक शस्त्र नही उठाने से सत्य बच रहा था तो हमने शस्त्र नही उठाया ,और अब नोबत ऐसी आ गयी की शस्त्र उठाने से ही सत्य की रक्षा होगी तो हमने शस्त्र उठा लिया

श्री कृष्ण कहते है की पितामह आप की प्रतिज्ञा थी की या तो  कृष्ण को शस्त्र उठाना पड़ेगा या पांड्वो को मार डालूँगा
मेरी प्रतिज्ञा भले ही टूट जाये पर मेरे भक्त का संकल्प कभी नि सफल नही होने देता...!!

                    { जय जय श्री राधे }

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