Saturday, 3 May 2014

                       || हनुमानजी का बल ||

रावण ओर प्रभु श्री राम के बीच युद्ध हो रहा था उनमे 80 हजार राक्षश ऐसे थे जिन्होने ब्रह्माजी का तप करके ब्रह्माजी से अजर - अमर होने का वरदान प्राप्त किय था ओर रामजी के सिवाय वे किसी से मारे नही जा रहे थे , वे रोज युद्ध करते ओर बहुत बलपूर्वक लड़ते पर किसी से मारे नही मरते।
इसपर भगवान श्री राम चिंता कर रहे थे कि अगर हम इन राक्षसो को मारते है तो ब्रह्माजी का वरदान झूठा होता है ओर न मारे तो ये युद्ध कैसे जीता जाये ? हनुमानजी मुस्कराये ओर बोले प्रभु ! आप चिंता न करे , अगर आप कि आज्ञा हो तो ऎसा कुछ हो जाये जिससे ब्रम्हाजी का वरदान भी झूठा न होगा वे युद्धसे मरेंगे भी नही ओर युद्ध से भी भाग जायेंगे।

प्रभु श्री राम बोले वो कैसे ?
हनुमानजी बोले प्रभु ! आप देखते जाइये।
प्रभु श्रीरामजी के देखते ही देखते हनुमानजी ने अपनी पूछ को खूब लम्बी चौड़ी फैला कर उन सभी राक्षसो को कस कर ऐसा बाँध लिया जैसे कोइ किसान हरि- हरि घास काट कर पूला बना कर कस के बांधते है , ऐसे हि हनुमानजी ने उन सबको गट्ठा बना कर कस कर बाँध कर घुमाकर तीव्रगति से ऎसी जगह फैका जहा वायुमंडल कि सीमा के उपर आलात चक्र के समान बहुत तेज हवा चलती है।

वे राक्षस बेचारे चिलाते जा रहे थे की छोड़ दो , छोड़ दो ! हम युद्ध नही लड़ेंगे पर हनुमानजी ने कहाँ अरे ! भाई नही - नही तुमने अजर - अमर होने का वरदान पाया है न ! अब अजर - अमर हो कर घुमो इस वायु मंडल के उपर।
कहते है कि आज भी वे राक्षस वायु मंडल के उपर घूम रहे है। वे राक्षश सूककर कंकाल हो गये है पर अभी तक मरे नही।

प्रभु श्रीराम , हनुमानजी के बल की सराहना करते हुए कहते है कि हनुमान ! तुम्हारे जैसा बल न तो काल मे है , न ब्रह्मा मे है ओर न इंद्र मे है ..।

हनुमानजी प्रभु श्री रामजी के दास ठहरे उनको किसि बल का अभिमान कैसे हो सकता हैं , वे दीनता से अपने स्वामी के चरणोमे
सिर नवाकर बोले , प्रभु ! ये सब आप कि कृपा से हि होता है..।
जय श्री सीताराम ,

{ जय श्री राधे राधे }

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