Sunday, 11 May 2014

                                हीरे  मोती हार से मुझे न कोइ काम !
                इन मे जब सबते नहिं मेरे स्वामी राम !!


त्रिलोक विजय रावण ने तीनो लोको पर विजय प्राप्त करके ब्रह्माण्ड के जो श्रेष्ठ श्रेष्ठ मणीये थे उनमे से चुन - चुन कर एक रत्नजड़ित मणियों का हार बनाया था जो कह्ते है कि वो ( हार ) लंका मे सबसे मूल्यवान वस्तु थीं।

जब भगवान श्री रामजी का राज्याभिषेक हो रहा था उस समय चारो वेदो ने भगवान कि स्तुति की ओर उपहार के रूप मे उपस्थित हुए , सभी देवी देवताओ ने स्तुति की ओर सबने कुछ न कुछ भेट अर्पित किये ,
विभीषणजी ने भी प्रभु श्रीराम को भेट अर्पित की जो लंका मे सबसे श्रेष्ठ वस्तु थी ,

लंकापति रावण के मर जाने के बाद लंका का राज्य अधिकारी  विभीषणजी ही थे , उन्होने वो रत्नजड़ित मणीयो का हार भगवान श्रीराम जी  को भेट कर दिया
ओर प्रभु श्रीराम , दी हुई भेटो को उन्ही लोगो मे बाट रहे थे।

उस समय उस रत्नजड़ित मणीयो के हार का लोभ सबके मन मे होने लगा कि ये हार तो , राम जी हम को हीं आशीर्वाद के रूप मे भेट करेंगे

जामवंत जी ने सोचा की इस सभा मे सबसे वृद हम हीं है तो शायद  ये अमूल्य हार हमको ही भेट कर दे।

अंगद सोच रहे थे कि मेरे पिता ने मरते समय मेरा हाथ श्रींरामज़ी के हाथ मे दे दिया था कि अब आप मेरे बालक को अपना सेवक बनाये रखियेगा तो शायद हम को ही दे दे ,

विभीषणजी के मन मे भी भारी लोभ हो रहा था वे सोच रहे थे कि प्रभु के मन मे तो कोई लोभ है नही सो हम को ही वापिस प्रसाद के रूप मे भेट कर देंगे ओर कहेंगे कि हमारी प्रसादी हो चुकी अब ये लो।

सबकी नजर प्रभु से हठ कर उस हार पर लग गयी ओर सबके मन मे उथल - फुतल मच गयीं कि ये हार हम को ही मिलेगा।

पर उन सभा मे एक हनुमानजी हीं ऐसे थे जिनकी नजर सिर्फ़ श्री सीताराम के चरणो मे लगी हुई थी।

प्रभु अन्तर्यामी है , सबके मन की जान गये ओर सोचा कि इस रत्नजड़ित हार का लोभ सबके भीतर आ गया  है अगर हम अपने हाथो किसी एक को दे देंगे तो ओर कोई मुँह फुला देंगे कि हमको नही दिया  ,ये सोच कर रामजी ने उसी क्षण सीताजी के हाथ मे वो हार दे दिया।
सीता मईया को ओर तो क़ोई दिखा नही चरणो मे बैठे हनुमानजी दिखे सो उन्ही के गले मे वो हार डाल दिया।

अब सबके मन मे उथल - फुतल मची हुए थीं वो मिट गयी , बोले कोई बात नही रामजी ने माता जी को दिया ओर माता जी ने हनुमानजी के गले मे डाल दिया।

पर जब हनुमानजी के गले मे हार पड़ा तो वे अचानक चौके ओर सोचे कि अरे ! ये क्या ? हनुमानजी प्रभु के सेवा मे बैठे थे उनका ध्यान सिर्फ़ चरणो मे था अचानक गले मे पडी वस्तु को देख वे चौक उठे ,
गले से हार उतार कर मणियों को घुमा घुमा कर देखने लगे ओर एक एक मणिया को अपने वज्रतुल्य दातो तले चबा - चबा कर तोड़ने लगे

हनुमानजी का वो लड़कपन देख कर  प्रभु श्री राम हसने लगे और सीता जी भी हंस रही थी। उस राज सभा मे सब हनुमानजी को आश्चर्य से देख रहे थे ओर हंस रहे थे पर विभीषण जी को अपने मन मे बहुत पीड़ा हो रही थी , वे सोच रहे थे कि ये कपि मुर्ख क्या जाने अनमोल रत्नो को।

 हनुमानजी एक एक करके उन मणीयो को तोडते जा रहे थे ओर घुमा घुमा कर उनको घोर से देखे जा रहे थे
 कि इसमें तो मेरे प्रभु का कही नाम नही है ये मणीये मेरे किसी  काम के नही |

विभीषण जी कुछ देर तो चुप रहे पर जब उन कि दी हुए भेट को छिन - भिन् होते देखा तो वे बोले
हनुमानजी ! क्षमा करना मेरे जैसे छोटे सेवक को जहा रामराजा सरकार बैठे हो वह कुछ बोलना उचित नही है पर अब असह्य हो गया , क्या आप नही जानते ये रत्नजड़ित मणीयो का हार लंका कि सबसे श्रेष्ठ वस्तुं है जो प्रभु श्रीं रामजी ने जानकी माँ को दी। ओर माता ने कृपापुरवक आपके गले मे डाली ओर आप इस अमूल्य रत्नजड़ित हार को आपने वज्रतुल्य दातो के तले काट - काट कर नष्ट किये जा रहे है !

हनुमानजी मुस्कुरा कर बोले विभीषण ज़ी ! आपकी दृष्टि मे ये अमूल्य मणीये हो सकते है पर मेरे लिये तो सब पत्थर एक जैसे हि होते है कुछ मणीये चमकने वाले होते है ओर कुछ कम चमकने वाले।।।

विभीषण ज़ी बोले पर आप इन्हे तोड़ क्यो रहे हैं ? बोले मै देख रहा हूं कि इसमे मेरे प्रभु का नाम है कि नही , इनमे ना मेरे प्रभुका नाम है ओर नाही मेरे प्रभु कि छवि तो ये आपके काम कि चीज हो सकती है पर मेरे किसी काम कि नही...

विभीषण ज़ी को क्रोध आया ओर बोले क्षमा करना हनुमानजी , इन मणियों को तो तोड़ तोड़ कर परीक्षा कर रहे हो कि इसमें राम नाम है कि नही पर आप , ये ( देह ) लिये घूम रहे हो कभी इसमें देखा है कि इसमें राम नाम है कि नही ?

हनुमानजी बोले अरे ! विभीषण ! लगता है तुमने अभी तक मेरे स्वरुप को देखा नही है , मेरे शरीर रूपी चोले मे श्रीराम नाम ओर श्री राम रूप के अतिरिक्त ओर कुछ भी नही है ,

विभीषण ज़ी ने कहा  महाराज ! कथा प्रवचन मे तो बहुत लम्बी चौड़ी बढ़ाई होती है कि आप वक्ताओं मे श्रेष्ट है , प्रभु श्री राम जी के प्रेम प्रिय श्रेष्ट भक्त है पर प्रत्यक्ष करके दिखाओ तो जाने।

हनुमानजी ने कहा अवश्य !

हीरे मोती हार से मुझे न कोइ काम !
इन मे जब सबते नहिं मेरे स्वामी राम !!  
जो तुम चाहो देखना हृदय दिखाऊ चीर !
मेरे ह्रदय मे बसे सिया संग रघुवीर !!
राम भक्त हनुमानजी ने सबके देखते हि देखते
( श्री राम ,जय राम , जय जय राम ), कह कर अपने चरम को एक साथ उधेड़ कर रख दिया जहा हनुमानजी के चरण से लेकर ललाट तक समपूर्ण श्री अंग मे ( श्री राम नाम ) विराजमान था फ़िर अपना सीना चिर कर दिखाया जिसमे श्रीसीताराम ज़ी विराजमान थे

विभीषण ज़ी हनुमानजी का स्वरुप देख कर उनके चरणो मे गिर गये , उनके चरण पकड़ लिये ओर क्षमा करो - क्षमा करो कह कर दण्डोत करने लगे ,
सब सभा के शिष हनुमानजी के चरणो मे गिर गये
सभी सभासद एक साथ हनुमानजी की  जय जय कार करने लगे।
अंजनी पुत्र पवनसुत वीर ,

आप कि जै हो, जय हो , जय हो !!
श्री राम जय राम जय जय राम !!  

   { जय श्री राधे राधे }


No comments :

Post a Comment