Sunday, 17 June 2012

                              सुविचार

1 ऐ धरती के रहने वालो, धरती को स्वर्ग बनाना है॥
   है स्वर्ग कहीं यदि ऊपर तो, उसको इस भू पर लाना है॥
                 { जय जय श्री  राधे }
2 अन्य लोगो के  कष्टपीडि़त और अभावग्रस्त रहते
   स्वयं मौज-मस्ती में रहना मानवीय अपराध हैं
               { जय जय श्री  राधे } 

3 चेहरा देना कुदरत का काम  है ,उसे सुंदर भाव देना आपका ....
आप हर पल मुश्कुराते रहिये, आपकी यही मुश्कान अपनों को खुसी देंगी
           { जय जय श्री  राधे }               
4 लोग प्यार करना सीके। हममें, अपने आप में, अपनी आत्मा और जीवन में परिवार में, समाज में, कर्तव्य में और ईश्वर में दसों दिशाओं में प्रेम बिखेरना और उसकी लौटती हुयी प्रतिध्वनि का भाव भरा अमृत पीकर धन्य हो जाना, यही जीवन की सफलता है। 
             { जय जय श्री  राधे }  
5 पीड़ित से यह मत पूछिये कि तुम्हार दर्द कैसा है। उसकी पीड़ा को स्वय में देखिए और फिर आप वह सब कीजिए जो आप अपनी ओर से कर सकते है। 
             { जय जय श्री  राधे }  
6 सुख और आनन्द ऐसे इत्र हैं... जिन्हें जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे, उतनी ही सुगन्ध आपके भीतर समायेगी। 
       { जय जय श्री  राधे }    
7 बिना गिरे कोई चलना नही सिखता गिरजाना बुरी बात नही है
   गिरे पड़े रहना बुरी बात है और गिरकर सम्बल जाना अच्छी बात है 

         { जय जय श्री  राधे } 
8 अपने लक्ष्य को इतना माहन बनादो की
  व्यर्थ के लिए समय ही नही बचे
      { जय जय श्री  राधे } 
9 मन यदि संसार में रमा है तो लोभ को बढाएगा !
   मन यदि परमात्मा में रमा है तो प्रेम को बढाएगा !
        { जय जय श्री  राधे } 
10 अगर रिस्ता सबसे बड़ा  कोई हो सकता है तो वही रिश्ता बड़ा है
     जो परमात्मा से जोड़ता है।  
       { जय जय श्री  राधे }
 
 




Tuesday, 12 June 2012

      जब भक्तो पे श्याम रंग चड़ता है तो येही कहते है 

तेरी नजरो ने हम्हे मार डाला की रंग कोई चड़ता नही 
काली कम्बली ने ऐसा रंग डाला की रंग कोई चड़ता नही 
रंग भी काला रुपभी काला फिरभी गजब कर डाला ....

ऐसा रंग डाला मेरा सबकुछ रगं गया,और रंग धुल गए 
एक श्याम रंग चड़ गया! ऐसा रंग डाला मेरा सब कुछ रंग गया 
ओ  ! तेरी नजरो ने हमे मार डाला की रंह कोई चड़ता नही ..
जय श्री राधे राधे 









परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है,और तुम सबके हो
जय श्री कृष्ण
                     भक्ति का रंग 
मुझे चड़ गया  राधा रंग- रंग, मुझे चड़ गया श्याम सा रंग.... 
श्री राधा नाम का रंग -रंग ,श्री श्याम नाम का रंग......

ऐसी क्रिपा बरसाई है, मुझे नाम की मस्ती छाई है 
में होगई राधा रानी की ,व्रन्दावन की महा रान्ही की 
अब करोना कोई तंग !!!!!!
मुझे चड़ गया राधा रंग -रंग मुझे चड़ गया श्याम सा रंग ........ 

में छोड़  चुकी दुनिया सारी, अब नही किसी से है यारी 
कोई कहता हैदीवानी हु  ,पागल हु में मस्तानी हु 
में होगई मस्त मलंग !!!!!! ,
मुझे चड़ गया श्याम सा रंग- रंग मुझे चड़ गया श्याम सा रंग .....
जय श्री कृष्ण, जय श्री राधे 
गोपिया कहती है 
       नसा जरुरी है जिन्दगी के लिए
   पर शराब  ही तो नही बेखुदी के लिए
एक बार कन्हैया की नजरों में डूब के तो देखों
बड़ा हसींन समुन्द्र है खुद खुसी करने के लिए
              जय श्री राधे राधे 

गोपी हँसना छोड़ दे रोने से कर प्रीत
बिन रोये किन पाविया वे प्रेम पियारा मीत
हे गोपी बिना रोये वे श्याम शुन्दर किसको मिले है ?? 

            जय श्री राधे राधे  
               जब सखी बोली आओ प्यारे 


एक बार एक सखी का नया नया  विवाह वृंदावन में हुआ,उसने कभी श्याम सुन्दर को देखा नहीं था,उसकी सास तो सब जानती थी कि श्याम सुन्दर संध्या के समय गौओ को चराकर वृंदावन वापस लौटते है,और जिस किसी सखी से श्याम सुन्दर की नजर एक बार मिल गई बस फिर सखी लोक लाज मर्यादा सब भूल जाती है, मन में सोचने लगी कैसे भी करके मेरी बहू की नजर कृष्ण से नहीं मिलनी चाहिये.
झट बहू के पास आई और उससे बोली - देख बहू! शाम के समय घर की अटारी पर रहा कर, और खिडकी मत खोलना, घर के दरवाजे पर खड़ी मत होना, शाम के समय खराब बयार चलती है, इसलिए भूलकर भी दरवाजा मत खोलना, हर दिन सास यही कहती और शाम के समय स्वयं दरवाजे पर खड़ी हो जाती.बहू सोचती ऐसा क्या है जो सास मुझे दरवाजे पर खड़ी नहीं होने देती, अटारी की खिडकी भी नहीं खोलने देती. 
एक दिन सास शाम के समय कही बाहर गई थी,बहू सोचने लगी,आज अच्छा मौका है दरवाजे न सही अटारी की खिडकी से जरुर खोलूँगी,शाम के समय बहू अटारी पर गई और खिडकी खोलकर देखने लगी.सामने से श्याम सुन्दर गईया चरा के आ रहे थे,जब गईया निकल गई पीछे पीछे श्याम सुन्दर बंसी बजाते हुए चले आ रहे है,उनके हाथ में गेंद भी  है और वे उसे ऊपर उछालते हुए आ रहे है,जैसे ही उस सखी के घर के सामने से निकले तभी उसने खिडकी खोली,उस सखी की नजर श्याम सुन्दर पर पड़ी और तभी श्याम सुन्दर ने गेंद ऊपर उछाली,दोनों की नजर मिली श्याम सुन्दर तो आगे निकल गए और गोपी पागल हो गई.

झट अटारी से नीचे आई और सर की ओढनी तो उतार दी और कमर में बांधली, और नाचने लगी,सखी ऐसी नाची है की तन का होश भी नहीं है,मानो आज उसे संसार की सारी संपत्ति मिल गई,
इधर सास ने सोचा -बड़ी देर हो गई शाम का समय भी था जल्दी घर जाना चाहिये,झट भागी और जैसे ही घर में आई,तो देखा बहू तो सिर की ओढनी कमर में कसे हुए है,और नाच रही है.
सास बोली - बहू क्या हो गया है ?
बहू कहा सुनने वाली थी - सास को देखकर बोली -आओ प्यारे !

सास घबरा गई ,भागी भागी अपने बड़े बेटे के पास गई, बोली - बेटा ! घर चल, बहू को खराब बयार लग गई है.
सखी का जेठ आया - उसे देखकर सखी फिर बोली -
आओ प्यारे ! जेठ बोला है !

मुझसे आओ प्यारे बोलती है और कायदा भी नहीं करती.
सास भागी भागी ससुर को बुला लायी - ससुर ने पूंछा -बहू क्या हो गया ?
बहू फिर बोली - आओ प्यारे !

ससुर बोला - इसे सचमुझ खराब बयार लग गई है. सास समझ गई कि ये खराब बयार कैसे लगी, झट नन्दभवन गई और बोली कन्हैया जल्दी चल मेरी बहू को तुम ही ठीक कर सकते हो.
कृष्ण साथ में गए जो उस सखी ने कृष्ण को देखा तो बोली - आओ प्यारे !और थोड़ी देर में ठीक हो गयी जब होश में आई तो देखा सामने सास, ससुर, जेठ, खड़े है. झट कमर से ओढ़नी उतारी और सिर पर डाल ली.

कृष्ण बोले -देख गोपी! आज के बाद शाम के समय दरवाजे या खिडकी बंद की न तो अब की बार खराब बयार की तुम्हारी बारी है , तुम भी ऐसे ही आओ प्यारे ही बोलती रहोगी.
सास बोली - आज के बाद कभी शाम के समय दरवाजा खिडकी बंद नहीं रखूँगी,और इस तरह उस दिन के बाद से किसी गोपी ने शाम के समय अपना दरवाजा और खिडकी बंद नहीं की.

ऐसे है ये चित चुराने वाले चित चोर 
         { जय जय श्री  राधे }

Sunday, 10 June 2012

                             राधा का विरह ....

लखी चित्र चरित्र सुनाह जबसे , न रहा बस में मन मोरा
विष तीरसे धीर सरीर चुबे , अनियारे बड़े ध्रिग धीरग तोरा
दिन रात ना चेन पड़े अबतो , उसके मुख के चन्द्र  की में हु चकोरी
बस देखा ही रूप करू उसका , अति प्यारा लगे हम्हे नंद्का छोरा
                                  जय श्री कृष्ण
                 
                   ये तेरी आँखे है या कोई जादू

जब से इन आखों से
आँखे मिली , हो गयी है तभी से ये बावली आँखे
नहीं धीर धरे अति व्याकुल है , उपजाति ही ये पुलकाबरी आँखे
कुछ जादू भरी कुछ भाव भरी , उस सावरे की है ये सावरी आँखे
फिरसे वह रूप दिखादे कोई , हो रही है बड़ी ही उतावली आँखे

तेरी निगाह ने प्यारे कभी ये सोचा है ,
की तेरी निगाह के मारो का हाल क्या होंग ?
ऐ मेरे पर्दा नसीह अबतो ये हटः पर्दा ,नहीतो
तेरे दर्शन के बिमारो का हाल क्या होंगा
अब इंतज़ार के मरो का हल क्या होंगा
 { जय जय श्री  राधे }

एक बार भगवान अपनी सखाओं और गोपिय के साथ यमुना जी के
पुलिन पर बैठे बाते कर रहे थे,बातों ही बातों में कृष्ण ने कहा देखो
मित्रों और गोपियों हमें साधारण मत समझना हम ही साक्षात् नारायण है.
सखा बोले - अच्छा ! कन्हैया तुम यदि नारायण हो तो
यहाँ क्या करा रहे हो अपने वैकुंठ में क्यों नहीं रहते ?
कृष्ण ने कहा - मित्रों मै वैकुंठ में ही रहता हूँ,अभी एक रूप से इस वृंदावन में हूँ ?
सखा - कन्हैया फिर हम सभी को उस वैकुण्ठ के दर्शन करा सकते हो क्या ?
कृष्ण बोले - बिलकुल करा सकता हूँ ,अच्छा तुम सब अपनी आँखे बंद करो
जब सभी सखाओ और गोपियों ने आँखे बंद की तो और जब थोड़ी देर बाद
आँखे खोली तो देखा कि सभी एक दिव्य जगह में खड़े हैसामने
भगवान विष्णु शेष शैय्या पर विराजमान है.
सभी सखा आश्चर्य करने लगे,सभी आपस में कहने लगे,अरे हम सब
तो सचमुच में वैकुंठ में है,जब इसी प्रकार कहने लगे तो वहाँ उपस्थित और
भी भक्तो ने कहा - आप सब चुप हो जाए यहाँ इस तरह से बात करना मना है,
सभी हाथ बाँधकर चुपचाप खड़े रहो,सभी आँख बंद करके खड़े हो गए.
थोड़ी देर बाद गोपियाँ आपस में कहने लगी बड़ा विचित्र ये वैकुंठ लोक है
यहाँ तो कोई किसी से बात भी नहीं कर सकता,यहाँ के विष्णु तो किसी से
बात भी नहीं करते,हँसते बोलते ही नहीं है,थोड़ी देर रुकने के बाद सभी गोपियाँ
और ग्वाले कृष्ण से बोले -कन्हैया इससे तो अच्छा हमारा वृंदावन है,
तू हमें वही ले चल,कृष्ण बोले अच्छी बात है सब अपने आँखे बंद करो
जब सबने आँखे खोली तो स्वयं को वृंदावन में पाया.
गोपियाँ बोली - देखो कृष्ण फिर कभी हमें अब वैकुंठ मत ले जाना.वहाँ किसी कि
बोलने कि हिम्मत ही नहीं हो रही थी.वहाँ तो बस हाथ बाँधे स्तुति ही करते रहो.
सच है कृष्ण ने गोपियों को जो आनंद वृंदावन में दिया वह भला वैकुण्ठ में कहाँ
मिल सकता है?

Thursday, 7 June 2012


राधा जी से प्रार्थना 


मेरी भव बाधा हरो श्री राधा नागर सोय
जा तनकी झाई पड़े श्याम हरित दुतीय होय
श्री राधे मेरी श्यामीनी में राधे जी की दास
जनम जनम मोहे दीजियो श्री वृंदा वनको वास
लाख बार हरी हरी कहे एक बार हरी दास
अति प्रश्न श्री लाडली सदा विपिनको वास
मेरो मन मणिक गिरवी धर्यो श्री मनमोहन के पास
प्रेम ब्याज इतनो बड़ियों की नाचू तनकी आस
जय जय श्री राधा रमन जय जय नवल किशोर, 
जय कोपी चित चोर प्रभु जय जय माखन चोर,
भक्ति भक्त  भगवंत  गुरु चतुर नाम जपु एक
तिनके पद वंदन   किये तो  नासत विगन अनेक .....
                  { जय जय श्री राधे }
                       निगाहों में यूँ बात होने लगी, 
                      प्यार की ही बरसात होने लगी
                      मेरे होंठो पे बसा श्याम ही श्याम है 
                      कैसे कह दूँ ? उन्ही से हमे काम है
                     अब उन्ही से मुलाकात होने लगी
                     छवि मोहन की नैनो में है बस गयी 
                     आँखों में राधारानी है सज गयी
                      हर पल उनसे ही बात होने लगी
                     हरिदासी है उल्फत तो वोह पास है 
                     प्यार से मिलता मोहन यही राज है 
                     दीखता कण कण में ,अब बात होने लगी.....
                               जय श्री राधे..... 


दुःख में  मत घबराना पंछी  ये जग दुःख का मेला है
चाहे भीड़ पड़ी अम्बर पे उड़ना तुझे अकेला है ..