Sunday, 10 June 2012


एक बार भगवान अपनी सखाओं और गोपिय के साथ यमुना जी के
पुलिन पर बैठे बाते कर रहे थे,बातों ही बातों में कृष्ण ने कहा देखो
मित्रों और गोपियों हमें साधारण मत समझना हम ही साक्षात् नारायण है.
सखा बोले - अच्छा ! कन्हैया तुम यदि नारायण हो तो
यहाँ क्या करा रहे हो अपने वैकुंठ में क्यों नहीं रहते ?
कृष्ण ने कहा - मित्रों मै वैकुंठ में ही रहता हूँ,अभी एक रूप से इस वृंदावन में हूँ ?
सखा - कन्हैया फिर हम सभी को उस वैकुण्ठ के दर्शन करा सकते हो क्या ?
कृष्ण बोले - बिलकुल करा सकता हूँ ,अच्छा तुम सब अपनी आँखे बंद करो
जब सभी सखाओ और गोपियों ने आँखे बंद की तो और जब थोड़ी देर बाद
आँखे खोली तो देखा कि सभी एक दिव्य जगह में खड़े हैसामने
भगवान विष्णु शेष शैय्या पर विराजमान है.
सभी सखा आश्चर्य करने लगे,सभी आपस में कहने लगे,अरे हम सब
तो सचमुच में वैकुंठ में है,जब इसी प्रकार कहने लगे तो वहाँ उपस्थित और
भी भक्तो ने कहा - आप सब चुप हो जाए यहाँ इस तरह से बात करना मना है,
सभी हाथ बाँधकर चुपचाप खड़े रहो,सभी आँख बंद करके खड़े हो गए.
थोड़ी देर बाद गोपियाँ आपस में कहने लगी बड़ा विचित्र ये वैकुंठ लोक है
यहाँ तो कोई किसी से बात भी नहीं कर सकता,यहाँ के विष्णु तो किसी से
बात भी नहीं करते,हँसते बोलते ही नहीं है,थोड़ी देर रुकने के बाद सभी गोपियाँ
और ग्वाले कृष्ण से बोले -कन्हैया इससे तो अच्छा हमारा वृंदावन है,
तू हमें वही ले चल,कृष्ण बोले अच्छी बात है सब अपने आँखे बंद करो
जब सबने आँखे खोली तो स्वयं को वृंदावन में पाया.
गोपियाँ बोली - देखो कृष्ण फिर कभी हमें अब वैकुंठ मत ले जाना.वहाँ किसी कि
बोलने कि हिम्मत ही नहीं हो रही थी.वहाँ तो बस हाथ बाँधे स्तुति ही करते रहो.
सच है कृष्ण ने गोपियों को जो आनंद वृंदावन में दिया वह भला वैकुण्ठ में कहाँ
मिल सकता है?

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