Monday, 29 October 2012

आज के ही दिन  श्री कृष्णा ने गोपिय को रास के लिए आमन्त्रित किया था....

आज के दिन ही चंद्रमा अपने सौंदर्य के चरम पर होता है। मान्यता है कि इस रात्रि को चांदनी के साथ अमृत वर्षा होती है
सायद आप सभी जानते ही होंगे की आज के दिन चंद्रमा ने अमृत क्यों बरसाया ? क्यों की सर्द पूर्णिमा की रात सबसे पवित्र रात है , हजारो साल से परमात्मा के प्रेम की प्यासी उन आत्मा और परमात्मा का मिलन हुवा , भगवान श्री कृष्णा ने गोपिय के साथ रास लीला की थी,वो रास इतना पवित्र था की देवताओ ने अमृत की बरसा की..

इस रास में कई लोग देह को जोड़ लेते है , की भगवान ने रास के माध्यम से भोग किया  ,जो लोग  मानते है की कृष्णा का रास भोग है , तो वो एक बात बताये , की क्या सरीर के बिना भोग हो सकता है ? .. सरीर हाजिर हो मन हाजिर न हो तो भी क्या भोग हो सकता है ? नही हो सकता

अब आप गोपिय के हाल देखिये गोपी क्या कर रही है , काजल लिया आँख में लगा ने के लिए , पर कालज गाल पे लगा रही है , अगर उसको सरीर की चिंता होती तो क्या कालज गालपर लगाति ? चुनडी  ली और उलटी ओढ़ रही है ,उन्हें देह की सुध होती तो क्या चुनडी उलटी ओठ्ती ? , गैया दुह ते  - दुह ते  बासुरी की आवाज सुनाई दी तो  गाय के बछड़े की जग अपने बच्चे को कस के बांध लिया ,उसी समय गोपी की सास  आई और बोली क्या कर रही है  ? बच्चे को मारेगी क्या ?, अगर गोपी का मन ठिकाने होता तो क्या वो अपने बच्चे को बांद ती ? गोपी न तो सरीर में रमण कर रही है , और ना ही गोपी का मन हाजिर है , और उल्टा , फूलटा श्रंगार करके झुण्ड के झुण्ड जा रही है पर किसी को किसी की खबर नही है , हर गोपी यही सोच ति है की में अकेली ही जा रही हु ,
ऐसा क्यों हुआ ? क्यों की ये किसी स्त्री या पुरुष का मिलन नही था वोतो आत्मा व परमतमा का  मिलन था ....

एक दीपक जलता है जो दिशाये  तो बहुत सी होती है ,पर उनका जुडाव ऊपर की तरफ ही होता है , उनका जुडाव सूर्य से ही है....ठीक उसी तरह ,गोपी की आत्मा का जुडाव एक परमात्मा से ही है.......

कई लोग कहते है की कृष्णा की बांसुरी सुनकर गोपियाँ में काम पैदा हुआ,जरा द्रष्टि व सोच को पवित्र कीजिये ...गोपियाँ  कृष्णा के पास  इसलिए नही गयी थी की उनमे काम पैदा हुआ .. अगर काम पैदा होता तो उनके लिए तो वो अपने पति के पास भी जा सकती थी , फिर वो श्याम सुनदर के पास क्यों गयी ? , गोपियाँ के ह्रदय में काम पैदा नही हुआ..बल्कि .गोपियाँ  के ह्रदय में श्री कृष्णा के दर्शन की कामनाये पैदा हुई  ..ये गोपिय कोई साधारण गोपियाँ नही थी ....

ये गोपिय सब भगवान श्री राम जन्म के समय ,जो ऋषि मुनि ऋषियों की पत्निया  जितने भी भगवान श्री राम के प्रेमी थे व सब वृन्दावन में श्री कृष्णा अवतार में , कोई गोपी , कोई ग्वाले कोई मोर व् सभी पसु पक्षी के रूप में जन्म लिया .....
{ जय श्री राधे राधे }


Friday, 26 October 2012

ठाकुर जी बोले सखी मेतो ठहरो सीधो पर एक चेटी तेरे जैसी चंचल थी ......
एक दिन ठाकुर जी ने ग्वालबालो से कहा की आज तो हम प्रभा काकी के यहाँ माखन चोरी करने चलेंगे ,एक ग्वालियाँ ने कहा की लाला फिरतो आज हम एकादशी करेंगे ,ठाकुर जी बोले क्यों ? बोले लाला तुजे पता नही है प्रभा गोपी कैसी है .एक हाथ की कमर पे पड़ जावे तो पाच दिन तक गर्म नमक का सेक करना पड़ता है ,"ठाकुर जी बोले तुजे कैसे पता ? बोले में उसका पति हु, भुगत भोगी हु "ठाकुर जी बोले तू उसका पति है तो हमारी मण्डली में क्या कर रहा है ? बोले मुझे भी खाने को कुछ देती नही  तो मुझे भी  तुम्हारी मण्डली में आना पड़ा  ,
ठाकुर जी कहते मेने तो आज जय करलिया , मेतो प्रबावती गोपिके यहाँ ,जाऊंगा , सो जाऊंगा ,

गोपियाँ मैया से शिकायत बहुत करती थी ,तो मैयाने ठाकुर जी के पग में नुपुर पहना दिए ,और गोपियाँ से कहा की जब मेरा लाला तुम्हारे यहाँ माखन चोरी करने आवे तो घुघरू की छम छम की आवाज आये तब तुम मेरे लाला को पकड लेना ,ठाकुर जी देखा की गोपिके  घर के बाहर  गोबर पड़ा है ,ठाकूर जी उस गोबर में दोनों पैर डाल कर जोर जोर से कुदे तो घुंघुरु में गोबर भर गया ,और आवाज आना बंद हो गयी ,

अब ठाकुर जी धीरे _ धीरे पाव धरते हुवे ,दोनों हाथ मटकी में ड़ाल कर माखन खाने लगे ,तो गोपी पीछे ही खड़ी थी ,और पीछे से आकर ठाकुर जी को पकड़ा ,ऐ धम ,ठाकुर जी बोले रे ये कौन  आ गयी ,पीछे मुड़के देखे तो गोपी! ठाकुर जी बोले ओ गोपी तुम ,गोपी बोलिरे दारी के चोर कहिके चोरी करने आया ,ठाकुर जी बोले मेने चोरी कहा की , नहीं में चोरी करने नही आया ,मेतो मेरे घर आया ,गोपी बोली ये तेरा घर जरा देख ? ..ठाकुर जी ने ऐषी भोली सी सकल बनाई ,और इधर उधर देख के बोले

 अरे सखी क्या करू मुझे तो कुछ खबर ही नही पड़ति ,क्या बताऊँ दिन भर गैया चाराता हु और श्याम को बाबा के साथ हथाई पे जाता हु , इतना थक जाता हु की मुझे तो खबर ही नही पड़ती  ,की   मेरा घर कौनसा , तेरा घर कौनसा .... कोई बात नही गोपी तू भी तो मेरी काकी है ,तेरा घर सो मेरा घर , तेराघर सो मेराघर .गोपी बोली रे कबसे तेराघरसो मेराघर बोले जा रहा है , एक बार भी दारी के ये नही कहें  की मेराघरसो तेराघर ,बड़ा चतुर है ,चोरी करता है ?

बोले सखी मेने चोरी नही की ,गोपी बोली लाला अगर तेने चोरी नही की तो तेरे हाथो पे माखन कैसे लग गयो ,ठाकुर जी बोले सखी वोतो में भीतर आयो तो देखा की मटकी पे चीटिया चिपक रही है ,तो मेने सोचा की मेरी मैया को सूजे ना है !संध्या के समय मैया माखन के संग संग चीटिया न परोस देगी ! बाकि मेने खाया तो नही ,

सखी बोली लाला तेने खाया नही तो तेरे मुख पे कैसे लग गयो ? , बोले सखी मेतो ठहरो सीधो पर एक चेटी तेरे जैसी चंचल थी ,वो मेरे जंघा पे छड़ी , मेने कछुना कियो मेरे पेटपे छड़ी मेने कछुना कियो पर मेरे मुख ते छड़ी तो खुजली होने लगी तक खुजली करते हुए माखन मुह पे लग गयो , बाकि मेने खाया तो नहीं ,गोपी बोली .आज में तोहे छोड़ ने वाली नही हु ,

ठाकुर जी बोले सखी मोहे जाने दे , सखी मोहे छोड़ दे, सखी अब कभी चोरी नही करूँगा ,सखी तेरी कसम ,सखी तेरे बाबा की कसम , सखी  तेरे भैया की कसम , सखी  तेरे फूफा की कसम सखी तेरे भुआ की कसम ,सखी तेरे मामा की कसम ,सखी तेरे खसम की कसम ,अब कभी चोरी नही करूँगा ..गोपी बोली रे सारे मेरे रिश्तेदरो को ही मार रहा है ,एक, दो , तो तेरे भी नाम ले , ठाकुर जी की कोमल वाणी से गोपी को दया  आ गई की छोटो सो लालो है सायद घर भूल गया होगा ..और ठाकुर जी बच निकले ,ऐसे है ये माखन चोर .....

Thursday, 25 October 2012

सभी भक्तो को  विजई दसमी की हार्दिक  शुभकामनाए..

आज विजय दसमी है , जो हम सब जानते है की बुराई  पर अच्छाई की जीत हुई थी ...रावण को हम हर साल झलाते है जो बड़े उत्साह से कहते है ,की रावण का अंत हो गया ,और एक ऐसे इन्सान को जलाने  का अधिकार देते है , जिनके भीतर रावण जैसे अव गुण भरे पड़े है ,अगर ऐसा नही है,तो राम राज्य क्यों नही आ रहा है ! हमारे देस में ,

रावण को तो पता था की में अधर्मी हु , पापी हु तामसी  सरीर है, इस सरीर से भगवान को तो भजा जा सकेगा नही , इसलिए सीता मैया का हरण कर  नारायण से हठ पूर्वक वैर करके अपने आप को व् पुरे परिवार को नारायण के हाथो मुक्ति दिलादी थी , रावण ! रावण होकर भी भगवान से प्रेम करता था , उनकी मयिमा जनता था , सब देवताओ को अपने वशमे करने की शक्ति प्राप्त की थी , देवता उनके आगे पानी भरते थे जिनकी सोने की लंका थी उस रावण ने भी अपनी आत्मा को मुक्ति दिलाने का रास्ता बना लिया था .. और हम रावण न कहला करके भी भगवान की लीला.. व् उनसे प्रेम नही कर पाते  ,ये हमारा दुर्भाग्य है ,ये हमारा घमंड नही है तो क्या है ?

अगर आप को लगता है , की वाकय में रावण जैसे अधर्मी का नास होना चाहिए तो अपने भीर भी श्रीराम जैसे विचार लाइए ,रावण जलाने का अधिकार ही उसे है ,जो खुद में भगवान श्रीराम जैसे गुण हो ...भगवान श्री राम हम्हारे भी सारे अवगुण हर्ले हम्हारे आस पास भी राम राज्य सा ही वातावरण बनाए रखे..... ,जय जय श्री राम


Saturday, 20 October 2012

असुर बोले हे मोहिनी ,ये ले अमृत तू जाने तेरा काम जाने हमको तो बस तू मिल जाये...... 

दुसरिबार समुन्द्र मंथन किया तब समुन्द्र से अमृत निकला , उस अमृत के कलस को देखते ही असुर लोग देवताओ से छीन कर ले गए ,सभी देवताओ ने , भगवन से प्रार्थना की ,की  'हे प्रभु आप हमारी रक्षा करो अमृत तो हमारा चला गया.... महेनत तो हमने भी की पर अमृत तो असुर ले गए ,

तब ठाकुर जी मोहिनी रूप लेकर असुरोके पास गए , जो असुर लोग झगड़ रहे थे , की अमृत में पिवु -में पिवु ,जैसे ही भगवान मोहिनी रूप से वहा पधारे तो , झगड़ना तो भूल गए ,और ऐसे मुह लटका कर के बेठ गये , और कहने लगे, आहा कितनी सुन्दर है ,ये किसी कारण , कोई उपाय से हम्हारे पास ही रह जाये तो कितना अच्छा है ,

असुर उस मोहिनी रूपके आगे _ आगे हाथ जोड़ कर विनती  करने लगे, की  हे देवी तुम कौन हो ,तुम्हारा नाम क्या है ,तुम हमारे पास ही रह जाओ तो ? ,ठाकुजी भी ऐसे इटला ते हुए सुनदर शब्दों में बोले मेरा नाम है मोहिनी ,"असुर बोले अरे तुनेतो हमे मोहित कर दिया ,क्या तू हमारे पास नही रह सकती ?
"ठाकुर जी बोले में रहतो सकती हु पर मेरी एक ही शर्त  है, जहा मेरा कहा चलता है ,में वही रहती हु ,

"असुर बोले हे देवी तुम हमको भी आज्ञा दो ,तुम जो कहो हमभी करने को तैयार है ,तब भगवान ने कहा तुम्हारे पास जो अमृत है उस का तुम अकेले ही उपभोग मत करो ,इस अमृत को ,कुछ देवताओ को भी दो....

वे असुर तो ठाकुर जी  के मोहिनी रूप से एसे मोहित हुवे ,की अमृत का कलस मोहिनी के हाथ में पकड़ा दिया , की ये ले अब ये अमृत तू चाहे देवताओ को दे ,या असुरोको  तू जाने तेरा काम जाने ,हमको तो बस तू मिल जाये  ,

तब भगवान ने उस अमृत के कलस का मुह देवताओ की तरफ कर के अमृत तो देवताओ को पिलाया दिया ,और असुरो की तरफ अपना मोहिनी रूप का मुह कर दिया ,
एक असुर को पता चला की हमारे साथ छल हो रहा है तब भगवान ने अपने चक्र से उनका वद्ध किया......

अमृत भले ही देवताओ को मिला हो पर असल में भाग्य साली तो वे असुर है जिनको भगवान के मोहिनी रूप का दर्शन करने को मिला ,अमृत तो फिर कभी पि सकते थे पर ये मोहिनी अवतार तो कुछ पल के लिए ही था        { जय जय श्री राधे }

Saturday, 13 October 2012

  प्रभु को अपने घर  बुलाने की गाँठ  लगा कर तो देखिये.....
एक व्यक्ति बालाजी के मंदीर  जा कर रोज प्रार्थना करता, की हे बालाजी एक करोड़ रूपये की लोटरी लग जाये ,रोज जाता और रोज प्रार्थना करता, एक दीन बालाजी को बहुत ही गुस्सा आया और प्रकट होकर उस व्यक्ति के गाल पर खीच कर एक चाटा मारा  ,"व्यक्ति झनझनाता हुआ बोला मेने तो एक करोड़ रुपयों की लोटरी  लग जाये कहा था , चाटा तो नही माँगा ,"बालाजी गुस्से में आकर बोले अरे मुर्ख ! कबसे बोल रहा है लाटरी लग जाये -लाटरी लग जाये ,टिकट तो खरीद इतना तो काम तू भी कर सारे काम में ही करूँगा ,तो तू क्या करेंगा ?.......

ठीक उस व्यक्ति की तरह हमारा भी येही हाल है ,की कुछ किये बिना ही सब मिल जाये,श्रम किये बिना ही सब मनोरथ पुरे हो जाये.... सच कहे तो भगवान को हमने परेसान कर के रख दिया है ,मनोरथ माँग- माँग कर , कभी नारियल कभी सवामणि, कभी फीते की गाँठ बांध कर, की हे भगवान हम गाँठ लगा कर जाते है हमारी मनोकामनाए पूर्ण हो जाये...

सबको सिर्फ अपनी पड़ी है , भगवान से तो किसी को कोई मतलब ही नही है ,सब भगवान से चाहते है , पर भगवान को कोई नहीं चाहता !
क्या कभी किसी ने भगवान को घर बुलाने की गाँठ  लगायी है ? की हे प्रभु हम आप के दरबार में गाँठ लगा कर जा रहे  है आप को शपत देते है, की आप को हमारे घर आना ही  होगा, हमारा चित्त आप के चरणों में लगाना ही होगा ,हम्हे आप से प्रेम हो जाये ऐसा जादू चलाना ही होगा.....  ,

सच में हम सब आज  दुरियोधन जेसे बन गए है ,कभी अर्जुन जेसे बनकर देखिये , प्रभु को अपने घर  बुलाने की गाँठ  लगा कर तो देखिये  ,इश्वर  को ! हर कदम आप अपने साथ पाएंगे....,भगवान कहते है की दुःख और सुख तो जीवन में धुप छाव की तरह  है ,पर जो निरंतर मुझे भजता है जो मेरा ही स्मरण करता है ,उसे कभी दुःख , दुखी नहीं करता ,क्यों की दुःख में ,में मेरे भक्त को अपनी गोदी में बैठा लेता हु .......

पांडवो जैसा तो दुःख सायद किसी में नही पड़ा होगा .पर भगवान श्री कृष्ण के साथ रहने के कारण उने दुःख कभी दुखी नहीं कर पाया ,और ना ही  कभी पीड़ा महसूस की ....बल्कि सब कुछ होते हुए भी दुखी तो कौरव रहे थे, ये हम सब जानते है
भगवान हमारे  कर्म को सुध करते है कर्म तो हम्हे ही करना  पड़ेगा  , बिना पसीने किये कही एषो आराम नहीं मिलते ....

 { जय जय श्री राधे }
धर्म कहता है...माँ प्रथ्वी हो न हो तुम्हे भगवान श्री कृष्ण की याद आ रही है......
भगवान श्री कृष्ण अपने धाम चले गए.....कलयुग  की छाया पड़ते ही प्रथ्वी माँ श्रीहीन होने लगी..प्रथ्वी व धर्म एक दूजे की कुशलता पूछ ते है..

धर्म प्रथ्वी से  पूछता है , कहो कल्याणी कुशल से तो हो न ? तुम्हारा मुख कुछ - कुछ मलिन हो रहा है तुम श्रीहीन हो रही हो , मालुम होता है तुम्हारे ह्दयमे कुछ न कुछ दुःख अवश्य है ! क्या तुम्हारा कोई सम्बन्धी दूर देस में चलागया है ? जिस के लिए तुम इतनी चिंता कर रही हो ?

कही तुम मेरी चिंता तो नहीं कर रहि हो ,की अब इस के तिन पैर टूट गये है ,एक पैर रह गया है ,सम्भव  है की तुम अपने लिए शोक कर रही हो की ,अब शुद्र तुम पर सासन करेंगे ..देवी क्या तुम राक्षस  सरीखे मनुष्य के द्वारा सताई हुई आरक्षिस स्त्रीयो एव आर्त बल्कोके लिए शोक कर रही हो ? सम्भव है , विद्या अब कुकर्मी ब्राह्मिणो के चंगुल में पड़ गयी है ,और ब्राह्मिन विप्रद्रोही राजाओ की सेवा करने लगे है ,और इसी का तुम्हे दुःख हो रहा है ,आज के राजा  नाममात्र  के है.........

माँ प्रथ्वी अब समझ में आया की हो न हो तुम्हे भगवान श्री कृष्ण की याद आ रही होंगी ,क्यों की उन्होंने तुम्हारा भार  उतरने के लिए ही जन्म लिया था ,और ऐसी लीलाये की थी जो मोक्ष का भी अवलम्बन है ,अब उनकी लीला संवरण करलेने पर उनके परी त्याग से तुम दुखी हो रही हो ,
देवी तुमतो धन रत्नों की खान हो.......

माँ प्रथ्वी ने कहा धर्म मुझसे जो कुछ पूछ रहे हो वह सब तुम स्वय जानते हो इन भगवान के सहारे तुम सारे संसार को सुख पहुचाने वाले अपने चाहो चरणों से युक्त थे जिस में तप,  सत्य ,पवित्रता ,सरलता ,दया समां ,त्याग, संतोस ,इत्यादि 24 और भी बहुत से महान गुण उनकी सेवा करने के लिए नित्य निरंतर निवास करते है, एक शरण के लिए भी उनसे अलग नही होते श्री कृष्ण ने इस लोगसे  माय अपनी लीला संवरण करली.....

और ये संसार पापमय कलयुग की कु द्रष्टि का सिकार हो गया ,यही देख कर मुझे बड़ा शोक हो रहा है , परन्तु मेरे सोभाग्य का अब अंत हो गया भगवान ने मुझे छोड़ दिया, मालूम  होता है की मुझे अपने सोभाग्य पर गर्व हो गया ,इस लिए उन्होंने मुझे ये दंड दिया है ......

धरती माँ  प्रत्येक प्राणी का पालन पोसन करती है, पर हम उस माँ के साथ बहुत अन्याय करते है .. इस धरती पर रहने वाला मनुष्य किसी भी प्रकार का पाप करता है तो माँ को बहुत कस्ट होता है, क्या हम इतने ऐसान फरामोश है................. ??
 { जय जय श्री राधे }

Thursday, 11 October 2012

विष को वहि स्वीकार कर सकता है ,जिन के घट में भगवान श्री राम है उसीको विश्राम  है....

जब देवताओं ने अमृत निकाल ने के लिए  समुन्द्र मंथन किया, तब  समुन्द्र मेसे हलाहल विष निकला , अब उस विष को देख सभी देवता घबराये ,इधर, उधर ,देखने लगे की अब ये विष कौन पिए, अब इसको समुद्र में भी डाला नही जा सकता..

"तब ब्रह्माजी को कहा की आप पि लिजिये,ब्रह्माजी  ने कहा क्यों में क्यों पिऊ ?,बोले आप बूड़े है इस लिए.... जाते- जाते विपतियों को मिटाके ही जाइये ,"ब्रह्माजी बोले  बूड़ा हु तो क्या हुआ में अभी जाना नही चाहता ,इंद्र से कहा तो उसने भी मना कर दिया, जब कोई देव विष लेने को तैयार नही हुए तब महां देव के पास गए ,

वहा जा कर महा देव से विनती करी की , हे भोलेनाथ त्रिपुरारी आसू तोस कृपा निधान चन्द्र सेकर त्रिसुल पाणी ,आप कृपा करो इस विस का समां थान आप ही करो ,शिव जी बोले मेने तो ये विष समुन्द्र में डाल दिया था तुमने इस विष को  बाहर क्यों निकाला ?

देवता बोले महाराज निकालना तो अमृत चाहते थे पर निकल गया विष  , शिव बोले अब ? , बोले अमृत तो पुनः मंथन करने पर  निकलेगा .... शिव बोले फिर अमृत का क्या करोगे ? देवता बोले वो तो हम सब थोडा- थोडा ले लेंगे ....शिव जी बोले ये भी थोडा - थोडा ले लिजिये ...देवता बोले भोलेनाथ  वो थोड़ा - थोड़ा चल सकता है पर ये नही.... इसका तो आप ही कुछ निवारण कीजिये, हे महादेव इसे तो  आप ही  ग्रहण कर सकते है... ,

और भोलेनाथ ने विष को स्वीकार कर लिया ,
विष को वहि स्वीकार कर सकता ,जिन के घट में भगवान श्री राम है उसीको विश्राम  है ,
शिव के घटमे  भगवान श्री राम जी थे इस लिए शिव जी को विश्राम मिला
जय हो नील कंठ महादेव की.. जय भोले नाथ


Friday, 5 October 2012

       श्री कृष्ण बोले गोपी ये तो पेड़ पर फल लगे है...

गोपियाँ नहाकर तट पर आई तो तट पर  वस्त्र ना मिलने पर इधर उधर देखने लगी की हमारे वस्त्र कौन ले  गया , देखा तो ठाकुर जी का पीताम्बर पेड़ पर लटक रहा था ,
ठाकुर जी ने अपना भी वस्त्र हरण कर लिया और अपना  पीताम्बर भी उस पेड़ पर लटका दिया जिस पेड़ पर गोपियाँ के वस्त्र लटकाये हुवे थे, गोपियाँ ने पहचान करी की कन्हैया भी यही कही होगा ,और उतने में बांसुरी सुनी तो समझ में आ गया.... एक गोपी को क्रोध आया की देखो सुबह सुबह आ गया इतनी जल्दी उठ कर आ गया ,गैया  चराने में तो इनको जोर आता है ,

गोपी बोली आरी ओओओओ दारी  के चोर कहिके, लाये  हमारे वस्त्र हमको देदे ,"ठाकुर जी बोले रे एक गाली दो गाली - गाली  पे गाली  वस्त्र चाहिए और धमकी  दे रही  है....ठाकुरजी  बोले  में नहीं देने वाला ,"गोपी बोली कन्हैया हमारे वस्त्र दे......ठाकुरजी  बोले जो ना दिए तो ??... गोपियाँ बोली  तेने अगर हम्हारे वस्त्र ना दिए तो हम तुम्हारी सिकायत कंस से करेंगे..कंस के सिपाही तो को पकड़ ले जायेंगे ,

ठाकुर जी बोले जाओ सिकायत करके आओ.....,पर जावे केसे ,जलमे खड़ी  है ,जा नही सकती ..."एक गोपी बोली की ऐसे धमकी देने से ये कृष्ण वस्त्र देने वाला नही है ...अब गोपियाँ विनती कर रही है ... अरे कन्हैया, ओ श्याम सुनदर ,ओ यशोदा के ,भोले से, प्यारे से ,लाला ,कन्हियो कितनो प्यारो ,है ,  हमरे वस्त्र देइदो लाला,  ,

ठाकुर जी बोलो हाहा  अब कन्हैया श्याम सुंदर कितनो अच्छो.. नही तो चोर दारी के ऐसी -ऐसी  गाली  देती हो....गोपी बोली अरे कृष्ण हम भोली  भारी घिवारन क्या जाने किसको क्या बोले ,क्या कहना चाहिए ,

अब ठाकुर जी बोले गोपियाँ मेने तो तुम्हारे वस्त्र चुराए नही .....गोपियाँ  बोली अच्छा कृष्ण तो ये पेड़ पर कहा से लटक रहे है ?? बोले ये पेड़ पर मेने थोड़ी न लटकाए ,ये तो पेड़ पर फल लगे है.. गोपी बोली अच्छा पेड़ पे फल लगे है ? तो ये फल ही हमे तोड़ के देदो ...
कन्हैया बोले फल अभी कच्चे है तोड़ू नही ..

गोपिय बोली रे ये कृष्ण तो बड़ा उत्पाती  है ...मानेगा नहीं ,तब गोपिय प्रार्थना करने लगी की ,हे कृष्ण हमसे कोई भूल हुई हो तो हमको बतादो, लाला ..कृष्ण बोले गोपीजन  तुम क्या कर रही हो जल में बिना वस्त्र स्नान कर रही हो पाना तो मुझे चाहती हो और आश्रय लेती हो जलके देव वरुण का , गोपिय बोली कृष्ण हमसे भूल  हो गई अब इस भूल  के साथ ही आप को स्वीकार करना पड़ेगा हमारे में भूल है या फूल है, तो भी आप को हमे स्वीकार करना पड़ेगा हम तो तोरे बिना मोल की दासी है श्याम सुन्दर ...
                     {जय जय श्री राधे} .

Thursday, 4 October 2012

मैया बोली अरि सखी जरा घुंघट हठा के पीछे देख, माजा लाला है या तुमचा घरवाला है...

एक दिन गोपी ने कहा की आज तो कन्हैया को रंगे हाँथो पकड़ कर यशोदा के पास ले कर  ही जावूँगी ,कन्हैया जेसे ही माखन  चुरा कर खाने लगे गोपी ने झट हाँथ  पकड़ लिया ,अब कन्हैया को यसोदा के पास ले जा रही है, और पीछे पीछे ग्वाल बाल चल रहे है, उस ग्वाल बालो के साथ गोपी का पति भी था,
गोपी कुछ दुर गयी और देखा की कुछ बुजुर्ग खड़े है, तो गोपी ने घुंघट निकाल दिया ,अब कृष्ण ने सोचा की गोपिसे हाँथ छुड़ाने का ये मोका अच्छा है वर्ना आजतो मैया से मार पड़ेगी....

कृष्ण गोपी को बोले "प्रभा काकी मेरे इस हाँथ मे दर्द होने लगा है दूसरा हाँथ पकड़ लो ,गोपी को दया आ गयी की छोटो सो लाला है हाथ दर्द कर रहा होगा   ,
"गोपी बोली ठीक है दूसरा हाँथ पकड़ा लो ,कृष्ण ने पीछे चल रहे गोपी के पति को हाँथ से गोल गोल इशारा किया की आजा लड्डू दूंगा ,गोपी ने जेसे ही कृष्ण का दूसरा हाँथ पकड़ा तो कृष्ण ने उनके हाँथ में पतिका हाँथ पकड़ा दिया ,और खुद भाग निकले

अब गोपी नन्द बाबा के घर के बाहर से ही जोर जोर से चिलाने लगी ,की अरी ओओओओ यसोदा मैया देख आज तेरे लाला को रंगे हाँथो पकड़ कर लायी हु , रोज रोज कहती है मेरा छोरा बड़ा सीधा है आज तोरे लाला को माखन चोरी करते हुए मेने रंगे हाँथो पकड़ है !

और मैया समझ गयी की ये सब घुंघट का काम है "मैया बोली अरि सखी जरा घुंघट हटा कर पीछे तो देख माजा लाला है या तुमचा घरवाला ,गोपी घुंघट हटा के पीछे देखती है तो पति का हाँथ गोपी के हाँथ में "गोपी बोली तूम यहाँ केसे आ गये, अब वो भाई तो सब भूल गया ,और कहा की कन्हैया ने कहा की लड्डू दूंगा.... गोपी बोली कन्हैया ने कहा लड्डू दूंगा और तुम आ गये ,मेरे पीछे पीछे  आने की क्या जरूरत थी ,कन्हैया  कहा है ? पति बोला कन्हैया तो कब का भाग चूका गोपी बोली ,कन्हैया को भगा दिया और तुम आ गये घर चलो तुम्हे में लड्डू देती हु ,अब गोपी का पति तो घबराने लगा ..

उतने में कन्हैया आख मलते मलते अन्दर से आये, और बोले कोंन है मैया ,कोंन गोपी चिला रही है ..ओहोहोहोहो   प्रभा काकी आप ,गोपी बोली प्रभा काकी के इथर आ तू रुक अब ,कन्हैया आगे आगे और गोपी पीछे पीछे ,कन्हैया ठेंगा दिखाते  हुए बोले ले पकड़ पकड़ पकड़ पकड़,

कन्हैया बोले गोपी अबकी पकड़वे  की कोसिस की सो पति का हाँथ पकड़ा दिओ, आगे से पकड़वे की कोसिस की तो ससुर का हाँथ पकड़वा दुगा... मेरा नाम भी कन्हेया है, ,कन्हेयायाया
ऐसे है हमारे ठाकुर जी माखन  चोर ,ये माखन चोरी नही ये तो मनकी चोरि है ,श्री कृष्ण तो गोपियाँ के मन चुराते है...जय जय श्री राधे