मैया बोली अरि सखी जरा घुंघट हठा के पीछे देख, माजा लाला है या तुमचा घरवाला है...
एक दिन गोपी ने कहा की आज तो कन्हैया को रंगे हाँथो पकड़ कर यशोदा के पास ले कर ही जावूँगी ,कन्हैया जेसे ही माखन चुरा कर खाने लगे गोपी ने झट हाँथ पकड़ लिया ,अब कन्हैया को यसोदा के पास ले जा रही है, और पीछे पीछे ग्वाल बाल चल रहे है, उस ग्वाल बालो के साथ गोपी का पति भी था,
गोपी कुछ दुर गयी और देखा की कुछ बुजुर्ग खड़े है, तो गोपी ने घुंघट निकाल दिया ,अब कृष्ण ने सोचा की गोपिसे हाँथ छुड़ाने का ये मोका अच्छा है वर्ना आजतो मैया से मार पड़ेगी....
कृष्ण गोपी को बोले "प्रभा काकी मेरे इस हाँथ मे दर्द होने लगा है दूसरा हाँथ पकड़ लो ,गोपी को दया आ गयी की छोटो सो लाला है हाथ दर्द कर रहा होगा ,
"गोपी बोली ठीक है दूसरा हाँथ पकड़ा लो ,कृष्ण ने पीछे चल रहे गोपी के पति को हाँथ से गोल गोल इशारा किया की आजा लड्डू दूंगा ,गोपी ने जेसे ही कृष्ण का दूसरा हाँथ पकड़ा तो कृष्ण ने उनके हाँथ में पतिका हाँथ पकड़ा दिया ,और खुद भाग निकले
अब गोपी नन्द बाबा के घर के बाहर से ही जोर जोर से चिलाने लगी ,की अरी ओओओओ यसोदा मैया देख आज तेरे लाला को रंगे हाँथो पकड़ कर लायी हु , रोज रोज कहती है मेरा छोरा बड़ा सीधा है आज तोरे लाला को माखन चोरी करते हुए मेने रंगे हाँथो पकड़ है !
और मैया समझ गयी की ये सब घुंघट का काम है "मैया बोली अरि सखी जरा घुंघट हटा कर पीछे तो देख माजा लाला है या तुमचा घरवाला ,गोपी घुंघट हटा के पीछे देखती है तो पति का हाँथ गोपी के हाँथ में "गोपी बोली तूम यहाँ केसे आ गये, अब वो भाई तो सब भूल गया ,और कहा की कन्हैया ने कहा की लड्डू दूंगा.... गोपी बोली कन्हैया ने कहा लड्डू दूंगा और तुम आ गये ,मेरे पीछे पीछे आने की क्या जरूरत थी ,कन्हैया कहा है ? पति बोला कन्हैया तो कब का भाग चूका गोपी बोली ,कन्हैया को भगा दिया और तुम आ गये घर चलो तुम्हे में लड्डू देती हु ,अब गोपी का पति तो घबराने लगा ..
उतने में कन्हैया आख मलते मलते अन्दर से आये, और बोले कोंन है मैया ,कोंन गोपी चिला रही है ..ओहोहोहोहो प्रभा काकी आप ,गोपी बोली प्रभा काकी के इथर आ तू रुक अब ,कन्हैया आगे आगे और गोपी पीछे पीछे ,कन्हैया ठेंगा दिखाते हुए बोले ले पकड़ पकड़ पकड़ पकड़,
कन्हैया बोले गोपी अबकी पकड़वे की कोसिस की सो पति का हाँथ पकड़ा दिओ, आगे से पकड़वे की कोसिस की तो ससुर का हाँथ पकड़वा दुगा... मेरा नाम भी कन्हेया है, ,कन्हेयायाया
ऐसे है हमारे ठाकुर जी माखन चोर ,ये माखन चोरी नही ये तो मनकी चोरि है ,श्री कृष्ण तो गोपियाँ के मन चुराते है...जय जय श्री राधे
एक दिन गोपी ने कहा की आज तो कन्हैया को रंगे हाँथो पकड़ कर यशोदा के पास ले कर ही जावूँगी ,कन्हैया जेसे ही माखन चुरा कर खाने लगे गोपी ने झट हाँथ पकड़ लिया ,अब कन्हैया को यसोदा के पास ले जा रही है, और पीछे पीछे ग्वाल बाल चल रहे है, उस ग्वाल बालो के साथ गोपी का पति भी था,
गोपी कुछ दुर गयी और देखा की कुछ बुजुर्ग खड़े है, तो गोपी ने घुंघट निकाल दिया ,अब कृष्ण ने सोचा की गोपिसे हाँथ छुड़ाने का ये मोका अच्छा है वर्ना आजतो मैया से मार पड़ेगी....
कृष्ण गोपी को बोले "प्रभा काकी मेरे इस हाँथ मे दर्द होने लगा है दूसरा हाँथ पकड़ लो ,गोपी को दया आ गयी की छोटो सो लाला है हाथ दर्द कर रहा होगा ,
"गोपी बोली ठीक है दूसरा हाँथ पकड़ा लो ,कृष्ण ने पीछे चल रहे गोपी के पति को हाँथ से गोल गोल इशारा किया की आजा लड्डू दूंगा ,गोपी ने जेसे ही कृष्ण का दूसरा हाँथ पकड़ा तो कृष्ण ने उनके हाँथ में पतिका हाँथ पकड़ा दिया ,और खुद भाग निकले
अब गोपी नन्द बाबा के घर के बाहर से ही जोर जोर से चिलाने लगी ,की अरी ओओओओ यसोदा मैया देख आज तेरे लाला को रंगे हाँथो पकड़ कर लायी हु , रोज रोज कहती है मेरा छोरा बड़ा सीधा है आज तोरे लाला को माखन चोरी करते हुए मेने रंगे हाँथो पकड़ है !
और मैया समझ गयी की ये सब घुंघट का काम है "मैया बोली अरि सखी जरा घुंघट हटा कर पीछे तो देख माजा लाला है या तुमचा घरवाला ,गोपी घुंघट हटा के पीछे देखती है तो पति का हाँथ गोपी के हाँथ में "गोपी बोली तूम यहाँ केसे आ गये, अब वो भाई तो सब भूल गया ,और कहा की कन्हैया ने कहा की लड्डू दूंगा.... गोपी बोली कन्हैया ने कहा लड्डू दूंगा और तुम आ गये ,मेरे पीछे पीछे आने की क्या जरूरत थी ,कन्हैया कहा है ? पति बोला कन्हैया तो कब का भाग चूका गोपी बोली ,कन्हैया को भगा दिया और तुम आ गये घर चलो तुम्हे में लड्डू देती हु ,अब गोपी का पति तो घबराने लगा ..
उतने में कन्हैया आख मलते मलते अन्दर से आये, और बोले कोंन है मैया ,कोंन गोपी चिला रही है ..ओहोहोहोहो प्रभा काकी आप ,गोपी बोली प्रभा काकी के इथर आ तू रुक अब ,कन्हैया आगे आगे और गोपी पीछे पीछे ,कन्हैया ठेंगा दिखाते हुए बोले ले पकड़ पकड़ पकड़ पकड़,
कन्हैया बोले गोपी अबकी पकड़वे की कोसिस की सो पति का हाँथ पकड़ा दिओ, आगे से पकड़वे की कोसिस की तो ससुर का हाँथ पकड़वा दुगा... मेरा नाम भी कन्हेया है, ,कन्हेयायाया
ऐसे है हमारे ठाकुर जी माखन चोर ,ये माखन चोरी नही ये तो मनकी चोरि है ,श्री कृष्ण तो गोपियाँ के मन चुराते है...जय जय श्री राधे
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