असुर बोले हे मोहिनी ,ये ले अमृत तू जाने तेरा काम जाने हमको तो बस तू मिल जाये......
दुसरिबार
समुन्द्र मंथन किया तब समुन्द्र से अमृत निकला , उस अमृत के कलस को देखते
ही असुर लोग देवताओ से छीन कर ले गए ,सभी देवताओ ने , भगवन से प्रार्थना की
,की 'हे प्रभु आप हमारी रक्षा करो अमृत तो हमारा चला गया.... महेनत तो
हमने भी की पर अमृत तो असुर ले गए ,
तब ठाकुर जी मोहिनी रूप लेकर
असुरोके पास गए , जो असुर लोग झगड़ रहे थे , की अमृत में पिवु -में पिवु
,जैसे ही भगवान मोहिनी रूप से वहा पधारे तो , झगड़ना तो भूल गए ,और ऐसे मुह
लटका कर के बेठ गये , और कहने लगे, आहा कितनी सुन्दर है ,ये किसी कारण ,
कोई उपाय से हम्हारे पास ही रह जाये तो कितना अच्छा है ,
असुर उस
मोहिनी रूपके आगे _ आगे हाथ जोड़ कर विनती करने लगे, की हे देवी तुम कौन
हो ,तुम्हारा नाम क्या है ,तुम हमारे पास ही रह जाओ तो ? ,ठाकुजी भी ऐसे
इटला ते हुए सुनदर शब्दों में बोले मेरा नाम है मोहिनी ,"असुर बोले अरे
तुनेतो हमे मोहित कर दिया ,क्या तू हमारे पास नही रह सकती ?
"ठाकुर जी बोले में रहतो सकती हु पर मेरी एक ही शर्त है, जहा मेरा कहा चलता है ,में वही रहती हु ,
"असुर
बोले हे देवी तुम हमको भी आज्ञा दो ,तुम जो कहो हमभी करने को तैयार है ,तब
भगवान ने कहा तुम्हारे पास जो अमृत है उस का तुम अकेले ही उपभोग मत करो
,इस अमृत को ,कुछ देवताओ को भी दो....
वे असुर तो ठाकुर जी के
मोहिनी रूप से एसे मोहित हुवे ,की अमृत का कलस मोहिनी के हाथ में पकड़ा दिया
, की ये ले अब ये अमृत तू चाहे देवताओ को दे ,या असुरोको तू जाने तेरा
काम जाने ,हमको तो बस तू मिल जाये ,
तब भगवान ने उस अमृत के कलस का
मुह देवताओ की तरफ कर के अमृत तो देवताओ को पिलाया दिया ,और असुरो की तरफ
अपना मोहिनी रूप का मुह कर दिया ,
एक असुर को पता चला की हमारे साथ छल हो रहा है तब भगवान ने अपने चक्र से उनका वद्ध किया......
अमृत
भले ही देवताओ को मिला हो पर असल में भाग्य साली तो वे असुर है जिनको
भगवान के मोहिनी रूप का दर्शन करने को मिला ,अमृत तो फिर कभी पि सकते थे पर
ये मोहिनी अवतार तो कुछ पल के लिए ही था { जय जय श्री राधे }
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