विष को वहि स्वीकार कर सकता है ,जिन के घट में भगवान श्री राम है उसीको विश्राम है....
जब देवताओं ने अमृत निकाल ने के लिए समुन्द्र मंथन किया, तब समुन्द्र मेसे हलाहल विष निकला , अब उस विष को देख सभी देवता घबराये ,इधर, उधर ,देखने लगे की अब ये विष कौन पिए, अब इसको समुद्र में भी डाला नही जा सकता..
"तब ब्रह्माजी को कहा की आप पि लिजिये,ब्रह्माजी ने कहा क्यों में क्यों पिऊ ?,बोले आप बूड़े है इस लिए.... जाते- जाते विपतियों को मिटाके ही जाइये ,"ब्रह्माजी बोले बूड़ा हु तो क्या हुआ में अभी जाना नही चाहता ,इंद्र से कहा तो उसने भी मना कर दिया, जब कोई देव विष लेने को तैयार नही हुए तब महां देव के पास गए ,
वहा जा कर महा देव से विनती करी की , हे भोलेनाथ त्रिपुरारी आसू तोस कृपा निधान चन्द्र सेकर त्रिसुल पाणी ,आप कृपा करो इस विस का समां थान आप ही करो ,शिव जी बोले मेने तो ये विष समुन्द्र में डाल दिया था तुमने इस विष को बाहर क्यों निकाला ?
देवता बोले महाराज निकालना तो अमृत चाहते थे पर निकल गया विष , शिव बोले अब ? , बोले अमृत तो पुनः मंथन करने पर निकलेगा .... शिव बोले फिर अमृत का क्या करोगे ? देवता बोले वो तो हम सब थोडा- थोडा ले लेंगे ....शिव जी बोले ये भी थोडा - थोडा ले लिजिये ...देवता बोले भोलेनाथ वो थोड़ा - थोड़ा चल सकता है पर ये नही.... इसका तो आप ही कुछ निवारण कीजिये, हे महादेव इसे तो आप ही ग्रहण कर सकते है... ,
और भोलेनाथ ने विष को स्वीकार कर लिया ,
विष को वहि स्वीकार कर सकता ,जिन के घट में भगवान श्री राम है उसीको विश्राम है ,
शिव के घटमे भगवान श्री राम जी थे इस लिए शिव जी को विश्राम मिला
जय हो नील कंठ महादेव की.. जय भोले नाथ
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