Tuesday, 19 November 2013


इस धरती पर जब जब कंस जैसी  सन्तान पैदा होती है तो उनमे कही न कही उन माताओं का भी दोस होता है  ऐसा ही हुआ था जब कंस का अपनी माँ के गर्भ में प्रवेश हुआ था। 

वैसे तो राजा उग्रसेन की पत्नी सती सावत्री पतिव्रता थी पर एक दिन उनसे भी बड़ी भारी भूल हो गयी और कंश जैसी संतान को जन्म दे बैठी
 
एक दिन की बात है जब वे सुन्दर वस्त्र आभूषण पहन , सुन्दर श्रृंगार कर सज - धज कर अपनी सखियों के साथ एक वन में चली गयी , उस वन में एक राक्षस प्रवति का देत्या भी घूम रहा था उसकी द्रष्टि राजा उग्रसेन की पत्नी पर पड़ी , वो उस रानी के सुन्दर हाव भाव से बहुत आक्रसित हो रहा था वो देत्य न चाहते हुए भी उस रानी पर मोहित हो गया और उसके मन में छल कपट प्रवेश कर गया।
 

उस राक्षस ने अपने वेष को छोड़ कर राजाउग्रसेन का वेष धारण कर उस रानी के समीप जाने लगा , रानी के साथ सखियोने सोचा की राजाजी पधारे है हमे रानी और राजाजी को अकेले छोड़ देना चाहिए वे सखिया वहा से चली गयी। 
उस राक्षस ने सोचा की अच्छा मोका है उस कपटी ने राजा उग्रसेन का वैस धारण  किये हुए रानी के कन्दे पर हाथ धर कर धीरे धीरे उस रानी को एकांत में ले गया , कुछ क्षण बीत जाने पर , रानी उस राक्षस के हाव भाव से समज गयी की ये मेरे पति नही हो सकते ये कपटी कोई और ही है
 

रानी आक्रोश से भर कर तिलमिला ती हुई वाणी से बोली "अरे दुष्ट निर-लज कौन है तू जो छल से मेरे पति का वेष धारण कर मेरी पति व्रता का धर्म भ्रष्ट करने आया है ? अरे ओ _ निर-लज तू सीघ्र अपने वेष में आजा अन्यथा में तुझे श्राप देती हूँ , 

राक्षस झट अपने वेष में आ कर बोला की खबरदार जो मुझे श्राप दिया तो , दोस सिर्फ मेरा ही नही तुमारा भी है ऐसा सुन्दर श्रृंगार कर वन में विचरती हो ? क्या तुम नही जानती की राजघरानेकी स्त्रिया इस तरह बहार नही निकला करती ! और सुन ' तुमारे गर्भ में मेरी संतान ने प्रवेश कर लिया है उसके रस्य मैं तुमे बताता हूँ तुम उस गर्भ को नष्ट करने की कोसिस भी मत करना , वो बड़ा ही बलवान होगा पर इस से प्रजा को कष्ट भी बहुत होगा और तुम घबराना मत , हमारे इस पुत्र का वध करने के लिए स्वयं नारायण अवतरित होंगे हमारे इस पुत्र की मुक्ति स्वयं नारायण के हाथो होगी !
रानी ने सुना की इस बालक का वध करने के लिए स्वयं नारायण अवतरित होंगे वे इस बात से प्रसन्न भी हुई पर अपने पति व्रता धर्मो को खंडित होने का दुःख भी सताने लगा वे शर्म के मारे सर निचा किये अपने महल में चली गयी !!,,,,,,,,,,, { जय जय श्री राधे }

 

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