भगवान के वाहन गरुड़ जी को एक दिन अपने वेग का घमंड हो रहा था की मुझ जैसा वेग से चलने वाला और प्रभु की आज्ञा का पालन करने वाला कोई नही भगवान अंतर्यामी है गरुड़ जी के भाव जान गए , और कहा की गरुड़ ! हनुमानजी मलयाचल पर है उन्हें कहिये की द्वारिकाधीश ने स्मरण किया है , अब गरुड़ जी को क्या पता की ये लीलाधर क्या करना चाहते है।
गरुड़ जी अपने वेग के साथ आये और हनुमानजी को भगवान का सन्देश सुनाया और कहा की आप को भगवान ने द्वारिका में बुलाया है !
गरुड़ जी ने कहा आप मेरी पीठ पर बैठ जाईये तो झटपट पहुंचा दूँ। भगवान ने आप को शीघ्र बुलाया है !
हनुमानजी ने पूछा कौन भगवान ? गरुड़ जी " वही नवजलधर सुन्दर ! गरुड़ जी जानते थे की हनुमानजी के आराध्य कौन है , और गरुड़ जी ने हनुमानजी से कहा भगवान भी कहीं दो - चार होते है ?
हनुमाजी समझ गए और उन्होंने सहज भाव से कहा 'आप चलिए मैं आ रहा हूँ।
हनुमानजी भगवान के दास है भगवान नारायण के वाहन की पीठपर बैठ ने की बात वे कैसे सोच सकते थे !
गरुड़ जी ने हठ करते हुए कहा "आप को बहुत देर लगेगी मैं शीघ्र पहुँचा दूँगा
हनुमानजी ने हंस कर कहा मैं आप से पहले पहुच रहा हूँ आप चलिए , गरुड़ जी झुझलाये और अपने आप से बाते करने लगे की यह कपी मुझसे पहले पहुचने की बात करता है।
वे फिरसे बोले " हनुमानजी ! आप समझते तो है नही प्रभु ने बुलाया है मैं आगे जाकर उन्हें क्या उत्तर दूंगा ? और मेरे वेगको आप पहुँच सकते नही इसलिए चलिए मैं ले चलता हूँ गरुड़ जी को अपनी शक्ति का भी गर्व कम नही था उन्होंने अमृत - हरण के समय समस्त देवताओं के छक्के छुड़ा दिए थे , इद्र के वज्र से भी उनका कुछ बिगड़ा नही था , पर यह वानर उनकी बात ही नही सुनता अब गरुड़ जी ने सोचा की इस वानर को बलपुर्वक उठा ले जाना चाहिए।
हनुमानजी ने मन में कहा , मेरे प्रभु भी बड़े विनोदी है उन महाराजा द्वारिकाधीश ने कैसा धृष्ट पक्षी पाल लिया है बलपूर्वक मुझे उठाने आये ,
राम भक्त ने बहुत देरतक गरुड़ जी की बाते सुनी फिर उन्हें पकड़कर फैक दिया वे द्वारका के समीप समुन्द्र के पास जा गिरे।
भगवान के चक्र को भी गर्व था की उसकी शक्ति का अन्त नहीं है , हनुमानजी द्वारिकाधीश के पास जाने लगे , वह द्वारा रोध करके खड़ा हो गया
कौन भीतर जा रहा है ?
हनुमानजी ने कहा मैं हनुमान ! प्रभु ने बुलाया है मुझे।
चक्र "आज्ञा नही है _ भीतर जानेकी।
हनुमान जी फिरसे नम्र भावसे बोले आप पूछ लीजिये प्रभूसे मुझे प्रभु ने ही बुलाया है।
चक्र "मैं द्वार छोड़ कर नहीं जाऊँगा ,कोई आयेगा तो उसे पूछने को कह दूंगा तुम यही रुके रहो। हनुमानजी ने सोचा पता नही कोई कब आएगा और चक्र भीतर जाने दे नही रहा था उसे उठाकर हनुमानजी ने अपने मुह में रख लिया
और भीतर पहुच गए
भगवान लीलाधर ने धनुर्धर का वेशधार कर सिंघाशन पर विराजित थे श्रीमारुति नन्दन ने प्रभु के चरणों में मस्तक रखा तो भगवान अत्यंत स्नेह से उनके सिरपर कमल - कर फेरते वे लीलामय हंस कर पूछने लगे _ "तुम्हे द्वार पर किसी ने बाधा तो नही दी ?
मारुती नंदन मुख में से चक्र को निकाल कर सम्मुख करते हुए कहा की यह रोक रहा था मुझे सो मेने सोचा की इसे प्रभु के पास ही ले चलता हूँ
इतने में समुन्द्र - जल से सर्वथा भीगे हांफते गुरुड़ जी पहुंचे। अपने आराध्य के चरणों में हनुमानजी को बैठे देखा , उन्होंने तो मस्तक झुका लिया।
भगवान ने पूछा गरुड़ ! तुम्हारी यह दशा ... ? क्या तुम समुद्र स्नान करने लगे थे ? हनुमानजी ने कहा प्रभु आप ने यह पक्षी पाल तो लिया है , किन्तु यह बहुत धृष्ट है। साथ ही बहुत मन्दगति है यह तो पता नही कितनी देर में आ पता , मैंने इसे पकड़कर द्वार्का की और फैक दिया था !
फिर गरुड़ जी तनिक रुक कर हाथ जोड़कर मस्तक झुकाए , बोले प्रभु क्या कहना है ? लीलाधर पुर्षोतम मुस्कुराये मानो इशारो ही इशारो में गरुड़ जी को यह अहसास दिला दिया की भेरे भक्त का भक्ति का अभिमान रह सकता है जिन्हें अपने बल का गर्व है वे मुझे नही सुहाते
{ जय श्री राम जय जय श्री सीताराम } ,,,,,,,,,, { जय जय श्री राधे }
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