Tuesday, 19 November 2013

              
                   ईस्वर अंस जिव अबिनासी !
                  चेतन अमल सहज सुख रासी !!


परमात्मा के अंस होने के कारण हम भी सुखराशी ( सुख का ढेर ) हैं , पर संसार को अपना मानने के कारण हम भी मुफ्तका  दुःख पा रहे हैं , इतने पर भी हम चेत नही सकते फिर अपने परमपिता को हम याद ही नही करते , भगवान के सिवाय हमारा कौन है जो सदा हमारे साथ रहे ? यमराज के सामने भी कह दो की मैं भगवान का हूँ , तो यमराज भी थार्रायेगा।

अगर हम भगवान के साथ सम्बन्ध स्वीकार कर ले तो हमारे में स्वाभाविक ही शुद्धि पवित्रता आ जायेगी। हम भगवान के है भगवान हमारे है , इतना कहने मात्र से हमारे में स्वतः पवित्रता आती है, हम भले ही कबुत हो पर हैं तो भगवान के ही हमे केवल अपनी कपुतायी मिटानी है।

कपुतायी हमारे में पीछे से आई है जन्म के पहले नही थी और देवी सम्पति पहले से ही थी। आसुरी सम्पति पैदा  होने के बाद आती है जैसे जो सच्च बोलने वाला है वह कितने ही रुपये देने पर भी झूट नही बोल सकता , पर झूट बोलने वाला थोड़े से रुपयों के लोभ से सच बोल देगा
 
सच बोलना हमारे स्वाभाव में सदा से है , पर झूट बोलने की आदत डाल ली इसलिए झूट बोलना सुगम दीखता है ,

पर झूट अपनी चीज नही है जो संसार है , और सच सदा से अपनी चीज है जो भगवान है और एक भगवान ही सदासे हमारे अपने है !!
                      { जय जय श्री राधे } 


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