Tuesday, 19 November 2013



    मुखसे लेय नाम हरिका , सो हरी भक्त कहलासी !
    ह्रदय नाम जपे , हरी वाक़े खुद ही भक्त बन जासी !!


विणा बजाते हुए नारदमुनि भगवान श्री राम के द्वार पर पहुचे।
नारायण नारायण !!

नारदजी ने  देखा की द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है
हनुमानजी ने पूछा नारद मुनि ! कहा जा रहे हो ?  बोले मैं प्रभु से मिलने आया हूँ नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है  बोले पता नहीं पर  कुछ बही खाते का काम कर रहे है ,प्रभु रजिस्टर में कुछ लिख रहे है , अच्छा क्या लिखा पढ़ी कर रहे है बोले मुझे पता नही  मुनिवर आप खुद ही देख आना

नारद मुनि गए प्रभु के पास और देखा की प्रभु कुछ लिख रहे है , नारद जी बोले प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है ?  ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए प्रभु बोले नही नारद मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है ये काम मैं किसी और को नही सोप सकता ,
अच्छा प्रभु  ऐसा क्या काम है ऐसा आप इस रजिस्टर में क्या लिख रहे हो ? बोले तुम क्या करोगे देख कर जाने दो , बोले नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस रजिस्टर में क्या लिखते है , बोले नारद इस रजिस्टर में उन भक्तो के नाम की लिस्ट है जो मुझे हर पल भजते है में उनकी नित्य हाजरी लगता हूँ


अच्छा प्रभु जरा बताईये तो मेरा नाम कहा पर है ? नारदमुनि ने रजिस्टर खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था।  
नारद जी को गर्व हो गया की देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है पर नारद जी ने देखा की हनुमान जी का नाम उस रजिस्टर में कही नही है , नारद जी सोचने लगे की हनुमान जी तो प्रभु श्रीराम जी के खास भक्त है फिर उनका नाम, इस रजिस्टर में क्यों नही है , क्या प्रभु उनको भूल गए है
नारद मुनि आये हनुमान जी  के पास
बोले हनुमान ! प्रभु के बही खाते  में उन  सब भक्तो के नाम है जो नित्य प्रभु को भजते है पर आप का नाम उस में कही नही है हनुमानजी ने कहा की मुनिवर,! होगा आप ने सायद ठीक से नही देखा होगा नारदजी बोले नही नही मेने ध्यान से देखा पर आप का नाम कही नही था , अच्छा कोई बात नही सायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा जो मेरा नाम उस रजिस्टर में लिखा जाये , पर नारद जी प्रभु एक पॉकेट डायरी भी रखते है उस में भी वे नित्य कुछ लिखते है
  "अच्छा ?
 " हाँ !

नारदमुनि फिर गये प्रभु श्री राम के पास और बोले प्रभु ! सुना है की आप अपनी पॉकेट डायरी भी रखते है ! उसमे आप क्या लिखते है ? "बोले हाँ ! पर वो तुम्हारे काम की नही है , नारदजी ''प्रभु ! बताईये ना , मैं देखना चाहता हूँ की आप उसमे क्या लिखते है।
प्रभु मुस्कुराये और बोले मुनिवर मैं इन में उन भक्तो के नाम लिखता हूँ जिन को मैं नित्य भजता हूँ , नारदजी ने डायरी खोल कर देखा तो उसमे सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम था , ये देख कर  नारदजी का अभिमान टूट गया
। 
 
कहने का तात्पर्य यह है की जो भगवान को सिर्फ जीवा से भजते है उनको प्रभु अपना भक्त मानते है और जो ह्रदय से भजते है उन भक्तो के भक्त स्वयं भगवान होते है ऐसे भक्तो को प्रभु अपनी पर्शनल पॉकेट यानि अपने ह्रदय रूपी डायरी में रखते है
  जय जय श्री सीताराम ! 


   { जय जय श्री राधे }
   

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