Thursday, 29 August 2013


चमत्कार सा हो गया भक्तो हो गई बात निराली!
रात ही रात  में नंदबाबा की दाढी हो गई काली !!


नन्द बाबा नवमी तिथि को सवेरे जल्दी उठ कर गौशाला में गए , देखा की आज गईया सब गौशाला में ही है
नन्द बाबा बोले अरे भईया मधुमंगल ! भईया मन्सुका आज गईया चराने को नही गए ?
 मधुमंगल , मंसुका बोले बाबा ! गईया चराने जाये कैसे बाबा ! गईया गौशाला से बाहर ही नही निकलती ,

 आज ये गईया क्यों नही निकल रही है ? मानो गईया कहती है की देखो भईया तुम  हमको चराने के लिए ले जाओगे और बीच रस्ते में तुमको खबर मिलेगी की नन्द बाबा के लाला हुआ है तो तुम हमको वही छोड़ कर वापीश आ जाओगे और  हम वही भटकेगी इसकी अपेक्षा आज हम भी छुट्टी मनाएगी , जंगल में जायेगी वहा हम को क्या मिलेगा वहा तो घास पूस है
 पर आज तो लाला का जन्म हुआ है , लाला के जन्मोत्सव मनायेगे दूध दही की नदिया बहेगी , इसलिए आज हमारा दूध हम खुद ही पीयेगी।

 नन्द बाबा बोले चलो आज गईया को यही घास पूस खिलावे , नन्द बाबा ने घास का ढेर गायियो के आगे रखा तो गईया ने मुँह फेर दिया।
 नन्द बाबा बोले आज इन गईया को क्या हो गया,  क्या ये गईया बीमार हो गयी है ?

 गईया मन ही मन कहती है की
 बाबा ! आज तो मिठाई खाने का दिन है और आप हम को घास पूस खीला रहे हो ? आज तो  हमको भी लापसी खानेको मिलनी चाहिए.. आज तो हम को भी मिठाई खानी है
 पर नन्द बाबा कुछ समझे नही।

इतने में कुछ ग्वालबाल नन्द बाबा को देखते है और देख कर हंस ने लगे ,और बोले अरे बाबा बुढ़ापे में आप को भी शौक लगा ?
नन्दबाबा बोले अरे मूर्खो क्यों हंस रहे हो ?  मुझे भला क्या शौक लगा ?
ग्वालिये बोले बाबा कल आप कुछ और लग रहे थे और आज कुछ और लग रहे हो।
 " बोले कल कुछ और लग रहा था , और आज कुछ और…
 ऐसा क्या हो  गया ?
' बोले  बाबा !  बता दे ?
 " हाँ"
 सब ग्वालिये एक दूजे के सामने हो कर एक ही स्वर में बोले
 अरे ! चमत्कार सा हो  गया भक्तो हो गयी बात निराली
रात ही रात  में नंदबाबा की दाढी हो गयी काली

ग्वालिये बोले बाबा कल हमने देखा तो आप की दाढ़ी में सफेदी लहरा रही थी और आज आप की दाढ़ी में काला पन नजर आ रहा है
 बाबा ! ये काला रात को कब किया आप ने !!!!!
नन्द बाबा बोलेरे मूर्खो मैं कहाँ क़ाला  करूँगा कोई क़ाला वाला नही है

'बोले नही बाबा आज आप की दाढ़ी काली नजर आ रही है !!
"बोले नही ऐसा हो नही सकता तुम अपने काम से काम रखो जाओ अपना काम करो मुझे परेशान मत करो।

ग्वालिये वहा से चले गए , नन्दबाबा दाढ़ी पर हाथ फेरते है बोले ये काली हो कैसे सकती है। ..
नन्दबाबा साठ सालके थे
 और साठ साल में ऐसे बाल कृष्ण लाल के रूप में जगत पिता पधारे है तो उनके पिता की दाढ़ी तो काली होनी ही है
पर नन्द बाबा को कुछ पता नही की ये क्या कारण है।

उतने में बाबा की बहिन ठाकुजी की भुआ ( सुनन्दा )ख़ुशी से झूमती , उछलती  हुयी दूर से ही ऊँचे स्वर में बाबा को आवाज लगा रही है ,
 बाबा ! नन्द बाबा !! ऒऒ बाबा !! अरे ऒऒ भईया !!

 बाबा बोले अरी पगली क्या हुआ है ? क्यों चिल्ला रही हो ?
 'बोली अरे भईया खबर ऐसी है की सुनोगे तो नाच उठेगे
 "अरे पगली बोल तो सही क्या हुआ  ?
 भईया आप रोज गयियों की सेवा करते हो ,
, व्रजवासियो की निष्काम भाव से सेवा करते है आज आप की वो सब सेवा सफल हो गयी।
 बाबा बोले पर बता तो सही की ऐसा क्या हुआ है ?
 सुनन्दा ने कहा की भईया भाभी के लाला हुआ है !!!!!


नन्दबाबा ने जब सुना की लाला हुआ है उस समय नन्द बाबा की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा
 बाबा ने सुनन्दा जी को अपने गले का हार बधाई देने की भेट में दिया।

सुनन्दा जी थाली  तो पहले ही बजा चुकी थी पर कहती है की
आज पुरे त्रिलोक को मुझे खबर पहुचनी है की जिनके सारी त्रिलोकी अनुगत रहती है आज वो त्रिलोकी नाथ हमारे नन्द भवन में आ गया है।

, देवताओ के नगाड़े बज रहे है दुम  दुबियाँ  बज रही है आकाश से फूलो की वर्षा हो रहे है अफ़्स्राये नाच रही है
सभी देवी देवता बधाई गा रहे है
 सभी देवी देवता रूप बदल बदल कर बालकृष्ण लाल के दर्शन करने पधारे।

 कहते है की  नन्द बाबा के घर त्रिलोकी नाथ बाल कृष्ण लाल बन कर आये है वो  आनन्द इतना आनन्दित था की उस आनन्द को सरस्वती जी भी लिखना छोड़ कर उस आनन्द को लेने लगी लिखना भूल गयी ,  क्यों की वो आनन्द लिखने जैसा नही था वो आनन्द तो लेने जैसा था…


 { जैसी कथा है वैसा चित्र नही मिला मुझे..}

     { जय जय श्री राधे }
 



                        श्री कृष्ण जन्माष्टमी 
अष्टमी तिथि , कृष्ण पक्ष , रोहिणी नक्षत्र , मध्य रात्रि का समय कंस के करागार में माँ देवकी के आगे एका एक अद्भुत प्रकाश हुआ भगवान ( शंख , चक्र , घदा , पदम ) धारण करके प्रकट हुए
 " बोले माँ !  मेने कहा की मैं अपके यहाँ पुत्र बन कर  आऊंगा सो मैं आ गया
         माँ देवकी बोली प्रभु ! आप पुत्र कहा हो आप तो जगत पिता बनके आये हो पुत्र कोई इतना लम्बा चोड़ा होता है क्या ? अरे मेरी सखिया देखेगी तो मेरी हसी करेगी की देखो देखो बेटा हुआ तो जन्म ते ही पच्चीस साल का बन गया।

माँ देवकी ने कहा की , हे नाथ ! मुझे तो ऐसा पुत्र चाहिए की मैं गोदी में ले सकू वो रोये तो मैं उसको दूध पिलाऊ ,  उसकी मुस्कुराहट देखूं , ठाकुर जी बोले है की माँ मैं आया ही तेरे मनोरथ को पूर्ण करने के लिए हूँ तू जैसा कहे वैसा बन जाता हूँ , 

भगवान कहते है की वैकुण्ठ में रहता हूँ फिर भी भक्तो के अधीन रहता हूँ अब भक्तो के पास हूँ तो भक्तो के कहे - कहे मुझे नाचना  ही पड़ेगा

 और जो पूरण पुर्षोतम भगवान थे वो एक दब छोटे बाल कृष्ण लाल बन गए और रोने लगे
  वासुदेवजी घबराए सोचा कही रोने की आवाज सुनकर पहरेदार जाग गये  तो  इस बालक को भी कंश छोड़ेगा नही
 अरे देवकी ! ये तूने क्या किया पहले इतना बड़ा बालक था वो अपने को सम्भाल सकता था अब ये इतना छोटा हो गया तो उनको अपने को संभालना पड़ेगा , अब इसको कहा छुपायेंगे , ठाकुर जी ने कहा बाबा ! आप मुझे गोकुल में पंहुचा दीजिये , बोले प्रभु मैं बेडियो दे जकड़ा हुआ हूँ और सब द्वार पर टेल जेड है ठाकुर बोले बाबा आप मुझे गोदी में तो लो..
वासुदेव जी ने ठाकुरजी जैसे ही अपनी गोदी में लिया पावो की बेड़िया तड़ाक सी टूट कर घिर गयी , एका एक ताले टूट गए सब द्वार खुल गए द्वारपाल सब अचेत पड़े है।

 वासुदेवजी ठाकुरजी को टोकरी में ले कर यमुना जी के पास पहुचे , यमुना जी की लहरे पहले तो खूब उछल रही थी पर जैसे ही ठाकुरजी के दर्शन किये यमुना जी प्रश्न हो गयी , शांत हो गयी , अब यमुना जी शांत क्यों हो गयो क्यों की यमुना जी कहती है , की अपने प्रियतम का चरण स्पर्श तो करूँ...

  पर यमुनाजी को ठाकुर जी का चरण स्पर्श नही मिल रहा है , क्यों की वासुदेवजी ठाकुर जी को ऊपर ऊपर कर देवे पहले तो ठाकुरजी को अपनी गोदी में ले रखा था पर जैसे ही यमुना जी चरण स्पर्श करने लगी तो वासुदेवजी ने टोकरी सिर पे ले ली..      
  ,यमुना जी चरण स्पर्श करने के लिए ऊपर उठी तो वासुदेवजी ने सोचा की कही मेरे लाला को कुछ हो ना जाये तो उचे स्वर में आवाज लगाने लगे की ,अरे कोई लॊ,,,,,,,,, कोई लॊऒऒ ,,,,,,,,,,
 कहते है की वासुदेवजी की आवाज , कोई लो , कोई लो , एक गाव में पहुंची तो उस गाँव का नाम ही ( कोई लो ) पड़  गया..
 यमुना जी कहती है प्रभु ! मैं तो आप के चरण सपर्श करना चाहती हूँ पर आप के पिता श्री तो  मुझे आप के चरण स्पर्श करने नही देते
 ठाकुर जी बोले चिंता न करो मैं कृपा करता हूँ..
           ठाकुर जी ने टोकरी से चरण बाहर निकले , यमुनाजी को चरण स्पर्श मिलते ही यमुना जी फिर से शांत हो गयी।

 वासुदेवजी भगवान को गोकुल में यशोदा के पास सुला कर वहा से योगमाया को ले आये और फिर से कंस के कारागार में बंद हो गए नन्द बाबा के घर ठाकुर जी पधारे है पुरे गोकुल में बधाईया बज ने लगी...

 नन्द घर आनन्द भयो जय कन्हिया लाल की
 गोकुल में आनन्द भयो जय यशोदा लाल की


        { जय जय श्री राधे }

Tuesday, 27 August 2013



    व्रज रज  उड़ती  देख कर मत कोई करजो ओट
    व्रज रज  उड़े मस्तक लगे  गिरे पाप की पोत


जिन देवतायो को खबर पड़ गयी थी की बाल कृष्ण लाल बन कर भगवान लीलाधर पुर्षोतम पधारने वाले है वो सब तो व्रज में कोई ग्वाला बन कर जन्म ले लिया  ,  कोई गोपी , कोई गईया ,  कोई मोर , कोई तोता , इत्यादि सभी पशु पक्षी बन व्रज में भगवान के आने से पहले ही व्रज मंडल को सुन्दर बना दिया

 कुछ देवता पिछे रह गए वो ब्रह्माजी के पास आये और वो देवता ब्रह्माजी से झगड़ा करने लगे की ब्रह्माजी ! आप ने हमको व्रज मे क्यों नही भेजा  ? जब  भगवान बाल कृष्ण लाल बन कर ठाकुर नारायण जहा इतनी सुनदर सुन्दर लीलाये करने के लिए पधारे है आप ने हमको व्रज मे क्यों नही भेजा ?, आप हम को भी व्रज में भेजिए !

 ब्रह्मा जी बोले देखो भाई ! व्रज में जितने लोगो को भेजना था उतनों को भेज दिया अब व्रज में जगह खाली नही है

बोले महाराज ! 'आप हमे ग्वालिया ही बना दो ,
बोले "जितने लोगो को ग्वालिया बनाना था उतनों को बना दिया अब ग्वालियो की जगह भी खाली नही है

बोले महाराज ! ग्वालिया नही बना सकते तो 'हम को गोपी बना दो
बोले "गोपियाँ भी जितनी बनानी थी उतनी बना दी जब ( रास ) होगा तो हजारो आ जाएगी इसलिए गोपियाँ की भी जगह खाली नही है

'बोले गोपी नही बना सकते , ग्वाला नही बना सकते तो  कोई बात नही आप हमे गईया ही बना दो
पर ब्रह्मा जी बोले की गईया भी खूब  बना दी है ( एक अकेले नन्द बाबा के पास नो  लाख गाये  है ) और , सो ,  दो सो , से कम तो किसी के पास है ही नही  अब तुम को भी गाय  बना दिया तो व्रज पूरा गो शाला ही बन जायेगा  इसलिए गाय भी जितनी बनानी थी बना दी  अब गाय की भी जगह खाली नही है


अच्छा महाराज ! 'गाय  नही बना सकते तो मोर ही बना दो नाच नाच कर ठाकुर को रिझाया करेंगे  ब्रह्मा जी बोले मोर भी खूब बना दिये  इतने मोर बना दिये की व्रज में समाही नही रहे है इसलिए उनके लिए एक अलग से मोर कुट्टी बनानी पड़ी इसलिए मोर की भी जगह खाली नही है ,

अच्छा महाराज ! 'मोर नही बना सकते तो , कोई तोता , मैना , चिड़िया ,कबूतर ,कुछ भी बना दो , ब्रह्माजी  बोले "वो भी खूब बना दिए पुरे पेड़ ,भरे हुए है


अच्छा महाराज  ! 'कुछ नही तो , बंदर ही बना दो ,
बोले बंदर भी खूब बना दिये आज तक परेशान करते है , जिसका भी चश्मा देखा खट्ट , कर ले ले ते है क्यों की ये सब देवता ही  बंदर  बने हुए है उस समय उन्होंने चश्मा देखा नही था तो आश्चर्य करते है की ये क्या चीज है भाई  , अगर आप का चश्मा  कोई बंदर ले जाये तो भोग रख कर हाथ जोड़ना जय हो देवता आप जो भी है….  वो आप का चश्मा  पर्क कर वापिस लोटा देंगे ,
 तो  ब्रहमाजी बोले बंदर भी खूब बना दिये बंदर की भी जगह खाली नही है


अच्छा महाराज ! बंदर नही बना सकते तो गधा ही बना दो , क्यों की गधा भी ठाकुरजी के काम आता है जब ठाकुर जी  होली की लीला करते है जब ग्वालियो को गधे पर बिठा कर दोड़ते  है तो देवता कहते है की क्या पता हमारे ऊपर कोई भक्त बैठे और ठाकुर जी अपने हाथो से थप्पकी दे कर रवाना करे उसमे भी फायदा है , ब्रह्मा जी बोले गधे भी बहुत बना दिये वो भी जगह खाली नही है ,

अच्छा महाराज ! गधा नही बना सकते तो कोई पेड़ - पोधा , लता- पता ही ,  बना दो
बोले ,पेड़- पोधा, लता- पता मेने  जितने बनाने थे सब बना दिये  , इतने बना दिए की सूर्य की किरने भी बड़ी कठिनाई से धरती को स्पर्श करती है और कितने लता- पता बनाऊ

महाराज ! कोइ तो जगह दो हम को !, कैसे भी करके व्रज में तो भेजो "बोले कोई जगह  खाली नही है
तब देवताओ ने हाथ जोड़कर ब्रह्माजी से कहा
महाराज ! आप हमे कुछ नही बना सकते तो  , अगर हम कोई जगह अपने लिए ढूंढ़ के ले आये तो आप हम को वर्ज में भेज दोगे  ,बोले "हाँ तुम अपने लिए कोई जगह ढूंढ़ के ले आओगे तो मैं तुम्हे व्रज में भेज दूंगा ,

देवताओ को झट से याद आया की रेती तो कितनी भी हो सकती है …

ब्रह्माजी से बोले अच्छा महाराज ! गोपी , ग्वाला ,पशु , पक्षी ,पेड़ , पोधा , लता पता , कुछ ना बनाओ तो हम को ( व्रज की रज ही ) बना दो वोटो कितनी भी हो सकती है , कुछ नही तो बाल कृष्ण लाल के चरण पड़ने से ही हमारा कल्याण हो जायेगा  हम को व्रज में रेत बनना भी मंजूर है...
 इसलिए व्रज की रेत भी सामान्य नही है वो रज भी देवी देवता ऋषि मुनि इत्यादि.. है।
 { जय जय श्री राधे
}

                    जब जब होय धर्म की हानि !
                   तब तब प्रकटे नारायण श्यामी !!


जब जब धरती माँ , अधर्म पापियों के पाप से घिर जाती है तब तब अपना भार  हरने वाले भगवान को अवतरित होने के लिए ब्रह्माजी के पास जा कर विनती करते है..

जब लाखो दैत्यों के दल ने घमंडी राजाओ का रूप धारण कर अपने  भारी  भारसे  पृथ्वी को आक्रांत कर रखा था उससे त्राण पाने के लिए वह ब्रह्माजी की शरण में गयी पृथ्वी ने उस समय गो का रूप धारण कर रखा था उसके नेत्रों से आँसू बह बह कर मुंह पर आ रहे थे उनका मन खिनतो था ही शरीर भी बहुत कृश हो गया  था वह बड़े करुर स्वर से रँभा रही थी ,  ब्रह्माजी के पास जा कर उसने उन्हें अपनी पूरी कष्ट  कहानी सुनाई ,

ब्रह्माजी ने बड़ी सहानुभूति के साथ उसकी दुःख गाथा सुनी उसके बाद वे भगवान शंकर एव स्वर्ग के अन्यान्य प्रमुख देवता तथा गो के रूप में आई पृथ्वी को साथ लेकर शिरसागर के तट पर गए , भगवान विष्णु देवताओ के भी आराध्य देव है वे अपने भक्तो की समस्त अभिलासये पूर्ण करते और उनके समस्त क्लेसो को नष्ट  करते है ,

वे सभी  तट पर पहुच कर  ब्रह्माजी व् अन्य देवताओ ने पुरुष सूक्त के द्व़ार  उन्ही पुरुष सर्वान्तर्यामी प्रभु की स्तुति  करते करते ब्रह्माजी समाधिस्त हो गए उन्होंने समाधी अवस्था में आकाशवाणी सुनी इस के बाद जगत के निर्माण करता ब्रह्माजी ने देवताओ को कहा की देवताओ ! मेने भगवान की वाणी सुन ली है तुम लोग भी उसे मेरे स्वर सुन लो और फिर वैसा ही करो ,उसके पालन में विलम्ब नही होना चाहिए

 , भगवान को पृथ्वी के कष्ट का पहले से ही पता है वे ईश्वरो  के भी ईश्वर  है अतः अपनी कालशक्ति  के द्वारा पृथ्वी का भार हरण  करते हुए वे जब तक पृथ्वी पर लीला करे तब तक तुम लोग भी अपने अपने अंशो के साथ यदुकुल में जन्म ले कर उनकी लीला में सयोग दो

 वाशुदेवजी के घर स्वयं पुरूषोतम  भगवान प्रकट होंगे ,  और  उनकी प्रियतमा ( श्रीराधा जी ) की सेवा देने के लिए  देवगनाये जन्म ग्रहण करे...

 बहुत से देवी देवता ऋषि मुनि ,अलग अलग रूप में जन्म ले कर आये है कोई गोपी के रूप में है ,  तो कोई ग्वाला ,  कोई गाय , कोई  मोर  , तो कोई तोता , कोई बंदर...   पूरा व्रज मंडल ऐसे सजा हुआ है मानो  सबको अपने दुल्हे का इंतजार हो , पर कुछ देवी देवता पीछे रह गए उनकी कथा अगले  पोस्ट में....

 { जय जय श्री राधे }


Sunday, 4 August 2013



जरा देखो तो !! देवो के देव महा देव काम देव को भस्म करने वाले भगवान शिव ने जब विष्णु भगवान के मोहिनी रूप के दर्शन किये तब इनका भी मन , हाथ से निकल गया...

जब भोले नाथ ने यह सुना की  श्री हरी ने स्त्री का रूप धारण करके असुरो को मोहित कर लिया , और देवताओ को अमृत पिला दिया , तब वे सती देवी के साथ बैल पर सवार हो कर समस्त भूत गणों को ले कर वह आये जहाँ भगवान मधुसुधन निवास करते है..

 भगवन श्री हरी ने बड़े प्रेम से गोरी शंकर भगवान का स्वागत किया , सुख से बैठ कर भगवान का सम्मान करके मुस्कुराते हुए बोले , शंकर भगवान ने कहा की 'आप विश्व व्यापक जगदीश्वर एव जगत स्वरूप है , आप जब गुणों को  स्वीकार  करके लीला करने के लिए बहुत से अवतार ग्रहण करते है तब में उनका दर्शन करता ही हूँ ,

" भगवान शिव ने कहा की " अब में आप के उस अवतार का दर्शन करना चाहता हूँ जो आप ने स्त्री रूप में ग्रहण किया था,  जिस से देत्यो को मोहित करके अपने देवताओ को अमृत पिलाया ,
स्वामी  ! उसी को देखने के लिए हम सब आये है,  हमारे मन में आप के उस मोहिनी रूप को देखने का बड़ा ही उत्साह है।

जब भगवान शंकर ने , विष्णु भगवान से  प्रार्थना की तब वे , गंभीर भाव से हस कर शंकर जी से बोले की उस समय अमृत का कलश देत्यो के हाथ चला गया था अतः देवताओ का काम बनाने के लिए और देत्यो का मन एक नए कोतुहल की और खिंच लेने के लिए मेने वे स्त्री रूप धारण किया था ,

 देव शिरोमणि ! आप उसे देखना चाहते है इसलिए आप को में वह रूप अवश्य ही दिखाउंगा , परन्तु वो रूप तो कामी पुरुषो का ही आदरणीय है क्यों की वे काम भाव को उतेजित करने वाला है.

इस तरह कहते कहते विष्णु भगवान वही अंतर्ध्यान हो गए,  तब भगवान शिव सती के साथ चारो और द्रष्टि दोड़ाते हुए वहि बैठे रहे ,
इतने में देखा की सामने एक बड़ा सुन्दर उपवन है उसमे भाति भाति के वृक्ष लग रहे है, जब देखा की एक सुंदरी गेंद उछाल- उछाल कर खेल रही है , वह बहुत ही सुन्दर साडी एव सुन्दर  आभूषण से सजी धजी सुन्दर रूप से मोहित करने वाली, जब वो उचल उचल कर गेंद को पकडती तब उनके गले के हार स्तन हिल रहे थे , ऐसा जान पड़ता मानो उसके भार से उसकी पतली कमर पग पग पर टूटते टूटते बच जाती है ,

वह अपने लाल लाल पल्वो के समान सुकुमार चरणों से बड़ी कला के साथ ठुमक ठुमक कर चल रही है ,
उछलता गेंद जब इधर उधर चला जाता है तब वे लपक कर उसे रोक लेती है
उस समय भी वे दाहिने हाथ से गेंद उछल उछल कर सारे  जगत को अपनी माया से मोहित कर रही थी,

गेंद से खेलते खेलते उसने तनिक सज्जल भाव से मुस्कुराकर तिरछी नजर से शंकर जी की और देखा, बस शंकर जी का मन हाथ से निकल गया , वे मोहिनी को निहारने और उसकी चितवन के रस में डूब कर इतने विहल हो गए की उन्हें अपने आप की भी सुद्धि नही रही ,
फिर पास बैठी सती और गणों की तो याद ही कैसे रहती ?

एक बार मोहिनी के हाथ से उछल कर गेंद थोड़ी दूर चला गया तब वह भी उसी के पीछे  पीछे दोड़ी , उसी समय शंकर जी के देखते देखते वायु ने उसकी झिनिसी साड़ी कर्दनि के साथ उड़ाली

मोहनी का एक एक अंग बड़ा ही रुचिकर और मनोहर था , जहा आँखे लग जाती लगी ही रहती , यही नहीं बल्कि मन भी वही रमण करता , उसको इस दशा में   देख कर भगवान शंकर उसकी और अत्यंत आकर्षित हो गए , उन्हें मोहिनी भी अपने प्रति आशक्त पड़ती थी ,

उस ने शंकर जी का विवेक छीन लिया , वे उसके हाव भावों से कामातुर हो गए और , भवानी के सामने ही लज्जा छोड़ कर उसकी और चल पड़े ,

 मोहिनी वस्त्र हिन् तो पहले ही हो चुकि थी , शंकर जी को अपनी और आते देख कर बहुत लज्जित हो गयी
वे एक वृक्ष से दुसरे वृक्ष की ओट  में छिप जाती , और हंसने लगती परन्तु कही ठहरती न थी , भगवान शंकर की इन्द्रिया अपने वस् में न रही ,
वे काम  वस् हो गए , और मोहिनी को अपनी भुजाओं में पकड़ लिया

भगवान शंकर भी उन , मोहिनी वेश धारी अद्भुत कर्मा भगवान विष्णु के पीछे पीछे दोड़ने लगे उस समय ऐसा जान पड़ता था.. मानो  उनके शत्रु काम देव ने उस समय उन पर विजय प्राप्त कर ली..

जब शंकर भगवान ने देखा की अरे ! भगवान की माया ने तो मुझे खूब छकाया वे तुरंत उस दुखंत  प्रसंग से अलग हो गये , उस के बाद आत्मस्वरूप भगवान की ये महिमा जान कर कोई आश्चर्य नही हुआ , जानते थे की भला भगवान की शक्तियों का पार कौन पा सकता है।

 भगवान ने देखा की भगवान शंकर को इस से विषाद  या लज्जा नही हुई तब वे पुरुष शरीर धारण करके फिर प्रकट हो गए , और  बड़ी प्रसंता से उनसे कहने लगे ,
 देव शिरोमणि ! मेरी स्त्री रुपेणी माया से विमोहित हो कर भी आप स्वयं ही अपनी निष्ट में स्थित हो गए ये बड़ी ही आनन्द की बात है ,
मेरी माया अपार है , जो एक बार मेरी माया के फंदे में फस कर स्वयं ही उस से निकल सके वे आप के अतिरिक्त और कोई नही है...
ॐ नमः शिवाय , ॐ नमः शिवाय


    { जय जय श्री राधे }

       
              भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार..

जब समुन्द्र मंथन पर अमृत का कलश निकला तब असुरो ने , देवताओ के हाथ से  अमृत  का कलश चीन कर ले गए , और जो बलवान असुर थे उन देत्यो ने कलश को अपने हाथ में पकड रखा था , जो असुर निर्बल थे वे निति की बात कहने लगे की , देखो भाई !  अमृत  के लिए समुन्द्र मंथन तो देवताओ ने भी किया इसलिए देवताओ को भी अमृत  मिलना चाहिए..

असुर आपस के सदभाव और प्रेम को छोड़ कर एक दुसरे की निंदा कर रहे थे और डाकु की तरह एक दुसरे के हाथ से
अमृत का कलश छीन रहे थे इस बीच में उन्होंने देखा की एक बड़ी सुंदरी स्त्री उनकी और चली आ रही है वो कहने लगे  की देखो तो कैसा अनुपम्म सोंदर्य है शरीर में से कितनी अदभुत छटा छटक रही है तनिक उसकी नयी उम्र तो देखो.. 
बस अब वो आपस की लाग डाट भूल कर उसके पास दोड़ गये

उन लोगो ने काम मोहित हो कर उससे पूछा की
कमल नयनी तुम  कौन हो ?
कहा से आ रही हो ?
क्या करना चाहती हो ?
सुन्दरी ! तुम किसकी कन्या हो ?
तुम्हे देख कर हमारे मन में खलबली मच गयी है हम समझते है की अब तक देवता देत्य शिद्ध गन्धर्व चारण और लोग पालो ने भी तुम्हे स्पर्श तक नही किया होगा फिर मनुष्य तो तुम्हे कैसे छू पाते
सुन्दरी ! अवश्य ही विधाता ने दया करके शरीर धारियों की सम्पूर्ण इन्द्रिया एवम मन को तृप्त करने के लिए तुम्हे यहाँ भेजा है


असुर बोले  "मानिनिय ! वैसे हम लोग एक ही जात के है फिर भी हम सब एक ही वस्तु चाह रहे है इसलिए हम में डाह और बैर की गाठ पड़ गयी है सुंदरी ! तुम हमारा झगड़ा मिटा दो हम सभी कश्यप जी के पुत्र होने के नाते सगे भाई है हम लोगो ने अमृत के लिए बड़ा पुरुषार्थ किया है , तुम न्याय के अनुसार निष्पक्ष भाव से उसे बाट दो , जिस से फिर हम लोगो में किसी प्रकार का झगडा ना हो

असुरो ने जब इस प्रकार प्रार्थना की तब भगवान ने लीला से स्त्री वैश में धारण करने वाले भगवान ने हंस कर और तिरछी चितवन से उनकी और देखते हुए कहा की आप लोग महर्षि कश्यपु के पुत्र है और में हूँ कुल्टा आप लोग मुझ पर न्याय का भार क्यों डाल रहे है ?  विवेकी पुरुष स्त्रियों का कभी विश्वास नही करते

भगवान की इस मोहिनी की परिहास भरी
वाणी से देत्यो के मन में और भी विश्वास हो गया उन लोगो ने राशी पूर्ण भाव से हंस कर अमृत का कलश मोहिनी के हाथ में दे दिया

भगवान ने
अमृत का कलश अपने हाथ में ले कर तनिक मुस्कुराते हुए मीठी वाणी से कहा में उचित या अनुचित जो भी करू वह सब यदि तुम लोगो को स्वीकार हो तो में यह अमृत बाट सकती हूँ , बड़े बड़े देत्यो ने मोहिनी की यह मीठी बात सुन कर उसकी बारीकी नहीं समझी इसलिए सबने एक स्वर मे कहा "स्वीकार" है
 

उस का कारण यह था की उन्हें मोहिनी के वास्तविक रूप का पता नही था इसके बाद एक दिन का उपवास कर के सभी देत्य स्नान कर कर  देवता व देत्य ने अपनी अपनी रूचि के अनुसार सब ने नए नए वस्त्र धारण किये उसके बाद सुन्दर- सुन्दर आभूषण धारण करके सबके सब आसन पर बैठ गये

देवता और देत्य दोनों ही धुप से
सुगंधित फूलो से और सजे सजाये भव्य भवन में पूर्व की और मुह करके बैठ गए , तब हाथ में अमृत का कलश ले कर मोहिनी सभा में आई ,

भगवान मोहिनी रूप धारण कर सभा में पधारे तब बहुत ही सुन्दर वस्त्र व आभूषण से सजे देवता व देत्य दोनों ही उनके रूप में मोहित हो गए

भगवन मोहिनी ने अपनी मुस्कान भरी चितवन से देत्य और देवताओ को देखा वे सबके सब ऐसे मोहित हो गए की उस समय उनके स्थनों पर से आचल कुछ खिसक गया ,
भगवान ने देवता और असुरो की अलग अलग पंक्तियाँ  बना दी और दोनों को कतार बांध कर अपने अपने दल में बिठा दिया , उस के बाद
अमृत का कलश ले कर भगवान देत्यो के पास चले गए , उन्हें हाव भाव और कटाक्ष से मोहित करके दूर बैठे हुए देवताओ के पास आ गए तथा उन्हें अमृत पिलाने लगे
जिसे पि कर बूढ़ापे और मृत्यु का नाश हो जाता है ,

असुर अपनी की हुए प्रतिज्ञा का पालन कर रहे थे उनको स्नेह  भी हो गया था और वे स्त्री में झगड़ने में भी अपनी निंदा समझते थे इस लिए देत्य चुप बैठे थे , मोहिनी में उनका अत्यंत प्रेम हो गया था ,वे डर रहे थे की कही उस से हमारा प्रेम सम्बन्ध टूट ना जाये , मोहिनी ने भी पहले उन लोगो का बड़ा सम्मान किया था , उस से वे और भी बन्ध गए यही कारण है की उन्होंने मोहिनी को कोई अप्रिय बात नही कही...
      { जय जय श्री राधे }


Saturday, 3 August 2013


उतराखंड में हुआ प्राक्रतिक कोप को लोगो ने कहा की प्राक्रति मनमानी कर रही है
सच्च कहे तो प्रकृति.. नही मनुष्य कर रहा है मनमानी..


किसी ने कहा 'पानी क्या है साहब , तबाही है तबाही
प्रक्रति को सुनाई नही देती , मासूमो की दुहाई
नदिया के इस बर्ताव से मानवता घायल हो जाती है
सच्च कहे तो बरसात के मौसम में नदिया पागल हो जाती है
ऐसा सुन कर माँ गंगा मुस्कुरायी और बयान देने जनता की अदालत में चली आई 

 जब कठघरे में आकर माँ गंगा ने अपनी जुबान खोली
तो वे करुणापूर्ण आक्रोश में कुछ यु बोली
मुझे भी तो अपनी जमीन छीनने का डर सालता है
अरे मनुष्य मनुष्य तो मेरी निर्मल धरा में केवल कूड़ा करकट डालता है
धार्मिक आस्थाओ का कचरा मुझे झेलना पड़ता है
जिन्दा से ले कर मुर्दों तक का अवशेष अपने भीतर ठेलना पड़ता है
अरे , जब मनुष्य मेरे अमृत से जल में पोलिथिन बहता है ,
जब मरे हुए पशुओ की सड़ाध से मेरा जीना मुश्किल हो जाता है
जब मेरी धारा में आकर मिलता है शहरी नालो का बदबूदार पानी
तब किसी को दिखयी नही देती मनुष्य की मनमानी ?
ये जो मेरे भीतर का जल है इसकी प्रकृति अविरल है
किसी भी तरह की रुकावट मुझसे सहन नही होती है
फिर भी तुम्हारे अत्याचार का भार धराये अपने ऊपर ढोती है
तुम निरंतर डाले जा रहे हो मुझमे ओद्योगिक विकास का कबाड़
ऐसे ही थोड़े आती है बाढ़
मानव की मनमानी जब अपनी हदे लाँघ देती है
तो प्रकृति भी अपनी सीमाओं को खूंटी पर टांग देती है
नदिया का पानी जीवन दाई है
इसी पानिने युगों - युगों से खेतो को सिच कर मानव की भूख मिटाई है
और मानव ,मानव स्वभाव् से ही आततायी है
इसने निरंतर प्रक्रति का शोषण किया
और अपने ओछे स्वार्थो का पोषण किया
नदिया की धारा को बंधता गया
मिलो फैले मेरे पाट को कंक्रीट के दम पर काटता गया
सच तो ये है की मनुष्य निरंतर नदिया की और बढ़ता आया है
नदिया की धारा को संकुचित कर इसने शहर बसाया है
ध्यान से देखे तो आप समझ पायेंगे की नदी शहर में घुसी है या शहर नदी में घुस आया है ,
जिसे बाढ़ का नाम देकर मनुष्य हैरान -परेशान है
ये तो दरअसल गंगा का नेचुरल सफाई अभियान है
नदिया का नेचुरल सफाई अभियान है
 जय गंगा मईया की....


       { जय जय श्री राधे }



आशा तृष्णा छोड़ जगत की , सुख नही है इस जग में
कर विश्वास भरोसा मनवा , श्याम मिले एक पल में 

 
एक बार श्री नारद जी महाराज कही जा रहे थे , रास्ते में दो पेड़ थे उन दो पेड के निचे दो भक्त बैठे थे ,
एक पेड था आम का
और , एक पेड था बेर का ,
दोनों भक्तो ने नारद जी से पूछा नारद जी ! कहा जा रहे हो ?
नारद जी बोले मैं भगवान से मिलने जा रहा हूँ तो भक्तो ने कहा की नारद जी आप भगवान से पूछना की वो हमको कब दर्शन देनेवाले है ?

नारद जी गए भगवान के पास और प्रभु को पूछा की प्रभु आप उन दोनों भक्तो को कब दर्शन देनेवाले हो ?
एक आम का पेड़ के निचे बैठा है
और एक बेर के पेड़ के निचे बैठा है
"भगवान बोले की नारद ! उन दोनों भक्तो से कहना की जो जिस पेड़ के निचे बैठा है उस पेड़ के जितने पत्ते है उतने वर्षो तक तपस्या करेंगे तब दर्शन होंगे ,

नारदजी आये और भक्तो ने पूछा , महाराज ! कहो , हमारी बात सुन प्रभु ने क्या कहा ? नारद जी बोले , प्रभु ने कहा की जो जिस पेड़ के निचे बैठा है उस पेड़ के जितने पत्ते है उतने वर्षो के बाद दर्शन होंगे

नारद जी की बात सुन कर जो आम के पेड़ के निचे बैठा वो घबरागया की इतने वर्षो  तक जीवित रहूँगा की नही ऐसे ही मरना थोड़ी है , मैं तो मेरे घर जाऊ,  मेरी बीवी बच्चो से मिलु , वो उठ कर चला गया

और जो पीछे बैठा बेर के निचे वो भक्त नारद जी की बात सुन कर उछल उछल कर नाचने लगा , उतने में प्रभु प्रकट हो गए ,  नारद जी बोले , अरे प्रभु वाह , मुझे ही झूटा कहलवाना था...?

हे प्रभु ! आपने अभी कुछ समय पहले ही कहा की जो जिस पेड़ के निचे बैठा है उन पेड़ो के जितने पत्ते है उतने वर्षो के बाद दर्शन होंगे ,और अभी तो उतने सैकिंड भी नहीं हुए और आप प्रकट हो गए ? , नारद जी ने कहा प्रभु ! आप ने इस भक्त पर इतनी जल्दी कृपा कैसे की ?

प्रभु बोले नारद ! इस भक्त से ही पूछ की तुम्हारी बात सुन कर इस पर क्या असर हुआ , भक्त ने कहा , नारद जी ! जब आपने कहा की पेड़ के जितने पत्ते है उतने वर्षो के बाद दर्शन होंगे तब मेरे मन में ये नही आया की इतने वर्षो तक जीवित रहूँगा या नही बल्कि मेरे मन में ये भरोसा हो गया की प्रभु है और वो मुझे जरुर मिलेंगे..

जिनका भरोसा पक्का है , प्रभु पर अटल विश्वास है उन्हें प्रभु अवश्य मिलते है
      { जय जय श्री राधे } 



             हे मेरे नाथ ! प्रार्थना स्वीकार कीजिये

सुखी बसे संसार सब , दुखिया रहे न कोय।
यह अविलासा हम सबकी , भगवन पूरी होय।।
विद्या बुद्धि तेज बल , सबके भीतर होय।
दूध पूत धन धान से , वंचित रहे न कोय।।

आप के भक्ति प्रेम से , मन होवे भर पुर।
राघ द्वेस से चित मेरा , कोसो भागे दूर।।
मिले भरोसा आपका , हमे सदा जगदीश।
आशा तेरे नाम की , बनी रहे हम पे।।

पाप से हमे बचाईये ,करके दया दयाल ।
अपना भक्त बनायके , सबको करो निहाल ।।
दिलमे दया उदारता , मन में प्रेम अपार ।
हृदय में धिरय दीनता , हे मेरे करतार ।।
हाथ जोड़ विनती करू , सुनिए कृपानिधान ।
सादु संगत , सुख दीजिये , दया धर्म का दान ।।

बोलो राम राम राम , जय सिया राम राम राम।
राधे श्याम श्याम श्याम , श्री सीताराम राम राम।। 



गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥


शास्त्र वाक्य में गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।
गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करती हूं।

   { जय जय श्री राधे }