चमत्कार सा हो गया भक्तो हो गई बात निराली!
रात ही रात में नंदबाबा की दाढी हो गई काली !!
नन्द बाबा नवमी तिथि को सवेरे जल्दी उठ कर गौशाला में गए , देखा की आज गईया सब गौशाला में ही है
नन्द बाबा बोले अरे भईया मधुमंगल ! भईया मन्सुका आज गईया चराने को नही गए ?
मधुमंगल , मंसुका बोले बाबा ! गईया चराने जाये कैसे बाबा ! गईया गौशाला से बाहर ही नही निकलती ,
आज ये गईया क्यों नही निकल रही है ? मानो गईया कहती है की देखो भईया तुम हमको चराने के लिए ले जाओगे और बीच रस्ते में तुमको खबर मिलेगी की नन्द बाबा के लाला हुआ है तो तुम हमको वही छोड़ कर वापीश आ जाओगे और हम वही भटकेगी इसकी अपेक्षा आज हम भी छुट्टी मनाएगी , जंगल में जायेगी वहा हम को क्या मिलेगा वहा तो घास पूस है
पर आज तो लाला का जन्म हुआ है , लाला के जन्मोत्सव मनायेगे दूध दही की नदिया बहेगी , इसलिए आज हमारा दूध हम खुद ही पीयेगी।
नन्द बाबा बोले चलो आज गईया को यही घास पूस खिलावे , नन्द बाबा ने घास का ढेर गायियो के आगे रखा तो गईया ने मुँह फेर दिया।
नन्द बाबा बोले आज इन गईया को क्या हो गया, क्या ये गईया बीमार हो गयी है ?
गईया मन ही मन कहती है की
बाबा ! आज तो मिठाई खाने का दिन है और आप हम को घास पूस खीला रहे हो ? आज तो हमको भी लापसी खानेको मिलनी चाहिए.. आज तो हम को भी मिठाई खानी है
पर नन्द बाबा कुछ समझे नही।
इतने में कुछ ग्वालबाल नन्द बाबा को देखते है और देख कर हंस ने लगे ,और बोले अरे बाबा बुढ़ापे में आप को भी शौक लगा ?
नन्दबाबा बोले अरे मूर्खो क्यों हंस रहे हो ? मुझे भला क्या शौक लगा ?
ग्वालिये बोले बाबा कल आप कुछ और लग रहे थे और आज कुछ और लग रहे हो।
" बोले कल कुछ और लग रहा था , और आज कुछ और…
ऐसा क्या हो गया ?
' बोले बाबा ! बता दे ?
" हाँ"
सब ग्वालिये एक दूजे के सामने हो कर एक ही स्वर में बोले
अरे ! चमत्कार सा हो गया भक्तो हो गयी बात निराली
रात ही रात में नंदबाबा की दाढी हो गयी काली
ग्वालिये बोले बाबा कल हमने देखा तो आप की दाढ़ी में सफेदी लहरा रही थी और आज आप की दाढ़ी में काला पन नजर आ रहा है
बाबा ! ये काला रात को कब किया आप ने !!!!!
नन्द बाबा बोलेरे मूर्खो मैं कहाँ क़ाला करूँगा कोई क़ाला वाला नही है
'बोले नही बाबा आज आप की दाढ़ी काली नजर आ रही है !!
"बोले नही ऐसा हो नही सकता तुम अपने काम से काम रखो जाओ अपना काम करो मुझे परेशान मत करो।
ग्वालिये वहा से चले गए , नन्दबाबा दाढ़ी पर हाथ फेरते है बोले ये काली हो कैसे सकती है। ..
नन्दबाबा साठ सालके थे
और साठ साल में ऐसे बाल कृष्ण लाल के रूप में जगत पिता पधारे है तो उनके पिता की दाढ़ी तो काली होनी ही है
पर नन्द बाबा को कुछ पता नही की ये क्या कारण है।
उतने में बाबा की बहिन ठाकुजी की भुआ ( सुनन्दा )ख़ुशी से झूमती , उछलती हुयी दूर से ही ऊँचे स्वर में बाबा को आवाज लगा रही है ,
बाबा ! नन्द बाबा !! ऒऒ बाबा !! अरे ऒऒ भईया !!
बाबा बोले अरी पगली क्या हुआ है ? क्यों चिल्ला रही हो ?
'बोली अरे भईया खबर ऐसी है की सुनोगे तो नाच उठेगे
"अरे पगली बोल तो सही क्या हुआ ?
भईया आप रोज गयियों की सेवा करते हो ,
, व्रजवासियो की निष्काम भाव से सेवा करते है आज आप की वो सब सेवा सफल हो गयी।
बाबा बोले पर बता तो सही की ऐसा क्या हुआ है ?
सुनन्दा ने कहा की भईया भाभी के लाला हुआ है !!!!!
नन्दबाबा ने जब सुना की लाला हुआ है उस समय नन्द बाबा की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा
बाबा ने सुनन्दा जी को अपने गले का हार बधाई देने की भेट में दिया।
सुनन्दा जी थाली तो पहले ही बजा चुकी थी पर कहती है की
आज पुरे त्रिलोक को मुझे खबर पहुचनी है की जिनके सारी त्रिलोकी अनुगत रहती है आज वो त्रिलोकी नाथ हमारे नन्द भवन में आ गया है।
, देवताओ के नगाड़े बज रहे है दुम दुबियाँ बज रही है आकाश से फूलो की वर्षा हो रहे है अफ़्स्राये नाच रही है
सभी देवी देवता बधाई गा रहे है
सभी देवी देवता रूप बदल बदल कर बालकृष्ण लाल के दर्शन करने पधारे।
कहते है की नन्द बाबा के घर त्रिलोकी नाथ बाल कृष्ण लाल बन कर आये है वो आनन्द इतना आनन्दित था की उस आनन्द को सरस्वती जी भी लिखना छोड़ कर उस आनन्द को लेने लगी लिखना भूल गयी , क्यों की वो आनन्द लिखने जैसा नही था वो आनन्द तो लेने जैसा था…
{ जैसी कथा है वैसा चित्र नही मिला मुझे..}
{ जय जय श्री राधे }
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