Sunday, 4 August 2013

       
              भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार..

जब समुन्द्र मंथन पर अमृत का कलश निकला तब असुरो ने , देवताओ के हाथ से  अमृत  का कलश चीन कर ले गए , और जो बलवान असुर थे उन देत्यो ने कलश को अपने हाथ में पकड रखा था , जो असुर निर्बल थे वे निति की बात कहने लगे की , देखो भाई !  अमृत  के लिए समुन्द्र मंथन तो देवताओ ने भी किया इसलिए देवताओ को भी अमृत  मिलना चाहिए..

असुर आपस के सदभाव और प्रेम को छोड़ कर एक दुसरे की निंदा कर रहे थे और डाकु की तरह एक दुसरे के हाथ से
अमृत का कलश छीन रहे थे इस बीच में उन्होंने देखा की एक बड़ी सुंदरी स्त्री उनकी और चली आ रही है वो कहने लगे  की देखो तो कैसा अनुपम्म सोंदर्य है शरीर में से कितनी अदभुत छटा छटक रही है तनिक उसकी नयी उम्र तो देखो.. 
बस अब वो आपस की लाग डाट भूल कर उसके पास दोड़ गये

उन लोगो ने काम मोहित हो कर उससे पूछा की
कमल नयनी तुम  कौन हो ?
कहा से आ रही हो ?
क्या करना चाहती हो ?
सुन्दरी ! तुम किसकी कन्या हो ?
तुम्हे देख कर हमारे मन में खलबली मच गयी है हम समझते है की अब तक देवता देत्य शिद्ध गन्धर्व चारण और लोग पालो ने भी तुम्हे स्पर्श तक नही किया होगा फिर मनुष्य तो तुम्हे कैसे छू पाते
सुन्दरी ! अवश्य ही विधाता ने दया करके शरीर धारियों की सम्पूर्ण इन्द्रिया एवम मन को तृप्त करने के लिए तुम्हे यहाँ भेजा है


असुर बोले  "मानिनिय ! वैसे हम लोग एक ही जात के है फिर भी हम सब एक ही वस्तु चाह रहे है इसलिए हम में डाह और बैर की गाठ पड़ गयी है सुंदरी ! तुम हमारा झगड़ा मिटा दो हम सभी कश्यप जी के पुत्र होने के नाते सगे भाई है हम लोगो ने अमृत के लिए बड़ा पुरुषार्थ किया है , तुम न्याय के अनुसार निष्पक्ष भाव से उसे बाट दो , जिस से फिर हम लोगो में किसी प्रकार का झगडा ना हो

असुरो ने जब इस प्रकार प्रार्थना की तब भगवान ने लीला से स्त्री वैश में धारण करने वाले भगवान ने हंस कर और तिरछी चितवन से उनकी और देखते हुए कहा की आप लोग महर्षि कश्यपु के पुत्र है और में हूँ कुल्टा आप लोग मुझ पर न्याय का भार क्यों डाल रहे है ?  विवेकी पुरुष स्त्रियों का कभी विश्वास नही करते

भगवान की इस मोहिनी की परिहास भरी
वाणी से देत्यो के मन में और भी विश्वास हो गया उन लोगो ने राशी पूर्ण भाव से हंस कर अमृत का कलश मोहिनी के हाथ में दे दिया

भगवान ने
अमृत का कलश अपने हाथ में ले कर तनिक मुस्कुराते हुए मीठी वाणी से कहा में उचित या अनुचित जो भी करू वह सब यदि तुम लोगो को स्वीकार हो तो में यह अमृत बाट सकती हूँ , बड़े बड़े देत्यो ने मोहिनी की यह मीठी बात सुन कर उसकी बारीकी नहीं समझी इसलिए सबने एक स्वर मे कहा "स्वीकार" है
 

उस का कारण यह था की उन्हें मोहिनी के वास्तविक रूप का पता नही था इसके बाद एक दिन का उपवास कर के सभी देत्य स्नान कर कर  देवता व देत्य ने अपनी अपनी रूचि के अनुसार सब ने नए नए वस्त्र धारण किये उसके बाद सुन्दर- सुन्दर आभूषण धारण करके सबके सब आसन पर बैठ गये

देवता और देत्य दोनों ही धुप से
सुगंधित फूलो से और सजे सजाये भव्य भवन में पूर्व की और मुह करके बैठ गए , तब हाथ में अमृत का कलश ले कर मोहिनी सभा में आई ,

भगवान मोहिनी रूप धारण कर सभा में पधारे तब बहुत ही सुन्दर वस्त्र व आभूषण से सजे देवता व देत्य दोनों ही उनके रूप में मोहित हो गए

भगवन मोहिनी ने अपनी मुस्कान भरी चितवन से देत्य और देवताओ को देखा वे सबके सब ऐसे मोहित हो गए की उस समय उनके स्थनों पर से आचल कुछ खिसक गया ,
भगवान ने देवता और असुरो की अलग अलग पंक्तियाँ  बना दी और दोनों को कतार बांध कर अपने अपने दल में बिठा दिया , उस के बाद
अमृत का कलश ले कर भगवान देत्यो के पास चले गए , उन्हें हाव भाव और कटाक्ष से मोहित करके दूर बैठे हुए देवताओ के पास आ गए तथा उन्हें अमृत पिलाने लगे
जिसे पि कर बूढ़ापे और मृत्यु का नाश हो जाता है ,

असुर अपनी की हुए प्रतिज्ञा का पालन कर रहे थे उनको स्नेह  भी हो गया था और वे स्त्री में झगड़ने में भी अपनी निंदा समझते थे इस लिए देत्य चुप बैठे थे , मोहिनी में उनका अत्यंत प्रेम हो गया था ,वे डर रहे थे की कही उस से हमारा प्रेम सम्बन्ध टूट ना जाये , मोहिनी ने भी पहले उन लोगो का बड़ा सम्मान किया था , उस से वे और भी बन्ध गए यही कारण है की उन्होंने मोहिनी को कोई अप्रिय बात नही कही...
      { जय जय श्री राधे }


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