Saturday, 3 August 2013


उतराखंड में हुआ प्राक्रतिक कोप को लोगो ने कहा की प्राक्रति मनमानी कर रही है
सच्च कहे तो प्रकृति.. नही मनुष्य कर रहा है मनमानी..


किसी ने कहा 'पानी क्या है साहब , तबाही है तबाही
प्रक्रति को सुनाई नही देती , मासूमो की दुहाई
नदिया के इस बर्ताव से मानवता घायल हो जाती है
सच्च कहे तो बरसात के मौसम में नदिया पागल हो जाती है
ऐसा सुन कर माँ गंगा मुस्कुरायी और बयान देने जनता की अदालत में चली आई 

 जब कठघरे में आकर माँ गंगा ने अपनी जुबान खोली
तो वे करुणापूर्ण आक्रोश में कुछ यु बोली
मुझे भी तो अपनी जमीन छीनने का डर सालता है
अरे मनुष्य मनुष्य तो मेरी निर्मल धरा में केवल कूड़ा करकट डालता है
धार्मिक आस्थाओ का कचरा मुझे झेलना पड़ता है
जिन्दा से ले कर मुर्दों तक का अवशेष अपने भीतर ठेलना पड़ता है
अरे , जब मनुष्य मेरे अमृत से जल में पोलिथिन बहता है ,
जब मरे हुए पशुओ की सड़ाध से मेरा जीना मुश्किल हो जाता है
जब मेरी धारा में आकर मिलता है शहरी नालो का बदबूदार पानी
तब किसी को दिखयी नही देती मनुष्य की मनमानी ?
ये जो मेरे भीतर का जल है इसकी प्रकृति अविरल है
किसी भी तरह की रुकावट मुझसे सहन नही होती है
फिर भी तुम्हारे अत्याचार का भार धराये अपने ऊपर ढोती है
तुम निरंतर डाले जा रहे हो मुझमे ओद्योगिक विकास का कबाड़
ऐसे ही थोड़े आती है बाढ़
मानव की मनमानी जब अपनी हदे लाँघ देती है
तो प्रकृति भी अपनी सीमाओं को खूंटी पर टांग देती है
नदिया का पानी जीवन दाई है
इसी पानिने युगों - युगों से खेतो को सिच कर मानव की भूख मिटाई है
और मानव ,मानव स्वभाव् से ही आततायी है
इसने निरंतर प्रक्रति का शोषण किया
और अपने ओछे स्वार्थो का पोषण किया
नदिया की धारा को बंधता गया
मिलो फैले मेरे पाट को कंक्रीट के दम पर काटता गया
सच तो ये है की मनुष्य निरंतर नदिया की और बढ़ता आया है
नदिया की धारा को संकुचित कर इसने शहर बसाया है
ध्यान से देखे तो आप समझ पायेंगे की नदी शहर में घुसी है या शहर नदी में घुस आया है ,
जिसे बाढ़ का नाम देकर मनुष्य हैरान -परेशान है
ये तो दरअसल गंगा का नेचुरल सफाई अभियान है
नदिया का नेचुरल सफाई अभियान है
 जय गंगा मईया की....


       { जय जय श्री राधे }


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