Sunday, 4 August 2013



जरा देखो तो !! देवो के देव महा देव काम देव को भस्म करने वाले भगवान शिव ने जब विष्णु भगवान के मोहिनी रूप के दर्शन किये तब इनका भी मन , हाथ से निकल गया...

जब भोले नाथ ने यह सुना की  श्री हरी ने स्त्री का रूप धारण करके असुरो को मोहित कर लिया , और देवताओ को अमृत पिला दिया , तब वे सती देवी के साथ बैल पर सवार हो कर समस्त भूत गणों को ले कर वह आये जहाँ भगवान मधुसुधन निवास करते है..

 भगवन श्री हरी ने बड़े प्रेम से गोरी शंकर भगवान का स्वागत किया , सुख से बैठ कर भगवान का सम्मान करके मुस्कुराते हुए बोले , शंकर भगवान ने कहा की 'आप विश्व व्यापक जगदीश्वर एव जगत स्वरूप है , आप जब गुणों को  स्वीकार  करके लीला करने के लिए बहुत से अवतार ग्रहण करते है तब में उनका दर्शन करता ही हूँ ,

" भगवान शिव ने कहा की " अब में आप के उस अवतार का दर्शन करना चाहता हूँ जो आप ने स्त्री रूप में ग्रहण किया था,  जिस से देत्यो को मोहित करके अपने देवताओ को अमृत पिलाया ,
स्वामी  ! उसी को देखने के लिए हम सब आये है,  हमारे मन में आप के उस मोहिनी रूप को देखने का बड़ा ही उत्साह है।

जब भगवान शंकर ने , विष्णु भगवान से  प्रार्थना की तब वे , गंभीर भाव से हस कर शंकर जी से बोले की उस समय अमृत का कलश देत्यो के हाथ चला गया था अतः देवताओ का काम बनाने के लिए और देत्यो का मन एक नए कोतुहल की और खिंच लेने के लिए मेने वे स्त्री रूप धारण किया था ,

 देव शिरोमणि ! आप उसे देखना चाहते है इसलिए आप को में वह रूप अवश्य ही दिखाउंगा , परन्तु वो रूप तो कामी पुरुषो का ही आदरणीय है क्यों की वे काम भाव को उतेजित करने वाला है.

इस तरह कहते कहते विष्णु भगवान वही अंतर्ध्यान हो गए,  तब भगवान शिव सती के साथ चारो और द्रष्टि दोड़ाते हुए वहि बैठे रहे ,
इतने में देखा की सामने एक बड़ा सुन्दर उपवन है उसमे भाति भाति के वृक्ष लग रहे है, जब देखा की एक सुंदरी गेंद उछाल- उछाल कर खेल रही है , वह बहुत ही सुन्दर साडी एव सुन्दर  आभूषण से सजी धजी सुन्दर रूप से मोहित करने वाली, जब वो उचल उचल कर गेंद को पकडती तब उनके गले के हार स्तन हिल रहे थे , ऐसा जान पड़ता मानो उसके भार से उसकी पतली कमर पग पग पर टूटते टूटते बच जाती है ,

वह अपने लाल लाल पल्वो के समान सुकुमार चरणों से बड़ी कला के साथ ठुमक ठुमक कर चल रही है ,
उछलता गेंद जब इधर उधर चला जाता है तब वे लपक कर उसे रोक लेती है
उस समय भी वे दाहिने हाथ से गेंद उछल उछल कर सारे  जगत को अपनी माया से मोहित कर रही थी,

गेंद से खेलते खेलते उसने तनिक सज्जल भाव से मुस्कुराकर तिरछी नजर से शंकर जी की और देखा, बस शंकर जी का मन हाथ से निकल गया , वे मोहिनी को निहारने और उसकी चितवन के रस में डूब कर इतने विहल हो गए की उन्हें अपने आप की भी सुद्धि नही रही ,
फिर पास बैठी सती और गणों की तो याद ही कैसे रहती ?

एक बार मोहिनी के हाथ से उछल कर गेंद थोड़ी दूर चला गया तब वह भी उसी के पीछे  पीछे दोड़ी , उसी समय शंकर जी के देखते देखते वायु ने उसकी झिनिसी साड़ी कर्दनि के साथ उड़ाली

मोहनी का एक एक अंग बड़ा ही रुचिकर और मनोहर था , जहा आँखे लग जाती लगी ही रहती , यही नहीं बल्कि मन भी वही रमण करता , उसको इस दशा में   देख कर भगवान शंकर उसकी और अत्यंत आकर्षित हो गए , उन्हें मोहिनी भी अपने प्रति आशक्त पड़ती थी ,

उस ने शंकर जी का विवेक छीन लिया , वे उसके हाव भावों से कामातुर हो गए और , भवानी के सामने ही लज्जा छोड़ कर उसकी और चल पड़े ,

 मोहिनी वस्त्र हिन् तो पहले ही हो चुकि थी , शंकर जी को अपनी और आते देख कर बहुत लज्जित हो गयी
वे एक वृक्ष से दुसरे वृक्ष की ओट  में छिप जाती , और हंसने लगती परन्तु कही ठहरती न थी , भगवान शंकर की इन्द्रिया अपने वस् में न रही ,
वे काम  वस् हो गए , और मोहिनी को अपनी भुजाओं में पकड़ लिया

भगवान शंकर भी उन , मोहिनी वेश धारी अद्भुत कर्मा भगवान विष्णु के पीछे पीछे दोड़ने लगे उस समय ऐसा जान पड़ता था.. मानो  उनके शत्रु काम देव ने उस समय उन पर विजय प्राप्त कर ली..

जब शंकर भगवान ने देखा की अरे ! भगवान की माया ने तो मुझे खूब छकाया वे तुरंत उस दुखंत  प्रसंग से अलग हो गये , उस के बाद आत्मस्वरूप भगवान की ये महिमा जान कर कोई आश्चर्य नही हुआ , जानते थे की भला भगवान की शक्तियों का पार कौन पा सकता है।

 भगवान ने देखा की भगवान शंकर को इस से विषाद  या लज्जा नही हुई तब वे पुरुष शरीर धारण करके फिर प्रकट हो गए , और  बड़ी प्रसंता से उनसे कहने लगे ,
 देव शिरोमणि ! मेरी स्त्री रुपेणी माया से विमोहित हो कर भी आप स्वयं ही अपनी निष्ट में स्थित हो गए ये बड़ी ही आनन्द की बात है ,
मेरी माया अपार है , जो एक बार मेरी माया के फंदे में फस कर स्वयं ही उस से निकल सके वे आप के अतिरिक्त और कोई नही है...
ॐ नमः शिवाय , ॐ नमः शिवाय


    { जय जय श्री राधे }

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