श्री कृष्ण जन्माष्टमी
अष्टमी तिथि , कृष्ण पक्ष , रोहिणी नक्षत्र , मध्य रात्रि का समय कंस के करागार में माँ देवकी के आगे एका एक अद्भुत प्रकाश हुआ भगवान ( शंख , चक्र , घदा , पदम ) धारण करके प्रकट हुए
" बोले माँ ! मेने कहा की मैं अपके यहाँ पुत्र बन कर आऊंगा सो मैं आ गया
माँ देवकी बोली प्रभु ! आप पुत्र कहा हो आप तो जगत पिता बनके आये हो पुत्र कोई इतना लम्बा चोड़ा होता है क्या ? अरे मेरी सखिया देखेगी तो मेरी हसी करेगी की देखो देखो बेटा हुआ तो जन्म ते ही पच्चीस साल का बन गया।
माँ देवकी ने कहा की , हे नाथ ! मुझे तो ऐसा पुत्र चाहिए की मैं गोदी में ले सकू वो रोये तो मैं उसको दूध पिलाऊ , उसकी मुस्कुराहट देखूं , ठाकुर जी बोले है की माँ मैं आया ही तेरे मनोरथ को पूर्ण करने के लिए हूँ तू जैसा कहे वैसा बन जाता हूँ ,
भगवान कहते है की वैकुण्ठ में रहता हूँ फिर भी भक्तो के अधीन रहता हूँ अब भक्तो के पास हूँ तो भक्तो के कहे - कहे मुझे नाचना ही पड़ेगा
और जो पूरण पुर्षोतम भगवान थे वो एक दब छोटे बाल कृष्ण लाल बन गए और रोने लगे
वासुदेवजी घबराए सोचा कही रोने की आवाज सुनकर पहरेदार जाग गये तो इस बालक को भी कंश छोड़ेगा नही
अरे देवकी ! ये तूने क्या किया पहले इतना बड़ा बालक था वो अपने को सम्भाल सकता था अब ये इतना छोटा हो गया तो उनको अपने को संभालना पड़ेगा , अब इसको कहा छुपायेंगे , ठाकुर जी ने कहा बाबा ! आप मुझे गोकुल में पंहुचा दीजिये , बोले प्रभु मैं बेडियो दे जकड़ा हुआ हूँ और सब द्वार पर टेल जेड है ठाकुर बोले बाबा आप मुझे गोदी में तो लो..
वासुदेव जी ने ठाकुरजी जैसे ही अपनी गोदी में लिया पावो की बेड़िया तड़ाक सी टूट कर घिर गयी , एका एक ताले टूट गए सब द्वार खुल गए द्वारपाल सब अचेत पड़े है।
वासुदेवजी ठाकुरजी को टोकरी में ले कर यमुना जी के पास पहुचे , यमुना जी की लहरे पहले तो खूब उछल रही थी पर जैसे ही ठाकुरजी के दर्शन किये यमुना जी प्रश्न हो गयी , शांत हो गयी , अब यमुना जी शांत क्यों हो गयो क्यों की यमुना जी कहती है , की अपने प्रियतम का चरण स्पर्श तो करूँ...
पर यमुनाजी को ठाकुर जी का चरण स्पर्श नही मिल रहा है , क्यों की वासुदेवजी ठाकुर जी को ऊपर ऊपर कर देवे पहले तो ठाकुरजी को अपनी गोदी में ले रखा था पर जैसे ही यमुना जी चरण स्पर्श करने लगी तो वासुदेवजी ने टोकरी सिर पे ले ली..
,यमुना जी चरण स्पर्श करने के लिए ऊपर उठी तो वासुदेवजी ने सोचा की कही मेरे लाला को कुछ हो ना जाये तो उचे स्वर में आवाज लगाने लगे की ,अरे कोई लॊ,,,,,,,,, कोई लॊऒऒ ,,,,,,,,,,
कहते है की वासुदेवजी की आवाज , कोई लो , कोई लो , एक गाव में पहुंची तो उस गाँव का नाम ही ( कोई लो ) पड़ गया..
यमुना जी कहती है प्रभु ! मैं तो आप के चरण सपर्श करना चाहती हूँ पर आप के पिता श्री तो मुझे आप के चरण स्पर्श करने नही देते
ठाकुर जी बोले चिंता न करो मैं कृपा करता हूँ..
ठाकुर जी ने टोकरी से चरण बाहर निकले , यमुनाजी को चरण स्पर्श मिलते ही यमुना जी फिर से शांत हो गयी।
वासुदेवजी भगवान को गोकुल में यशोदा के पास सुला कर वहा से योगमाया को ले आये और फिर से कंस के कारागार में बंद हो गए नन्द बाबा के घर ठाकुर जी पधारे है पुरे गोकुल में बधाईया बज ने लगी...
नन्द घर आनन्द भयो जय कन्हिया लाल की
गोकुल में आनन्द भयो जय यशोदा लाल की
{ जय जय श्री राधे }
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