Friday, 15 February 2013

प्रत्येक आत्मा का पति एक परमात्मा ही है....

साधू संतो ने कई बार कहा है की पुरे विश्व का दूल्हा एक श्री हरी ही है और ये बात मेने भी अनेको बार महसुस की है । जब किसी गोपियाँ या मीरा के भाव लिखती हु तो मेरी आत्मा उनके दर्शन करने लगती उनमे खो जाती है धीरे धीरे वो तड़प पैदा हो जाती है , जैसे कोई आत्मा सरिरको छोड़ उनके चरणों से लिपटना चा रही हो , पर वो क्या है ?शब्द नही बनते मोन सी हो जाती हु ,मेरे भीतर एक गंभीरता छा जाती है जैसे आत्मा शर्मा रही हो अपनेमें सिमट कर लाज का घुंघट कर देती है , जैसे कोई दुलन सेज पर बेठी सिर निचे किये हुए नजरे धीरे से पलकों का घुंघट हटा रही हो । आवाज में वो खनक नही रहती , ऐसा लगता है अब कुछ भी पाना बाकी नही रहा । कृष्ण गोपी के विरह की बात लिखती हु तो चित वहि ठहर जाता है..........।
आखों के आगे वृंदावन छा जाता है| जैसे कृष्ण गोपियां को सुख देने के लिए उनके पीछे - पीछे भाग रहे हो , इतना सब कुछ समझने के बाद भी में असमझ सी हु की मेरा अश्तीत्व क्या है ?

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