मानव शक्ति अपार है
ईश्वर ने हम सभी को सबसे कीमती ये मानव जन्म और मनुष्य का शरीर दिया है
फिरभी हमारी आँखों के आगे अज्ञान का जो पर्दा है उस कारण हम असली धन को देख
नही पाते
एक नोजवान अपनी गरीबी से तंग आकर अपने भाग्य को कोसने लगा
गरीबी दूर हो इस उपाय की खोज में वो एक संत से मिला महात्मा ने उसकी पूरी
बात सुनी ,
और बोले बेटे में एक व्यपारी को पहचानता हु , वो मनुष्य के अंग खरीद कर
अच्छे पैसे देता है , तुम अपनी दोनों आखे बेच दो वो पच्चास हजार रुपये देगा
युवक बोल आप कैसी बात करते है महाराज पच्चास हजार ले कर मैं क्या करूँगा बिना आँखों अँधा ना हो जाऊंगा
तब संत ने कहा तो ठीक है दोनों हाथ बेच दो तीस हजार रूपये मिल जायेंगे ,
युवक बोला अरे दो हाँथ बेच कर तीस हजार मिल भी गए तो किस काम आयेंगे मुझे
आपयिज नही बनना ,
संत बोले तो ऐसा करो अपनी दोनों टांगे उसे बेच
दो बीस हजार रुपये मिल जायेंगे , अच्छा दोनों ना सही ऐसा करो , एक ही बेच
दो दस् हजार क्या बुरे है ?
नोजवान बोला वाह महाराज वाह क्या रास्ता बताया है धन कमाने का मैं लंगड़ा नही हो जायूँगा
संत बोले फिर ठीक है पूरा सरीर एक लाख में बेच दो ,
नोजवान बोला एक लाख तो क्या अगर कोई एक करोड़ भी देगा तो भी में अपना शारीर नही बेचूंगा
संत बोले बेटे में यही समजाना चाहता हु तुम्हे भगवान ने जब करोडो नही
अरबो खरबों की कीमत का ये शरीर दिया तो भला तुम गरीब क्यों मानते हो अपने
आप को
नो जवान संत के चरणों में गिर कर बोला महात्मः आप ने मेरी आखे खोल दी आज्ञा दीजिये मुझे क्या करना चाहिए ?
संत बोले वत्स मानव शारीर एक अपार खजाना है , नर चाहे तो नारायण बन सकता है
अपने हर अंग से काम लो इस सरीर के रोम रोम शक्ति रूपी परमात्मा को अपने मन
मंदिर में बसा कर शत कर्म करो , जिस तरह किसी के वहा काम करने पर कोई
मजदूरी नही रखता ठीक उसी तरह इस मानव शरीर से किया हुआ कर्म के अनुसार
ईश्वर मजदूरी अवस्य देता है,व् मनुष्य की इच्छा पूर्ति जरुर होती है
सोने चान्दि हीरे जवारत तो क्या ईश्वर को साक्षी मान कर किये हुए शत कर्मो
से इस लोक का खजाना तो भरता ही है व , परलोक भी सुखमय हो जाता है......
{ जय जय श्री राधे }
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