Tuesday, 5 February 2013
भगवत कथा ही मनुष्य के मोक्ष का मार्ग है
भगवत कथा जिस का अर्थ है सिर्फ भगवान से सम्बन्धित बातें उन्ही की लीलाओं का ह्रदय से स्वागत, उनके गुण का वर्णन, मनुष्य की मुक्ति कैसे हो परमात्मा की प्राप्ति कैसे हो, संसारियों से मोह हटाकर उनके चरणों में प्रेम कैसे हो, उनके चरणों में चित्त लग जाये ।
भगवत कथा सुनकर भगवान के नाम में भी प्रीति हो जाये ।
जब नाम में ही प्रीति हो तो नामधारी से वंचित कैसे रह
सकते है। इसी को भगवत कथा कहते है ।
पर आज कल कुछ संतो ने अलग ही ढंग बना रखा है।
मैं किसी संतो की निंदा नही कर रही हूँ। जैसा देख रही हूँ वो ही बता रही हूँ ।
कथा वाचक भगवत कथा तो कम करते है और नेताओ की कथा ज्यादा होती है , ऐसा क्यों?
आधे से ज्यादा समय नेताओ के स्वागत में ही बिता देते है और जो भक्त भागवत कथा सुनने आते है वो उन कथा से वंचित रह जाते है। वहां भगवान का प्रचार नही नेताओ का परचार होता है।
जरा विचार कीजिये भगवान को किसी नेता या किसी व्यक्ति विशेष से क्या लेना-देना ,परमात्मा के लिए सब एक सामन है। उस भगवत कथा की आड् में जिन नेताओ को वी-आई-प़ी बना कर स्वागत किया जाता है वो सिर्फ होठों से होता है , दिलसे नही।
वहां तो सिर्फ भगवत प्रेमिओ का ही स्वागत होता है जो स्वयं भगवान करते है। वे नेता ये नही सोचते की यहाँ तो हमारा स्वागत किया जा रहा है, पर परलोक में हमारा क्या हाल होगा। जो हमारी वजह से कथा मे विलम्ब होता है, क्या वहां भी कहेंगे की आओ नेता जी। कौन नेता, कैसा नेता ? कौन मंत्री कैसा मंत्री ? ये पहचान वहां कोई काम नही आती।
वहां तो एक ही पहचान काम आती है, हरी भक्त, जो सत्य में भगवान का प्रेमी हो जिनका भगवान के पार्षदों के द्वारा स्वागत किया जाता है की आओ भक्तो आप का स्वागत है। कितना सुन्दर आसन लगायेंगे जरा कल्पना कीजिये....
भगवान के प्रेमी इस लोक में तो सुखी होता ही है, परलोक में भी सुखी हो जाता है ।
जहाँ तक मेरे विचार हैं की जो भगवत कथा करवाता है उनसे कथावाचक संत को साफ शब्दों में मना कर देना चहिये की भागवत कथा में कोई व्यक्ति विशेष नही होगा किसी को भी वी-आई-पि मान कर स्वागत नही होगा।
कोई विशेष स्थान नही होगा। कथा सुनने वाले सभी भक्तजन एक ही समान होंगे तब सही अर्थो में भगवत कथा होती है। जहाँ सिर्फ भागवत को ही माल्यार्पण किया जाये....
कोई कथा करवाने वाला पैसे की झड़ी लगा देता है तो लोगो में चर्चा होने लग जाती है की वहां क्या गजब की कथा करवाई। मैं आप सबसे पूछती हूँ की पैसे से गजब की कथा कैसे हो सकती है? क्या उन पेसो से भगवान का प्रेम खरीद कर वहां बैठे प्रत्येक व्यक्ति के मन में डाला जाता है ? अगर ऐसा नही होता तो फिर गजब की कैसे हुई ?
गजब की वो नही होती जिनमे नेताओ को वि -आइ पि बना कर स्वागत किया जाये उनके पद का प्रचार किया जाये , बल्कि गजब की वो होती है जिस मे कथा वाचक के मुख से निकले भगवान के गुण व् उनके स्वरुप सुनने से ही भगवान में प्रीति हो जाये उनके नाम का ऐसा रंग चढ़ जाए की फिर कभी उतरे ही नही । ऐसी लगन लग जाये की जहाँ नजर जाए, श्याम सुन्दर ही नजर आये।
।। जय श्री कृष्ण , श्री राधे ।।
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