प्रभु जिसको तारे
कौन उसको मारे
प्रह्लाद जी की भक्ति देख
हिरण्यकशिप ने सोचा की ये मेरा बेटा हो कर शांत कैसे है , मेरा बेटा तो
जन्मजात से ही उत्पाती होना चाहिए , ये कैसे शान्ति से रहता है ये कैसे भजन
कर रहा है.. इसे मुझे देत्य कुलके हिसाब से बनाना पड़ेगा
और संडाम्रगऋषि के पास विद्द्या अद्ययन करने भेज दिया , जो
संडाम्रगऋषि के यहाँ एक ही शिक्षा दी जाती थी मारना कैसे ,पीटना कैसे ,
लूटना कैसे , भिड़ना कैसे , लेकिन प्रह्लाद जी तो जरा भी ध्यान नहीं देते ,
एक
दिन प्रह्लाद जी को हिरण्यकशिप अपनी गोदी में बिठा कर पूछा बेटा क्या
शिक्षा पाई ? , प्रह्लाद जी बोले पिता जी , ( श्रवणंम , कीर्तनम , विश्नो
,स्मरणम , पादसेवनम , अर्चनम वंदनम ,दाश्यम , सख्यम , आत्म निवेदम...),
ये नवदा भक्ति है ! पिता जी इन नों भक्ति में से एक भी भक्ति भगवान के
चरणों में हो जाये तो जिव का कल्याण हो जाये ! हिरण्यकशिप क्रोधित हो कर
बोले "रे मुर्ख तुझे पता है ना ! मुझे भगवान बिलकुल प्रिय नहीं लगते फिर
तू क्यों मेरे सामने भगवान का नाम लेता है ? तू जिस नारायण का नाम लेता है
वो मेरा सबसे बड़ा सत्रु है , और तुम मेरे पुत्र हो कर मेरे सत्रु का नाम
लेता है..
प्रह्लाद जी को फिर से वही संडाम्रगऋषि के यहाँ भेज दिया जहा , मारना ,पीटना , लूटना, भिड़ना इस प्रकारकी शिक्षा दी जाती थी
एक
दिन संजोग ऐसा बना की गुरु जी किसी काम से बाहर गए , प्रह्लाद जी ने सब
शिष्यों को इकट्टा किया , और सब को कहा सुनो भाई अपनको जन्म देत्य कुल में
मिला इसका अभिप्राय ये थोड़ी की अपन भी खोटा खोटा काम करे अपन भी तो भगवान
का भजन करके भगवान को पा सकते है ! उन देत्य बालको ने कहा भाई
हमको तो भगवान का भजन करना आता नही , कैसे भगवान का भजन करते है ? तू बड़ी
अच्छी अच्छी बाते करता है तुही हमे सिखादे ? प्रह्लाद जी बोले जैसे में
कीर्तन करू वैसे तुम भी कीर्तन करो,
गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो
गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो..
संडाम्रग आये बालको को कीर्तन करते देखा , की ये क्या पहले तो एक ही बालक भारी पड़ता था अब तो सब बालक बिगड़ गए ,
संडाम्रगऋषि
गए , हिरण्यकशिप के पास बोले " महाराज पहले तो आप का एक बालक ही बिगड़ा हुआ
था , अबतो सब बालक बिगड़ गये , हिरण्यकशिप ने अपने सेनिक को भेजा की जाओ
उसे पकड़ कर मेरे पास ले आओ , पर जो भी सेनिक जाते, वहाँ सब बालको को कीर्तन
करते हुए देखते , और सोचने लगते की राजा की नोकरी खूब करी पर ऐसा सुख ऐसा
आनन्द कभी नही देखा , जो होगा सो देखा जायेगा । अपने तीर ,कमान ,भाले
,तलवार , रख देते एक कोने में और सब बाल को के पीछे कीर्तन करने बैठ जाते ।
गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो
गोविन्द बोलो हरी गोपाल बोलो..
संडाम्रगऋषि
फिर आये बोले महाराज पहले तो आप का एक बालक ही बिगड़ा हुआ था, फिर सब
विद्यार्थी बिगड़े , अब तो आप की पूरी सेना भी बिगड़ गयी सब आपके सत्रु के
कीर्तन में लग गये , हिरण्यकशिप ने सोचा ये छोरा ऐसे नही मानेगा , सारा दिन
मेरे सत्रु नारायण का नाम लेता है ।
हिरण्यकशिप ने पहलादजी को मारने का आदेश दे दिया।,
होलिका नाम की
एक राक्षसी थी जिस के पास चादर थी , उसने कहा की मैं इस चादर को ओढ़ कर बैठ
जाऊ और कोई मुझे आग लगादे तो में बच जाउंगी और मैरि गोदीमे बेठेगा वो जल
जायेगा , और पहलाद जी को होलिका की गोदीमे बिठा कर आग लगादी
अचानक हवा ऐसी जोर की चली , वो चादर हवामे उड़ कर प्रह्लाद जी पर गिर गयी प्रह्लाद जी बच गए , होलिका जल गयी ।।
हिरण्यकशिप
ने अनेक प्रकार से प्रह्लाद जी को मारने की कोशिश की , पर सब जगह
प्रह्लादजी का रक्षण हो जाता , हिरण्यकशिप ने ब्रह्मा जी से बहुत से वरदान
पाए थे पर भगवान अपने भक्त का अपमान नही देख सकते अपने भक्त की रक्षा के
लिए अलग रूप से भी अवतरित हो जाते है।
आज भी हम सब होलि का त्यौहार एक भक्त के भरोसे की जीत पर ही मनाते है... जय श्री कृष्ण जय जय श्री राधे
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